सुनहरी रानी का पहाड़ : स्वीडिश लोक-कथा
Mount of the Golden Queen : Folktale Sweden
एक बार की बात है कि एक लड़का था जो अपने जानवर चराने के लिये जंगल ले जाया करता था। एक दिन वह जंगल में पड़े हुए एक खुले मैदान में बैठ कर अपना दोपहर का खाना खा रहा था कि उसने एक चूहा एक मोरपंखी की झाड़ी में भागता हुआ देखा।
उसको कुछ उत्सुकता हुई तो वह उसको पकड़ने पहुँचा। जैसे ही वह उसके ऊपर झुका तो वह तो नीचे चला गया और सो गया। सपने में उसने देखा कि वह तो सुनहरी रानी के पहाड़ पर रहने वाली राजकुमारी को ढूँढने जा रहा है। पर उसको रास्ता नहीं मालूम है। अगले दिन वह फिर अपने जानवर चराने ले गया। जब वह फिर से उसी मैदान में आया और फिर से उसने अपना खाना खाया तो फिर से उसने एक चूहा देखा। वह फिर से उस चूहे को ढूँढने जा पहुँचा।
जब वह उसको देखने के लिये झुका तो फिर से वह नीचे गिर पड़ा और सो गया। उसने फिर से सपने में देखा कि वह सुनहरी रानी के पहाड़ की तरफ वहाँ की राजकुमारी के पास जा रहा है। पर उसको वहाँ पहुँचने के लिये सत्तर पौंड लोहा और एक जोड़ी लोहे का जूता चाहिये।
वह जाग गया पर वह तो केवल एक सपना ही था। फिर भी उसने अपना मन बना लिया कि वह सुनहरी रानी के पहाड़ का पता खोज कर रहेगा। शाम होने पर वह अपने जानवरों के झुंड के साथ अपने घर चला गया।
तीसरे दिन जब वह अपने जानवर चराने के लिये फिर जंगल की तरफ चला तो वह जंगल के मैदान तक ही पहुँच पाया था कि जल्दी हो उसको वह सपना फिर दिखायी दिया। उसको वह चूहा फिर दिखायी दिया वह फिर उसके पीछे भागा।
जब वह उसको ढूँढ रहा था तो वह फिर सो गया और उसने फिर वही सपना देखा जैसा कि उसने पिछले दिनों देखा था। इस बार उसने सुनहरी रानी के पहाड़ वाली राजकुमारी को देखा। वह उसके पास आयी और उसने एक चिठ्ठी और एक सोने का कंगन उसकी जेब में रख दिया।
जब वह नींद से जागा तो उसको यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो कुछ उसने देखा वह सपना नहीं था वह तो सच था। एक चिठ्ठी और एक सोने का कंगन उसकी जेब में रखा हुआ था।
अब उसके पास जानवरों को चराने का कोई समय नहीं था। वह तुरन्त ही उनको हाँक कर घर ले गया।
फिर वह अपनी घुड़साल में गया वहाँ से एक घोड़ा निकाला उसको बेच कर सत्तर पौंड लोहा और एक जोड़ी लोहे का जूता खरीदा। उसने उस लोहे की कई पतवारें बनवायीं और अपने लोहे के जूते पहन लिये और चल दिया।
काफी दूर तक तो वह जमीन पर ही चलता रहा पर चलते चलते वह एक झील के पास आ गया। उसको उसे पार करना था। उसको अपने आगे पीछे सब तरफ पानी ही पानी दिखायी दे रहा था पानी के अलावा और कुछ नहीं। वह उस पानी में बड़ी आसानी से अपनी नाव चला रहा था। उसकी पतवारें एक के बाद एक टूटती गयीं।
आखिर वह जमीन पर पहुँच गया जहाँ दूर दूर तक घास का मैदान पड़ा हुआ था पर पेड़ एक भी नहीं था। वह उस मैदान में चारों तरफ घूमता रहा आखिर उसे एक मिट्टी का टीला मिल गया जिसमें से धुँआ उड़ रहा था।
जब उसने उसे और पास से देखा तो उसके अन्दर से एक स्त्री निकली जो नौ गज लम्बी थी। उसने उससे सुनहरी रानी के पहाड़ का रास्ता पूछा।
वह बोली — “वह तो मैं नहीं जानती तुम मेरी बहिन से जा कर पूछ लो जो मुझसे भी नौ गज ज़्यादा लम्बी है। वह भी मिट्टी के एक टीले में रहती है जिसे ढूँढना कोई मुश्किल काम नहीं है।”
यह सुन कर उसने उसे वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ा।
फिर वह एक और मिट्टी के टीले के पास आया जो दिखने में पहले जैसा ही था। उसमें से भी धुँआ निकल रहा था। तुरन्त ही उसमें से एक स्त्री निकल कर आयी जो कुछ ज़रा ज़्यादा ही लम्बी थी। उसने उससे भी सुनहरी रानी के पहाड़ का पता पूछा।
उसने भी यही कहा कि वह उसका पता नहीं जानती पर शायद उसका भाई जानता हो। सो उसको उसके भाई से जा कर पूछना चाहिये। उसने कहा कि वह उससे भी नौ गज ज़्यादा लम्बा है और वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर रहता है।
सो वह वहाँ से चल कर एक और टीले के पास आया। उस टीले से भी धुँआ उठ रहा था। वहाँ आ कर उसने उस टीले को खटखटाया तो तुरन्त ही एक आदमी निकल कर आया जो वाकई में एक बड़े साइज़ का आदमी (Giant) था। उसकी ऊँचाई सत्ताईस गज थी।
उसने उससे भी सुनहरी रानी के पहाड़ के बारे में पूछा तो उसने एक सीटी निकाली और उसे धरती के सारे जानवरों को अपने पास बुलाने के लिये चारों तरफ को मुँह कर के बजाया। सीटी की आवाज सुन कर जंगल के सारे जानवर वहाँ आ कर इकठ्ठा हो गये। उनमें सबसे आगे भालू था।
बड़े साइज़ के आदमी ने उस भालू से पूछा कि क्या उसको सुनहरी रानी के पहाड़ का अता पता मालूम है। भालू ने कहा कि नहीं वह नहीं जानता।
अबकी बार उसने पानी में जितनी भी मछलियाँ थीं उन सारी मछलियों को अपने पास बुलाने के लिये सीटी बजायी। सारी मछलियाँ उसके पास तुरन्त ही आ गयीं। उसने उन सबसे पूछा कि क्या उनमें से कोई सुनहरी रानी का पहाड़ का अता पता जानता था। पर उन्होंने भी मना कर दिया कि वे नहीं जानतीं।
इसके बाद उसने आसमान की सारी चिड़ियों को बुलाने के लिये अपनी सीटी बजायी तो सारी चिड़ियें उसके पास आ कर इकठ्ठा हो गयीं। उसने गरुड़ से पूछा कि क्या उसने सुनहरी रानी का पहाड़ देखा है।
गरुड़ बोला “हाँ मैंने देखा है।”
बड़े साइज़ वाला आदमी बोला — “तो इस लड़के को वहाँ ले जाओ। और देखो उससे ठीक से पेश आना।”
गरुड़ ने कहा कि वह उसको ठीक से ही ले जायेगा और उसको अपनी पीठ पर बिठा लिया। उसको ले कर वह हवा में उड़ चला – जंगलों और खेतों के ऊपर पहाड़ियों के ऊपर और घाटियों में से हो कर। बहुत जल्दी ही वे समुद्र के ऊपर उड़ रहे थे। इस समय उन्हें आसमान और पानी के अलावा और कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। तभी गरुड़ ने लड़के को पानी में उसके टखनों तक डुबोया और उससे पूछा “क्या तुम्हें डर लग रहा है?”
नौजवान बोला — “नहीं।”
गरुड़ फिर थोड़ी देर उड़ा और उसने नौजवान को उसके घुटनों तक पानी में डुबोया और पूछा — “क्या तुम डर रहे हो?”
नौजवान बोला “हाँ। पर बड़े साइज़ के आदमी ने कहा था कि तुमको मेरे साथ ठीक से पेश आना है।”
गरुड़ ने उससे एक बार फिर पूछा — “क्या तुमको सचमुच में डर लग रहा है?”
नौजवान बोला — “हाँ।”
गरुड़ बोला — “तुम्हारा यह डर वैसा ही डर है जैसा कि मैंने तब महसूस किया था जब राजकुमारी ने तुम्हारी जेब में वह चिठ्ठी और सोने का कंगन रखा था।”
और यह कहते कहते वे समुद्र के एक तरफ खड़े एक बहुत ही बड़े और ऊँचे पहाड़ के पास पहुँच गये जिसके एक तरफ लोहे का दरवाजा लगा हुआ था।
वहाँ जा कर उन्होंने वह दरवाजा खटखटाया तो एक नौकरानी ने दरवाजा खोला और उनके अन्दर ले गयी।
नौजवान तो वहीं रहा। वहाँ उसका बड़े अच्छे से स्वागत हुआ पर गरुड़ वहाँ से विदा ले कर अपने देश चल दिया। नौजवान ने कुछ पीने के लिये माँगा तो उसको शीशे के एक गिलास में कुछ पीने को दिया गया। जब उसने वह पी लिया तो उसने उस गिलास में सोने का कंगन डाल कर उसे वापस कर दिया।
जब नौकरानी सोने का कंगन पड़ा हुआ गिलास वापस अपनी मालकिन के पास ले कर गयी जो सुनहरी रानी के पहाड़ की राजकुमारी थी तो उसने उस गिलास में सोने का एक कंगन पड़ा देखा तो उसने उसको देखते ही पहचान लिया कि वह उसी का था। उसने पूछा — “क्या यहाँ कोई आया है?”
और जब नौकरानी ने कहा कि “हाँ यहाँ कोई आया है।”
तो राजकुमारी ने उससे कहा कि वह उसको उसके सामने ले कर आये। जैसे ही नौजवान उसके कमरे में अन्दर घुसा तो उसने उससे पूछा कि क्या उसको चिठ्ठी भी मिली या नहीं।
नौजवान ने अपनी चिठ्ठी को अपनी जेब से निकाला जो उसको कितनी अजीब तरीके से मिली थी और राजकुमारी को दे दिया।
राजकुमारी ने उसको पढ़ा और खुशी से चिल्ला पड़ी “अब मेरे ऊपर पड़ा जादू टूट गया।”
उसी समय वह पहाड़ एक बहुत ही सुन्दर किले में बदल गया। बहुत तरीके के जवाहरात कीमती चीज़ें सब तरह की आराम की चीज़ें नौकर चाकर आदि उसमें प्रगट हो गये।
यह कहानी यह तो नहीं बताती कि फिर उन दोनों की शादी हो गयी या नहीं पर हम मान लेते हैं कि इस कहानी के अन्त में भी ऐसा ही हुआ होगा क्योंकि सभी कहानियों के अन्त में ऐसा ही होता है।
(नोट — यह कहानी पढ़ने में कुछ अधूरी सी लगती है। कई चीज़ें इसमें ठीक से समझायी नहीं गयी हैं।)
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)