मिट्टी खोदे खपा-खप : लोक-कथा (बंगाल)

Mitti Khode Khapa-Khap : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

बहुत पहले की बात है। एक गाँव में चार मित्र थे। चारों भीषण गरीब। भीख माँगकर किसी तरह जीवन गुजारते। रोज चारों भीख माँगने निकल जाते। जो मिलता, उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालते। बहुत कष्ट में उनका जीवन बीत रहा था।

एक दिन चारों ने सोचा कि इस तरह घर-घर भीख माँगकर कब तक जीवन चलेगा? क्यों न राजा के पास जाकर भीख माँगी जाए! राजा जो देंगे, उससे निश्चय हमारे जीवन में कोई अभाव न रह जाएगा।

लेकिन राजा के पास जाकर उनसे भद्रतापूर्वक ठीक-ठीक बात करनी पड़ेगी, परंतु वे तो गँवार थे। जो बोलना चाहिए, वह न बोल कुछ और बोल देने से तो राजा नाराज हो जाएँगे और उन्हें धक्का दिलवाकर बाहर निकाल देंगे। राजा से क्या बोला जाए, यह सोचते-सोचते चारों राजा से मिलने चल पड़े। चलते-चलते उन लोगों ने देखा कि एक मोटा चूहा मिट्टी खोदकर बिल बना रहा है। उसे देख एक मित्र चिल्ला उठा, "पा गया, पा गया! राजा को क्या बोलकर भीख माँगूंगा! यह समझ में आ गया।"

अन्य मित्रों ने उससे पूछा, "क्या बोलोगे राजा को?" उसने कहा, "राजा को कहूँगा–देखिए, देखिए मिट्टी खोदे खपा-खप।"

यह सुनकर बाकियों ने सोचा कि हमारी समस्या का हल तो हुआ नहीं। कुछ और आगे चलने पर उन लोगों ने देखा कि एक मेढक जोर से उछला। यह देखते ही दूसरा मित्र चिल्ला उठा, "मिल गया, मिल गया। राजा को क्या बोलूँगा, यह मिल गया।"

बाकी सभी ने पूछा, "क्या बोलोगे?" उसने कहा, "बैठ गया है धपा-धप।"

दो मित्रों की समस्या दूर हो गई थी। बाकी के दोनों मित्र चलते-चलते ध्यानपूर्वक रास्ते के दोनों ओर देखते हुए जा रहे थे। अचानक उनकी नजर एक सूअर पर पड़ी। वह कीचड़ में लोट-पोट हो रहा था। यह देख एक मित्र उछल पड़ा, "पा गया, पा गया ! राजा को क्या बोलना है, यह पा गया।"

सभी ने उत्सुकता से पूछा, "क्या बोलना है, हमें भी बताओ!" उसने कहा, "मैं कहूँगा, घसते रहो घसा घस, फिर दो पानी।" तीन मित्रों की समस्या सुलझ गई। चौथे को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलेगा? चलतेचलते वे शहर में प्रवेश कर गए। सड़क के दोनों ओर घर थे। लोग रास्ते में जा-आ रहे थे। एक आदमी बहुत तेज गति से शहर की ओर जा रहा था। उसे देखते ही चौथा मित्र बोल उठा, "पा गया, पा गया! राजा को क्या बोलना है, पा गया। मैं कहूँगा, बड़ा रास्ता, छोटी गली। जानता हूँ, तुम क्या करना चाहते हो!"

सब अपनी बात को याद करते-करते शहर के मुख्य बाजार में पहुँचे। एक सज्जन से उन्होंने सारी बातें एक कागज में लिख देने का अनुरोध किया, ताकि वे राजा को अपनी बात बोलने में गड़बड़ा न जाएँ। उस व्यक्ति ने उनका अनुरोध स्वीकार कर उनकी बातें एक कागज पर लिख दीं। चारों राजभवन में पहुँचकर राजा के सम्मुख उपस्थित हुए। वे इस बात पर खुश थे कि राजा को बोलने का कोई जोखिम नहीं रहा।

राजा ने कागज को ध्यान से पढ़ा, पर उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आया। उन्होंने अपने दिमाग पर बहुत जोर दिया, पर कुछ भी उनके पल्ले नहीं पड़ा। चारों मित्रों ने देखा कि राजा मुश्किल में पड़ गए। उनकी लिखी बातें उनके समझ में नहीं आ रही हैं। उन्हें भय हुआ कि कहीं राजा उन्हें पढ़कर उनका अर्थ समझाने के लिए न कह दें! उन्हें तो पढ़ना भी नहीं आता था और डर के मारे वे अपनी-अपनी बात भूल भी चुके थे। फिर उस व्यक्ति ने उस कागज में उन्हीं की कही बातें लिखी होंगी, इसकी क्या गारंटी थी? डर के मारे वे वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गए।

इधर राजा के मंत्री के मन में राजा को मारकर राजगद्दी पर बैठने का पाप जगा। उसने एक षड्यंत्र रचा। उसने राजा के हज्जाम एवं एक नायब को अपने षड्यंत्र में शामिल किया। उसने हज्जाम को कहा कि कल जब तुम राजा की हजामत करने जाओगे, तो उस्तरे से उनका गला काट देना। लोभ में पड़कर हज्जाम राजी हो गया।

लेकिन राजमंत्री ने एक दूसरी योजना भी बना रखी थी। उसने सोचा कि यदि नाई अपने काम में सफल नहीं हुआ, तो फिर उसका षड्यंत्र धरा-का-धरा रह जाएगा और नाई ने सारा भेद खोल दिया तो वह गिरफ्तार हो जाएगा। यही सोचकर उसने उसी रात राज-कोषागार को खाली करने का निश्चय किया।

राज-कोषागार की देखभाल एवं उसकी रक्षा का जिम्मा जिस नायब पर था, उसे मंत्री ने पहले ही अपनी मुट्ठी में कर रखा था। उसने उसे पटा रखा था कि रात के अंधेरे में कोषागार में सेंध मारकर सारा सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात, रुपए निकाल लेगा।

रात होने पर मंत्री और नायब कोषागार की बाहरी दीवार के पीछे सेंध मारने के लिए छिप गए। इधर राजा अपने कमरे में उन चार मित्रों के दिए गए कागज में लिखी बातों को समझने का प्रयास कर रहे थे। हठात् उसके मुख से निकला, “मिट्टी खोदे खपा-खप!"

यह सुनकर मंत्री और नायब चौकन्ने हो गए। उन्हें लगा कि राजा को उनके द्वारा सेंध मारने के षड्यंत्र का पता चल गया है। अगर सचमुच ऐसा हुआ तो सर्वनाश हो जाएगा। दोनों सेंध मारना छोड़ चुपाचाप दीवार से सटकर बैठ गए। इधर राजा ने अपनी धुन में दूसरी पंक्ति पढ़ी, "बैठ गया धपा-धप।" मंत्री और नायब ने सोचा, लगता है, राजा ने उनकी चोरी पकड़ ली है। भय से उनकी हालत पतली हो गई। दोनों वहाँ से भाग खड़े हुए।

दूसरे दिन सुबह जब नाई राजा की हजामत करने को आया, तब भी राजा उसी कागज को लेकर गुत्थी सुलझाने में लगे हुए थे। योजनानुसार नाई राजा का गला काटने के लिए उस्तरे को धार देने लगा। हठात् राजा बोल उठा, “घसते रहो, घसा-घस, फिर दो पानी।"

नाई चौंक उठा। उसने सोचा, राजा हजामत से पहले उनके मुख पर पानी लगाने के लिए बोल रहे हैं। इसीलिए जब वह राजा के मुख पर पानी लगाने लगा, तभी राजा बोल उठे, “जानता हूँ, तुम क्या करना चाहते हो!"

नाई को काटो तो खून नहीं! उसने सोचा कि निश्चित रूप से राजा उसकी चाल समझ गए हैं। बचने का कोई उपाय नहीं जानकर वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा और अपना सारा अपराध स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही उसने मंत्री के षड्यंत्र का भी भांडा फोड़ दिया। सब सुनकर राजा ने नायब को आदेश दिया कि मंत्री और नाई को अभी बंदी बनाकर कारागार में बंद कर दिया जाए। नायब ने सिपाही को बुलाकर नाई को गिरफ्तार कर लिया। जब उसे गिरफतार कर ले जाया जा रहा था, तब राजा के मुख से हठात् निकल गया, "मिट्टी खोदे खपा-खप।"

यह सुनकर नायब ने सोचा कि यह तो सर्वनाश हो गया। निश्चित रूप से राजा उसके द्वारा सेंध मारने की बात कह रहे हैं। अब तो उसे भी कारागार में जाना पड़ेगा। बिना देर किए वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।

अपने खिलाफ चलनेवाले इतने बड़े षड्यंत्र को जानकर राजा तो भीषण आश्चर्य में पड़ गए। बाहर जाकर कोषागार की दीवार पर सेंध काटने से हुए गड्ढे को उन्होंने अपनी आँखों से देखा। राजा के आदेश से तीनों अपराधियों को कारागार में डाल दिया गया।

राजा ने सोचा, यह तो सामान्य बात नहीं है। इतने बड़े षड्यंत्र की बात उन चारों ने सांकेतिक रूप से उन्हें पहले ही बता दी थी। उस कागज में लिखी बातों के कारण ही तो आज उसके प्राण बच गए, कोषागार लुटने से बच गया।

राजा ने उन चारों को ढूँढ़ने के लिए चारों दिशाओं में अपने दूत भेजे, ताकि उन्हें सम्मानित एवं पुरस्कृत कर सकें। लेकिन चारों मित्र राजा की उस भंगिमा को देखकर इतने डर गए थे कि वे भागकर कहाँ चले गए, किसी को उनकी कोई खबर नहीं मिली।

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