चाँद की मारी : पैराग्वे की लोक-कथा
Moonstruck : Lok-Katha (Paraguay)
एक बार की बात है कि पैरैगुए नाम के देश में एक लड़की रहती थी जिसका नाम था इरूप। इरूप किसी से प्यार करने लगी थी। पर वह लड़का उसका पड़ोसी नहीं था और न ही वह किसी राज्य के राजकुमार के प्रेम में फँसी थी।
इरूप का सपना तो इन सबसे ऊपर कुछ और ही था। सचमुच में ही उसका सपना इन सबसे बहुत ऊपर था। वह तो चाँद से प्यार करने लगी थी।
जब कोई सुन नहीं रहा होता तो वह फुसफुसाती — “ओह, इसकी रोशनी मेरे शरीर को कितना चमकाती है। मुझे मालूम है कि वह केवल मेरे लिये ही इतना चमकीला चमकता है।”
हर शाम वह लड़की चाँद की तरफ उसका रास्ता देखती कि वह आसमान में किस रास्ते से जाता है। फिर उसकी शान्त चाँदनी में इरूप उसको देखते देखते सो जाती। सपने में वह देखती कि शायद सचमुच ही वह किसी दिन अपने प्यार से जरूर मिलेगी। हालाँकि बहुत सारे नौजवान उससे शादी करना चाहते थे पर इरूप को उनसे कुछ लेना देना नहीं था।
उसका दिल तो बस चाँद का था सो वे नौजवान अपना टूटा दिल ले कर वापस चले जाते। और टूपा, गुआरानी लोगों का दुनियाँ बनाने वाला देवता, धीरे से ना में अपना सिर हिलाता।
एक दिन पूरे चाँद की रात को इरूप से रहा नहीं गया। वह चाँद से रो कर बोली — “मेरे प्रिय, अगर तुम नीचे नहीं आ सकते तो फिर मैं ऊपर आती हूँ।”
और यही उसने करने की कोशिश भी की। उसने अपने बागीचे में एक सबसे ऊँचा पेड़ ढूँढा और धीरे धीरे उस पर चढ़ने लगी। हालाँकि यह उसके लिये एक बहुत मुश्किल काम था पर फिर भी क्योंकि यह उसका अपना काम था जो उसको करना ही था इसलिये वह उसको करने चल दी।
वह उस पेड़ की चोटी तक पहुँचना चाहती थी और अपनी बाँहें आसमान की तरफ बढ़ाना चाहती थी। वहाँ पहुँच कर वह रोते हुए कहती — “प्रिय, मैं यहाँ हूँ इस पेड़ की चोटी पर। नीचे धरती पर आओ और मुझसे शादी कर लो।”
पर चाँद तो अपना आसमान छोड़ कर नीचे नहीं आया। यह तो एक ऐसा प्यार था जो अपनी मंजिल पर पहुँचने वाला नहीं था। हालाँकि वह लड़की सुबह होने पर पेड़ से उतर आयी पर वह चाँद के न आने से नाउम्मीद नहीं हुई। उसको पूरा विश्वास था कि एक दिन वह अपने प्रिय से जरूर मिलेगी। वह रोती रोती सोने चली गयी और टूपा ना में अपना सिर हिलाता रहा।
अगली सुबह इरूप को कम से कम एक बात का तो बिल्कुल ही यकीन था “अगर उसका चाँद नीचे नहीं आयेगा तो वह यह समझ ले कि अब वह बहुत मुश्किल में है।” और उसको खुद को भी यह मालूम था कि ऐसी हालत में उसको क्या करना है।
अबकी बार वह एक घाटी में से हो कर पहाड़ पर चढ़ने के लिये चल दी। उसके काम के लिये तो वही पहाड़ ठीक था जिसकी सबसे ऊँची चोटी हो क्योंकि तभी तो वह चाँद के सबसे ज़्यादा पास तक पहुँच पायेगी।
उसकी यह यात्रा भी उसके लिये बहुत मुश्किल थी। उस यात्रा में उसका सारा दिन लग गया।
पर जब चाँद छिपने लगा तो इरूप ने अपनी बाँहें ऊपर उठायीं और रो कर कहा — “प्रिय, मैं यहाँ हूँ, इस ऊँचे पहाड़ पर। आओ और मुझसे शादी कर लो वरना मैं मर जाऊँगी।”
पर एक बार फिर से चाँद ने आसमान नहीं छोड़ा। वह तो बस उससे दूर ही जाता जा रहा था। अब उसका तो ऐसा प्यार ही ऐसा था जो पूरा नहीं हो सकता था। अगली सुबह के सबेरे वाले समय में वह ठंड से बचने के लिये कुछ चट्टानों के पीछे बैठ गयी।
जब सूरज की धूप से पहाड़ की चोटी गर्म होने लगी तो इरूप अपने घर लौट आयी। लौटते समय जब भी इरूप उस पथरीले रास्ते पर लुढ़कते लुढ़कते बचती तो टूपा अपना सिर ना में हिलाता रहा।
अगर इरूप अब कुछ थी तो बस एक प्रेम में पागल और जिद्दी लड़की। और हालाँकि चाँद उसके लिये नीचे नहीं आया था पर फिर भी उसको उस तक पहुँचने का अपना रास्ता तो ढूँढना ही था। उसको अपने दिल में मालूम था कि “कुछ तो है जो चाँद को मेरे पास तक नहीं पहुँचने दे रहा है। पर मुझे तो अपना प्यार पाने के लिये वहाँ तक पहुँचना ही है।”
अगले दिन जब इरूप ने मैदानों के पार तक देखा तो उसके दिल में एक विचार उठा कि उसको क्या करना चाहिये।
उसने सोचा — “हर रात मेरा प्यार आसमान की यात्रा धरती के ऊपर से शुरू करता है। मुझे उससे मिलने के लिये वहीं जाना चाहिये। आखिर हम लोग वहाँ एक साथ तो होंगे।”
अगर उसने किसी और से पूछा होता तो उसने उसे बता दिया होता कि वह कभी भी “धरती के उस ऊपर वाली जगह” पहुँच ही नहीं सकती थी चाहे वह कितनी भी दूर क्यों न चलती चली जाये। क्योंकि वह जगह तो उसको हमेशा बस बहुत दूर से ही दिखायी देती रहेगी क्योंकि वह जगह तो कहीं है ही नहीं।
पर अगर वह किसी से पूछती भी और वह यह उसको बताता भी तो भी क्या वह उसकी कभी सुनती? वह उसकी सुनती ही नहीं इसलिये उसका यह बताना भी बेकार जाता।
अगले दिन उसने थोड़ा सा खाना लिया और फिर चाँद से मिलने के लिये चल दी। बहुत लम्बा सफर था।
इरूप अपने गाँव से जितनी ज़्यादा दूर चलती गयी सड़कें उतनी ही खराब होती गयीं। वह बेचारी छोटी लड़की इतना मुश्किल सफर करने के लिये तैयार हो कर नहीं आयी थी।
तीसरे पहर की गर्मी में उसका बचा हुआ सारा खाना भी खत्म हो गया और धरती के ऊपर वाली जगह का तो अभी तक कुछ पता ही नहीं था। वह बेचारी सारा दिन चलती रही।
जब आसमान थोड़ा काला होने को आया तब वह अपने छाले पड़े पैरों पर बड़ी मुश्किल से खड़ी हो सकती थी। पर तभी उसने देखा कि चाँद तो धरती से ऊपर आसमान की तरफ बढ़ता ही जा रहा है।
वह जितनी सीधी खड़ी हो सकती थी खड़ी हुई और ऊपर हाथ उठा कर रो कर बोली — “मैं यहाँ हूँ प्रिय, जहाँ धरती और आसमान मिलते हैं। आओ, तुम मुझसे मिलने के लिये ऊपर से नीचे आओ।”
पर एक बार फिर चाँद ने आसमान नहीं छोड़ा। यह तो ऐसा प्यार था जो कभी पूरा हो ही नहीं सकता था।
सुबह सवेरे के समय इरूप जब ज़रा सी खड़ी होने के लायक हो सकी तो वह गर्मी से बचने के लिये सड़क के पास किसी जगह रुक गयी।
चाँद इरूप से मिलने के लिये एक बार फिर नहीं आया था और टूपा ने एक बार फिर अपना सिर धीरे से ना में हिलाया और बुदबुदाया “बेचारी इरूप”।
उस लड़की के लिये तो घर वापस जाने का सफर भी बहुत लम्बा और दिल तोड़ देने वाला था। उसके पैरों में पड़े छाले उसको तेज़ नहीं चलने दे रहे थे।
इरूप के लिये इससे भी ज़्यादा दर्द भरी बात यह थी कि तीसरी बार भी उसका प्यार उससे मिलने नहीं आया था। शाम हो आयी थी, सूरज डूबने वाला था पर वह अभी घर से बहुत दूर थी।
चलते चलते रास्ते में एक झील पड़ी तो इरूप ने सोचा कि वह उसके पानी में अपने पैर ठंडे कर ले। पर जैसे ही वह लड़की झील के किनारे अपने पैर पानी में लटकाने के लिये बैठी तो उसकी तो साँस ही रुक गयी।
उसने उसमें जो कुछ देखा उसको पक्का करने के लिये उसने वहाँ फिर से देखा – झील के नीले ठंडे पानी में तो वाकई चाँद दिखायी दे रहा था।
पर इरूप बेचारी को क्या मालूम था कि वह चाँद नहीं बल्कि उसकी परछाईं थी। और वह चाँद की परछाईं तो उसके इतना पास थी कि उसको लगा कि वह उसको आसानी से पकड़ सकती थी।
उसने सोचा — “आखिर मेरा प्यार मेरे पास आ ही गया। अब हम हमेशा के लिये शादी कर लेंगे।”
और बिना किसी हिचक के इरूप ने अपने प्यार से मिलने के लिये उस झील में छलाँग लगा दी। पानी उसके चारों तरफ लिपट गया और वह फिर कभी ऊपर नहीं आयी।
पर चाँद की बेरुखी तो देखो कि आखिरी बार भी चाँद ने आसमान में से अपनी जगह नहीं छोड़ी। उसका प्यार तो ऐसा था जो कभी पूरा होने वाला नहीं था।
सुबह सवेरे के समय में टूपा ने फिर से अपना सिर ना में हिलाया और बुदबुदाया “बेचारी इरूप”।
उस प्यार की याद में जो कभी पूरा नहीं हो सका टूपा ने इरूप को एक इरूप में बदल दिया।
इरूप की बड़ी बड़ी गोल गोल पत्तियाँ बिल्कुल चाँद की शक्ल की थीं जिसको इरूप इतना पसन्द करती थी। उसका फूल हमेशा चाँद को उसके पूरे रास्ते देखता रहता।
इरूप के फूल यह काम हमेशा के लिये करते रहेंगे क्योंकि इरूप चाँद को प्यार करना नहीं छोड़ेगी और चाँद उससे मिलने के लिये कभी अपनी जगह नहीं छोडे,गा। और इसलिये वह कभी उससे मिलने भी न आ सकेगा।
1. तुपा (Tupa) - गुआरानी सृष्टि के देवता। उन्हें ब्रह्मांड, विशेषकर प्रकाश का निर्माता माना जाता है। वे सूर्य में रहते हैं।
2. इरुप का अर्थ है एक विशाल जल लिली - शायद कमलिनी, क्योंकि यह चाँद को देखकर खिलती है और रात भर चाँद के पथ का अनुसरण करती है। सुबह जब चाँद अदृश्य हो जाता है, तो यह अपनी पंखुड़ियाँ भी बंद कर लेती है।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)