मिसिंग लिपि कैसे लुप्त हो गई ? : असमिया लोक-कथा
Missing Lipi Kaise Lupt Ho Gayi ? : Lok-Katha (Assam)
वर्षों पहले की बात है। द:यिंबाबू नामक एक ज्ञान (वाङ्मय) के देवता थे। उन्होंने ही दुनिया के सभी भाषाभाषियों को लिपि का बँटवारा किया था। पहले उन्होंने मानव जाति को स्वर ध्वनियाँ दीं। उन्होंने इन ध्वनियों को लिपि में रूपांतर करने के उद्देश्य से सभी लोक प्रतिनिधियों की एक सभा बुलाई। सभा में लंबे विचार-विमर्श के बाद द:यिंबाबू ने अपनी-अपनी भाषा के लिए एक लिपि चुनने का आदेश दिया। प्रत्येक प्रतिनिधि ने अपनी लिपि चुनी और खुश होकर अपने-अपने घर लौट आए। इस सभा में मिसिंग जाति के जो प्रतिनिधि गए थे, वे अपने साथ एक मृग-चर्म लेकर गए थे। द:यिंबाबू ने जो लिपि उन्हें लिखने को दी, उन्होंने उसे मृग-चर्म पर ही लिख लिया। इसके बाद मिसिंग प्रतिनिधि बड़े प्रफुल्लित मन से अपने घर वापस आए। उसने लिपि लिखे हुए मृगचर्म को धुआँ चांग’ में रख दिया।
दिन बीतते गए। मिसिंग पुरुष यह बात पूरी तरह भूल गए कि उन्होंने लिपि लिखे हुए मृग-चर्म को धुआँ चांग रख दिया है। एक दिन दिन भर जंगल में भटकने के वावजूद भी उन्हें एक भी शिकार नहीं मिला। वे दुखी मन से घर वापस लौट आए। वे चूल्हे के पास बैठकर दोपहर के भोजन के बारे में चिंता कर रहे थे। तभी उनकी नजर चूल्हे के ऊपर बने धुआँ चांग पर रखे मृग चर्म पर पड़ी। उन्होंने खुश होकर चर्म को तुरंत नीचे उतारा। उन्होंने देखा कि चर्म अब भी मुलायम और स्वादिष्ट दिख रहा है। भूख से व्याकुल मिसिंग पुरुष ने उसे आग में दे दिया। कुछ देर उलट-पुलटकर जलाने के बाद उसे खाकर उन्होंने अपनी क्षुधा शांत की। बाद में उन्हें याद आया द:यिंबाबू की दी हुई लिपि चर्म के साथ जल गई। उन्होंने याद करने की बहत कोशिश की मगर उन्हें कछ भी याद नहीं आया। मिसिंग प्रतिनिधि की भूख और लोभ के कारण उनकी भाषा की लिपि जल कर नष्ट हो गई। लाख कोशिश के वावजूद उसे दुबारा हासिल नहीं किया जा सका। तबसे मिसिंग संप्रदाय को अपनी भाषा लिखने के लिए दूसरी भाषा की लिपि को अपनाना पड़ा।
शिक्षा– इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि लोभ का परिणाम हमेशा दुर्भाग्य ही होता है। हमे औरों की खुशी के लिए खुद के आवेग, आकांक्षा और मोह को नियंत्रण करना चाहिए। क्योंकि लोभ मोह हमारी अच्छाइयों को नष्ट करता है। जिससे समाज का संतुलन बिगड़ता है।
1. धुआँ चांग – चूल्हे के ऊपर बाँस की बनी जगह जहाँ कच्चा मांस, अन्य कच्चा खाद्यान्न या लकड़ी सूखाने के काम में प्रयोग में लाया जाता है।
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)