Mor Aur Neelkanth : Aesop's Fable

मोर और नीलकंठ : ईसप की कहानी

बरसात का मौसम था। मोर सुंदर पंख फैलाए नाच रहे थे। पेड़ पर बैठे एक नीलकंठ ने उन्हें नाचते हुए देखा, तो सोचने लगा कि काश, मेरे भी ऐसे सुंदर पंख होते, तब मैं इनसे भी ज्यादा सुंदर दिखाई पड़ता।

कुछ देर बाद वह मोरों के रहने के ठिकाने पर पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि मोरों के ढेर सारे पंख जमीन पर बिखरे हुए हैं। उसने सोचा कि यदि मैं इस पंखों को अपनी पूंछ में बांध लूं, तो मैं भी मोर जैसा सुंदर दिखने लगूंगा।

बिना देर किये उसके उन पंखों को उठाया और अपनी पूंछ में बांध लिया। वह बहुत प्रसन्न था। उसे लगने लगा कि वह भी मोर बन गया है। वह ठुमकता हुआ मोरों के बीच गया और घूम-घूमकर उन्हें दिखाने लगा कि अब उसके पास भी मोर जैसे सुंदर पंख है और वह उनमें से ही एक है।

मोरों ने जब उसे देखा, तो पहचान लिया कि वो तो एक नीलकंठ है। फिर क्या सब उस पर टूट पड़े। वे उस पर चोंच मारकर मोर-पंखों को नोच-नोचकर निकालने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने नीलकंठ की पूंछ में से सारे मोर-पंख नोंच दिए।

नीलकंठ के साथीगण दूर से यह सारा नज़ारा देख रहे थे। सारे पंख मोरों द्वारा नोंचकर निकाल दिए जाने के बाद दुखी मन से नीलकंठ अपने साथियों के पास गया। लेकिन वे सब उससे नाराज़ थे। वे बोले, “सुंदर पक्षी बनने के लिए मात्र सुंदर पंख ही आवश्यक नहीं है। हर पक्षी की अपनी सुंदरता होती है।”

सीख : दूसरों की नक़ल न करें। स्वाभाविक रहें।

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