मूर्ख बादशाह : उज़्बेक लोक-कथा
Moorkh Badshah: Uzbek Folk Tale
बहुत समय पहले एक ग़रीब आदमी का पुराना घर गिर गया और उसने एक नया घर बनाने का निश्चय किया ।
घर बन गया, केवल छत डालनी बाक़ी रह गयी थी, पर उस ग़रीब के पास पैसों की कमी पड़ गयी। उसने कारीगर से सरकंडे की छाजन बिछाकर उसके ऊपर मिट्टी डाल देने को कहा ।
"छत," वह बोला, "जब मुझसे बन पड़ा बना दूंगा ।"
ग़रीब अपने अधबने घर में रहने लगा ।
पड़ोस में एक चोर रहता था। नया घर देखकर वह सोचने लगा : "लगता है, यह ग़रीब धनवान हो गया है, इसने नया घर बना लिया है। अगर इसके यहाँ चोरी करूँ, तो काफ़ी माल हाथ लगेगा !"
रात को चोर उस ग़रीब की छत पर चढ़ गया और जैसे ही उसने पहला क़दम रखा, सरकंडे बिखर गये और वह नीचे गिर पड़ा - सीधा सोते हुए ग़रीब आदमी के ऊपर ।
ग़रीब की नींद खुल गयी और वह चोर को पकड़ने भागा, पर अंधेरा था, इस लिए चोर भाग निकला।
चोर को ग़रीब पर बड़ा गुस्सा आया। दूसरे दिन वह शिकायत करने बादशाह के पास पहुँचा ।
"तुम कौन हो ? तुम्हें क्या शिकायत है ?"बादशाह ने पूछा ।
"दानिशमंद बादशाह ! मैं एक घर में चोरी करना चाहता था। मैं उसकी छत पर चढ़ा । मगर वहाँ छत की जगह सरकंडे बिछाये हुए थे। मैं नीचे गिर पड़ा और मेरा पैर टूटते टूटते बचा । मेरी आपसे इल्तिजा है कि आप उस घर के मालिक को सजा दें।"
बादशाह ने मकान के मालिक - ग़रीब आदमी को बुलवाया ।
"क्या यह सच है कि रात को यह आदमी तुम्हारी छत में से नीचे गिरा था ?" उसने पूछा।
"जी, हुजूर, यह सच है, "ग़रीब ने जवाब दिया, "यह अच्छा हुआ कि यह मेरे ऊपर ही गिरा, वरना इसका पैर टूट जाता।"
"अगर यह सच है, तो मकान मालिक को फांसी दे दी जाये !" बादशाह ने जल्लादों को हुक्म दिया।
ग़रीब गिड़गिड़ाने लगा :
"हुजूर, मुझे क्यों फांसी दी जा रही है, सजा तो इस चोर को मिलनी चाहिए।"
"चुप रहो ! तुम्हें मुझे सीख देने की हिम्मत कैसे हुई ?"
ग़रीब ने देखा कि मामला बिगड़ रहा है और बादशाह से न्याय की आशा करना बेकार है।
"हुजूर, इसमें मेरा दोष क्या है ?" ग़रीब बोला, "छत तो कारीगर ने बनायी थी, उसी ने काम खराब किया है। उसने कमजोर सरकंडे की छाजन बिछा दी ।"
"अच्छा, तब इसे छोड़ दो और उस कारीगर को फाँसी दे दो, "बादशाह ने हुक्म दिया। जल्लाद छत बनानेवाले कारीगर को पकड़कर फाँसीघर में ले आये ।
"मेरी बादशाह से एक इल्तिजा है !" कारीगर गिड़गिड़ाने लगा ।
"बोलो ! तुम क्या चाहते हो ?” बादशाह ने हुक्म दिया ।
"हुजूर मैं बिल्कुल बेक़सूर हूँ। क़सूर तो उस कारीगर का है, जिसने छाजन बनायी थी । उसने छाजन में पतले और कम सरकंडे लगाये। अगर सरकंडे अच्छे और मजबूत होते, तो वे एक आदमी के चलने पर गिरते नहीं ।"
बादशाह ने छत बनानेवाले कारीगर को छोड़ दिया और छाजन बनानेवाले कारीगर को पकड़कर लाने का हुक्म दिया।
"छाजन तुमने बनायी थी ?” बादशाह ने पूछा ।
"जी" कारीगर ने जवाब दिया।
"इसे फांसी दे दो!” बादशाह चिल्लाया ।"सारा क़सूर इसके सरकंडों का है ।"
"हुजूर मैं एक बात कहना चाहता हूँ," कारीगर बोला । "मैं हमेशा मजबूत सरकंडे लगाता था, पर अभी कुछ दिनों से मेरे पड़ोसी को कबूतर पालने का शौक़ लगा है। उसने जब अपने कबूतरों को उड़ाया और वे आसमान में मंडराने लगे, तो मैं उन्हें देखने लगा । इसी वजह से मुझे ध्यान नहीं रहा और मैंने छाजन में कमजोर और कम सरकंडे लगा दिये । क़सूरवार तो कबूतरबाज है ।"
बादशाह ने कारीगर को छोड़ दिया और कबूतरबाज को बुलाकर उसे फाँसी देने का हुक्म दिया ।
"हुजूर! मुझे कबूतर उड़ाने और उनकी उड़ान देखने का शौक है। यह कोई बड़ा गुनाह नहीं है। आप मुझे फाँसी देंगे, तो भला इससे किसी को कुछ फ़ायदा होगा ? एक ग़रीब आदमी को मारने से तो चोर को सजा देना ज्यादा अच्छा होगा। लोग चैन से जी सकेंगे, कबूतरबाज ने कहा ।
"बिल्कुल ठीक !"
बादशाह ने मान लिया।"सारा क़सूर चोर का है। उसे पकड़कर फाँसी दे दी जाये !" उसने हुक्म दिया।
जल्लाद चोर को पकड़कर फाँसी देने लाये। पर फाँसी का तख्ता नीचा था और चोर था लंबा । जल्लादों ने चोर को फाँसी पर चढ़ाने की पूरी कोशिश कर ली पर उसके पैर हमेशा जमीन को छूते रहे।
जल्लाद बादशाह के पास आकर बोले:
"जहाँपनाह, चोर बहुत लंबा है, उसके पैर जमीन पर टिके रहते हैं, हम किसी तरह उसको फाँसी नहीं दे पा रहे हैं। क्या करें ?"
बादशाह गुस्सा हुआ :
"इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए तुम मुझसे क्यों पूछते हो ? अगर चोर लंबा है, तो क्या तुम लोग चौराहे पर जाकर कोई ऐसा आदमी नहीं ढूंढ़ सकते, जिसका कद छोटा हो ? क्या तुम्हें इतनी मामूली-सी बात भी समझ में नहीं आती ?"
जल्लादों ने बाहर आकर देखा तो उन्हें एक नाटे क़द का आदमी कंधों पर आटे का बोरा रखे दिखाई दे रहा था ।
"अरे, यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसे को बादशाह फाँसी चढ़ाना चाहते हैं।" जल्लादों ने फ़ैसला कर लिया : "बादशाह का हुक्म पूरा करना चाहिए।"
वे नाटे कद के आदमी को पकड़कर फाँसी के तख्ते पर ले आये। नाटे कद का आदमी गिड़गिड़ाने लगा :
"मेरा क़सूर क्या है? आप मुझे किस लिए फाँसी चढ़ाना चाहते हैं ? "
उसी समय बादशाह भी फाँसी का नज़ारा देखने के लिए आ गया ।
"बादशाह से मेरी एक इल्तिजा है !" नाटा आदमी चिल्लाया ।
"बोलो, क्या चाहते हो ?" बादशाह ने पूछा ।
"शहंशाह ! मैं एक ग़रीब आदमी हूँ। मैं शहर में बेचने के लिए पहाड़ों में सूखी टहनियाँ इकट्ठी करता हूँ और बोझ भी ढोता हूँ । इस तरह मैं अपने परिवार का पेट पालता हूँ। मेरा क़सूर क्या है? आप क्यों मुझे फाँसी पर चढ़ाना चाहते हैं ?"
"बेवकूफ़ !” बादशाह गाली देने लगा। "मुझे क्या मालूम तुम कसूरवार हो या नहीं ? मुझे तो बस एक आदमी को फाँसी पर लटकाना है। मैं चोर को फाँसी देना चाहता था, पर उसका क़द बहुत ऊँचा है और उसके पैर जमीन पर टिके रहते हैं। और तुम फाँसी देने के लिए बिल्कुल ठीक क़द के हो, नाटे हो ।"
"शहंशाह," अभागा आदमी गिड़गिड़ाने लगा ।
"कसूरवार तो लंबा चोर है और आप बेचारे बेकसूर नाटे आदमी को सजा दे रहे हैं। कहाँ है इनसाफ़ ! अगर चोर ज्यादा लंबा है, तो फाँसी के नीचे थोड़ी जमीन खोदने का हुक्म दीजिये ।"
बादशाह सोचता रहा, सोचता रहा फिर बोला :
"बिल्कुल ठीक है ! यह आदमी बिल्कुल ठीक कहता है। इसे छोड़े दो । चोर को फाँसी पर लटका दो। और उसके पैरों के नीचे गढ़ा खोद दो ।"
जल्लाद फिर चोर को पकड़कर फाँसी पर ले आये और उसके गले में फंदा डालक़र उसके पैरों के नीचे गढ़ा खोदने लगे ।
"जल्दी करो, जल्दी करो ! नहीं तो देर हो जायेगी। मुझे फ़ौरन फाँसी दे दो!" चोर ने जल्दी मचायी ।
"तुम्हें मरने की ऐसी जल्दी क्यों हो रही है ?” बादशाह को आश्चर्य हुआ ।
"शहंशाह ! अभी-अभी स्वर्ग के बादशाह मरे हैं । स्वर्ग के बादशाह ने मरने के पहले कहा था : "जो मरकर सबसे पहले स्वर्ग में पहुँचे, उसे बादशाह बना दिया जाये।" इसी लिए मैं जल्दी में हूँ। अगर मुझे फ़ौरन फाँसी दे दी जाये, तो मैं वहाँ पहुँचकर बादशाह बन जाऊँगा, अभी तक उनके तख्त पर कोई नहीं बैठा है। मुझे जल्दी से फाँसी पर लटका दो!" चोर फिर चिल्लाया ।
बादशाह को ईर्ष्या होने लगी। "क्या स्वर्ग का बादशाह बनना मामूली बात है! मैं क्यों न वहाँ का तख्त संभाल लूँ ?" उसने यह सोचकर जल्लादों को हुक्म दिया:
"चोर को छोड़ दो और मुझे फांसी पर लटका दो!"
"बादशाह का हुक्म सिर-आँखों पर ।" जल्लादों ने चोर को छोड़ दिया और उसकी जगह मूर्ख बादशाह को फांसी दे दी।
इस तरह प्रजा को मूर्ख बादशाह से मुक्ति मिल गयी ।