Marusthal : (Hindi Story) : Amrit Rai

मरुस्थल : अमृत राय (कहानी)

जहाँ पर अपनी बेशरम आदत से लाचार चोखे और मँगरू इस वक़्त बैठे हुए हैं वह एक अंधी गली में और भी अंधी कोठरी है। उस कोठरी में एक कुप्पी का टिमटिम प्रकाश है जो अभी हाल ही में पीली पुती हुई दीवार पर गिर कर विकृत हो रहा है। इस रोशनी की ज़रूरत सिर्फ़ शराब की मात्रा समझ लेने के लिए पड़ती है। वहाँ उस बेहद खुरदरे फर्श पर कुछ टूटी कुरसियाँ पड़ी हुई हैं जिनकी टाँगे ऊँची-नीची हैं। कुछ अलमूनियम और चीनी के बर्तन, लाल-नीली खाली बोतलें, कुछ हड्डियाँ एक काई लगी सुराही एकाध टूटी रकाबी, वगैरः कुछ चीजें एक कोने में तितर-बितर छितरी पड़ी हैं। साथ ही उस कमरे में ऐसी एक सीलन की बदबू है जो नये ये आगन्तुक को पागल कर देती है, पर वही बदूब कड़े पियक्कड़ों–जिनके रुखड़े मिट्टी में अटे बाल, चेहरे की नपुंसक भीषणता, खूँखार बेजान बुझी हुई आँखें, बोतलों की संख्या, नीली उभरी नसों वाले हाथ, चुसे व्यक्तित्व इसके साक्षी हैं–की मस्ती में चार चाँद लगाती है, और वे उसे शराब की गंध का ही अंश मानते हुए सर्दियों से चले आते हैं।

जब चोखे और मँगरू ने दो अद्धे मँगा कर सामने रख लिये जिसमें ढाढ़स रहे, और चिखनी के लिए आध पाव, तेल की, काली करके भूनी हुई कलेजियाँ भी रख लीं...चोखे ने उस हरामखोर से कितना कहा कि एक गुर्दा भी रख दे, पर ससुरा न माना तो न माना! भगवान जल्दी ही पूछें! कलवरिया का दढ़ियल मालिक देर का कुल्हड़ रख कर चला गया था। इस दम दोनों झगड़ रहे थे कि अधिक जली हुई कलेजियाँ कौन लेगा। चौकोरवाली चोखे लेगा कि तिकोनी?

वे दोनों जब अपना कुल्हड़ चढ़ा कर, अपने अधमरे सुरूर को चीर कर देखते थे तो उन्हें लगता था कि इस सारी मुफ़लिसी का कारण भगवान है; और वहाँ बाँस की खुरदुरी कुर्सी पर बैठे हुए वे उसे बिना किसी ख़ास ज्ञान-अज्ञान के खूब पुख्ता तौर पर बुलन्द आवाज़ में जली-कटी सुनाते थे, और अँधेरी, सड़ी हुई बदबूदार कोठरी में एक अटपटा खोह आ बैठता था। वहाँ पर सृष्टि को बेध कर अनेकों गालियाँ उठती थीं, उठ कर उन कुज्जों में समा जाती थीं और बुल्लों की तरह फिर-फिर उठती थीं।

जब चौखे और मँगरू कलवरिया से निकले वे बेहद पी गये थे, इतना कि उनकी आँखें लाल अंगारा हो रही थीं। उनकी चमड़ी पर कालिख-सी पुती हुई थी और वे अपने में न थे। वे एक पैर आगे बढ़ा कर दूसरा रख न पाते थे और लड़खड़ा जाते थे। वे मकान की भीतों से टक्कर तक खा जाते थे और उनका बदन छिल जाता था, और सारे सफ़र में वे एकाध बार अंशतः नाली में भी समा जाते थे। इसीलिए उनकी गति बड़ी धीमी थी और पन्द्रह मिनट के कोठरी से निकले हुए वे अब तक सिर्फ़ उस कलेजी की दुकान तक आ पाये थे जिसका जिक्र पहले हो चुका है और जहाँ से उन्होंने दिन उधार खाया था कि उसने कलेजी देना बिलकुल बन्द कर दिया था। जब वे अपने-अपने घर पहुँचे दिया जलने का वक़्त हो आया था और चोखे के यहाँ एक पैसे के मिट्टी के तेल के लिए तोबा-तिल्ला मचा हुआ था गोया बहुत बड़ा हादसा हो गया हो।

माँ छः साल के बच्चे को मार-मार कर राह अगोरने को भेज रही थी–देख, तेरा मुआ बाप पलटा कि नहीं।

वह ‘मुआ बाप’ जब लौटा, उस पर संतों का-सा वैराग्य खेल रहा था।

उसने बग़ैर किसी तूल-तमाल के टेंट में से सारे पैसे निकाल कर पत्नी के हाथ में यों डाल दिये जैसे ठीकरे हों और अब तक हाथ में भारी हो रहे हों। उसने एक मचिया खींच ली और बैठ गया, विषण्ण।

पत्नी ने मुँह की ओर निहारा और ताड़ गयी कि कुछ पैसे कुल्हड़ों, में बिला चुके हैं, पर उसने मुँह न खोला और समझौते की थाली लेकर दूसरे कामों में जुट गयी। चोखे वहीं मचिया पर बैठा रहा। उनके उस बेताल, बेसुर के चक्र में कोई रुकना-पलटना न था और वह चक्र अनवरत चल रहा था, एक ऐसे पथ पर जहाँ विषाद, अवसाद, प्रसन्नता, उल्लास, रंग, नाटक कुछ भी नहीं, और जो खाई-खड्डु हैं भी, उन्हें भी सपाट और समतल मानते हुए ही आगे बढ़ना हो सकता है।

उनकी उस ओछी गृहस्थी का भी एक व्यक्तित्व है।

एक फूहड़ मकान है जिसके प्राणी उससे भी अधिक फूहड़ हैं। उस मकान का फ़र्श अत्यधिक फुसफुसी मिट्टी का है। मकान पर एक फूस का छप्पर है, जो देखने की चीज़ ज़्यादा है और काम की कम क्योंकि उसमें जो कुछ तिनके थे भी, उनका बड़ा अंश लोगों की चिलम सुलगाने में खेत रहा। जो ही आया एक मूठा निकाल ले गया।

एक कोने में एक खूब पैबन्द लगी हुई छतरी टिकाकर रखी है। उसके पास ही मोटर के टायर का टुकड़ा पड़ा है, जिसे बच्चा उठा लाया है। कमरे भर में कपड़े टाँगने की तीन रस्सियाँ बँधी हैं। कोई भी रस्सी पूरी नहीं है और किनारी, सुतली और बाध के मेल से बनी है। एक अलगनी से एक ढोलक टँग रही है जो इस वक़्त ढीली पड़ी है क्योंकि छः साल से उसे बजाने की नौबत नहीं आयी। उसी ढोलक पर एक मजीरे का जोड़ा रखा हुआ है। वहीं अलगनी पर चोखे का पाजामा रखा है जिसका आगा लाल चारखाने का है, पीछा नीली धारियों का और दोनों टाँगे मटमैली सफ़ेद हैं। वहीं चोखे की एक मैली-कुचैली टोपी रखी है। एक कोने में एक झाड़ू रखी है जिसकी बहुतेरी सींकें झड़ चुकी हैं। एक जगह धरन से साइकिल का एक विगलित ट्यूब लटक रहा है। कमरे के बीच छः साल के लड़के का खटोला है। उस खटोले पर इस वक़्त खीरे बिखरे पड़े हैं, जो सूख गये हैं। वहीं एक तीन पैसे वाली गेंद रखी है जिस पर अँग्रेजी का K लिपा-पुता है। वहीं एक, एक-पैसे वाली सारंगी है और एक बिगुल, जो अब लाख फूँकने पर भी नहीं बोलता।

माँ की गृहस्थी तीन वर्ग गज़ में विकीर्ण है। उसमें हल्दी, सोंठ, सेंधा नमक, सिल-बट्टा (जिसको टँकवाने की सख़्त ज़रूरत महसूस की जा रही है,) सभी है, वहीं एक पीपल के पत्ते पर चूना और कुछ सड़ी, खदरी हुई सुपारियाँ रखी हुई हैं, जिन्हें तबियत ऊबने पर अधेड़ दम्पति खा लेते हैं। चोखे कहीं से बिस्कुट का एक बड़ा डब्बा पा गया था। वह अब एक आले में रखा है। एक ताक़ पर एक लाल-नीली पेंसिल रखी है, जिससे दस साल के बड़े लड़के ने आस-पास खूब खँचा रखा है–बेसिर-पैर की हजारों रेखाएँ। पास ही एक तवा रखा है जिसके बीच छेद है और जो अब माँ की गृहस्थी से कालापानी है। एक लकड़ी का मोटा लट्ठा रखा है। पास ही एक कुल्हाड़ी रखी है।

दोनों बच्चे आपस में लड़ रहे हैं और इस तरह खाँव-खाँव करते हैं जैसे बंदर के बच्चे हों! माँ ने हाँडी में पकाने को कुछ रख छोड़ा है और वह इन छोकरों की लड़ाई पर खीझ रही है। एक संग ही लड़कों को गुर्राकर चीख़ पड़ती है और फिर पति की ओर देखकर–कैसे हो? दो बच्चे भी नहीं सँभाल पाते? कैसे बैठे हैं जैसे बुद्ध भगवान हों!

इस पर उसे एक विचार सूझता है और वह कहती है–हाँ नहीं तो! जैसे बुद्ध भगवान हों। नहीं, नहीं, बुद्ध नहीं बुद्धू!

और उसने चोखे के मुख की ओर देखकर चाहा कि समझौते के तौर पर उसे हँसाकर हँस दे। पर वह ठिठक जाती है और चोखे के मुँह का गिरा हुआ, रुक्ष-भाव देखकर हँस नहीं पाती। घर में एक खा डालने वाली नहूसत फैली हुई है। चोखे की पत्नी उसका सुखद अन्त करने को उतना ही उत्सुक है जितना दोनों लड़के एक दूसरे को काटने को। पर चोखे की मुद्रा को देखते हुए वह पाती है कि ऐसा सम्भव नहीं है।

और इस सारे फैलाव और संकोच संघर्ष, कोलाहल, अनैक्य के बीच अनसुथरे फूहड़पन से बोझिल वातावरण में उसके पास कहने को कुछ भी नहीं है ।

चोखे चुपचाप बैठा है, उसी मचिया पर। और कितने ही घण्टे यों ही बीत जाते हैं। बीत जाया करते हैं। बीतें न तो हों क्या?

  • मुख्य पृष्ठ : अमृत राय हिन्दी कहानियाँ और गद्य रचनाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां