मार्च और चरवाहा : इतालवी लोक-कथा
March and the Shepherd : Italian Folk Tale
एक बार की बात है कि एक चरवाहा था जिसके पास समुद्र के किनारे पर रेत के जितने कण होते हैं उससे भी ज़्यादा भेड़ और मेमने थे।
इतने सारे जानवरों को देख कर उसको हमेशा यही डर लगा रहता था कि कहीं उसका कोई जानवर मर न जाये।
जाड़े का मौसम लम्बा होता था और वह चरवाहा हमेशा ही साल के महीनों से प्रार्थना किया करता था — “ओ दिसम्बर, मेरे ऊपर मेहरबान रहना। ओ जनवरी, मेरे किसी जानवर को जमा कर नहीं मारना। ओ फरवरी, तुम मेरे लिये अच्छे से रहना। मैं तुम्हारी हमेशा पूजा करूँगा।”
महीने उस चरवाहे की प्रार्थना सुनने के लिये रुक जाते और वह चरवाहा उनकी जो भी छोटी सी प्रार्थना करता वे उन प्रार्थनाओं की बहुत तारीफ करते और उसकी प्रार्थनाओं को स्वीकार कर लेते।
फिर वे न तो बारिश करते, न ओले बरसाते, न किसी जानवर को किसी तरह बीमार करते और इस तरह उसके वे भेड़ और मेमने सारे जाड़े बिना किसी परेशानी के चरते रहते।
और फिर आता मार्च का महीना। साल का सबसे अच्छा महीना। उस महीने में सारे काम आराम से होते रहते। अब मार्च के महीने के आखिरी दिन आ पहुँचे थे।
सो चरवाहा सोच रहा था कि अब उसकी चिन्ता खत्म हो गयी थी क्योंकि उसके सब जानवर अब तक ज़िन्दा थे।
अब वे अप्रैल के किनारे पर खड़े थे। अप्रैल का महीना जो वसन्त की शुरूआत थी और अब तक उस चरवाहे के सारे जानवर सुरक्षित थे।
इसलिये अब चरवाहे ने महीनों की प्रार्थना करना बन्द कर दिया और नाचना गाना शुरू कर दिया — “ओ छोटे मार्च, ओ मार्च मेरे बेटे। जो मेरे जानवरों के लिये एक डर था वह तो अब चला गया।
अब तुमसे कौन डरता है? क्या मेमने? वे डरते होंगे पर कम से कम मैं तो नहीं डरता। आखिर वसन्त आ गया। अब तुम मुझे कोर्र्ई नुकसान नहीं पहुँचा सकते। अब तुम जहाँ चाहे जा सकते हो।”
उस कृतघ्न चरवाहे की यह अपमान भरी बात सुन कर मार्च महीने का खून खौल गया। उसने अपने बरसाती कोट का बटन बन्द किया और अपने भाई अप्रैल के घर की तरफ दौड़ गया और उससे जा कर बोला —
अप्रैल अप्रैल मेरा एक काम कर दो, अपने भाई को तीन दिन उधार दे दो
इस चरवाहे को सजा देने के लिये जो पागलों जैसी बात करता है
अप्रैल ने जो अपने भाई को बहुत प्यार करता था उसकी प्रार्थना सुन कर उसको अपने तीन दिन उधार दे दिये। अपने भाई से तीन दिन उधार ले कर मार्च ने सबसे पहला काम तो यह किया कि सारी दुनियाँ में बहुत तेज़ हवाएं चला दीं। दुनियाँ भर के तूफान उठा दिये।
वे सब हवाएं और तूफान उस चरवाहे की भेड़ों और मेमनों को परेशान करने लगे। पहले दिन चरवाहे की सारी भेड़ें बीमार पड़ गये। दूसरे दिन उसके मेमनों की बारी थी और तीसरे दिन तो उसके झुंड में से एक जानवर भी ज़िन्दा नहीं बचा।
बस अब चरवाहे के पास उसकी आँखें थीं जो बराबर आँसू बहाये जा रही थीं।
(साभार : सुषमा गुप्ता)