मारक शत्रु (सर्बिया की कहानी) : स्वेटोजार चोरोविच - अनुवाद : भद्रसैन पुरी
Mark Shatru (Serbian Story in Hindi) : Svetozar Corovic
हम दोनों इकट्ठे यात्रा कर रहे थे। मेरे पास केवल एक ही घोड़ा था—अच्छा घोड़ा—मैं जानता हूँ कि वह अच्छा घोड़ा था क्योंकि मैं कई बार उससे नीचे गिर चुका था। मैं प्रायः केवल अच्छे घोड़े से ही गिरता हूँ। वह गर्वीली और सरपट चाल चलता था और अपना सिर हवा में ऊँचा रखता था। मेरा साथी अपनी सफेद घोड़ी पर चुपचाप सवार था। चार या पाँच लद्दू घोड़े, जिनपर कोई बोझ नहीं था, पीछे-पीछे आ रहे थे।
वह अच्छा सुडौल आदमी था—लंबा और चौड़े कंधोंवाला, कुछ-कुछ मृतक के समान पीला चेहरा, परंतु वास्कट के सामने कई चमकीले बटनों के साथ उसकी राष्ट्रीय वेशभूषा और सिर पर चमकीली सिल्क का रूमाल बाँधे, जिसके किनारे कंधों पर लटककर उसकी छाती तक आते थे और उसे इतना भाते थे कि उनसे अपनी आँखें हटा नहीं सकता था। उससे बात करने से मैं घबराता था, क्योंकि जो आनंद मुझे उसके बारे में चुपचाप सोचने में आ रहा था, उसके खंडित होने का डर था।
उसका नाम था—ड्योको म्राओविच।
मैंने उसके बारे में अद्भुत कहानियाँ सुनी थीं; बेजोड़ शूरवीर होने के नाते लोग उसकी बहुत प्रशंसा करते थे और भूतपूर्व डाकू होने के नाते उससे सावधान रहते थे क्योंकि कुछ समय पहले उसने हरजीगोविना के बड़े भाग में आंतक फैलाया था; और इसी कारण उसके प्रति मुझमें अत्यंत रुचि थी।
“तुम इतने लद्दू घोड़े क्यों रखते हो, जब ले जाने के लिए तुम्हारे पास कोई बोझ नहीं है?” मैंने लंबी चुप्पी के बाद प्रश्न किया ताकि बातचीत शुरू की जा सके।
“मैं अपना बोझ नगर में ले जाता हूँ, जहाँ से लौट रहा हूँ।”
“क्या ले जाते हो तुम?”
“कई प्रकार की चीजें—डबल रोटी, आलू, बंदगोभी।”
“किसके लिए?”
“स्वर्गीय अली मूयागविच के बच्चों के लिए।”
मैं रुक गया और हैरानी से उसको देखा। अली मूयागविच अत्यंत शूरवीर और निर्दयी तुर्क था और उससे अधिक म्राओविच का मारक शत्रु था।
“क्यों, क्या तुमने कोई खलिहान किराए पर लिया है?”
“नहीं, परंतु मैं उनका ऋणी हूँ, बहुत अधिक ऋणी।”
वह चुप हो गया, सिर झुकाया और अपने घोड़े की गरदन पर हाथ मारा, भले ही घोड़ा पहले ही तेज चल रहा था। घोड़ा पीछे हटा और मुड़ा। उसने एक बार फिर हाथ मारा तो वह पुनः सीधा आगे चलने लगा।
यह देखकर मैंने आगे पूछताछ नहीं की और लगामें ढीली कर दीं। मैंने धीमी आवाज में गाना शुरू कर दिया; मुझे अब याद नहीं रहा कि वह गाना किस प्रकार का था।
वह इसे पसंद करता हुआ दिखाई दिया क्योंकि वह अपना घोड़ा मेरे निकट ले आया और ध्यानपूर्वक सुनता रहा।
“ऊँचे गाओ!”
मैंने अपनी आवाज ऊँची कर दी। गाने पर सिर हिलाते हुए उसने रूमाल को, जो सिर पर बाँध रखा था, अपनी गरदन के पीछे तक खींच लिया।
अंततः मैं रुक गया।
“और गाओ।”
“मुझे इससे अधिक नहीं आता।”
वह नाराज होकर मुड़ गया, लगाम खींची और जंगल की ओर जानेवाले रास्ते पर चल दिया।
“तुम किधर जा रहे हो?”
“जंगल में, चलो, थोड़ा आराम कर लें।”
मैं उसके पीछे हो लिया। जंगल में पहुँचकर हम घोड़ों से उतरे और उनको चरने के लिए छोड़ दिया; हम एक बड़े बबूल की छाया में बैठ गए; तंबाकू की अपनी छोटी थैलियाँ निकालीं और पाईप भरे।
घोड़ों की चपर-चपर और काष्ठकूट की चोटों को सुनते हुए चुपचाप बैठे रहे।
“तुम अली के ऋणी कब बने?” मैंने चुप्पी तोड़ी और बातचीत करने के लिए प्रश्न किया।
ड्योको ने त्योरी चढ़ाकर और हाथ हिलाकर उत्तर दिया—“बहुत समय पहले।”
“और क्या तुमने पहले ही ऋण उतार दिया?”
“ओह, नहीं, मुझे उसे उतारने में काफी समय लगेगा।”
धुएँ के दो-तीन छल्ले निकालने के बाद उसने मेरी ओर एक क्षण के लिए देखा और फिर बोला, “यह लंबी कहानी है; हालाँकि मेरे लिए प्रसन्नता की बात नहीं है, फिर भी मैं तुम्हें सुनाऊँगा—
“अंत में मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि यह सब आगे नहीं चलेगा और अपने साथियों से कहा, “देखो भाइयो, क्या तुम नहीं सोचते कि घेराव तोड़ना, अपने शत्रुओं पर धावा बोलना और बदला लेते हुए जवानों की मौत मरना, भूखों मरने से कहीं अच्छा होगा? मरना तो है ही, तो लड़ते-लड़ते क्यों न मरें, बजाय इसके कि हम तुर्कों के खून की चाहना अगले जनम तक करें।’
“तुर्कों की क्रूरता ने मुझे डाकू बनने के लिए विवश कर दिया। मानव अधिकारों के बिना तुर्की के अधीनस्थ अपने जीवन से मैं तंग आ गया था। हर-एक के सामने झुकने और तिरस्कृत होने से मैं थक गया था। अतः मैंने आधा दर्जन साथियों के साथ बंदूक संभाल ली और जंगली पहाड़ियों की ओर निकल गया। वहाँ हमने तुर्कों की चौकसी की और उनपर झपट पड़े। कोई भी दिन उनसे सामना हुए बिना नहीं रहता था और कुछ-न-कुछ मिल जाता था। अंत में हमें मूयागविचों से भी हिसाब चुकाना था। हमने उनके घर पर आक्रमण कर दिया और परिवार के तीन व्यक्तियों को मार डाला, परंतु अली भागने में सफल हो गया। लंबी खोज के बाद भी हम उसे ढूँढ़ नहीं पाए। हमने घर को लूटा और लूट के साथ अपनी गुफा में आ गए।
“परंतु इसके लिए हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। अली ने हमसे अधिक शक्ति एकत्र कर ली तथा पहाड़ियों और घाटियों में हमारा पीछा तब तक किया जब तक हमें मरुस्थल तक खदेड़ नहीं दिया, जहाँ पहाड़ी भेड़ें तक नहीं जातीं। यहाँ हमने दुर्गबंदी कर ली और अंत तक लड़ने का निर्णय लिया। अली और उसके साथियों ने हमें चारों ओर से घेर लिया और डेरा डाल दिया। हमारे लिए सुख के अभाव और घोर पीड़ा का समय शुरू हो गया। हमारे पास न खाना था, न पानी और किसी को भी चोरी करके कुछ लाने का साहस नहीं हुआ। हम भूखे और प्यासे मर रहे थे। मेरे साथी उदास चेहरे लिये इधर-उधर घूम रहे थे, परंतु किसी ने भी अपने भाग्य को गाली नहीं दी, बुरा-भला नहीं कहा और न ही दुःख प्रकट किया।
“अंत में मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि यह सब आगे नहीं चलेगा और अपने साथियों से कहा, “देखो भाइयो, क्या तुम नहीं सोचते कि घेराव तोड़ना, अपने शत्रुओं पर धावा बोलना और बदला लेते हुए जवानों की मौत मरना, भूखों मरने से कहीं अच्छा होगा? मरना तो है ही, तो लड़ते-लड़ते क्यों न मरें, बजाय इसके कि हम तुर्कों के खून की चाहना अगले जनम तक करें।’
“वे सब समझ गए कि मैं ठीक कह रहा हूँ—इसके सिवाय कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था, और वे मेरे प्रस्ताव को मान गए।
“मैं अपने हाथ में अपनी बंदूक लेकर कूदनेवालों में सबसे पहला था; मेरे पीछे बाकी साथी आ गए। तुर्क तेज गोलाबारी के साथ हमसे भिड़े। मैंने अपने दो साथियों को धराशायी होते देखा। ठीक है, मैंने विचार किया कि मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था और मैंने अपने आपको शत्रु पर फेंक दिया, दूसरों ने मेरा अनुकरण किया। मेरी आँखों में खून उतर आया था और मैं कुछ भी देख नहीं सकता था। मैं अपनी बंदूक को हवा में हिलाकर आगे को दौड़ा, एकाएक मुझे पीछे से भीषण चोट लगी और मैं अचेत हो गया।
“जब मैं जागा तो अपने आपको मूयागविच के घर में पाया। मैं चटाई पर लेटा हुआ था और कई तुर्क, जिनमें मूयागविच भी था, अपने सिरों को हिलाते मेरे आसपास खड़े थे। जब मैंने आँखें खोलीं तो अली मेरा हाथ थामकर मेरे ऊपर झुक गया।
“ ‘अब कैसा महसूस कर रहे हो?’ उसने पूछा।
“मैंने उठने का प्रयास किया, परंतु पीड़ा से बहुत दुःखी हुआ; ऐसा लगा कि मुझे पुनः चोट लगी हो और एक बार फिर अचेत हो गया।
“पूरा एक महीना मैं मृत्यु के द्वार पर लेटा रहा और अली ने एक क्षण के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ा। जितनी सेवा मेरा पिता कर सकता था, उससे अधिक ध्यानपूर्वक मेरी सेवा उसने की। मेरी पट्टियाँ अपने हाथों से बदलीं, मुझे पानी पीने के लिए दिया और जब मुझे भूख नहीं भी होती थी तो प्यार से बच्चों की तरह मुझे खिलाया। कभी-कभी वह मेरा सिर अपने घुटनों पर रखकर मुझे अंडा अथवा मांस, मेरे मुँह में डालकर, खाने के लिए जोर देता था।
“अंततः मैं ठीक होने लगा और ज्यों ही मैंने महसूस किया कि मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ, मैं उठा और दीवार को थामे कमरे में चलने लगा। अली प्रायः मेरा हाथ थाम लेता था और सेहन में ले जाता था जहाँ शहतूत के वृक्ष के नीचे आराम करता था।
“हर बीते दिन के साथ-साथ मैं शक्तिशाली होता गया और मैंने देखा कि जब अली मेरी ओर मुसकराकर देखता तो उसका चेहरा कैसे चमक जाता था।
“ ‘तुम्हारा क्या विचार है, छलाँग लगा सकते हो क्या?’
“ ‘नहीं, मैं नहीं लगा सकता।’ मैंने उत्तर दिया—‘मैं अभी दुर्बल हूँ।’
“उसने अपनी मूँछें ठोकीं और हँस दिया।
“ ‘जल्दी, ओह, बहुत जल्दी! तुम ऐसा कर सकोगे।’
“कुछ दिनों के पश्चात् उसने अपना प्रश्न दोहराया।
“ ‘मैं प्रयास करूँगा।’ मैंने कहा।
“वह एक ओर हट गया। मैंने दौड़ना शुरू कर दिया ऐर छलाँग लगाई। छलाँग इतनी ऊँची थी कि अली खुशी से फूला नहीं समाया।
“ ‘इसका मतलब है कि तुम पूर्णतया ठीक हो।’
“उसने मुझे सेहन में छोड़ा और स्वयं घर के अंदर गया। मैंने अत्यंत व्याकुलता से उसको देखा। एक क्षण के बाद, हाथों में दो भरी बंदूकें लिये वह लौट आया। उसका चेहरा मारक रूप से पीला था और भूखी बिल्ली की तरह उसकी आँखें भयानक रूप से चमक रही थीं।
“ ‘अब मैंने तुम्हें ठीक-ठाक कर दिया है और अपनी टाँगों पर खड़ा कर दिया है।’ उसने मेरे सम्मुख खड़े होकर कहा, ‘अब तुम उतने ही अच्छे हो जितना घायल होने से पहले थे और अब मेरा ऋण उतार सकते हो—तुम्हें मुझे बहुत-कुछ देना है—पूरे तीन सिर, क्योंकि तुमने मेरे दो भाइयों को मार डाला।’ अब उसकी आँखें और अधिक भयानक रूप से चमकने लगीं और नीचेवाला जबड़ा काँपने लगा। ‘जब तुम मेरे सामने घायल लेटे हुए थे, मैं उसी समय तुम्हें मार सकता था, परंतु मैंने ऐसा करना नहीं चाहा। मैं तुम्हें भला-चंगा करके मारना चाहता था। अली मूयागविच ने कभी भी असहाय शत्रु को नहीं मारा और तुम्हारे लिए अपवाद क्यों करूँगा!’
“उसने एक बंदूक मुझे थमा दी और कहना जारी रखा—
“ ‘यह बंदूक उतनी ही प्रभावशाली है जितनी मेरे वाली और यह अच्छी तरह भरी हुई है। चलो, जंगल में चलें और अपने हथियारों की शक्ति देखें।’
“मुझे कहने के लिए कोई शब्द नहीं मिला और मैं सिर झुकाए शोकाकुल आगे बढ़ा।
“इस प्रकार हम जंगल में आ गए।
“ ‘जहाँ तुम हो, वहीं खड़े रहो,’ उसने कहा, ‘मैं यहाँ खड़ा होता हूँ ताकि एक-दूसरे के आमने-सामने हो जाएँ। हम दोनों इकट्ठे गोली चलाएँ, इस जगह।’
“परंतु मेरे पास अपने आपको संभालने का समय था। मैंने अपनी बंदूक फेंक दी और एक तरफ हो गया।
“ ‘क्या मैं तुम्हारे विरुद्ध हाथ उठाऊँ? क्या तुम सोचते हो कि मैं इतना कमीना हूँ कि दुनिया में किसी चीज के बदले में, मैं तुमपर गोली चलाऊँ?’
“ ‘तुम्हें गोली चलानी होगी, मैं बलपूर्वक कहता हूँ।’ उसने घृणित मुसकराहट के साथ कहा, ‘मैं इस झगड़े को टाल नहीं सकता और किसी निहत्थे पर गोली चलाना नहीं चाहता। बंदूक उठाओ! मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ।’
“मैं नहीं हिला।
“ ‘बंदूक उठाओ, मैं कहता हूँ, नहीं तो मैं तुम्हें खरगोश कहूँगा।’
“मैंने झुककर बंदूक उठा ली।
“ ‘इस ओर घूम जाओ।’
“ मैं घूम गया।
“ ‘मुझपर निशाना लगाओ।’
“उसने मुझपर निशाना जमाया और मैंने अपनी बंदूक उसकी ओर मोड़ी।
“उसने गोली चलाई और उसकी आवाज जंगल में गूँज गई।
“मुझे याद नहीं कि मैंने बंदूक का घोड़ा दबाया था या नहीं—केवल जब मैंने उसकी ओर देखा, वह लड़खड़ाया और गिर गया। मैं दुःख से चीख पड़ा और उसकी ओर दौड़ा, परंतु तब तक वह मर चुका था।
“तब से लेकर हर वर्ष मैं आलू और बंदगोभी के कई बोझे उसके बच्चों को देता हूँ। उनकी सहायता के लिए मैं गाय और बकरियाँ भी लाता हूँ।”
ड्योको अपनी बात समाप्त करके सिर झुकाकर बैठ गया। उसने उन आँसुओं को रोकने की भरपूर कोशिश की, जो उसके गालों पर बह रहे थे।