मरता क्या न करता : उज़्बेक लोक-कथा

Marta Kya Na Karta : Uzbek Folk Tale

बहुत समय पहले एक बूढ़ा रहता था। एक बार बूढ़े की पत्नी नहाने के लिए हमाम में गयी। पर अपनी बारी आने पर भी वह नहा न सकी। बादशाह का नौकर आकर बोला :

"अभी बादशाह के प्रधान ज्योतिषी की पत्नी आकर नहायेगी, इसलिए हमाम इसी वक़्त खाली कर दो!"

घर आकर बूढ़े की पत्नी बोली :

"बादशाह के ज्योतिषी का पद बहुत ऊँचा होता है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण आदमी होता है, सब पर उसका रोब रहता है। तुम भी भविष्य बताना सीखकर ज्योतिषी बन जाओ, नहीं तो मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊंगी।"

बूढ़े को भविष्य बताना बिलकुल भी नहीं आता था। पर मरता क्या न करता । उसने लकड़ी का एक चौकोर टुकड़ा लेकर एक तरफ़ से उस पर लाल रंग फेरा, दूसरी ओर से काला तीसरी ओर से सफ़ेद चौथी ओर से - नीला पांचवीं ओर से पीला और छठी ओर से हरा । लकड़ी के चौकोर टुकड़े और एक घिसे- पिसे काराज को थैले में डालकर वह बाजार में एक ऐसी जगह बैठ गया, जहाँ भीड़ ज्यादा रहती थी। जब कोई आदमी उसके पास अपना भविष्य पूछने आता तो वह लकड़ी का रंगबिरंगा पासा फेंककर उसकी ओर देखते हुए जो जी में आता कह देता। कुछ ही दिनों में नये "ज्योतिषी "की ख्याति सारे शहर में फैल गयी।

उन दिनों बादशाह के लगान उगाहनेवाले इकट्ठा हुआ सोना खच्चरों पर लादकर शहर में लाये थे । एक सोने से लदा खच्चर लापता हो गया।

बादशाह ने अपने सारे ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा पर उनमें से कोई भी न बता सका कि खोया हुआ खच्चर कहाँ मिल सकता है। बादशाह का एक दरबारी बोला :

"हुजूर, अभी कुछ दिनों से एक नया ज्योतिषी बाजार में बैठ रहा है। वह बिलकुल सही बात बताता है और उसका बताया हुआ कभी ग़लत नहीं होता ।"

बूढ़े को दरबार में लाया गया। बादशाह बोला :

"मेरा सोने से लदा एक खच्चर ग़ायब हो गया है। तुम बताओ, वह कहाँ है । अगर नहीं बताया तो तुम्हारा सिर काट डालूंगा ।"

बूढ़े ने थैले में से अपना रंगबिरंगा पासा निकालकर फेंका और उसकी ओर देखकर लगान उगाहनेवालों से पूछा :

"शहर के पास पहुंचते-पहुंचते आप कहीं रुके तो नहीं थे ?"

"हां, हम बच्चरों को चराने के लिए पेड़ों के एक झुरमुट के पास रुके थे ।"

बूढ़े ने सोचा : "आराम करने के बाद इन लोगों ने खच्चरों की गिनती नहीं की होगी और एक खच्चर पेड़ों के झुरमुट में ही रह गया होगा ।"

बूढ़ा बादशाह की ओर देखकर बोला :

"आपका खोया हुआ खच्चर झुरमुट में है। आप किसी आदमी को वहीं भेज दीजिये ।"

बादशाह ने अपने आदमी भेजे। बूढ़े की बतायी हुई बात बिलकुल ठीक निकली। खोया हुआ खच्चर मिल गया । बादशाह ने बूढ़े को सिर से लेकर पैर तक बेशक़ीमती तोहफ़ों से लाद दिया और उसे अपने दरबार में ही रख लिया।

एक बार बादशाह के खजाने में चोरी हो गयी। चोर सोने का एक बोरा उठा ले गये । बादशाह ने अपने चालीसों ज्योतिषियों को बुलाकर कहा :

"सोने की चोरी का पता लगाओ ! अगर पता नहीं लगा, तो सबको जान से मार डालूंगा ।"

बूढ़े ने चालीस दिन की मोहलत मांगी।

"अगर चालीस दिन में हम चोर और माल का पता न लगा पायें, तो आप हमें मार दीजिये !" बूढ़ा बोला ।

बूढ़े "ज्योतिषी" ने बाजार से चालीस सूखी खूबानियाँ खरीदीं। घर आकर वह पत्नी से बोला :

"तुम चाहती थीं कि मैं मर जाऊं। अगर चालीस दिन के अंदर-अंदर मैंने चोरों और माल का पता नहीं लगाया, तो बादशाह मुझे मार डालेगा। मैं नहीं कह सकता कि सोना कहाँ है । तुमने ही ज्योतिषी बनने के लिए मुझे मजबूर किया था, पर मैं तुम्हें माफ़ करता हूँ । अब मुझे चालीस दिन ही जिंदा रहना है, इसलिए तुम मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना और प्यार से रहना ।"

अब चोरों और सोने के बोरे का हाल सुनिये ।

सोने का बोरा चालीस चोरों ने चुराया था। उनका सरदार लंगड़ा था।

चोरों को पता लगा कि एक नया ज्योतिषी आया है और वह चालीस दिन में चोर और माल दोनों का पता लगा लेगा ।

सरदार ने शाम को अपने दल के एक आदमी को हुक्म दिया :

"जाकर देखो, वह बूढ़ा ज्योतिषी क्या कर रहा है ।"

चोर बूढ़े के घर में छुपकर सुनने लगा । बूढ़ा उस समय पहली खूबानी खाकर पत्नी से कह रहा था :

"देखो, चालीस थे, उनमें से एक यहाँ पहुँच गया," बूढ़े ने अपने पेट की ओर इशारा किया।

चोर घबराया : “ इसे मालूम है कि हम चालीस हैं, और मैं इसके घर में छुपा हूँ। वह भागा-भागा अपने साथियों के पास पहुँचा और बोला :

"जैसे ही मैं बूढ़े ज्योतिषी के घर में घुसा वह कहने लगा: 'चालीस में से एक चोर यहाँ है ।' अगर हमने उसके साथ समझौता नहीं किया, तो हम सब पकड़े जायेंगे।"

"डरपोक कहीं का !" सरदार गुस्सा हो उठा।" उसने किसी और चीज के बारे में कहा होगा और तूने अपने बारे में समझ लिया। कल किसी को साथ लेकर जाना ! दूसरे दिन दो चोर बूढ़े के घर में घुसे और छुपकर सुनने लगे ।

बूढ़े ने उसी समय एक और खूबानी खायी थी और वह पेट की ओर इशारा करते हुए अपनी पत्नी से कह रहा था :

"देखो चालीस में से दो अब यहाँ पहुंच गये ।"

"हमारे बारे में ही कह रहा है," चोरों ने सोचा और वहाँ से भाग निकले।

तीसरे दिन चोरों का सरदार अपने दो आदमियों के साथ स्वयं आया ।

उसी समय बूढ़े ने एक और खूबानी खायी थी। वह खूबानी खराब थी, इसलिए बूढ़ा अधखायी खूबानी पत्नी को दिखाकर कह रहा था :

"देखो, अब तीन यहाँ पहुंच गये हैं, पर इन में से एक में कुछ खोट है ।"

"सचमुच, यह तो हमारे बारे में ही कह रहे हैं ! इसे तो हमारे लंगड़े सरदार का भी पता लग गया !" चोरों ने सोचा । सरदार ने फ़ौरन एक आदमी को घर से सोने की बोरी लाने के लिए भेजा। जब सोने की बोरी आ गयी, तो सरदार ने ज्योतिषी का किवाड़ खटखटाया।

बूढ़े ने पूछा :

"कौन है ?

"आपको तो मालूम ही है कि हम लोगों ने खजाने से सोने का बोरा चुराया था। लेकिन हमने इसमें से एक भी अशरफ़ी नहीं निकाली है । वह बोरा हमने एक सुरक्षित जगह में, चिमनी के अन्दर छुपा दिया है और सोने की यह बोरी आपको भेंट कर रहे हैं। हमें मुसीबत से बचाइये, हमारे बारे में बादशाह को कुछ भी न बताइये," सरदार बोला ।

"मैं तो उसी दिन जान गया था कि खजाने में चोरी तुम्हीं लोगों ने की है," बूढ़े ने डींग हांकी, "पर मुझे तुम पर दया आ गयी। मैंने सोचा, तुम लोग खुद ही आकर बता दोगे । इसी लिए तो मैंने चालीस दिन की मोहलत ली थी। तुम सोने की बोरी यहाँ छोड़ो और अपने- अपने घर जाओ।"

दूसरे दिन ही बूढ़ा बादशाह के पास पहुँचा ।

"हुजूर, मैंने आपके सोने का पता लगा लिया है। पर चोर हाथ नहीं आ सके, वे लोग किसी दूसरे शहर में भागकर छुप गये हैं।" बूढ़े ने वह जगह भी बता दी जहाँ सोना छुपा हुआ था। आप अपने वफ़ादार नौकरों को उसे लेने भेज दीजिये, ” उसने बादशाह को सलाह दी।

बादशाह ने फ़ौरन अपने आदमी दौड़ाये। उन्हें बूढ़े की बतायी हुई जगह में सोना मिल गया । बादशाह ने उसी समय अपने प्रधान ज्योतिषी को बुलाकर चालीस कोड़े लगवाये और उसे हटाकर बूढ़े को अपना प्रधान ज्योतिषी बना दिया ।

बूढ़ा घर आकर पत्नी से बोला :

"लो, तुम जो चाहती थीं, वही हो गया हूँ। बादशाह ने मुझे अपना प्रधान ज्योतिषी बना दिया है। जिस दिन मेरी मौत आयेगी मर जाऊंगा, पर तब तक के लिए तो मैं बड़ा आदमी बन ही गया।"

एक बार बूढ़ा हमाम में नहाने गया। वह अपने सिर में दही मलकर धोने लगा। नहाते-नहाते वह सोचने लगा :

"क्या करूँ ? किस तरह बादशाह से पीछा छुड़ाऊं ? ठीक है, मैं पागल होने का ढोंग रचता हूँ । यहाँ से नंगा भागकर बादशाह का ग़रेबान पकड़ लूंगा और उसे बाहर खींच लाऊंगा। जब वह देखेगा कि मैं पागल हो गया हूँ, तो वह मुझे निकाल देगा। इसके अलावा अब कोई दूसरा चारा नहीं रहा ।"

बूढ़ा हमाम से नंगा निकलकर महल की ओर भागा। बादशाह बरामदे में बैठा था । बूढ़े ने जाकर बादशाह का ग़रेबान पकड़ लिया । बादशाह और उसके अंगरक्षक भौचक्के रह गये । उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। बूढ़ा बादशाह को घसीटता हुआ बाहर ले आया ।

संयोग से उसी समय भूकंप आया और बरामदे की छत टूटकर नीचे गिर पड़ी।

बादशाह को काटो तो खून नहीं। फिर जब उसे होश आया तो उसने पूछा :

"तुम्हें इसका पता कैसे चला ?"

"मैं हमाम में बैठा नहा रहा था। अचानक मुझे पता लगा कि आप पर मुसीबत आनेवाली है। आपके प्राण बचाने के लिए मैं बिना कपड़े पहने, शर्म हया छोड़कर नंगा ही भागा आया । इस लिए मैंने आपको जबरदस्ती बरामदे से उठाया और यहाँ खींच लाया ।"

बादशाह बूढ़े की और भी ज्यादा इज्जत करने लगा, उसे बहुत क़ीमती इनाम दिये और हमेशा अपने साथ रखने लगा ।

"मैंने कभी तुम जैसा ज्योतिषी नहीं देखा !" बादशाह कहता रहता।

एक बार बादशाह खेत में घूम रहा था। उसने एक टूटी टांगवाला टिड्डा पकड़कर हाथ में बन्द कर लिया । " ज्योतिषी से पूछकर देखता हूँ, वह बता सकता है या नहीं कि मेरे हाथ में क्या है। बादशाह ने मन में सोचा और बूढ़े से पूछा :

"अच्छा बताओ, मेरे हाथ में क्या है ?"

बूढ़ा घबरा गया। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या कहे । उसने सोचा और जोर-जोर से अपने बारे में बोलने लगा :

"अब मैं कैसे जान बचाऊँ ?"

"पहली बार फंसते-फंसते बचा, दूसरी बार फिर फंसते-फंसते बचा, पर तीसरी बार बुरी तरह फंस गया ।"

"शाबाश! तुमने बिलकुल ठीक बताया !" बादशाह ने मुट्ठी खोलकर उसे टिड्डा दिखाया। कुछ दिन बाद बूढ़ा बादशाह के पास आकर बोला :

"हुजूर मैं आपसे एकांत में कुछ कहना चाहता हूँ ।"

बादशाह ने बाक़ी सब लोगों को बाहर भेज दिया ।

"बोलो, क्या कहना चाहते हो !"

"हुजूर मैं ज्योतिषी नहीं हूँ। मैंने मुसीबत में पड़ जाने पर ही भविष्य बताना शुरू किया था।"

बूढ़े ने बादशाह को अपनी पूरी कहानी सुना दी। बादशाह सुनकर बहुत देर तक हंसता रहा। फिर उसने बूढ़े को प्रधान ज्योतिषी के पद से मुक्त करके वापस घर जाने की इजाजत दे दी।

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