दूध बेचने वाला लड़का (जर्मन कहानी) : क्लारा फ़ीबिग (अनुवाद : रामप्रताप गोंडल)
The Milk Seller Boy (German Story in Hindi) : Clara Viebig
सेहन संकड़ा और अन्धकारयुक्त था । आकाश का कुछ हिस्सा ही उसमें नज़र आता था जो चिमनियों के धुंवे के कारण धुंधला हो रहा था। नीचे की ज़मीन हमेशा सीली रहती थी, चमारों के काम करने के पत्थरों से सील के कारण हमेशा बदबू फैली रहती थी । केवल गर्मी के दिनों में दुपहर के समय थोड़ी सी धूप की किरणें आधे रास्ते तक एक ओर के ऊंचे-ऊंचे मकानों से बड़ी मुश्किल से आ पाती थीं। नीचे की मंजिल के कमरों में हमेशा अंधेरा ही रहता था। अगर आप ठंडी और भीगी हुई चार-पांच सीढ़ियां टटोल-टटालकर नीचे उतरें तो आप सीधे घर के संकड़े दरवाजे की ओर बढ़ते हैं; अगर आप आँखें फाड़ कर देखें तो वहां कीलों से ठुके हुए गत्ते पर आप यह लिखा हुआ पायेंगे : स्टीबके, जूते बनाने वाला ।
यह दुपहर के बाद की बात है। वे अभागे आदमी जो उस सेहन में रहते थे अभी खा-पीकर ही निबटे थे। दोनों मकानों की सब की सब खिड़कियां खुली पड़ी थीं; तश्तरियों की खटखट और बच्चों की चूं चां आप सुन सकते थे । शलजम, प्याज़ और लहसन की बू वहां फैल रही थी।
एक औरत का बड़े ऊंचे स्वर में साधारण गाना सुनाई दिया । यह सब ग्रीष्म, प्रेम और आनन्द के बारे में था । गायिका पूरे जोर में थी, उसकी आवाज़ के साथ ही बच्चे का चिल्लाना और तश्तरियों का गिरना सुनाई दिया।
सेहन के उस पार से कोई मोटे स्वर में चिल्लाया, "अपनी आवाज़ बन्द करो, ए चिल्लाने वाली स्त्री । जैसे तुम चिल्ला रही हो ऐसे अगर सब चिल्लाने लग गये तो यहां रहना दूभर हो जायगा ।" एक खिड़की के बन्द होने के शब्द के साथ ही गाना भी बन्द हो गया ।
अब शान्ति थी । दीवारों के ऊपरी हिस्सों में सूर्य की किरणें खेल रही थीं। ये थोड़ी सी आगे बढ़ती थीं, फिर डरकर पीछे हट 'जाती थीं। बाहर सड़कों पर कड़ाके की गर्मी थी । ग्रीष्म का पूरा जोर; दूसरे स्थानों पर हरी पत्तियों से लदे हुए पेड़ हिल रहे थे, परन्तु यहां घास की एक पत्ती भी नहीं थी। भारी गीली हवा के कारण आपका बदन पसीना-पसीना होता था, परन्तु ठंडी हवा आपकी पीठ को काटती चली जाती थी ।
सेहन के अभागे निवासी दुपहर के खाने के बाद ऊंघ रहे थे - एक डेढ़ अथवा दो बजे इसके लिये ठीक समय होगा । परन्तु ठहरिये ! एक खिड़की खुलती है, कुछ चीज़ सेहन में आकर गिरती है। एक हड्डी का टुकड़ा । वह वहां पड़ा था, सूरज की धुंधली रोशनी में झिलमिलाता हुआ ।
एक कोने में बैठे हुए बूढ़े, मरियल कुत्ते की आंखों की चमक दिखाई दे रही थी । धीरे-धीरे यह चमक बढ़ने लगी । धीरे-धीरे एक के बाद दूसरा पंजा बढ़ाता हुआ कुत्ता अपने स्थान से बाहर आया; उसका भूख के कारण सूखा हुआ शरीर पूरा फैल गया, वह फर्श के ऊपर तक घिसट आया; गर्दन मुड़ी हुई, जीभ बाहर निकली हुई- व्यर्थ ! जंजीर बहुत छोटी पड़ती थी, इसलिये वह हड्डी तक नहीं पहुंच पाता था । दर्दनाक आवाज़ में गुर्राने के बाद उसने हाथ-पांव मारने बन्द कर दिये।
वह अपने स्थान पर सीधा लेट गया, उसका मटीला सिर उसके पंजों पर था, आँखें अधमिची थीं, परन्तु फिर भी इधर-उधर गौर से देख रहा था । मक्खियां उसके बालों पर भिनभिना रही थीं, वे उसकी आँखों से जो गाढ़ा चिपचिपा पानी बहकर आता था उस पर बैठती थीं । दबी हुइ गुर्राहट के साथ वह आधा उठा, और पूंछ के साथ उसने अपने पिछले हिस्से को फटफटाया ।
हड्डी - वही हड्डी जो पत्थरों से पाटे हुए सेहन में पढ़ी थी, उस पर मक्खियाँ आने लगीं और जमा हो गयीं । कुत्ते की भावपूर्ण आँखों में एक बार फिर वेदनायुक्त चमक दिखाई दी। उसने अन्तिम बार फिर उधर देखा और अपना मुंह पानी के प्याले में डाला, परन्तु वह पुराना प्याला भी खाली था--पानी से भी रहित ।
वह जीभ बाहर निकाल कर फिर लेट गया, एक बार फिर उसने दाहिने और बायें को सूंघा और ऐसा मालूम हुआ कि वह सो गया है।
परन्तु देखो ! सेहन का दरवाजा बजता है, और दो बाहें कुत्ते को घेर लेती हैं, एक बालक की आकृति उसके पास में जमीन पर बैठी दिखलाई पड़ती है ।
"प्लूटो ! ओ प्लूटो, मेरे बूढ़े कुत्ते ।"
यह सत्कार बड़े प्यार का था । कुत्ता प्यार से उछला, उसने अपना मुंह लड़के की सकड़ी छाती में दे मारा, और उसका हाथ-मुँह चाटा । लड़के ने इसमें उत्साहहीन वेदनामय आनन्द पाया।
“प्लूटो, ! तेरे पास पानी भी नहीं ! मेरे प्यारे कुत्ते, तनिक ठहर |"
लड़का उठ खड़ा हुआ और टूटा हुआ मिट्टी का प्याला नल से भर लाया, और फिर कुत्ते के विचारों का अन्दाजा लगाकर वह हड्डी का टुकड़ा उठा लाया और कुत्ते के मजबूत दांतों द्वारा उसका तोड़ना चुपचाप देखने लगा ।
तब नैराश्य हँसी में उसने अपने खाली हाथ उसे दिखला दिये ।
"मेरे पास कुछ नहीं है, प्लूटो; बिल्कुल नहीं, परन्तु तू तनिक ठहर जा ! थोड़ा सबर रख प्लूटो, मेरे पास कुछ पैसे आने दे, तब तेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहेगा, प्लूटो अच्छा देख ! तुझे बड़ी बढ़िया वस्तु मिलेगी, गुर्दे का एक बड़ा टुकड़ा, यह जो उस कसाई की दूकान के सामने लटक रहा है । वही तुझे लाकर दूंगा, विश्वास रख, प्लूटो ।”
वायदा करना हांस स्टीबके के लिये साधारण सी बात थी । उसे इतने पैसे मिलें कहाँ से जो वह कसाई की दूकान से गुर्दे का वह बड़ा टुकड़ा खरीद कर ला सके ? उस समय अपने दोस्त को देने के वास्ते उसके पास अपनी रोटी में से भीगी हुई आधी रोटी सुबह शाम देने को थी, कभी कभी हड्डी का टुकड़ा और वह सब प्यार जो उस बालक के दिल से फूटा पड़ता था ।
हांस स्टीबके दूध बेचने वाला लड़का था। उसका काम शहर के उत्तरी हिस्से में दूध बांटने का था।
अक्सर जब चन्द्रमा आसमान से अपनी धुंधली रोशनी अभी फेंकता होता था, वह सेहन से जहाँ उसके माँ-बाप रहते थे निकल जाता था; उसकी दुबली, छोटी सी मूर्ति निर्जन सड़कों में खटखट करती गुजरती थी। उसके दस्ताने और गुलूबन्द पहने रहने पर भी हवा सर्दियों में अन्दर घुसती जाती थी, गर्मियों में शिखर दुपहरी में वह एक थकी-मांदी मक्खी की तरह चुपके से घर में आ घुसता था । उसका बढ़ना बन्द हो गया था, उसकी सुस्त आँखों, चपटी नाक और मुर्झाये हुए कानों को देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह केवल बारह वर्ष का ही होगा । उसकी नीचे की भौंहों पर झुर्रियां पड़ने लग गयी थीं और गर्दन पर टेंटुआ बाहर को आने लग गया था ।
ज्यों ही वह कुत्ते को अन्तिम बआअर थपथपा कर ऊँचे-नीचे फर्श पर ठक-ठक करता हुआ अपने तल-घर की ओर चला तो रोशनी उसकी उंगलियों से गायब होने लगी। एक मकान के दरवाजे के सामने वह फिर खड़ा हुआ, अपनी टोपी उलझे हुए सुनहली बालों पर से उसने उतारी और आसमान के उस टुकड़े पर, जो उन ऊँचे-ऊँचे मकानों के बीच में से दिखाई देता था, उसने अपनी सुस्ताई और रिक्त आँखों की एक दृष्टि डाली ; भला मेह बरसे अथवा धूप निकले उसे इससे क्या मतलब ?
धीरे २ पैर बढ़ाता हुआ वह जीने से नीचे उतरा --वहाँ दरवाजे पर गत्ते पर लिखा हुआ था स्टीबके, जूते बनाने वाला ।
भीतर से कुछ आवाज़ आई और साथ ही किसी के जंभाई लेने का शब्द हुआ। लड़के के मुंह पर भयभीत होने के चिन्ह प्रकट हुए; उसका बाप घर पर था।
हांस सोचता हुआ खड़ा रहा। आखिर सावधानी से उसने मूंठ घुमाई ।
"ओ हो ! हजरत आप हैं । आखिर आप अब लौटे हैं ? आपको समय का मालूम है। कहां अभी तक मटरगश्ती चल रही थी, बदमाश कहीं के । ठीक, अच्छा तू ठीक समय पर आया है । भागा २ जा और कुलेक की दूकान से तीन आने की शराब ले आ । यह देख बोतल रखी है। क्या ? पीतल का ? खुद ही मत चढ़ा जाना | कह देना, पैसे कल मिलेंगे, ठीक है न ! जल्दी जा; एकदम भाग।"
लड़के ने रोनी सी शक्ल बनाकर जवाब दिया, "पिता जी, वह मुझे बगैर पैसों के नहीं देगा । कल ही वह मुझे बोतल फेंक कर मारने वाला था । मुझे डर लगता है ।"
"सुअर, पाजी कहीं के !" बेंच पर लेटे हुए भारी बदन के आदमी ने कहा । टांगें उसकी हिल रही थीं, कमीज के बटन खुले होने के कारण छाती के बआअल नज़र आते थे । उसने गर्दन ऊपर उठाई और फर्श पर थूकने के बाद फिर कहा, "बदमाश, सुअर ! जाता है या अभी लात खायेगा । मेरे तीन गिनते तक शराब आ जानी चहिये। मैं ...”
"स्टीबके", चूल्हे से उठकर माँ एक बच्चे को छाती पर और दूसरे को उंगली के सहारे लाते हुए आई । वह अपने पति और बेटे के बीच में खड़ी हो गई। उसने विनती करते हुए कहा, "स्टीबके, थोड़ा ठहरो । उसे रोटी का टुकड़ा खा लेने दो और तब वह हिम्मती हो जायगा । ए, बेटे ! अच्छा तू खाने के बाद अपने बाप के वास्ते शराब ला देगा न ?"
लड़के ने सिर झुका लिया। उसने गुनगुनाया, "मुझे डर लगता है । वह मुझे पीटेगा । बाप भी जब शराब पीलेगा तो मेरी मरम्मत करेगा। मैं नहीं लेने जाऊँगा, मैं नहीं लाऊँगा ।"
"चु---प, ख़ुदा के लिये चुप रह ।" मां ने डर के मारे उसका मुँह अपने हाथ से ढांप लिया और धीरे से कहा, "देख, कहीं वह सुन न ले । तू तो बहुत अच्छा लड़का है। थोड़ी देर बाद चले जाना । अगर तू नहीं जायगा तो वह सारी बस्ती को सिर पर उठा लेगा । तुझे भी पीटेगा और मुझे भी ।"
"अगर मैं लाया तो, अम्मा, वह मुझे मारेगा। नहीं, मैं तेरे हिस्से और अपने हिस्से अर्थात् दोनों की मार खाने को तैयार नहीं ।" लड़के ने आँख मटका कर कहा, "मुझसे यह सब छिपा नहीं । या तो वह तुझे पहले प्यार करता है और बाद को मारता है अथवा पहले मारता है और बाद को प्यार करता है । यह ठीक है न ?"
मां ने एक दुःख भरी गहरी सांस ली। उसके मुर्झाये हुए गालों पर सुख दौड़ने के साथ ही उसका हारा हुआ शरीर कांपने लगा ।
" अच्छा ?" बेंच पर लेटे हुए आदमी ने मेज पर जोर से मुक्का मारा। "तू जा रहा है या नहीं, बोल ? यह आपस की कानाफूसी क्यों चल रही है ? चल चुप रह, उठा यह बोतल ! अपने ललचाये हुए मुंह की तृप्ति बाद में करना । चला जा, एकदम भागकर जा !” उसने अपना एक पैर जोर के साथ जमीन पर पटका; मानो यह दिखाने को कि वह उठना चाहता है ।
" भाग जल्दी !"
इस पर लड़के ने बोतल उठा ली और एकदम दरवाजे से आहर हो गया, उसके बाप की हंसने की आवाज़ उसके पीछे गूँजी ।
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दूध बेचने वाले लड़कों में कोई बहुत बदमाश है, उनमें से कोई चोर है— आँधी की तरह यह खबर फैल गई ।
वह पकड़ा गया। उसने नीला कुड़ता पहन रखा था। सिर पर उसके धारीदार टोपी थी जो उसने आगे को मुंह छिपाने के विचार से खींच रखी थी। वह चोर की तरह दफ्तर के दरवाजे से खिसक रहा था। वह पकड़ लिया गया और फर्श पर उसे बैठने का हुक्म मिला ।
दूसरे लड़के दो-दो, चार-चार इकट्ठे खड़े होकर उसकी ओर देख रहे थे। हांस स्टीबके से, जो यह भी नहीं समझता था कि दो-दो मिलकर कितने होते है, भला ऐसी आशा कौन कर सकता था ? हांस ने, जो सड़क पर पड़ा हुआ पैसा देखकर बजाय उठाने के एक ओर बचकर चल देता था, अठन्नी की चोरी कर ली ! इतनी मूर्खता ! हांस जब उगाही जमा करा रहा था तो ड्राइवर ताड़ गया था।
तो सारा किस्सा यह था । हांस स्टीबके ही चोर था । उसने इससे इन्कार भी नहीं किया । मुर्झाये हुए चेहरे से और कांपते हुए उसने अपने आपको ड्राइवर से बंधवा लिया, और जब इन्सपैक्टर पर उसका मामला पहुंचा तो वह चुपचाप फक मुंह से जमीन की ओर आँख किये खड़ा रहा और वे उसकी तलाशी लेने में लगे हुए थे । "अठन्नी किधर है ?" इन्सपेक्टर ने पूछा ।
कोई उत्तर नहीं ।
"ए छोकरे, तूने उसका क्या किया ? क्या तू भूखा था ? या तूने उसकी मिठाई ले ली ?"
इसका भी कोई जवाब नहीं ।
"स्टीबके जवाब क्यों नहीं देता । अठन्नी किधर है ?" इन्सपेक्टर ने अपने मजबूत हाथ को स्टीबके के कन्धे पर जोर के साथ रखा । "क्या तू नहीं जानता कि चोरी पाप है ? और तूने पैसे चुराये हैं । शरम के मारे डूब नहीं मरता !” इन्सपैक्टर ने अपनी ऐनक माथे पर चढ़ाई और घूरकर अपराधी को देखा । "क्या तू जानता है कि एकदम तुझे नौकरी से निकाल देना मेरे हाथ में है ! चोरों के लिये हमारे पास जगह नहीं। क्या तुझे कुछ कहना है ?"
लड़के के दुबले-पतले शरीर में बिजली दौड़ गई । उसने माफी मांगने के लिये हाथ जोड़ दिये और फूट २ कर रोने लगा ।
"मुझे नौकरी से न निकालिये, साहब | मुझ पर दया कीजिये ।" उसके दाँत बज रहे थे और आँखों से टपटप पानी टपक रहा था । " इन्सपेक्टर साहब, मुझे नौकरी से न निकालिये। वह मुझे पीटते पीटते मलीदा कर देंगे। वह मुझे मारे बगैर नहीं छोड़ेंगे । इन्सपैक्टर साहब, मैं ऐसा फिर कभी नहीं करूंगा। मुझे नौकरी से न निकालिये।"
"पर तूने पैसे चुराये क्यों ?"
हांस एक बार फिर चुप पड़ गया, उसके घुटने कांप रहे थे परन्तु ओंठ एक दूसरे से जुड़े हुए थे ।
पास में खड़े हुए एक आदमी से इन्सपैक्टर ने कहा, "बहुत ढीठ मालूम देता है । " फिर उसने कठोर स्वर में कहा, "स्टीबके तू घर जा सकता है । अपने बाप से आज शाम को यहां आने को कहना । मैं उससे बातचीत करना चाहता हूँ । अब रोना बन्द कर दे । रोने से तुझे क्या मिलेगा ? और हां, सीधा घर चला जा । "
छाया की तरह लड़का सड़कों पर से गुजरता हुआ दिखाई दिया। सूरज बड़ी तेजी से चमक रहा था। कोलतार की सड़कों पर से आग की लपटें निकल रही थीं, परन्तु हांस को इसकी कुछ भी परवाह नहीं थी । ज्यों-ज्यों वह घर के पास पहुंचता जाता है उसके कदम धीरे-धीरे उठ रहे थे । आखिर वह रेंगने लगा और हर एक दूकान की खिड़की के सामने खड़ा होने लगा । अब उसने कसाई की दूकान के जंगले पर अपना सिर पटक दिया ।
यही स्थान था जहाँ पर घटना घटी थी। कल यहीं पर ।
वह कल ऐसे ही यहाँ पर झुका हुआ था जैसे बाज, और ललचाई हुई आँखों मे मैले कपड़े में लिपटा हुआ गुर्दे का टुकड़ा खिड़की में लटकता हुआ देख रहा था। यह वह अपने लिये नहीं चाहता था यद्यपि उसके मुँह में पानी आ गया था। नहीं, वह प्लूटो के लिये था, उस कुत्ते के लिये जो अहाते के एक कोने में लेटा हुआ था। जीभ उसकी बाहर निकली हुई थी, मक्खियाँ और दूसरे कीड़े उसे सता रहे थे, और वह भूखा और प्यासा था । उसे खाना देने वाला भी कोई नहीं था । उसका मालिक लेहमान जिसकी गाड़ी सड़कों पर प्लूटो दिन-रात खींचता था बहुत कंजूस था। वह अपने पर भी बहुत ही कम खर्च करता था और प्लूटो तो रहा दर किनारे । फिर हांस स्टीबके कर भी क्या सकता था ? उसका थोड़ा सा खाना - रोटी का टुकड़ा प्लूटो का केवल एक ग्रास था ।
उसी समय लेहमान गाड़ी लेकर आया । बोरियां एक पर एक ऊपर तक लदी हुई थीं और वह आदमी पीछे-पीछे चल रहा था । कुत्ता और आगे न बढ़ सका । आगे चढ़ाव था इसलिये वह खड़ा हो गया ।
"चल वे, आलसी जानवर ।"
कुत्ते ने खैंचा । अपने बदन को फैलाया, पिछली टांग बोझे को जा छुई परन्तु यह सब व्यर्थ, गाड़ी हिली भी नहीं ।
उस आदमी ने कुत्ते के एक ओर ठोकर मारी और कहा, "ए गधे, आगे नहीं बढ़ेगा !"
प्लूटो ने कांपते हुए अपना पूरा जोर लगाकर फिर आगे बढ़ने की कोशिश की। गाड़ी थोड़ी चली भी परन्तु फिर वह रुक गई और कुत्ता चित्त जमीन पर लेट गया ।
"ए बदमाश - !" गुस्से में लाल होकर उस आदमी ने अपना पैर उठाया और जोर से कुत्ते के ठोकरें दायें और बायें मारना शुरु किया; कुत्ता दुःख के मारे कराह रहा था, केवल एक बार चिल्लाया भर ।
हांस स्टीबके बिजली की तरह दुकान की खिड़की से भागा और कुत्ते और उसके मालिक के बीच में आ खड़ा हुआ । “मिस्टर लेहमान, ईश्वर के लिये उसे मारो नहीं; बेचारे प्लूटो पर रहम खाओ ।"
उस टुकड़े इकट्ठे करने वाले ने लगभग उस लड़के के कान पकड़ ही लिये और कहने लगा, "मूर्ख, तू अपना काम कर ।" और एक ठोकर पर कुत्ता उठ खड़ा हुआ और गाड़ी धीरे धीरे से आगे बढ़ने लगी ।
वह लड़का दर्द भरी आँखों से और छाती के दर्द के मारे कराहते हुए उनकी ओर देखता रहा जब तक कि दुबारा वह बूचड़ की दूकान पर पहुंचकर उस मांस के टुकड़े को न देखने लगा। वह टुकड़ा उसकी आँखों के सामने उसे नाचता हुआ दिखाई दिया । उसका इधर-उधर हिलना मानों उसे इशारे से बुला रहा था । कहीं प्लूटो, बेचारे प्लूटो को वह गुर्दे का टुकड़ा मिल सकता !
और लाज, हांस स्टीबके ने पैसे चुरा लिये थे। दूसरे लड़के जब वह गुजर रहा था तो उंगली दिखा २ कर एक दूसरे कओ कुछ बतलाते थे । यहां तक कि छतों पर बैठे पक्षी चिल्ला २ कर कह रहे थे, "चोर, चोर।" इन्सपैक्टर उसके बाप को सारा किस्सा बतायेगा। इन सबके होते हुए भी उस लड़के की आँखों में आंसुओं के साथ ही उसके सफल होने की एक प्रकार की चमक थी। उसने डरते हुए चारों ओर निगाह डाली; तब, अपना हाथ मुँह में डालकर उसमें से अठन्नी खैंच लाया। उसे जोर के साथ अपने हाथ में दाब कर वह दौड़ा हुआ दुकान में घुस गया और थोड़ी देर बाद एक छोटा सा डिब्बा कोट की जेब में डाल कर निकलता हुआ दिखलाई पड़ा। वह इस प्रकार भागा मानो कोई उसका पीछा कर रहे हों ।
वह अहाते में पहुंचा, जो सदैव की भांति गन्दा और अन्धकारयुक्त था परन्तु उस लड़के को वह चमकता हुआ दिखाई दिया । उसके पीले गाल खुशी के मारे चमक रहे थे, उसका दिल तेजी से धड़क रहा था, और उस आनन्द ने, जिसका पहले उसने कभी अनुभव नहीं किया था, गाली, धमकी और घूसे के विचारों से उसे दूर हटा दिया था ! खुशी के मारे दाँत निकालते हुए वह अपने घुटनों पर अहाते के उस कोने में झुक गया और कुत्ते का मटियाला सिर अपनी धड़कती हुई छाती से लगा लिया । "प्लूटो, मेरे दोस्त, यह लो तुम्हारे वास्ते कुछ लाया हूँ ।" कुत्ते के सिर पर मांस के गोले देखकर और चमड़ी उधड़ी हुई पाकर उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े । "क्या उसने फिर भी तुम्हारे ठोकरें मारी थीं ? वह-! प्लूटो, चिल्लाओ नहीं, मेरे बूढ़े दोस्त, तुम रोयो नहीं ! देखो प्लूटो, मैं तुम्हारे लिये गुर्दे का गोश्त लाया हूँ । आहा !"
कुत्ते ने सूंघा और सुँघते ही उसकी आँखों में चमक पैदा हो गई । उसने अपना जबाड़ा खोला और हांस ने खुशी २ उसके मुंह में एक के बाद दूसरा टुकड़ा देना शुरू किया । टुकड़े छोटे २ होते गये परन्तु प्लूटो भूखे की तरह मुंह आगे बढ़ाये ही रहा ।
"बस, प्लूटो ! अब और नहीं है ! बस इतना ही था जो दूकानदार ने मुझे अठन्नी में दिया था। अब तो वह तुम्हारे पेट में पहुंच ही गया है। अब मुझे डर नहीं चाहे वे मुझे पकड़ ही क्यों न लें ।"
जब उसका बाप इन्सपैक्टर के पास से वापिस लौटा तो हांस पिटाई से न बच सका । वह निर्दयतापूर्वक पीटा गया।
"बदमाश, चोर," उसके बाप ने हांस को जमीन पर दे पटका; जब बालक को पीटते २ उसकी बाहें अशक्त हो गईं तो उसने पैरों से उसे कुचलना शुरू किया । "पैसे कहाँ हैं ? उस अठन्नी का तूने क्या किया ? मैं तेरी जान निकाल कर छोड़ूंगा ।"
"स्टीबके खुदा के लिये स्टीबके !" उसकी मां उस पागल की बांह पकड़े हुए थी । "तुम बच्चे का कुछ न कुछ बिगाड़ बैठोगे। तुम उसे लंगड़ा कर दोगे तो इससे क्या भला होगा ? स्टीबके, खुदा के लिये," वह जोर २ से चिल्ला रही थी और दूसरे बच्चे भी एक स्वर में चिल्ला रहे थे।
" शोर न मचा । बन्द कर अपना मुँह ! मुझे बदनामी से कौन बचायेगा ? मेरी नेकनामी, मैं तुझसे कहता हूँ । क्या यही है जो मुझे तुझसे शादी करने की एवज़ में मिल रहा है ? बदमाश कहीं का! मेरे लिए उसकी कीमत क्या ? मैं उसकी जान लेकर छोड़ूंगा।"
"स्टीबके"
"चुप रह ।"
जोर से धक्का लगने की आवाज आई, चिल्लाने का शब्द हुआ और वह औरत दूर जाकर पड़ी। वह कोने में खिसक गई और लड़के का कराहना न सुनाई दे इसलिये अपने दोनों कानों को उसने दोनों हाथों से ढक लिया।
आखिरकार उस आदमी का गुस्सा थक गया, वह चारपाई पर धम से बैठ गया और गुनगुनाने लगा, “मैं एक ईमानदार आदमी बदमाश; बेवकूफ । इन्सपेक्टर ने मुझे जाते ही कहा, 'स्टीबके, तुम एक ईमानदार और आबरू वाले आदमी हो। तुम्हारे कारण ही मैं तुम्हारे लड़के को एक और मौका देता हूँ । परन्तु अगर फिर जरा भी भूल हुई तो वह निकाल दिया जायगा ।' देख छोकरे, अगर कहीं अब पकड़ा गया तो मैं तेरा भुर्ता बना दूंगा । मुझे चाहे फिर कुछ भी भुगतना पड़े । गोठलीब स्टीबके ने आज तक कभी बेईमानी नहीं की। मैं सारी उमर चक्की पीसता रहूँ और यह इस तरह उड़ाये - वह बदमाश - मैं ईमानदार आदमी - "
उसके पिछले शब्द इतने साफ सुनाई नहीं दिये । वह शीघ्र ही खुर्राटे भरने लगा |
आसमान में तारे चमक रहे थे; उनमें से एक अहाते के ठीक ऊपर टिमटिमा रहा था जब हांस स्टीबके रेंगता हुआ जीने तक पहुंचा। वह चल नहीं सकता था, उसका अङ्ग अङ्ग दर्द कर रहा था, परन्तु वह घिसट-घिसटाकर जीने पर जा पहुंचा । अहाते में हाथों से टटोलता हुआ वह उस कोने में पहुंचा जहां कुत्ता लेटा था और उसके पास लुढ़क कर सुबकियाँ भरने लगा। धीरे-धीरे गुर्राते हुए प्लूटो ने उसका मुख चाटा और बाद में पैरों में लेट गया ।
वहां वे दोनों लेटे रहे, थके हुए, कराहते हुए और जख्मी - और उनके उपर एक सुनहरा तारा चमक रहा था । परन्तु उन्होंने उसे देखा नहीं ।
"अरे छोकरे, दुअन्नी फिर कम है । कहाँ है वह ! क्यों, तूने तो नहीं उड़ाई ?" ड्राइवर ने उसे कन्धों से पकड़ कर हिलाया ।
"सचमुच मैंने नहीं ली; मैंने नहीं चुराई या ख़ुदा !" अपने खाली हाथ दिखाते हुए हांस ने चिल्लाया ।
वे दूध की गाड़ी के पास सड़क पर खड़े हुए थे; सर्दियों की ठंडी हवाएं पीली पत्तियों को लाकर उनके पैरों पर डाल रही थीं ।
वह लड़का उस शीत वायु में ऐसे कांप रहा था तथा दांत कटकटा रहा था जैसे मुर्झाई हुई पत्तियाँ |
"मेरे पास नहीं है । मिस्टर शूलज़े, मेरी शिकायत न करना । मैंने नहीं ली, मैंने नहीं ली ।" मूर्खों की तरह उसने बारबार वही शब्द दुहराये।
" इतना तो हर कोई समझ सकता है, " ड्राइवर ने साधारण तौर पर कहा । "तू मेरे साथ दफ्तर में था। मुझे तो शिकायत करनी ही पड़ेगी, " और उसने लड़के को कॉलर से पकड़ लिया।
आखिर दुअन्नी चली कहाँ गई ? या तो जमीन पर उससे गिर गई । या भूल में पैसे लौटाते समय वह अधिक गिन गया । कुछ भी हो, आखिर वह तो गई ही, और हांस स्टीबके जो एक बार चोरी के अपराध में पकड़ा गया था अब सन्देह से कैसे बच सकता था।
"निकाल दिया जाय इसी समय," इन्सपेक्टर ने कहा । "मैं तेरे बाप को बतला दूंगा।"
लड़खड़ाते हुए, जैसे वह शराब के नशे में हो, हांस अपनी परिचित गलियों में चलने लगा। वे उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे, वे उस पर विश्वास कैसे कर सकते थे इसके बाद क्या होगा ? डर का भूत उसके सिर पर सवार हो गया। उसे उन घूसों का अनुभव होने लगा जो गर्मियों में उसके दुर्बल शरीर पर बरसे थे; यद्यपि अब मौसम सर्दी का आ गया था परन्तु जखम अभी तक भी अच्छी तरह ठीक नहीं हो पाये थे। अपने बाप की झूठी कसमें, मां का डरते हुए रोकना और अपना चीखना-चिल्लाना वह व भी सुन सकता था । उसकी भौंहों पर पसीने की बूंदें दिखलाई पड़ने लगीं और वे धीरे-धीरे गालों पर बह निकलीं । चक्कर आने के कारण उसने अपनी आंखें मीच लीं वह किधर जाय, किधर ? क्या वह जंगल में चला जाय ? लोग उसे पकड़ लायेंगे। क्या वह इस विस्तृत दुनिया की सड़कों पर भटकना शुरु कर दे ! वहां भी वह पकड़ा जायगा ।
उदास और पीला मुख लिये हुए वह घर पर आया । उसने कहा कुछ नहीं । वे अपने आप पता लगा लेंगे ।
“क्या तेरी तबियत ठीक नहीं है ?" उसकी मां ने अपने खुरदरे हाथ उसके बालों पर फेरते हुए पूछा, वह वास्तव में अपने बेटे को प्यार करती थी, यद्यपि यह दिखाने का उसे साहस नहीं होता था । परन्तु आज उसका बाप घर पर नहीं था । "क्या तू बीमार है ?"
उसने धीरे से सिर हिलाकर उत्तर दिया और छोटी सो खाट पर, जिस पर वह रात को अन्य भाई-बहिनों के साथ सोया करता था, जा पहुंचा; उसने अपना मुख दीवार की ओर कर लिया । वह पसीने में भीगा हुआ, हाथों को रजाई में छिपाये वहां पड़ा रहा । वह प्रार्थना वगैरह कुछ नहीं कर सका, उसे इसकी याद ही नहीं थी -- फिर वह स्तुति करता भी किसकी ? उसके सिर पर डर का भूत सवार था ।
शाम को उसका बाप घर लऔटा, नशे में सराबोर । " लड़का किधर है ?" उसने पूछा ।
हांस कांप उठा । उसने लिहाफ सिर तक ओढ़ लिया। सांस लेने तक की उसे हिम्मत नहीं हुई ।
"वह बीमार है, " उसकी मां ने कहा ।
"क्या ? भाड़ में जाय तुम्हारा वह बदमाश लड़का कल तक ठहरो, सुबह मैं-" वह बिस्तर पर जा लेटा और कुछ क्षण बाद खुर्राटे भरने लगा ।
कल ? क्या उसे मालूम था - अथवा नहीं ?
बुखार और सर्दी लगने के कारण लड़का कांप रहा था; अंधेरे में वह जलती हुई आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहा था; उसके मन में तीव्र विचार उठा, डर से भी अधिक जोरदार, उसकी इच्छा हुई कि किसी से जाकर चिपट जाय और अपने फटते हुए सिर को बचा ले।
प्लूटो ! अकस्मात् वह मुस्कराया। ठीक, वही ठीक रहेगा, बूढ़ा प्लूटो । सवेरा होते ही वह प्लूटो के पास पहुंच जायेगा - प्लूटो के - प्लूटो के -
उसके मन में विचारों का तांता बंध गया, कई विचार आये और चले गये परन्तु प्लूटो हमेशा वहाँ था । आखिरकार उसे नींद आ गई— हाथ उसके रजाई पर थे और मुंह खुला हुआ ।
दम तड़के ही उसकी नींद खुल गई, वह शान्त सो लिया था । ज्योति-हीन अर्ध चन्द्र अब भी दिखाई दे रहा था; अभी सुबह नहीं हुआ था। धीरे से दबे पैरों से वह उठा, अपने हाथ-पैर धोये, और अच्छी तरह से कंघा किया ।
अपनी नीली कुड़ती और हरी पट्टियों वाली टोपी पहने हुए वह मां की खाट के पास आहिस्ते से पहुंचा, कुछ क्षण वह उसकी ओर देखता हुआ खड़ा रहा, तब वह दरवाजे से खिसक गया ।
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स्टीबके, जूते बनाने वाला, अब भी जोर-जोर से खुर्राटे भर रहा था जैसे कि वह आधी रात में, परन्तु उसकी स्त्री जोर की आवाज़ सुनकर उठ बैठी। वह सेहन में से आई थी।
स्टीबके ! श्रीमती स्टीबके ! स्टीबके ।"
क्या गड़बड़ हो गई थी ? दूसरी चारपाई पर लेटे हुए बच्चे भी चिल्लाने लगे। नींद से अलसाई हुई वह औरत एकदम उठी, अंगरखा पहना और नंगे पैर ही खिड़की की ओर भागी । वहाँ पर कोई था जो खिड़की का कांच खटखटा रहा था।
"स्टीबके - श्रीमती स्टीबके - स्टी - ब - के ।"
" क्या हुआ ? क्या हो गया ?” औरत कांपने लगी, रोने का शब्द इतना दर्दनाक हो रहा था ।
"इधर आओ, चाहर आओ, जल्दी करो, जल्दी! अरे तुम्हारा लड़का है। उसे कुछ हो गया है । "
"कुछ हो गया ? क्या हो गया ?" मां के अंगों में भय की लहर दौड़ गई। वह अपने स्वामी की ओर चिल्लाई, 'स्टीबके ।' उसने करवट ली और फिर खुर्राटे भरने लगा ।
बाहर शोर और भी बढ़ गया; आदमियों की आवाज़ के बीच-बीच में कुत्ते का भोंकना भी सुनाई पड़ रहा था । कांपते हुए औरत ने कपड़े पहने ।
ज्यों ही वह बाहर आई, सबने एक स्वर में चिल्लाना शुरू किया । कुत्ता जिस कोने में बंधा हुआ था वहाँ सब इकट्ठे हो रहे थे।
"हैं, क्या हुआ ? क्या हो गया ?"
" एक दुर्घटना -- स्टीबके का लड़का । हे प्रभो, सर्व शक्तिमान् ईश्वर !”
"हांस ? "
आदमी एक ओर हटे, मां अन्दर जबरदस्ती घुसी। तब उसने जोर से चीख मारी जो सारे सेहन में गूंज उठी ।
केवल कुत्ते का भोंकना उत्तर में सुनाई दिया ।
कुत्ता जहाँ बंधा हुआ था उसके ऊपर दीवार में एक लोहे का कुण्डा था । उस कुण्डे से एक रस्सी लटक रही थी जिससे एक लड़के का शरीर लटक रहा था। हरी पट्टी वाली टोपी सिर से नीचे गिर गई थी, सुबह की हवा में उसके बाल उड़ रहे थे, मुँह खुला हुआ था और आँखें बाहर चमक रही थीं।
एक पागल की भाँति कुत्ता उसकी लटकती हुई टांगों तक पहुंचने के लिये उछल रहा था परन्तु पहुंच नहीं पाता था, फिर वह लेट जाता था और ऊपर को मुख करके चिल्लाता था । वह किसी को पास नहीं जाने देता था ।
कुत्ते के पास में काली दीवार पर बच्चे के हाथ से पढ़े जाने लायक बड़े-बड़े अक्षरों में यह सूचना लिखी हुई थी :
मैंने दुअन्नी नहीं चुराई ।
प्लूटो से अच्छा व्यवहार करना ।
--हांस स्टीबके दूध वाला