शादी की लौटरी : चीनी लोक-कथा

Marriage Lottery : Chinese Folktale

एक मजदूर था मा शीन जुंग। जब वह बेचारा केवल 20 साल का ही था तो उसकी पत्नी चल बसी। वह इतना गरीब था कि दूसरी शादी भी नहीं कर सकता था।

एक बार जब वह अपने खेतों में हल चला रहा था तो उसने देखा कि बहुत सुन्दर लड़की सड़क छोड़ कर बीच खेत से चल कर उसकी तरफ आ रही थी। उसका चेहरा बहुत सजा हुआ था और उसकी शक्ल इतनी अच्छी लग रही थी कि मा को लगा कि वह रास्ता भूल गयी है।

वह उससे मजाक करने वाला ही था कि वह चिल्ला कर बोली — “तुम अपने घर जाओ। मैं भी तुम्हारे पीछे पीछे आती हूँ।”

मा को यह अजीब सी बात सुन कर आश्चर्य हुआ पर उसने कसम खायी कि वह अपना वायदा नहीं तोड़ेगी। सो मा वहाँ से चला गया और उससे कहता गया कि उसका दरवाजा उत्तर की तरफ खुलता है।

आधी रात को वह उसके घर आयी तो मा ने देखा कि उसका चेहरा और हाथ बहुत बारीक बालों से ढके थे।

इससे उसको यकीन हो गया कि वह लोमड़ी थी। उसने इस बात को मना भी नहीं किया सो मा ने उससे कहा — “अगर तुम वाकई वह अद्भुत सुन्दर जानवर हो तो तुम मुझे वह सब कुछ दे सकती हो जो मैं चाहता हूँ। मैं तुम्हारा बहुत आभारी रहूँगा अगर तुम मुझे शुरू शुरू में कुछ पैसे दो जिससे मेरी थोड़ी सी गरीबी दूर हो सके।”

नौजवान स्त्री बोली — “मैं तुम्हें दूँगी।”

और अगली शाम जब वह फिर उसके पास आयी तो मा ने तुरन्त ही उससे पूछा — “मेरा पैसा कहाँ है?”

वह बोली — “अरे मैं तो बिल्कुल ही भूल गयी।”

जब वह वहाँ से वापस जा रही थी मा ने उसे याद दिलाया कि वह क्या चाहता था पर अगली शाम उसने फिर से वही बहाना बना दिया और वायदा किया कि वह उसको पैसा अगले दिन ला कर देगी।

अगले दिन उसने अपनी आस्तीन में से दो चाँदी के टुकड़े निकाले जो 5 या 6 औंस भारी थे। उसकी चाँदी बहुत ही बढ़िया किस्म की थी और उनके किनारे ऊपर की तरफ मुड़े हुए थे। मा उनको देख कर बहुत खुश हुआ और उसने उनको एक आलमारी में सँभाल कर रख दिया।

कुछ महीने बाद मा को पैसे की जरूरत पड़ी तो उसने चाँदी के वे टुकड़े निकाले और उनको बाजार में बेचने के लिये ले गया। जब उसने उनको सुनार को दिखाया तो उसने कहा कि वे तो केवल टीन के बने हुए थे। उसने उसमें से बड़ी आसानी से अपने दाँतों से एक टुकड़ा काट कर उसे दिखाया।

मा को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ पर उसने उससे कहा कुछ नहीं। घर आ कर उसने वे टुकड़े ऐसे के ऐसे ही रख दिये। अगले दिन शाम को जब वह आयी तो उसे उसने उसे बहुत बुरा भला कहा।

वह बोली — “खरा सोना तुम्हारी खराब किस्मत में नहीं था।”

उसके बाद सब कुछ खत्म हो गया। पर मा बोला — “मैंने हमेशा यही सुना है कि लोमड़ा लड़कियाँ बहुत सुन्दर होती हैं। ऐसा कैसे है कि तुम नहीं हो।”

नौजवान स्त्री ने जवाब दिया — “ओह। हम अपने साथ वाले के अनुसार अपने आपको बदल सकते हैं। तुम्हारी किस्मत में तो एक औंस चाँदी भी अपनी कहने के लिये नहीं है तो फिर तुम एक राजकुमारी का क्या करोगे? मेरी सुन्दरता किसी बड़े आदमी के लिये तो ठीक नहीं भी हो सकती पर तुम जैसे लोगों के लिये तो यह बहुत है।”

उसके बाद फिर कुछ महीने बीत गये। एक दिन फिर वह नौजवान स्त्री वहाँ आयी और उसको तीन औंस चाँदी देते हुए बोली — “तुम अक्सर मुझसे पैसा माँगा करते थे पर तुम्हारी बुरी किस्मत की वजह से मैं कभी तुम्हें पैसा नहीं दे सकी। पर अब तुम्हारी शादी होने वाली है सो मैं तुम्हें एक दुलहिन की कीमत दे रही हूँ। इसे तुम मुझसे अलग होने की भेंट भी समझना।”

मा ने कहा कि उसकी तो अभी सगाई भी नहीं हुई है। इस पर उस नौजवान स्त्री ने कहा — “कुछ ही दिनों में एक बिचौलिया तुम्हारी शादी तय कराने के लिये आयेगा।”

मा ने पूछा कि वह लड़की कैसी होगी तो नौजवान स्त्री ने कहा — “जैसी तुम चाहते हो, बहुत सुन्दर। वह सचमुच में बहुत सुन्दर होगी।”

मा बोला — “मुझे तो विश्वास नहीं होता क्योंकि किसी भी तरह से तीन औंस चाँदी किसी भी तरह की दुलहिन को पाने के लिये काफी नहीं है।”

नौजवान लड़की ने उसे समझाया — “शादियाँ चाँद में बनती हैं। दुनियाँ के लोगों का उससे कोई मतलब नहीं है।”

मा ने पूछा — “और तुम इस तरह क्यों जा रही हो।”

वह बोली — “क्योंकि शाम को इस तरह हमारा मिलना ठीक नहीं है। मुझे तुम्हारे लिये कोई दूसरी पत्नी ढूँढनी चाहिये और तुम्हारे साथ अपना यह रिश्ता खत्म करना चाहिये।”

जब सुबह हो गयी तो उसने मा को एक चुटकी पीले रंग का पाउडर दिया और कहा — “हमारे अलग हो जाने के बाद अगर तुम कभी बीमार पड़ो तो यह तुम्हारा इलाज करेगा।” यह कह कर वह वहाँ से चली गयी।

अगले दिन ही एक बिचौलिया वहाँ आया और उसने उससे शादी की बात की तो मा ने उससे तुरन्त पूछा कि उसकी पत्नी दिखने में कैसी है तो उसने जवाब दिया कि वह दिखने में काफी अच्छी लगती है।

उससे उसकी कीमत 4–5 औंस चाँदी तय हुई। मा को इतना पैसा देने में कोई परेशानी नहीं हुई पर उसने कहा कि वह एक नजर लड़की को देखना चाहेगा।

बिचौलिया बोला — “वह एक सम्मानित घर की लड़की है इसलिये वह कभी भी अपने आपको दिखाना नहीं चाहेगी।”

खैर आखिर में यह तय किया गया कि वे दोनों साथ साथ उसके घर जायें और वहाँ जा कर मौके का इन्तजार करें। सो वे दोनों उसके घर गये। मा घर के बाहर ही रहा जबकि बिचौलिया उसके घर के अन्दर चला गया। कुछ देर बाद ही वह बाहर आया और मा से कहा कि अन्दर सब कुछ ठीक ठाक था।

उसने कहा — “मेरा एक रिश्तेदार उसी कम्पाउन्ड में रहता है। मैंने उस लड़की अभी अभी एक कमरे में बैठे देखा है। हम लोग इस तरह से अन्दर जायेंगे जैसे हम दोनों मेरे रिश्तेदार के घर जा रहे हैं। उस बीच में तुम उसको एक नजर देख लेना।”

मा राजी हो गया। इसी इरादे के अनुसार दोनों कमरे में से गुजरे तो मा ने देखा कि लड़की सिर आगे को झुकाये कमरे में बैठी हुई थी और कोई उसकी पीठ खुजला रहा था।

जैसा कि बिचौलिये ने कहा था वह वैसी ही लग रही थी पर जब वे पैसे के बारे में बात करने लगे तो उस लड़की ने अपने लिये कुछ कपड़े खरीदने के लिये केवल एक दो औंस चाँदी ही माँगी।

मा को लगा कि यह तो बहुत थोड़ा सा ही पैसा है इसलिये अपनी तरफ से उसने बिचौलिये को एक भेंट दी। यह सब मिला कर मा ने अपनी लोमड़ी दोस्त के तीन औंस चाँदी ही खर्च की। एक अच्छा सा दिन तय कर लिया गया और वह लड़की उसके घर आ गयी। और लो वह लड़की तो कुबड़ी थी और उसकी छाती कबूतर जैसी थीं। छोटी सी गर्दन थी कछुए जैसी। पैर उसके 10 इंच लम्बे थे। उसके दिमाग में उसकी लोमड़ी दोस्त की कही बात घूम गयी।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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