मेरे हाथ में कुछ नहीं (व्यंग्य रचना) : डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’
Mere Haath Mein Kuchh Nahin (Hindi Satire) : Dr. Mukesh Garg Aseemit
“मेरे हाथ में कुछ नहीं है।“ कितना दार्शिनिक भाव से भरा हुआ और करुना युक्त एक वाक्य जो अपने में न जाने कितने गूढार्थ समेटे बैठा है ! कई बार इस वाक्य को सुनकर आपके अंतर्मन में ये प्रश्न अवश्य उठता होगा की हे भगवान, आपने इस मानव को कितना निरीह और असहाय बना दिया है ,खिलौना आपने बनाया लेकिन चाबी इसकी अपने पास ही रखी,जहाँ देखो आदम जात अपने हाथ फैलाए खड़ा रहता है ,देखो मेरे हाथ में कुछ नहीं है । सब कुछ भगवान के हाथ में है।
इसके कई मायने हो सकते हैं ,एक मायना ये हो सकता है ,जैसे आपको अपना या आपके किसी रिश्तेदार का कोई काम निकलवाना है ,किसी सरकारी महकमे में आपकी कोई फाइल काफी लम्बे समय से अटकी पडी है, क्यों की आप को न जाने कहाँ से इमानदारी का कीड़ा घुस गया, 'न रिश्वत लेंगे न रिश्वत देंगे,' फाइल आपकी रिश्वत की मलाई चाटे बिना सूख के कांटा हो गयी , अचानक एक दिन आपको पता लगता है की उस महकमें में तो आपका ही कोई ख़ास रिश्तेदार, या अगर आप कोई शिक्षक रहे है और आपका कोई चेला जिसे आपने बचपन में मुर्गा बनाकर खूब पेला है ,आज आपके ही शहर में आकार उस महकमें में अधिकारी बन बैठा है, तो अब आप उस ऑफिस के चक्कर लगाते रहिये, आपको येही सुनने को मिलेगा -"देखिये सर,मेरे हाथ में कुछ नहीं, सरकारी काम काज का एक सिस्टम होता है, फ़ाइल न जाने कितनी हाथों से गुजरती है ,उस पर मार्किंग होती है, रिमार्किंग होती है,तब मेरे पास आती है !"
अब दूसरा मायना समझिये -आप रिश्वत के इस ख़ूबसूरत संसार को समझने में अभी कच्चे हो,इशारा समझने में बच्चे हो, अरे आप अपने पड़ोस की भाविजी का ही इशारा आज तक नहीं समझ पाए तो इन सरकारी दफतरों के बाबुओं का गूढतम इधरा क्या समझोगे, दफ्तर के रोज चक्कर लगा रहे हो, बाबूजी का माथा खा रहे हो, बाबु जी आप को दोनों हाथ फैलाकर कह रहे है “ देखो मेरे हाथ में कुछ नहीं है,”'
अरे मुरख भोले प्राणी -इशारा समझ -कहा जा रहा है हाथ खाली हैं,जब तक इन हाथों में कुछ रखेगा नहीं, फाइल आगे कैसे सरकेगी !
सरकारी महकमे में कुर्सी पर धंसा आदमी,उसकी शक्ल एक बार गौर से देख,उसके हाथों को देख, बिना रिश्वत की मेहंदी के रचाए , बिना उपर की आय की हल्दी लगाए उसकी हाथ कैसे सूने लग रहे है जैसे की कोई अबला नार विरहन सी पिया के बिछोह में अपने सूने हाथों को फैलाए करून पुकार कर रही है-‘मेरे हाथों में कुछ नहीं है !’ खाली हाथ ही पाक साफ नजर आते है, धुले हुए ,एक दम कोरे कागज से,जिन पर रिश्वत की स्याही से शनदार इबारतें लिखी जा सकती है ! पुलिस वाले, अधिकारी, नेता लोग अपने हाथ में कुछ नहीं रखते। अधिकारी भी आजकल दराज खोलकर या पैंट की जेब चौड़ी कर के उसमें रखवाते हैं। अब एंटी करप्शन वाले ढूंढते रहो, हाथ खाली हैं।
क्या लाएगा और क्या ले जाएगा, खाली हाथ आया है तो खाली हाथ जाएगा । इसलिए धर्म की नैया खेवन हार बाबा लोगों की भक्तों से अपील की जा रही है ,जो अर्जित किया है धन दौलात,गहने सब यहीं छोड़ जाओ , मुठ्ठी बंद क्यों रखनी, सब यहां चढ़ा दीजिए, जब तक ये माया तुम्हारे हाथ में रहेगी ,तुम्हे अहंकार रहेगा की सब कुछ तुम्हारी हाथ में है ,बस सब हाथ खाली रखो, ताकि कह सको , "हमारे हाथ में भी कुछ नहीं है,सब भगवान् के हाथ में है ।"बाबा के हाथ की सफाई देखो ,एक पल में तुम्हे माया के भार से मुक्त कर हल्का फुल्का इंसान बना देते हैं !
बाबा के सत्संग में हजारों आदमी कुचले जाएँ ,अब बाबा के हाथ में क्या है,सब भगवान् की मर्जी है, पापियों को सजा मिलती ही है ,ऊपर के कोर्ट में हजारों फाइलें पेंडिंग पडी है इसलिए इन बाबाओं के हाथों फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट खुलबा दिए हैं .ओन स्पॉट ,हाथ के हाथ कार्यवाही ,बाबा कह रहे हैं ,बाबा की छत्र छाया में पल रहे अधिकारी कह रहे हैं भाई हमारे हाथ में क्या है , सही तो कह रहे हैं ,ये जो हल्ला कर रहे है सब विरोधियों की चाल है,मुद्दे से भटकाव है !
वकील आप से केस जितवाने की धांसू रकम लेता है ,लेकिन वो भी इस हाथ ले उस हाथ देने के भाव से ऊपर तक पहुंचता है ,अब केस हार जाने के बाद वकील अपने हाथ झरकारते हुए कह रहा है की मेरे हाथ में कुछ नहीं तो सही तो कह रहा है । वकील केस हार जाता है क्योंकि उसके हाथ में कुछ नहीं है, सब जज के हाथ में है। जज गलत फैसला देता है क्योंकि उसके हाथ में भी कुछ नहीं है, सब कानून के हाथ में है। कानून अपने हाथ खड़े कर देता है क्यों की देश कानून के भरोसे चल ही नहीं रहा भगवान् के भरोसे चल रहा है !
नेता जी के चुनाव जीतने के बाद उनके हाथ में कुछ नहीं रह जाता। नेताजी भी इस हाथ से लेकर उस हाथ से अपने आकाओं को पहुंचा रहे है. नेता जी चुनावी वादे करके फिर 5 साल क्यों नहीं आते, क्योंकि उनके हाथ में कुछ नहीं है। सब उनके आलाकमान के हाथ में है, जो जिसे चाहे मंत्री बना दे, जिसे चाहे मार्गदर्शक।
इन नेताओं की तो हाथ की सफाई ऐसी है कि किसी के हाथ में कुछ नहीं दिखे, लेकिन फिर भी लाखों-करोड़ों के घोटाले हो जाते हैं। बेचारे नेता तो अपने हाथ में कुछ नहीं रखते, उन्हें इतनी नफरत है इस रिश्वत की रकम से की इसको हाथ भी नहीं लगाते, घोटाले की रकम से सनी हुई फाइलों को खून से सनी फाइलें समझते है, अपने हाथ रँग नहीं जाएँ और रंगे हाथों पकडे नहीं जाएँ इसलिए अपनी पार्टी के पाले हुए प्यादों को इस रिश्वती रँग से भीगी चुनरिया उढवाते हैं ! निर्विकार भाव से ! अब इधर सी बी आई और ई डी वाले भी जब इन्हें पकड़ते है तो वो भी येही कहते फिरते है कि 'उनके हाथ में कुछ नहीं है,' सब ऊपर से आदेश है।
अब नेता जी के ऊपर हाथ हो, तो कोई अफसर यह कहने का हकदार है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है। पुलिस के ऊपर भी अगर हाथ हो तो पुलिस भला हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठ सकती न , पुलिस को भी आंकड़े भरने हैं ,क्राइम का फिगर मेन्टेन कर के रहना है इसलिए क्राइम होंगे नहीं तो करवा दीये जायेंगे लेकिन मजाल की आंकडा पछाड़ खा जाये । पुलिस के सारे हथकंडे भी इसी मजबूरी से होते हैं, चलते फिरते का चालान काटना, किसी राह चलते को उठाना, सब कहते हैं कि हाथ में कुछ नहीं है, ऊपर से आदेश है।
मेरे शहर में सड़कें खुद-ब-खुद खुद जाती हैं, नालियां कचरे से भर जाती हैं, नलकों के हलकों में पानी सूख जाता है , बिजली सिर्फ बिलों में आती है, घरों में नहीं, सिर्फ इसलिए कि किसी के हाथ में कुछ नहीं है। सत्ता वाले विरोधी का हाथ बताते हैं कि उन्होंने हमारे हाथ में कुछ नहीं छोड़ा। सरकारें चुनते ही खजाने खाली होने का रोना रोती है ,की हमारे हाथ में कुछ नहीं छोड़ा सब पहले ही हाथ साफ़ कर गए !