मिट्टी : जेम्स जॉयस
(आयरलैण्ड ने विश्व-साहित्य को जो अनगिनत प्रतिभाएँ दी हैं, जेम्स जॉयस (1882-1941) उनमें से एक है। जॉयस ने सामान्य मानव की नियति को अभिव्यक्ति देनेवाली कहानियाँ ही नहीं लिखीं, उपन्यास भी लिखे और मार्सेल प्रूस्त तथा वर्जीनिया वुल्फ की ‘स्ट्रीम ऑफ कांशसनेस’ उपन्यास-धारा को ‘यूलिसिस’ जैसे महाग्रन्थ का योगदान दिया। यहाँ दी गयी कहानी जॉयस की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक है।)
मेट्रन ने कहा था, औरतों की चाय खत्म होते ही उसकी छुट्टी है। मारिया इसी के इन्तजार में थी। रसोईघर लम्बा-चौड़ा और साफ-सुथरा था। बावर्चिन ने कहा, इन ताँबे की देगचियों में तो तुम अपनी शक्ल भी देख सकती हो! आग की लपटें, सुनहरी-रेशमी थीं। कोने की एक मेज पर चार बड़े काफी लजीज केक पड़े थे। देखने में अनकटे, पर पास से देखने पर टुकड़े नजर आते थे-मोटे-मोटे, बड़े और एक-से-चाय पर दिये जाने के लिए तैयार। वे मारिया ने ही काटे थे। आज ‘हेलोईव’ का पर्व था और लाण्ड्री में काम करनेवाली औरतों को खासतौर से केक दिये जाने थे।
कद-कामद में मारिया नन्ही-सी थी, पर उसकी नाक और ठोड़ी बहुत बड़ी थी। वह थोड़ा नकियाकर बोलती थी, पर मीठी बोली में-‘हाँ भइया’, या ‘नहीं भइया’। जब भी औरतों में झगड़ा होता, टब वगैरा को लेकर, तो मारिया को ही निबटाने के लिए भेजा जाता। एक बार मेट्रन ने कहा था-तू तो पूरी सरपंच है।
छोटी मेट्रन और साथ की औरतों ने यह बात सुनी भी थी। जिजर मूनी हमेशा कहती थी कि उस इस्त्री करने वाली मूरख औरत को वह सबक सिखा देती, अगर मारिया न होती तो! हरेक मारिया पर लट्टू था।
औरतों की चाय छह बजे तक हो जाएगी और वह सात के करीब निकल पाएगी। बाल्सब्रिज से पिलर : बीस मिनट, पिलर से ड्रमकोंडरा : बीस मिनट और बीस मिनट चीजें खरीदने के लिए। आठ के आस-पास वहाँ पहुँच जाएगी। उसने पर्स निकाला। उसके अँकुरे चाँदी के थे। फिर उसने वे शब्द पढ़े - ‘मारिया के लिए, बेल-फास्ट बाजार का यह उपहार।’ उसे यह पर्स बहुत प्यारा था। एल्फी के साथ जब जो ‘पवित्र सोमवार’ को बेल-फास्ट के बाजार गया था, तभी लाया था - पाँच बरस पहले। पर्स में कुछ नोट और रेजगारी थी। ट्राम-किराया देकर भी काफी पैसे बचनेवाले थे। उन सबके साथ शाम बड़ी अच्छी गुजर जाएगी, बच्चे खूब गाएँगे, एक ही बात उसे लग रही थी कि कहीं जो पउआ लगाकर न लौटे। पी लेने के बाद वह अजीब हो जाता है।
बहुत बार जो ने चाहा कि मारिया उन्हीं के साथ रहे। पर उसे हमेशा यही लगा कि वह ख्वाहमख्वाह किसी की सड़क क्यों काटे, (हालाँकि जो की बीवी हमेशा अच्छी तरह पेश आती है) और अब तो उस लाण्ड्री में रहते-रहते आदत भी पड़ गयी है। जो बड़ा अच्छा है। उसने जो और एल्फी को पाला भी है। जो कई बार कहता भी है - मम्मी ने मुझे जन्म दिया होगा, पर मेरी असली माँ मारिया है।
जब घर बारह बाँट हुआ, तो लड़कों ने कोशिश करके उसे ‘डबलिन बाई लैम्पलाइट लाण्ड्री’ में लगवा दिया। उसे यह धुलाई-घर पसन्द भी आया। पहले वह प्रोटेस्टैण्ट लोगों के बारे में कभी अच्छा नहीं सोच पाती थी, पर अब उसे लगता था, ये लोग बड़े अच्छे होते हैं। थोड़े चुप्पे और गम्भीर चाहे हों, पर हैं कायदे के।
बावर्चिन ने कहा कि सब तैयार है, फौरन मारिया ने हाल में पहुँचकर घण्टी टनटना दी। कुछ ही मिनटों में दो-दो, तीन-तीन करके लाण्ड्री में काम करने वाली औरतें आने लगीं - पेटीकोटों से पसीने हुए हाथ पोंछते और पसीजी लाल-लाल बाँहों पर आस्तीनें खींचते हुए। मग्गों में चाय ढाले जाने से पहले ही वे बैठ गयीं। टीन के तामलोटों में पत्ती-दूध-चीनी मिली और खूब उबली हुई चाय तैयार थी।
मारिया केकों के बँटवारे को कायदे से देख रही थी कि सबको चार-चार टुकड़े मिल जाएँ। हँसी-मजाक खूब चल रहा था। आखिर ‘हेलोईव’ का पर्व था, लिजी फ्लेमिंग ने हो-हो करके कहा - आज मारिया को कोई अँगूठी जरूर पहनाएगा...! हर ‘हेलोईव’ के पर्व पर वह यही कहती है और मारिया भी हँसकर टाल देती है - मुझे न अँगूठी चाहिए, न मर्द! और जब वह यह कहते हुए हँसी, तो उसकी कंजी आँखों में निराशा भरी लाज की कनी चमक उठी। और लम्बी नाक जैसे ठोड़ी को छूने लगी। तभी जिंजर मूनी ने अपना मग्गा उठाकर कहा-मारिया के लिए... चाय से ही सही, शराब तो है नहीं! बाकी औरतों ने मेज पर एक जगह जमघट लगा लिया था। मारिया फिर हँसी, इतना हँसी कि इस बार तो जैसे लम्बी नाक का सिरा सचमुच उसकी लम्बी ठोड़ी छूने लगा और उसका नन्हा-सा छरहरा शरीर दुब्बर हो गया। वह जानती थी कि मूनी सचमुच उसके लिए अच्छा ही चाहती है... वह सब की तरह ही सोचती है।
पर मारिया तब ज्यादा खुश थी, आन्तरिक रूप से जब औरतें चाय पी चुकीं, और बावर्चिन तथा नौकरानी मेज साफ करने लगीं, वह फौरन अपनी कोठरी में गयी। घड़ी देखते ही याद आया कि कल सुबह ‘धर्मसमाज’ है, उसने अलार्म की सुई सात से छह पर खिसका दी। कामकाजी लबादा और बूट उतार दिये। उसने सबसे बढ़िया पोशाक बिस्तर पर रखी, बदले में पहननेवाले जूते निकाले और ब्लाउज बदलने लगी। सामने शीशे में अपने को देखा, तो वे लड़कपन के दिन याद आये, जब रविवार के धर्मसमाज में जाने के लिए सजती थी, उसने बड़ी चाहत से अपने नन्हे-से शरीर को देखा... जो उसे हमेशा सुन्दर लगता था। वक्त के गुजरते जाने के बावजूद उसे लगा कि यह सब अभी भी सलोना है।
वह बाहर आयी, तो सड़कें बारिश से धुली हुई चमक रही थीं। पुरानी खाकी बरसाती अब भी उसके साथ थी। ट्राम खचाखच भरी हुई थी, इसलिए उसे कोनेवाली छोटी सीट पर बैठना पड़ा, जहाँ से पूरी ट्राम की भीड़ दिखाई देती है। उसके पैर लटके-लटके-से थे, फर्श तक नहीं पहुँच पा रहे थे। बैठे-बैठे उसने एक-एक बात क्रम से सोच डाली कि उसे क्या-क्या करना है। सोचते-सोचते यह भी लगा कि इस तरह अपनी जिन्दगी जीना भी अच्छा है, जेब में पैसे हों, बस। वे सब इस शाम बहुत खुश होंगे। सिवा इसके कि जो और एल्फी में इधर बोलचाल बन्द है। अब दोनों बहुत लड़ने लगे हैं। जब बच्चे थे, तो एक-दूसरे से चिपटे रहते थे... पर खैर... यही होता है।
पिलर पहुँचते ही वह ट्राम से उतर पड़ी और नन्हे-नन्हे तेज कदमों से भीड़ में होती हुई केकवाले की दुकान में पहुँच गयी, भीड़ बहुत थी, इसलिए उसे इन्तजार करना पड़ा। उसने एक दर्जन छोटेवाले केक खरीदे और बण्डल लेकर बाहर आ गयी। फिर उसने सोचा - कुछ और बढ़िया चीज भी खरीदी जाए। सेव और अखरोट तो वे भी लाये होंगे। घूम-फिर कर बढ़िया केक ही रह जाता था। पर इसके यहाँ बेरी का बढ़िया केक नहीं है, न उस पर बादाम की पूरी आइसिंग है। वह हेनरी स्ट्रीट चल दी। दुकान में पहुँचकर वह कुछ देर केकों को जाँचती-परखती रही। बेचनेवाली उसे दुकान में देखकर कुछ चिढ़ी-चिढ़ी भी लग रही थी। आखिर लड़की ने कह ही दिया - आपको चाहिए क्या? शादी का केक खरीदना है?
सुनकर मारिया थोड़ा सकुचा गयी। लड़की की ओर देखकर धीरे-से मुसकरा भर दी। पर लड़की की चिढ़ ज्यों-की-त्यों रही। उसने बताया हुआ टुकड़ा काटा, लपेटा और अफरा-तफरी में बोली - सवा तीन लाइए।
ड्रमकोंडरा से वह ट्राम में चढ़ी, तो जगह बिलकुल नहीं थी। नौजवान लोग तो उसके लिए जगह छोड़नेवाले थे नहीं। उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया, तभी एक अधेड़ ने उसे अपनी जगह दे दी। वह आदमी सिलेटी हैट पहने था और खासा चुस्त था। मूँछें थोड़ी-थोड़ी खिचड़ी हो चली थीं। चेहरा गोल था। मारिया को वह कर्नल जैसा दिखने वाला आदमी ज्यादा शालीन लगा, बनिस्बत उन नौजवानों के, जो देखते हुए भी कहीं नहीं देख रहे थे। वह अधेड़ से हेलोईव पर्व और बारिश को लेकर बतियाने लगा। मारिया के बण्डलों को देखकर उसने कहा, लगता है, बच्चों के लिए बहुत-सी चीजें आपने खरीदी हैं... बच्चे बचपन में ही यह मजे उड़ा सकते हैं, उड़ाना ही चाहिए। मारिया जी हाँ-जी हाँ करती रही, जैसे वह बिलकुल सहमत हो। जब वह नहर पुल पर उतरी, तो उसने अधेड़ को धन्यवाद दिया। अधेड़ ने झुककर अभिवादन का जवाब दिया, हैट हिलाया और शालीनता से मुसकराकर देखा। और जब वह बारिश में सर झुकाये हुए गलियारे में चढ़ रही थी, तो उसे लगा कि यह आसान-सी पहचान भी कितनी प्रचुर थी... तब, जब कि वह कुछ ज्यादा बोला-चाला भी नहीं।
जैसे ही वह जो के घर पहुँची, सब एकदम उछल पड़े। मारिया! मारिया! जो भी घर में था, सब बच्चे अच्छे कपड़े पहने हुए थे। पड़ोस की दो बड़ी लड़कियाँ भी थीं और खेल चल रहे थे। मारिया ने छोटे केकों का बण्डल बड़े लड़के को पकड़ा दिया कि वह बाँट दे। जो की पत्नी ने इतने सारे केक लाने के लिए मारिया को प्यार से देखा और बच्चे मौज मारने लगे।
तुम्हारे पापा-मम्मी के लिए मैं और बढ़िया वाला केक लायी हूँ - बेरी वाला! मारिया बोली और इधर-उधर उसे ढूँढ़ने लगी। उसने झोला देखा, बरसाती उलटी-पुलटी, पर वह नहीं मिला, तो उसने बच्चों से पूछा, किसकी शैतानी है? जल्दी बताओ!
सब बच्चे मना करने लगे और ऐसे सकुचा गये, जैसे यह इलजाम लेकर वे छोटे वाले केक भी नहीं खाएँगे। सब लोग कुछ-न-कुछ सफाई देने लगे, पर जो की बीवी ने मामला सुलटा दिया - लगता है, वह केक तुम ट्राम में ही भूल आयी हो! तब एकाएक मारिया को लगा कि उस अधेड़ की बातों ने भीतर-ही-भीतर कितना उलझा दिया था... अजीब से संकोच, अनपहचानी निराशा और अव्यक्त सन्ताप में वह बिंध गयी थी।
सवा तीन शिलिंग के उस केक को एकदम पेश करके चौंका देने की जिस खुशी की वह कामना किये हुए थी, वह पूरी नहीं हुई, साथ ही उसके खो जाने की पीड़ा से वह लगभग रो-सी पड़ी।
जो ने कहा कि तो क्या हुआ। और उसे आग के पास बैठा दिया। उससे जो हमेशा अच्छी तरह पेश आता है। वह अपने दफ्तर की बातें सुनाता रहा, खासतौर से अपना वह जवाब, जो उसने मैनेजर को दिया था, कई बार दोहराया। मारिया को उसके उस जवाब में कुछ खास लुत्फ नहीं आया, पता नहीं जो क्यों इतना हँस रहा था। उसने सिर्फ इतना ही कहा कि तुम्हारा मैनेजर बहुत सहनशील आदमी लगता है। जो ने कहा कि एक बार अगर आदमी की नस समझ ली जाए, तो फिर मुश्किल नहीं होगी। मैनेजर आदमी बुरा नहीं है, बस इतना भर है कि उसे पंजा न मारा जाए, जो की पत्नी पियानो बजाने लगी थी। बच्चे नाचने-गाने लगे। पड़ोसी लड़कियाँ अखरोट बाँटने लगीं। तोड़ने के लिए जब कहीं कुछ न दिखाई दिया, तो जो जरा बिगड़ा - मारिया इन्हें कैसे तोड़ पाएगी। कुछ तो ख्याल करना चाहिए। तभी मारिया ने यह कहकर कि अखरोट उसे पसन्द भी नहीं, बात को वहीं तोड़ दिया। तब जो ने उससे शराब के लिए पूछा। यह सुनते ही जो की पत्नी बोल पड़ी - थोड़ी पोर्ट (बेहतर शराब) भी है, जो कहो, वही लाऊँ। मारिया ने मना किया, पर जो नहीं माना।
वे सब आग के आसपास ही जम गये। पुरानी बातों को याद करते हुए मारिया ने सोचा कि एल्फी को लेकर कुछ बात करे, शायद वे दोनों... पर जो उसका नाम सुनते ही आपा खो बैठा-इस पर गाज गिरे, भगवान करे! मुझसे अब कभी बोला तो...
मारिया ने फौरन बात को टाला - मैंने ख्वाहमख्वाह उसका जिक्र...
जो की पत्नी ने इतना जरूर कहा कि एक पेट के जाये भाई के लिए अनाप-शनाप बोलना ठीक बात नहीं है, तो जो फिर बिफरा-वह मेरा भाई नहीं है, दुश्मन है, दुश्मन! पर खैर... यह त्योहार का दिन है... कहते हुए उसने बात वहीं छोड़ दी और शराब की एक और बोतल खोलने को कहा। पड़ोसी लड़कियों ने कुछ तमाशे तैयार कर लिये थे। वातावरण फिर मौज से भर गया। बच्चों, जो तथा जो की पत्नी को इतना खुश देखकर मारिया को बड़ी खुशी हो रही थी। पड़ोसी लड़कियों ने मेज पर कुछ तश्तरियाँ रखीं, और बच्चों को आँखें मूँद लाया गया, खेल खेला गया। एक को प्रार्थना-पुस्तक मिली, तीन के हाथ सिर्फ पानी आया। पड़ोसी लड़की को अँगूठी मिली, तो जो की बीवी ने शरमाती हुई उस लड़की को छेड़ा-मैं सब जानती हूँ, क्यों... तब मारिया की आँखें मूँदने के लिए शोर मचा कि देखें, उसे क्या हासिल होता है। जब तक उसकी आँखों पर पट्टी बाँधी गयी, वह बेसाख्ता हँसती रही। उसकी नाटक ठोड़ी से मिलने-मिलने को होती रही।
मारिया को मेज के पास लाया गाया। हँसी-मजाक जारी था। बताये अनुसार उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिये। हवा में कुछ खोजते हुए धीरे-धीरे उसके हाथ मेज पर रखी एक तश्तरी पर आ टिके। उसे तश्तरी में कुछ मुलायम गीली-गीली-सी चीज महसूस हुई, पर किसी ने न तो पट्टी खोली, न कोई कुछ बोला, तो उसे ताज्जुब हुआ, कुछ क्षणों के लिए खामोशी रही, फिर एकाएक कुछ सरसराहट और खुसुर-पुसुर भी सुनाई पड़ी। किसी ने शायद बाग का नाम लिया। आखिर जो की बीवी ने पड़ोसी लड़की से डाँट भरे शब्दों में कुछ बाहर फेंकने को कहा, और यह भी कि खेल का यह कोई तरीका नहीं है। मारिया समझ गयी कि खेल का यह कोई तरीका नहीं है। मारिया समझ गयी कि कुछ शैतानी की गयी थी। जब दुबारा उसने तश्तरी को छुआ, तो उसके हाथ एक प्रार्थना-पुस्तक आयी।
इसके बाद जो की बीवी बच्चों को एक और तमाशा दिखाने लगी। जो ने शराब का एक और गिलास लाकर मारिया को पकड़ा दिया। फिर वही समाँ छा गया। जो की पत्नी ने कहा, साल खत्म होने के पहले ही मारिया मठ में चली जाएगी, क्योंकि आज के दिन उसे प्रार्थना-पुस्तक मिली है। मारिया बहुत प्रसन्न थी, क्योंकि जो उसका हद से ज्यादा ख्याल रख रहा था और वे दोनों बहुत-सी पुरानी बातों को खोद-खोदकर याद कर रहे थे। उसने सोचा-सब लोग कितने अच्छे हैं।
बच्चे थककर निदारे होने लगे, तो जो ने मारिया से कहा, जाने से पहले एक गीत हो जाए... वही कोई पुरानावाला। जो की बीवी ने भी इसरार किया। सो मारिया को उठना पड़ा। वह पियानो के साथ खड़ी हो गयी। जो की बीवी ने बच्चों को ताकीद की और पियानो छेड़ा। बहुत शरमाते हुए मारिया ने थरथराती महीन आवाज में गीत शुरू किया, शुरू की लाइनों को उसने दोहराया -
मैंने सपना देखा
कि संगमरमर के महल में मैं रह रही हूँ
चारों तरफ दास दासियाँ हैं... प्रजा और गुलाम हैं...
जितने भी वहाँ थे
उनकी आँख का तारा थी मैं
उनकी उम्मीदों का सहारा थी मैं
इतनी सम्पदा थी अकूत
और बहुत बड़ी थी प्रतिष्ठा और नाम
पर मैंने एक सपना और देखा
जो मुझे सबसे प्यारा लगा
कि तुम्हारा प्यार अब भी उतना ही जीवित था...
उसके गलत तरीके से गाने में किसी ने मीन-मेख नहीं निकाली। जब गीत खत्म हुआ, तो जो बहुत पिघला हुआ-सा था, उसने कहा कि न तो इस पुराने गीत से बेहतर कोई गीत है और न बाल्फ से अच्छा कोई संगीतकार। लोग चाहे जो कहें, कहते-कहते उसकी आँखों में आँसू छलछला आये थे। आँसुओं का सैलाब इतना गाढ़ा था कि वह बोतल खोलने की चाबी तक नहीं देख पा रहा था। आखिर उसने अपनी बीवी से कहा, जरा देखना, चाबी है कहीं!