मिस टीन वाला (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Miss Teen Wala (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!”
मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अरे ! क्या होगया है तुम्हें?”
ज़ैदी ने अपने चेहरे को शगुफ़्ता बनाने की नाकाम कोशिश करते हुए जवाब दिया। “बीमार रहा हूँ।”
मैं उस के पास कुर्सी पर बैठ गया। “बहुत दुबले होगए हो यार। मैंने तो पहले पहचाना ही नहीं था तुम्हें....... क्या बीमारी थी?”
“मालूम नहीं।”
“क्या मतलब?”
ज़ैदी ने अपने ख़ुश्क होंटों पर ज़बान फेरी। “कुछ समझ में नहीं आता, क्या बीमारी है?”
“हाँ कुछ ऐसा ही है।”
“किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना था।”
ज़ैदी ख़ामोश रहा तो मैंने फिर उस से कहा। “किसी अच्छे डाक्टर से मश्वरा लिया?”
“नहीं।”
“क्यों?”
ज़ैदी फिर ख़ामोश रहा। जवाब देने के बजाय उस ने जेब से सिगरेट केस निकाला। उस की उंगलीयां काँप रही थीं। “मेरा ख़याल है ज़ैदी! तुम्हारा नर्वस सिस्टम ख़राब होगया है विटामिन बी के इंजैक्शन लगाना शुरू करदो, बिलकुल ठीक हो जाओगे। पिछले बरस ज़्यादा विस्की पीने से मेरा यही हाल होगया था, लेकिन बारह इंजैक्शन लेने से कमज़ोरी दूर होगई थी। मगर तुम किसी अच्छे डाक्टर से मश्वरा क्यों नहीं लेते?”
ज़ैदी ने अपना चश्मा उतार कर रूमाल से साफ़ करना शुरू कर दिया। उस की आँखों के नीचे स्याह हलक़े पड़े हूए थे। मैंने पूछा। “क्या रात को नींद नहीं आती?”
“बहुत कम।”
“दिमाग़ में ख़ुश्की होगी!”
“जाने क्या है।” ये कह कर वो एक दम संजीदा होगया। “देखो सआदत मैं तुम्हें एक अजीब-ओ-ग़रीब बात बताने आया हूँ। मुझे बीमारी वीमारी कुछ नहीं। रात को नींद इस लिए नहीं आती कि मैं डरता रहता हूँ।”
“डरते रहते हो.......क्यों?”
“बताता हूँ।” ये कह कर उस ने काँपते हाथों से सिगरेट सुलगाया और बुझी हुई तीली को तोड़ना शुरू कर दिया। “मुझे मालूम नहीं सुन कर तुम क्या कहोगे। मगर ये वाक़िया ये, बले से....... ”
मैं शायद मुस्कुरा दिया था क्योंकि ज़ैदी ने फ़ौरन ही बड़ी संजीदगी के साथ कहा। “हंसो नहीं....... ये हक़ीक़त है। मैं तुम्हारे पास इस लिए आया हूँ कि इंसानी नफ़्सियात से तुम्हें दिलचस्पी काफ़ी है। शायद तुम मेरे डर की वजह बता सको।”
मैंने कहा। “लेकिन यहां तो सवाल एक हैवान का है।”
ज़ैदी ख़फ़ा होगया। “तुम मज़ाक़ उड़ाते होतो मैं कुछ नहीं कहूंगा।”
“नहीं नहीं ज़ैदी! मुझे माफ़ करदो....... मैं पूरी तवज्जा से सुनूंगा, जो तुम कहोगे।”
थोड़ी देर ख़ामोश रहने और नया सिगरेट सुलगाने के बाद उस ने कहना शुरू किया। “तुम्हें मालूम है जहां मैं रहता हूँ, दो कमरे हैं पहले कमरे के इस तरफ़ छोटी सी बालकनी है जिस के कटहरे में लोहे की सलाखें लगी हैं। अप्रैल और मई के दो महीने चूँकि बहुत गर्म होते हैं इस लिए फ़र्श पर बिस्तर बिछा कर मैं इस बालकनी में सोया करता हूँ....... ये जून का महीना है। अप्रैल की बात है मैं सुबह नाश्ते से फ़ारिग़ हो कर दफ़्तर जाने के लिए बाहर निकला दरवाज़ा खोला तो दहलीज़ के पास एक मोटा बिल्ला आँखें बंद किए लेटा नज़र आया। मैंने जूते से उसे ठोका दिया। उस ने एक लहज़े के लिए आँखें खोलीं। मेरी तरफ़ बेपर्वाई से, जैसे मैं कुछ भी नहीं, देखा और आँखें बंद करलीं। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ चुनांचे मैंने बड़े ज़ोर से उस के ठोकर मारी। उस ने आँखें खोलीं। मेरी तरफ़ फिर उसी नज़र से देखा और उठ कर कुछ दूर सीढ़ीयों के पास लेट गया। जिस अंदाज़ से उस ने चंद क़दम उठाए थे, उस से ये मालूम होता था कि वो मुझ से मरऊब नहीं हुआ। मुझे सख़्त गु़स्सा आया। आगे बढ़ कर अब की मैंने ज़ोर से ठोकर मारी। दस पंद्रह ज़ीनों पर वो लड़खड़ाता हुआ चला गया। जब चार पैरों पर सँभला तो उस ने नीचे से अपनी पीली पीली आँखों से मेरी तरफ़ देखा और गर्दन मोड़ कर कोई आवाज़ पैदा किए बग़ैर एक तरफ़ चला गया....... तुम दिलचस्पी ले रहे हो या नहीं?”
“हाँ हाँ, क्यों नहीं!”
ज़ैदी ने सिगरेट की राख झाड़ी और सिलसिला कलाम जारी किया। “दफ़्तर पहुंच कर मैं सब कुछ भूल गया लेकिन शाम को जब घर लौटा और कमरे की दहलीज़ के पास पहुंचा जहां वो बिल्ला लेटा हुआ था तो सुबह का वाक़िया दिमाग़ में ताज़ा होगया। नहाते, चाय पीते, रात का खाना खाते कई दफ़ा मैंने सोचा। तीन दफ़ा मैंने उस की पिसलियों में ज़ोर से ठोकर मारी, मुझ से वो डरा क्यों नहीं? मियाऊं तक भी न की उस ने और फिर क्या अंदाज़ था उस के चलने, आँखें बंद करने और खोलने का ऐसा लगता था जैसे उसे कुछ पर्वा ही नहीं। जब मैं ज़रूरत से ज़्यादा उस बिल्ले के बारे में सोचने लगा तो बड़ी उलझन हुई। एक मामूली सी हैवान को इतनी एहमीयत आख़िर मैं क्यों दे रहा था, इस का जवाब न मुझे उस वक़्त मिला और न अब, हालाँकि पूरे तीन महीने गुज़र चुके हैं।”
इस क़दर कह कर ज़ैदी ख़ामोश होगया। मैंने पूछा। “बस!”
“नहीं।” ज़ैदी ने सिगरेट को ऐश ट्रे पर रखते हुए कहा। “मैं सिर्फ़ तुम से ये कह रहा था कि इस बिल्ले को मैंने इतनी एहमीयत क्यों दी है, मैं इतना ख़ौफ़ क्यों खाता हूँ। ये मुअम्मा अभी तक मुझ से हल नहीं हो सका। शायद तुम मुझ से बेहतर सोच सको।”
मैंने कहा। “मुझे पूरे वाक़ियात मालूम होने चाहिऐं।”
ज़ैदी ने ऐश ट्रे पर से सिगरेट उठाया और एक कश लेकर कहा। “मैं बता रहा हूँ। उस रोज़ के बाद कई दिन गुज़र गए मगर वो बिल्ला नज़र न आया। शायद हफ़्ते की रात थी। मैं बाहर बालकनी में सोरहा था। दो बजे के क़रीब कमरे में कुछ शोर हुआ जिस से मेरी नींद खुल गई। उठ कर रोशनी की तो मैंने देखा कि वही बिल्ला खाने वाली मेज़ पर खड़ा डिश का सर पोश उतार कर पुडिंग खा रहा है। मैंने शुश, शुश की मगर वो अपने काम में मसरूफ़ रहा। मेरी तरफ़ उस ने बिलकुल न देखा। मैंने चप्पल का एक पैर उठाया और निशाना तान कर ज़ोर से मारा। चप्पल इस के पेट पर लगा मगर वो इस चोट से बेपर्वा पुडिंग खाता रहा। मैंने ग़ुस्से में आकर मसहरी का डंडा उठाया और पास जा कर उस की पीठ पर मारा।
उस ने और ज़्यादा बेपर्वाई से मेरी तरफ़ देखा। बड़े आराम से कुर्सी पर कूदा। आवाज़ पैदा किए बग़ैर फ़र्श पर उतरा और आहिस्ता आहिस्ता टहलता बालकनी के कटहरे की सलाखों में से निकल कर छज्जे पर कूद गया। मैं हैरान वहीं खड़ा रहा और सोचने लगा ये कैसा हैवान है जिस पर मार का कुछ असर ही नहीं हुआ। सआदत! मैं तुम से सच कहता हूँ बड़ा ख़ौफ़नाक बिल्ला है। ये मोटा सर, रंग सफ़ैद है, लेकिन अक्सर मेला रहता है। मैंने ऐसा ग़लीज़ बिल्ला अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा।”
ज़ैदी ने ऐश ट्रे में सिगरेट बुझाया और ख़ामोश होगया।
मैंने कहा। बिल्ले बिल्लियां तो ख़ुद को बहुत साफ़ सुथरा रखते हैं।”
“रखते हैं।” ज़ैदी उठ खड़ा हुआ। लेकिन ये बिल्ला शायद जानबूझ कर ख़ुद को ग़लीज़ रखता है। लेटता है कूड़े करकट के पास। कान से लहू बह रहा है पर मजाल है, उसे चाट कर साफ़ करे....... सर फटा हुआ है, पर उसे कुछ होश नहीं। बस, सारा दिन मारा मारा फिरता है।”
मैंने पूछा: “लेकिन इस में ख़ौफ़ खाने की क्या बात है?”
ज़ैदी बैठ गया: “यही तो मैं ख़ुद दरयाफ़्त करना चाहता हूँ। डर की यूं तो एक वजह हो भी सकती है। वो ये कि दस पंद्रह रातें मुतवातिर वो मुझे जगाता रहा। मुझ से हर दफ़ा उस ने मार खाई। बहुत बरी तरह पिटा। चाहिए तो ये था कि वो मेरे घर का रुख़ न करता क्योंकि आख़िर हैवानों में भी अक़ल होती है। मैं सोचने लगा कि किसी रोज़ ऐसा न हो मुझ पर झपट पड़े और आँख वाँख नोच ले। सुनने में आया है कि अगर किसी बिल्ले या बिल्ली को घेर कर मारा जाये तो वो ज़रूर हमला करते हैं।”
मैंने कहा। “डरने की ये वजह तो माक़ूल है।”
ज़ैदी फिर उठ खड़ा हुआ। “लेकिन इस से मेरी तसकीन नहीं होती।”
मेरे दिमाग़ में एक ख़याल आया। “तुम उस के साथ मोहब्बत प्यार से तो पेश आकर देखो।”
“मैं ऐसा कर चुका हूँ....... मेरा ख़याल था इस क़दर पिटने पर वो हाथ भी नहीं लगाने देगा। लेकिन मुआमला बिलकुल इस के बरअक्स निकला। बरअक्स भी नहीं कहना चाहिए क्योंकि उस ने मेरे प्यार की बिलकुल पर्वा न की। एक रोज़ में सोफे पर बैठा हुआ था कि वो पास आकर फ़र्श पर बैठ गया। मैंने डरते डरते उस की तरफ़ हाथ बढ़ाया। इस ने आँखें मीच लीं। ये बढ़ा हुआ हाथ मैंने उस की पीठ पर आहिस्ता आहिस्ता फेरना शुरू किया....... सआदत, तुम यक़ीन करो वो वैसे का वैसा आँखें बंद किए बैठा रहा। प्यार का जवाब बिल्ले बिल्लियां अक्सर दुम हिला कर देते हैं लेकिन उस कमबख़्त की दुम का एक बाल भी न हिला....... मैंने तंग आकर उस के सर पर किताब दे मारी चोट खा कर वो उठा। बड़ी बेपर्वाई, एक निहायत ही दिल शिकन बेएतिनाई से मेरी तरफ़ पीली पीली आँखों से देखा और बालकनी के कटहरे की सलाखों में से निकल कर छज्जे पर कूद गया। बस उस दिन से चौबीस घंटे वो मेरे दिमाग़ में रहने लगा है।” ये कह कर ज़ैदी मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से अपनी टांग हिलाने लगा।
मैंने सिर्फ़ इतना कहा। “कुछ समझ में नहीं आता।” लेकिन इतना ज़रूर समझ में आता था कि ज़ैदी का ख़ौफ़ बेबुनियाद नहीं।
ज़ैदी दाँतों से नाख़ुन काटने लगा। “मेरी समझ में भी कुछ नहीं आता। यही वजह है कि मैं तुम्हारे पास आया।” ये कह कर वो उठा और कमरे में टहलने लगा। थोड़ी देर के बाद रुका और ऐश ट्रे में बुझी हुई दिया सिलाई उठा कर उस के टुकड़े करने लगा। अब ये हालत होगई है कि रात भर जागता रहता हूँ। ज़रा सी आहट होती है तो समझता हूँ वही बिल्ला है। लेकिन आठ रोज़ से वो कहीं ग़ायब है। मालूम नहीं किसी ने मार डाला है, बीमार है या कहीं और चला गया है।
मैंने का। “तुम क्यों सोचते हो। अच्छा है जो ग़ायब होगया है।”
“मालूम नहीं क्यों सोचता हूँ। कोशिश करता हूँ कि इस कमबख़्त को भूल जाऊं मगर दिमाग़ में से निकलता ही नहीं।” ये कह कर वो सोफे पर सर के नीचे गद्दी रख कर लेट गया। “अजीब ही क़िस्सा है कोई और सुने तो हंसे कि एक बिल्ले ने मेरी ये हालत करदी है। बाअज़ औक़ात मुझे ख़ुद हंसी आती है.......। लेकिन ये हंसी कितनी तकलीफ़देह होती है।”
ज़ैदी ने ये कहा और मुझे एहसास हुआ कि वाक़ई अपनी बेबसी पर हंसते हुए उसे बहुत तकलीफ़ होती होगी जो कुछ उस ने बयान किया था, बज़ाहिर मज़हकाख़ेज़ था। लेकिन ये बिलकुल वाज़ेह था कि इस बिल्ले के वजूद में ज़ैदी की ज़िंदगी का कोई बहुत ही अज़ीयतदेह लम्हा पोशीदा था।
ऐसा लम्हा जो उसे अब बिलकुल याद नहीं था। चुनांचे मैंने उस से कहा। “ज़ैदी तुम्हारे माज़ी में कोई ऐसा हादिसा तो नहीं जिस से तुम उस बिल्ले को मुतअल्लिक़ कर सको। मेरा मतलब है कोई ऐसी चीज़, कोई ऐसा वाक़िया जिस से तुम ने ख़ौफ़ खाया हो और उस चीज़ या वाक़िए की शबाहत उस बिल्ले से मिलती हो?”
ये कह कर मैंने सोचा कि वाक़िए की शबाहत बिल्ले से कैसे मिल सकती है।
ज़ैदी ने जवाब दिया। “मैं इस पर भी ग़ौर कर चुका हूँ। मेरे हाफ़िज़े में ऐसा कोई वाक़िया या ऐसी कोई चीज़ नहीं।”
मैंने कहा। “मुम्किन है कभी याद आजाए।”
“ऐसा हो सकता है।” ये कह कर ज़ैदी सोफे पर से उठा। चंद मिनट इधर उधर की बातें कीं और मुझे और मेरी बीवी को इतवार की दावत दे कर चला गया।
इतवार को मैं और मेरी बीवी सन्नटा क्रूज़ गए। मैंने शायद आप को पहले नहीं बताया। ज़ैदी मेरा पुराना दोस्त है। ऐंटरैंस तक हम दोनों एक ही स्कूल में थे। कॉलिज में भी हम दो बरस एक साथ रहे। मैं फ़ेल होगया और वो एफ़ ए पास करके अमृतसर छोड़कर लाहौर चला गया जहां उस ने एम ए किया और चार पाँच बरस बे-कार रहने के बाद बंबई चला आया। यहां वो एक बरस से जहाज़ों की एक कंपनी में मुलाज़िम था।
दोपहर का खाना खाने के बाद....... हम देर तक नए और पुराने फिल्मों के मुतअल्लिक़ बातें करते रहे। ज़ैदी की बीवी और मेरी बीवी, दोनों बहुत फ़िल्म देखो क़िस्म की औरतें हैं, चुनांचे इस गुफ़्तुगू में ज़्यादा हिस्सा इंही का था। दोनों उठ कर दूसरे कमरे में जाने ही वाली थीं कि बालकनी के कटहरे की सलाखों से एक मोटा बिल्ला अंदर दाख़िल हुआ मैं ने और ज़ैदी ने बैयकवक़्त उस की तरफ़ देखा। ज़ैदी के चेहरे से मुझे मालूम होगया कि ये वही बिल्ला है।
मैंने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। सर पर कानों के पास एक गहिरा ज़ख़्म था जिस पर हल्दी लगी हुई थी। बाल बेहद मैले थे। चाल में जैसा कि ज़ैदी ने कहा था कि एक अजीब किस्म की बेपर्वाई थी। हम चार आदमी कमरे में मौजूद थे मगर उस ने किसी की तरफ़ भी आँख उठा कर न देखा। जब मेरी बीवी के पास से गुज़रा तो वो चीख़ उठी। “ये कैसा बिल्ला है। सआदत साहब।”
मैंने पूछा। “क्या मतलब?”
मेरी बीवी ने जवाब दिया। “पूरा बदमाश लगता है।”
ज़ैदी ने बौखला कर कहा। “बदमाश”
मेरी बीवी शर्मा गई। “जी हाँ, ऐसा ही लगता है।”
ज़ैदी कुछ सोचने लगा। दोनों औरतें दूसरे कमरे में चली गईं। थोड़ी देर के बाद ज़ैदी उठा “सआदत, ज़रा इधर आओ।”
मुझे बालकनी में ले जा कर उस ने कहा। “मुअम्मा हल होगया है।”
“कैसे?”
“तुम्हारी बीवी ने हल कर दिया है....... तुम भी सोचो क्या उस बिल्ले की शक्ल मिस टीन वाले से नहीं मिलती?”
“मिस टीन वाले से”
“हाँ हाँ। इस बदमाश से जो हमारे स्कूल के बाहर बैठा रहता था। मुस्तफा जिसे मिस टीन वाला कहा करते थे।”
मुझे याद आगया। ज़ैदी पर जो लड़कपन में बहुत ख़ूबसूरत था। मिस टीन वाले की ख़ास नज़र थी। लेकिन मैं सोचने लगा बिल्ले से उस की शक्ल कैसे मिलती है। नहीं मिलती थी, उस की चाल में भी कुछ ऐसे ही बेपर्वाई थी। सर अक्सर फटा रहता था। कई दफ़ा हेड मास्टर साहब ने उसे लोगों से पिटवाया कि वो स्कूल के दरवाज़े के पास न खड़ा रहा करे, मगर उस के कान पर जूं तक न रेंगती। एक लड़के के बाप ने उसे हाकी से इतना मारा, इतना मारा कि लोगों का ख़याल था हस्पताल में मर जाएगा, मगर दूसरे ही रोज़ वो फिर स्कूल के गेट के बाहर मौजूद था।
ये सब बातें एक लहज़े के अंदर अंदर मेरे दिमाग़ में उभरीं मैंने ज़ैदी से कहा “तुम ठीक कहते हो, मिस टीन वाला भी मार खा कर ख़ामोश रहा करता था।”
ज़ैदी ने जवाब न दिया, इस के लिए वो कुछ याद कररहा था। चंद लम्हात ख़ामोश रहने के बाद उस ने कहा। “मैं आठवीं जमात में था। पढ़ने के लिए एक दफ़ा अकेला कंपनी बाग़ चला गया एक दरख़्त के नीचे बैठा पढ़ रहा था कि अचानक मिस टीन वाला नुमूदार हुआ। हाथ में एक ख़त था मुझ से कहने लगा। बाबू जी, ख़त पढ़ दीजीए।” मेरी जान हवा हो गई। आस पास कोई भी नहीं था।
मिस टीन वाले ने ख़त मेरी रान पर बिछा दिया। मैं उठ भागा। उस ने मेरा पीछा किया। लेकिन मैं इस क़दर तेज़ दौड़ा कि वो बहुत पीछे रह गया। घर पहुंचते ही मुझे तेज़ बुख़ार चढ़ा। दो दिन तक हिज़यानी कैफ़ीयत रही। मेरी वालिदा का ख़याल था कि जिस दरख़्त के नीचे मैं पढ़ने के लिए बैठा था। आसीब ज़दा था।
ज़ैदी ये कह ही रहा था कि बिल्ला हमारी टांगों में से गुज़र कर कटहरे की सलाखों में से निकला और छज्जे पर कूद गया। छज्जे पर चंद क़दम चल कर उस ने मुड़कर पीली पीली आँखों से हमारी तरफ़ अपनी मख़सूस बेपर्वाई से देखा। मैंने मुस्कुरा कर कहा।
“मिस टीन वाला!” ज़ैदी झेंप गया।