Mohar Aur Kaante Ka Bhed

मोहर और कांटे का भेद

गुरु नानक एक नगर में अपना डेरा लगाए हुए थे। उस नगर के हजारों लोग नित्य-प्रति उनके दर्शन के लिए आते और उनके उपदेश सुनते थे। उस नगर का एक दूकानदार भी नित्य गुरु जी के दर्शन करने और उपदेश सुनने के लिए जाया करता था। उसके एक पड़ोसी दूकानदार ने उससे एक दिन पूछा"भाई तुम रोज शाम को कहां जाते हो।"

"गुरु जी का उपदेश सुनने—।" वह बोला "मुझे भी साथ ले चला करो।" दूसरे ने कहा पहला दूकानदार उसे साथ ले जाने के लिए राजी हो गया।

शाम को दूकान बंद करके दोनों दूकानदार गुरु जी के दर्शन करने चल दिये। रास्ते में वेश्याओं का बाज़ार पड़ता था। जब वे दोनों उस बाजार में से निकल रहे थे तो दुसरे दुकानदार की नजर एक वेश्या पर पड़ गयी । उसका मन डोल उठा । वह पहले से बोला-"तुम गुरु जी के दर्शन करने के लिए जाओ। मैं तो इस वेश्या से मिलने जा रहा है।"

"यह बुरी बात है।" पहले ने समझाया । पर दूसरे ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और वेश्या के कोठे की ओर बढ़ गया । पहला गुरुजी के उपदेश सुनने के लिए चला गया।

अब दोनों शाम को इकट्ठे अपने घर से निकलते थे । वेश्याओं के बाजार तक दोनों साथ-साथ जाते थे । वहां आकर दूसरा वेश्या से मिलने चला जाता और पहला गुरुजी के दर्शन करने चला जाता । लौटते समय दोनों एक ही स्थान पर मिलते और फिर साथ-साथ घर वापस आ जाते ।

एक दिन दूसरा जब वेश्या के कोठे पर चढ़ा तो वहां ताला लगा नज़र आया । वह बहुत निराश हुआ और लौटकर रोज के स्थान पर अपने साथी की प्रतीक्षा करने लगा। बैठे-बैठे उसने अपनी जेब से चाकू निकाला और वहां की धरती खुरचने लगा । खुरचते-खुरचते उसे मिट्टी में कोई चमकती हुई चीज दिखाई दी। मिट्टी हटाकर उसने देखा। वह एक सोने की मोहर थी। उसने सोचा यहां और भी मोहरें हो सकती हैं। वह अपने चाक से जगह को लगातार खुरचता रहा । कुछ देर बाद उसे एक मटका दिखाई दिया। वह मन ही मन बड़ा खुश हुआ। उसका विश्वास था कि उस मटके में मोहरें भरी होंगी। उसने बड़ी आशा से वह मटका बाहर निकाला । पर जब उसने मटके का मुंह खोला तो उसकी आशा निराशा में बदल गयी । मटके में कोयला भरा हुआ था।

इतने में उसे पहला दूकानदार बड़ी परेशान हालत में आता हुआ दिखाई दिया। वह लंगड़ा-लंगड़ा कर चल रहा था। दूसरे ने पूछा-"क्यों भाई, क्या हुआ? बड़े परेशान दिखाई देते हो।"

पहले ने कहा-"क्या बताऊँ । गुरु जी का उपदेश सुनकर बाहर निकला तो एक तेज कांटा पैर में घुस गया। कांटा तो निकल गया है, पर खून बन्द नहीं हुआ है और दर्द भी काफी है।"

दूसरे ने कहा- "मेरा भाग्य तुमसे अच्छा है। तुम गुरु के उपदेश सुनने जाते हो तो तुम्हें यह कष्ट मिला । मैं वेश्या के पास जाता हूं तो देखो मुझे सोने की मोहर मिली।"

यह सुनकर पहला और परेशान हो गया । पुण्य करने वाले को कष्ट मिले और पाप करने वाले को सोने की मोहर मिले, यह तो बड़ी अजीब बात हुई।
दोनों ने निश्चय किया-"आओ, गुरुजी के पास चलकर बात का रहस्य पता लगाएं।"

दोनों दूकानदार गुरु नानक के पास पहुंचे । उनकी बात सुनकर गुरुजी मुस्कराये। उन्होंने कहा-'वेश्या के पास जाने वाले दुकानदार ने पिछले जन्म में किसी जरूरतमंद व्यक्ति को एक मोहर देकर उसकी सहायता की थी। उसके बदले में इसे इस जन्म में घड़ा भरकर मोहरें मिलनी थीं। पर इस जन्म में आकर यह बुरे कामों में फंस गया। इसलिए इसका सोने की मोहरों से भरा हुआ मटका कोयले में बदल गया। परन्तु जो मोहर इसने दान की थी, वह इसे उसी तरह वापस मिल गयी।'
पहले दूकानदार ने पूछा-"परन्तु गुरुजी, मैं तो अच्छे कर्म करता हूं। मुझे यह कष्ट क्यों मिला?"

गुरुजी मुस्कराये-"इसका कारण भी लगभग वैसा ही है। पिछले जन्म में तुम अपने ग्राहकों को बहुत ठगते थे और जिन जरूरतमंद लोगों को रुपया उधार देते थे, उनसे बहुत ज्यादा ब्याज वसूल करते थे। उसके बदले इस जन्म में आकर तुमने अच्छे कर्म करने शुरू कर दिये । इसलिए सूली दिन प्रति दिन छोटी होती चली गयी और एक कांटे के रूप में बदल गयी। आज तुम्हें वही कांटा चुभा है। इससे पिछले जन्म के तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो गये हैं और तुम्हारा आगामी जीवन सुखमय बन गया है । इस तरह बुरे कर्मों से पूर्व जीवन के पुण्य भी समाप्त हो जाते हैं और अच्छे कर्मों से पूर्व जीवन के पाप भी धुल जाते हैं।"

(डॉ. महीप सिंह)