मेंढक और चूहे : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
Mendhak Aur Chuhe : Lok-Katha (Uttar Pradesh)
मेंढक और चूहे आपस में नाता-रिश्ता लगाने के लिए राजी हो गए थे। बरसात के दिन थे और चूहे बिना काम के पड़े थे। वे मेंढकों के घरों में नाता-रिश्तेदारी करने चले गए। मेंढ़कों को तो खड़े होकर बात करने तक का वक्त न था। उन्होंने कहा कि वे अभी रिश्तेदारी नहीं कर सकते हैं। उन्हें बहुत सारा कार्य है। बालक-बच्चों को पालने के साथ खाने-पीने की वस्तुएं भी एकत्र करनी है। कुछ समय के बाद वे कुड़मचारा (रिश्तेदारी) लगा लेंगे। चूहे अपना सा मुंह लेकर लौट गए।
सर्दियों का मौसम आने लग गया था। मेंढक बेकार थे, उन्होंने चूहों से रिश्तेदारी करने का पक्का मन बना लिया था। एक दिन मेंढ़क चूहों के घर पहुंच गए। चूहे धान, मास, मक्की और दूसरे अनाज इकट्ठा कर रहे थे। उनके आंगन द्वार पर अनाज ही अनाज दिखाई दे रहा था। चूहों ने अब मेंढकों को कहा कि वे बहुत काम में फंसे हुए हैं। उन्हें तो रिश्तेदारी करने के लिए थोड़ा भी समय नहीं है। उन्हें बहुत-सा अनाज और सामान एकत्र करने को है। इसलिए वे थोड़ा खाली समय में रिश्तेदारी कर लेंगे और बच्चों की शादी भी कर देंगे। मेंढक मुंह लटका कर लौट आए।
इसी तरह मेंढ़क और चूहे एक-दूसरे के पास रिश्तेदारी करने जाते रहे और आज तक वे कुड़मचारा नहीं कर पाए हैं। (साभार : प्रियंका वर्मा)