मूर्ख राजा को सीख : हरियाणवी लोक-कथा
Moorakh Raja Ko Seekh : Lok-Katha (Haryana)
लोक कथाओं के पैर होते हैं, यह बात अक्सर मेरे दादाजी लोक कथा सुनाते समय बताते थे। बडा होने पर देश देशान्तर घूमने का मौका मिला तो पाया कि दादाजी सचमुच ठीक कहा करते थे। पंचतन्त्र की कथायें संसार भर की लोक कथाओं की जननी कही जा सकती हैं। एक कथा से दूसरी कथा उत्पन्न होने की शैली का प्रथम प्रयोग इन्हीं कथाओं की देन है। उसके बाद तो सहस्र रजनी चरित्र सिन्दबाद दी सेलर आदि कितनी कथायें उपजीं। यही नहीं आज कल के सीरीयल या सोपओपेरा का पितामह इन्हे कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।
ऐसी ही एक लोक कथा आपने कई अन्य रूपों पात्रो के माध्यम से सुनी पढ़ी होगी। एक था राजा, अब राजा भी मनुष्य की औलाद होते हैं, कुछ बुद्धिमान तो कुछ मूर्ख राजा भी होते हैं। हमारे यह राजाधिराज दूसरी श्रेणी में आते हैं। राजाओं को एक गुण ईश्वर प्रदत्त होता है। वे सयाने हो या मूर्ख, सनकी होते थे। अब ना रोटी-रोजी की चिन्ता. न हल फावडा चलाना बस ठाली बैठे बिठाये उन्हें सनक न सूझे तो क्या सूझे। हमारे इस राजा चलिये नाम दे देते हैं महाराज बुद्धिराज सिंह। जी प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक शेक्सपीयर ने कहा भी है कि नाम में क्या रखा है? तो हमारे महाराज बुद्धिराज जी आंख के अन्धे नाम नैन सुख की तर्ज पर मूर्ख किस्म की राजा थे। एक दिन वे सो रहे थे कि उनके शयनागार की खिड़की के बाहर खड़े पेड़ पर एक कव्वा कांव-कांव करने लगा। राजा ने गुस्से में आकर सेवक को आज्ञा दी कि कव्वे को भगाये। राजा को देर सुबह तक सोने की आदत थी। दोबारा सोने की कोशिश की मगर नींद नहीं आई। तो नहाकर नाश्ता कर जा पहुंचे राज दरबार। आज क्योंकि जल्द आ गये थे सो उनके नौकर ने अभी सिंहासन साफ नहीं किया था। सिंहासन पर बैठने लगे तो वहां एक मकड़ी का जाला दिखा। साथ चलते सेवक ने तुरन्त साफ कर दिया। बस सिंहासन पर बैठते ही ऐलान फरमा दिया कि संसार के सबसे बेकार जीवों को खोजा जाये जो सही उत्तर देगा उसे ईनाम दिया जायेगा। समय सीमा पांच दिन।
पांच दिन बाद दरबार लगा तो सभासदों ने अपनी-अपनी आपबीती सुनाकर उत्तर दिये। किसी ने कहा गधा क्योंकि उस जैसा आलसी जीव कोई नहीं होता। किसी ने ऊंट को बताया किसी ने हाथी को। जो सेवादार राजा के हर दम साथ रहता था जिसे मक्खी व मकड़ी का किस्सा मालूम था उसने मक्खी व मकड़ी बतलाकर ईनाम ले लिया।। राजा ने हुक्म दिया कि मक्खी और मकडी बिलकल बेकार जीव हैं। इनको संसार से खत्म करने का तरीका ढूंढा जाये। राजा का मन्त्री सुबुद्धि कुमार सचमुच बुद्धिमान था। वह बोला, क्षमा करे प्रकृति का कोई जीव बेकार नहीं होता। न ही कोई छोटा बड़ा होता है। राजा को गुस्सा आ गया, उसने मन्त्री को देशनिकाला दे दिया।
कहा जाता है कि कोई भाग्यशाली आत्मा ही राजा के घर जन्म लेकर राजकुमारी या राजकुमार बनते हैं और कालान्तर में यही आगे चलकर राजा या रानी भी बनते हैं। मगर जब दुर्भाग्य राजा को घेर लेता है तो या तो उनको औलाद नहीं होती या फिर पड़ोस का कोई राजा इन पर आक्रमण कर देता है. इनका राज्य छीन लेता है। ऐसा ही कछ हमारी कहानी के राजा के साथ भी हुआ। पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया और सेनाबल अधिक होने के कारण हमारे राजा को जान बचाकर भागना पड़ा। दूसरे राजा के सैनिक पीछे पड़े थे, राजा सरपट घोड़ा दौडाये जा रहा था। जंगल में काफी दूर निकल आने पर घोड़ा थककर खड़ा हो गया। घोड़ा घायल था, थका था, गिर पड़ा और मर गया। राजा को रुकना पड़ा। फिर राजा पैदल ही भागने लगा, जान जो बचानी थी। भागते-भागते राजा भी थक गया था। एक पेड़ की शीतल छांह में बैठा तो बैठे सो गया। जिस राजा को मखमली बिस्तर पर भी नींद नहीं आती थी, वह इस पथरीली जमीन पर बैठ-बैठे सो गया। अचानक पेड़ पर बैठे कव्वा कांव-काव करने लगा। राजा की आंख खुल गई। पहले-पहल तो उसे लगा कि वह कहां आ गया? एक बार तो उसे लगा कि वह कोई स्वप्न देख रहा है। फिर सारी बातें याद आई तो वह चौंकन्ना हो गया। दूर कहीं से घोड़ों की टाप भी सुन पड़ी। उसे लगा कि उसे यूं खुले में पकड़े जाने का डर है। तो वह पास कि एक गुफा में छुप गया। कई घन्टे बाद उसे गुफा के बाहर दुश्मन के सैनिकों की आवाजें गुफा के बाहर सुनाई पड़ी। एक सैनिक गुफा के बाहर कह रहा था कि हमें गुफा के भीतर जाकर देखना चाहिये, कहीं राजा भीतर न छुपा हो? दूसरा सैनिक बोला, अरे मूर्ख देख गुफा के मुख पर कितना बड़ा जाला बना हुआ है। अगर कोई अन्दर जाता तो जाला टूट न जाता, चल आगे देखते हैं। सैनिकों के जाने के बाद राजा अन्दर से गुफा मुख पर आया तो उसने देखा कि उसके भीतर जाने के बाद मकड़ी ने गुफा के मुख को जाले से पूरी तरह ढक दिया था। अब राजा सोचने लगा कि अगर कव्वा कांव-कांव कर उसे न जगाता तो वह बाहर सोता ही पकड़ा जाता और अगर मकड़ी जाला न बनाती तो दुश्मन के सैनिक उसे ढूंढ कर पकड़ लेते। अब राजा को अपने सयाने मन्त्री की याद आई जिसने कहा था कि दुनिया का कोई जीव बेकार नहीं होता और उसकी इसी बात से नाराज होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया था। अब उसे मन्त्री की यह सलाह भी याद आई कि महाराज राग-रंग पर खर्च के बजाये, हमें अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी चाहिये। मगर अब पछताये होत क्या।
(डॉ श्याम सखा)