मिथुन की बलि (गालो जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा

Mithun Ki Bali : Folk Tale (Arunachal Pradesh)

एक दिन आबोतानी और होबो (मिथुन) में बहस हो गई कि उन दोनों में से किसकी बलि चढ़ाई जाए। इस मसले का हल करने के लिए दोनों ने एक शर्त रखी कि दोनों आपोंग ( चावल से बनी मदिरा ) बनाने की प्रतियोगिता करेंगे और जिसका आपोंग पहले पकेगा, उसकी बलि नहीं चढ़ाई जाएगी, अर्थात् जिसका नहीं पकेगा, उसकी बलि चढ़ाई जाएगी। एक दिन दोनों ने आपोंग बनाने के लिए धान की भूसी जलाई । आबोतानी ने इली (पत्थर) का आपोंग बनाया और मिथुन ने एली एलाक (आलू जैसे खाद्य पदार्थ) से आपोंग बनाया। कुछ दिनों के बाद आबोतानी ने देखा कि मिथुन का बनाया हुआ आपोंग पक गया है, किंतु उनका बनाया हुआ आपोंग नहीं पकता है। तब आबोतानी ने चालाकी से मिथुन और अपने आपोंग की अदला-बदली कर दी। जब आबोतानी और मिथुन ने एक साथ अपने-अपने आपोंग को देखा तो आबोतानी का आपोंग पका हुआ मिला और मिथुन का आपोंग जस का तस था, उसमें कुछ परिवर्तन ही नहीं हुआ था। उसी दिन से यह तय हो गया कि मिथुन को मनुष्य बलि चढ़ा सकते हैं। अगर इस शर्त में आबोतानी हार गए होते तो आज हम मिथुन की नहीं, बल्कि मिथुन हमारी बलि चढ़ाता। उस समय आबोतानी ने छल-कपट करके आपोंग की अदला-बदली नहीं की होती, तो आज मनुष्य की ही बलि चढ़ रही होती।

(साभार : पेयिर कारगा)

  • मुख्य पृष्ठ : अरुणाचल प्रदेश कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां