मोती बोने की कला : अकबर-बीरबल की कहानी

Moti Bone Ki Kala : Akbar-Birbal Story

एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में जोरों का कोलाहल सुनाई दिया। सभी लोग बीरबल के खिलाफ नारे लगा रहे थे, "बीरबल बदमाश है, पापी है, इसे दंड दो"

बादशाह ने भारी जनमत को बीरबल के खिलाफ देख आज्ञा दी कि बीरबल को सूली पर चढ़ा दिया जाए। दिन तय हुआ। बीरबल ने अपनी अंतिम बात कहने की आज्ञा मांगी।

आज्ञा मिलने पर उसने कहा, "मैंने सारी चीजें तो आपको बता दीं, पर मोती बोने की कला नहीं सिखा पाया।"

अकबर बोला, "सच, क्या तुम वह जानते हो? तो ठीक है जब तक मैं यह सीख न लूं, तुम्हें जीने का अवसर दिया जाता है"

बीरबल ने कुछ विशेष महलों की ओर इशारा करते हुए कहा, "इन्हें ढहा दिया जाए क्योंकि इसी जमीन में उत्तम मोती पैदा हो सकते हैं"। महल ढहा दिए गए। ये महल बीरबल की झूठी शिकायत करने वाले दरबारियों के थे। वहां बीरबल ने जौ बो दिए। कुछ दिन बाद बीरबल ने सभी से कहा, "कल सुबह ये पौधे मोती पैदा करेंगे"

अगले दिन सभी आए। ओस की बूंदें जौ के पौधों पर मोती की तरह चमक रही थीं। बीरबल ने कहा, "अब आप लोगों में से जो निरपराधी, दूध का धुला हो, इन मोतियों को काट ले। लेकिन यदि किसी ने एक भी अपराध किया होगा तो ये मोती पानी होकर गिर जाएंगे"

कोई आगे न बढ़ा। लेकिन अकबर समझ गए कि गलतियां तो सभी से होती हैं। बादशाह ने बीरबल को मुक्त कर दिया। सार यह है कि किसी को दंडित करने से पूर्व उसके दोषी या निर्दोष होने के बारे में भलीभांति जांच कर लेनी चाहिए।

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