मेहनती राजा : कश्मीरी लोक-कथा

Mehnati Raja : Lok-Katha (Kashmir)

अक्सर ऐसा होता है कि नीच लोग अपने बुरे इरादों में सफल हो जाते हैं और ठीक लोगों के अच्छे इरादे असफल हो जाते हैं। पर इस कहानी में ऐसा नहीं होता।

एक बार की बात है कि एक राजा था जो बहुत ही दयालु और न्याय करने वाला था। उसकी हमेशा यही इच्छा रहती थी कि उसकी जनता खूब फले फूले और खुशहाल रहे।

एक दिन अचानक उसको पता चला कि उसके राज्य की जनता दिन पर दिन कम होती जा रही है। पर यह उसको पता नहीं था कि इसका हिसाब कैसे रखा जाये। इसके अलावा वह यह भी नहीं जानता था कि इसकी वजह क्या थी।

उसके राज्य के नियम और कानून सब बहुत अच्छे थे। टैक्स भी बहुत हल्के थे। उसके राज्य में पैदावार भी बहुत अच्छी होती थी। फिर उसके राज्य से लोग क्यों भाग रहे थे।

इस बात का पता लगाने के लिये एक दिन राजा ने एक फकीर का वेश बनाया और अपने देश में घूमने लगा। अपने इस घूमने के बीच उसको पता चला कि एक जिन्न उसके राज्य के अलग अलग शहरों और गाँवों में आता था और जहाँ भी वह जाता था वहाँ के आदमियों को खा लेता था।

अपने इस घूमने के बीच एक दिन उसकी भेंट उस जिन्न से हो गयी। वह उसको पहचान तो नहीं सका क्योंकि वह एक साधारण आदमी जैसा दिखता था।

हुआ यों कि एक बार घूमते घूमते राजा एक बंजर जमीन के टुकड़े के पास पहुँचा जो शहर से कुछ दूरी पर था। वहाँ उसने एक आदमी को घुटनों के बल बैठा देखा।

उस आदमी की आँखें बन्द थीं उसके कान उसकी उँगलियों से बन्द थे और वह अपना सिर जमीन पर दे दे कर मार रहा था। राजा ने जब उस आदमी को ये अजीब सी हरकत करते हुए देखा तो वह उसके पास गया और उससे पूछा — “अरे यह तुम क्या कर रहे हो क्या तुम पागल हो गये हो?”

वह बोला — “नहीं नहीं मैं पागल नहीं हुआ हूँ। बस थोड़ा ध्यान कर रहा था। मैं अपनी आँखें बन्द रखता हूँ ताकि मैं ऐसा कुछ न देख सकूँ जो मेरी आँखों को नहीं देखना चाहिये। मैं अपने कान भी बन्द रखता हूँ ताकि मैं ऐसा कुछ न सुनूँ जो मुझे नहीं सुनना चाहिये।

और अपना सिर जमीन पर मारता रहता हूँ ताकि सब कीड़े मकोड़े मुझसे दूर चले जायें। ताकि कहीं ऐसा न हो कि मेरा पैर उन पर पड़ जाये और मैं उनमें से किसी की हत्या का कुसूरवार बन जाऊँ।”

राजा ने पूछा — “हे योगी आप कहाँ रहते हैं।”

वह आदमी बोला — “यहीं पास में। अगर तुम्हारे पास कोई खास काम करने के लिये नहीं है तो मेरे साथ आओ और मेरे घर चल कर रहो। मुझे मालूम चल गया है कि तुम भी कुछ ऐसे ही आदमी हो जिसका मन इस दुनियाँ में नहीं लगा हुआ।”

राजा ने उसकी बात मान ली और वह उस आदमी के साथ उसके घर चला गया। घर पहुँच कर उसने अपनी पत्नी को थोड़ा गरम पानी लाने के लिये और उससे अपने मेहमान के पैर धोने के लिये कहा।

स्त्री को अजनबी पर दया आ गयी सो जब वह उसके पैर धो रही थी तो उसने उससे धीरे से कहा कि उसका पति “कीम्यागर” था और वह उसको मार डालेगा जैसा कि उसने हाल में दूसरे सैंकड़ों लोगों के साथ किया है।

उसने उससे तीन “कुलचे” ले कर वहाँ से भाग जाने के लिये कहा। उसने आगे कहा कि उसका पति आता ही होगा और जब वह आने पर उसको नहीं देखेगा तो उसके बारे में पूछेगा और उसके पीछे अपना शिकारी कुत्ता छोड़ देगा। पर उसको डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि जब वह उस कुत्ते को देखे तो उन कुलचों में से एक कुलचा उसकी तरफ फेंक दे। वह कुत्ता उस कुलचे को खा कर वापस लौट जायेगा। कीम्यागर उसके बाद उसके पीछे एक और कुत्ता भेजेगा। उसके साथ भी वह वैसा ही करे। वह उसके लिये दूसरा कुलचा फेंक दे। तो वह कुत्ता भी उस कुलचे को खा कर वापस लौट जायेगा।

इसके बाद वह एक तीसरा कुत्ता उसके पीछे भेजेगा। उसके लिये वह तीसरा कुलचा फेंक दे। तब तक वह शहर पहुँच जायेगा और वहाँ वह कुत्ता उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा।

कह कर उसने राजा को तीन कुलचे दिये और उससे तुरन्त भाग जाने के लिये कहा। राजा ने उससे वे कुलचे लिये और वहाँ से जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी भाग लिया।

जल्दी ही उसने देखा कि एक कुत्ता उसके पीछे दौड़ा आ रहा है उसने तुरन्त ही एक कुलचा अपने पीछे फेंक दिया। वह कुत्ता कुलचा खाने में लग गया और राजा आगे भाग लिया। इसी तरह दूसरे और तीसरे कुत्ते के साथ भी हुआ।

वे तीनों कुत्ते इतने भयानक और खूँख्वार थे कि अगर राजा ने उनको कुलचा न फेंका होता तो वे उसी को खा जाते। शहर पहुँच कर वह अपने महल गया और अपने शाही कपड़े पहन लिये। फिर उसने अपने सिपाहियों को बुलाया और उनसे कीम्यागर को जा कर मारने के लिये कहा और उसकी पत्नी को उसके पास लाने के लिये कहा। राजा के सिपाहियों ने ऐसा ही किया। इस तरह कीम्यागर मारा गया और उसकी पत्नी को राजा ने अपने जनानखाने की देखभाल करने वाला बना दिया।

इसके बाद से उस राज्य के लोग कम नहीं हुए और देश खुशहाल होता रहा।

(सुषमा गुप्ता)

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