मनुष्य जाति की रक्षा : सिक्किम की लोक-कथा

Manushya Jati Ki Raksha : Lok-Katha (Sikkim)

एक समय की बात है। एक गरीब, जवान विधवा अपनी तीन बेटियों के संग एक छोटी सी कुटिया में रहती थी। उसे अपने गुजारे के लिए बहुत श्रम नहीं करना पड़ता था, क्योंकि उसके पास लाल रंग की एक गाय थी, जिसका नाम लालमु था। गाय से उन्हें पीने को दूध-दही मिलता और उसके गोबर का उपयोग खेतों में करते। रोजाना वह अपने घर के कार्यों को समेटने के बाद लालमु को लेकर जंगल में जाती। अपने पीछे अपनी तीन बेटियों को घर पर छोड़ जाती।

एक राक्षनी थी, जिसका नाम था–सिम्पिंदी। उसने पूरे संसार को नष्ट किया था। वह खून की प्यासी थी, इसलिए वह मानवों का शिकार करती और अपनी प्यास को तृप्त करती। दुनिया के लगभग सभी मानवों को मारकर वह खा चुकी थी। अब केवल विधवा स्त्री और उसकी तीन बेटियाँ ही रह गई थीं। उस सिम्पिंदी को मालूम हो गया था, अब भी कुछेक मानव जीवित रह गए हैं, इसलिए वह अब उन्हीं की शिकार करने का उपयुक्त अवसर खोज रही थी। अपनी जादुई शक्ति के सहारे वह विधवा स्त्री की झोंपड़ी की ओर चल पड़ी। सिम्पिंदी को मालूम था कि परिवार का गुजारा एक गाय के सहारे ही चलता है, इसलिए परिवार के सदस्यों से पूर्व उस गाय को खत्म करना होगा। उसके गम में आधे तो वे ऐसे ही मर जाएँगे।

अगली रोज जब गाय जंगल में चरने गई तो वहीं खो गई। जिसे खोजते हुए विधवा स्त्री जंगल में गई। गाय को खोजते हुए वह जंगल के बीचोबीच पहुँच गई। उस घने जंगल में पहुँचकर उसे डर भी बहुत लगा। जंगल में बढ़ते अंधकार को देखकर उसने अपने मन में सोचा-'अँधेरा बढ़ रहा है। मेरी गाय जंगल में इतनी भीतर तो आई नहीं होगी, इसलिए अब जंगल के भीतर जाना ठीक नहीं होगा। मुझे अब लौटना चाहिए'; लेकिन लौटने के खयाल मात्र से उसे लगा, गाय के बिना लौटना तो उसके लिए बहुत सारे संकट को बुलाने जैसा है। घर चलाना उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। यह खयाल आते ही वह फिर आगे जाने को तैयार हो गई।

'लालमु-लालमु' पुकारती हुई वह जंगल के और भीतर जाती रही। अपनी ही आवाज की प्रतिध्वनि सुनकर पहले तो उसे डर लगा, पर समझ आने पर उसे अपने ऊपर हँसी आई। जंगल में जाते हुए उसने दूर एक कुटिया से धुआँ उठता हुआ देखा। पास जाकर देखा तो उसी की कुटिया की तरह वहाँ एक कुटिया थी। एक बूढ़ी औरत उस कुटिया के बाहर अपने लंबे सफेद बालों में कंघी कर रही थी। विधवा स्त्री ने सोचा, शायद इस बुढ़िया ने मेरी गाय देखी हो! उसने पास जाकर उस बुढ़िया से कहा, "दादी, आपने किसी गाय को यहाँ से गुजरते हुए देखा? मेरी लाल रंग की गाय खो गई है। बहुत खोजा, पर कहीं नहीं मिली। क्या आपने उसे कहीं देखा है ?"

उस बुढ़िया ने जवाब दिया, “मैंने कोई गाय नहीं देखी, पर तुम बहुत थकी लग रही हो, इसलिए आओ और एक कप चाय पियो। उसके पश्चात् मैं तुम्हारे साथ गाय खोजने में मदद करूँगी।" विधवा स्त्री को बुढ़िया का आत्मीय व्यवहार बड़ा अच्छा लगा। उसे बहुत थकान भी हो रही थी। कुछ समय के लिए उसे आराम करना उचित समझा। बुढ़िया बहुत प्रसन्न हुई। वही तो सिम्पिंदी राक्षसी थी। कुटिया के भीतर बुढ़िया ने उसे चाय और भुना हुआ मांस एक प्लेट में दिया, जो उसे बहुत स्वादिष्ट लगा। उसे चाय और मांस देकर बुढ़िया घर से बाहर निकली, जिसके निकलने पर विधवा स्त्री ने कहा, “आप जल्दी लौट आइएगा, मैं यहाँ ज्यादा समय के लिए नहीं रुकूँगी, मुझे अपनी गाय को खोजने आगे जाना होगा।"

जैसे ही बुढ़िया घर से बाहर निकली, वैसे ही बुढ़िया की पालतू बिल्ली पास आई और बोली, "म्याऊँ'म्याऊँ"तुम मुझे मांस का कुछ हिस्सा खाने को दो, मैं उसके बदले तुम्हें एक रहस्य की बात बताती हूँ।" पर विधवा स्त्री इतनी भूखी थी कि वह कुछ भी बाँटकर खाने की स्थिति में नहीं थी। इसलिए उसने 'जा'जा' करके बिल्ली को वहाँ से भगा दिया। बिल्ली के जाते ही बुढ़िया का पालतू कुत्ता उसके सामने आया। उसने भौंकते हुए बिल्ली की तरह कहा, “मुझे अपने हिस्से में से कुछ देती हो तो रहस्य की एक बात बताता हूँ", पर विधवा स्त्री ने कुत्ते को भी झिड़ककर भगा दिया। मांस और चाय पीने के बाद उसे चक्कर सा आने लगा और कुछ समय बाद वह बेहोश हो गई। उसने जो स्वादिष्ट भुना हुआ मांस खाया था, वह उसकी लाल गाय लालमु का थी। विधवा स्त्री को यह मालूम ही नहीं चला कि राक्षस के घर पालतू बिल्ली और कुत्ते ईश्वर के दूत हैं, जो विधवा स्त्री की मदद के लिए भेजे गए थे। उसे रहस्य जानने की चाह थी ही नहीं, इसलिए वह उस बुढ़िया की चाल को नहीं समझ पाई।

रात होने पर राक्षसी लौट आई। वह पूरी तरह सक्षम होकर आई थी। रात का अँधेरा उसके वहशी कार्यों को अंजाम देने के लिए बड़ा उत्तम रहता था। उसने बेहोश पड़ी विधवा स्त्री का धड़ सिर से अलग कर दिया। उसके खून का पान किया। उसका कच्चा मांस खाकर वह और ज्यादा शक्तिशाली हो गई। उसने यह निर्णय लिया कि वह किसी भी स्थिति में मानव जाति का अंत करके रहेगी। उसे मालूम था, अब पूरी दुनिया में मानव जाति के नाम पर इस विधवा की तीन बेटियाँ ही रह गई हैं, जिन्हें जल्द मुझे अपना शिकार बनाना है।

अपनी माँ के न लौटने से तीनों बेटियाँ बहुत परेशान हो गईं। इसलिए बड़ी बहन ने सोचा, मुझे जंगल की ओर जाकर अपनी माँ और गाय का पता करना चाहिए, इसलिए अपनी दोनों बहनों को छोड़कर वह जंगल की ओर बढ़ी। जंगल में जाते हुए उसी बुढ़िया की कुटिया से गुजरते हुए उसने उस बुढ़िया से पूछा, "दादी-दादी, आपने मेरी माँ और एक लाल गाय देखी है?” बुढ़िया ने कहा, "नहीं, मैंने कोई गाय और तुम्हारी माँ को नहीं देखा है, पर तुम बहुत थकी लग रही हो। यहाँ कुटिया में आओ, मेरे साथ चाय पियो और फिर हम साथ-साथ मिलकर तुम्हारी माँ और गाय को खोजेंगे।" बड़ी बेटी बुढ़िया के इस सौम्य व्यवहार को देखकर बहुत प्रभावित हुई और उसके पास चली आई। उसे भी चाय के साथ वैसा ही भुना हुआ मांस का एक प्लेट दिया। उसके साथ भी वही सब हुआ, जैसे उसकी माँ के साथ हुआ।

अगली रोज मझली बहन अपनी माँ, बड़ी बहन और गाय को खोजने चल पड़ी। उसे भी जंगल में वही बुढ़िया मिल गई, उसके साथ भी वही सब हुआ, जैसा उसकी माँ, बड़ी बहन और गाय के साथ हुआ था।

अब केवल छोटी बहन ही जीवित रह गई। उसने सोचा, मेरी माँ, बहनें और गाय अवश्य ही किसी मुसीबत में फँसी हैं। कहीं जंगल में जाते हुए भूस्खलन हुआ हो और वे उसी में फँसी हों? या फिर उनके साथ जरूर कोई समस्या आई है, वरना वे लौट आतीं। अपने परिजनों की तलाश में वह जंगल के भीतर घुसी। घने जंगल के भीतर उसे उसी बुढ़िया का घर मिला। उसने रोने के अंदाज में पूछा, “दादी, आपने मेरी माँ, मेरी बहनों को देखा है ? मैं अपनी गाय को भी खोज रही हूँ। मेरे परिजन कई रोज से घर नहीं लौटे हैं। आपने किसी को भी यहाँ आसपास देखा है?"

राक्षस जानती थी, यही अंतिम मानव जाति है, जो जीवित है। उसने कहा, “मेरे प्यारे बच्चे, मैंने तुम्हारी माँ, बहन और गाय, किसी को भी नहीं देखा है। शायद इस घने जंगल में तुम्हारे अपने जन कहीं खो गए हैं। यह भी हो सकता है, उन्हें जंगली जानवर खा गए हों। उन्हें खोजने में मैं तुम्हारी मदद करूँगी, पर आओ, आकर मेरे संग चाय पियो। तुम बहुत थकी हुई लग रही हो।" उसे भी वही चीजें परोसी गईं। खाना परोसकर बुढ़िया बाहर चली गई। उसको परोसा गया मांस उसकी मझली बहन का था। माँ और बहनों से अलग होने के बाद उसका जी किसी भी काम में नहीं लग रहा था। खाने-पीने की चाह भी नहीं रह गई थी, इसलिए बुढ़िया के द्वारा परोसे गए भोजन को उसने हाथ तक नहीं लगाया; बल्कि वह दूर अलग-थलग बैठी रही।

उसी समय कुत्ते और बिल्ली वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने कहा, "हे लड़की! अगर तुम हमें खाने को मांस देती हो तो हम तुम्हें एक रहस्य की बात बताएँगे।" छोटी बेटी ने कहा, "मुझे खाने को कुछ नहीं चाहिए। तुम्हें जो खाना है, खाओ, पर बताओ कि रहस्य की बात क्या है ?" इतना सुनना भर था कि बिल्ली और कुत्ते ने कहा, "तुम यहाँ एक क्षण के लिए भी मत रुको। यहाँ से जितना जल्द हो सकता है, चली जाओ। यह बुढ़िया राक्षसी है। इसी ने तुम्हारी गाय को मारा और यही तुम्हारी माँ-बहनों की कातिल है। तुम्हें जो मांस परोसा गया है, यह तुम्हारी अपनी मझली बहन का है। अब केवल अकेले तुम ही एकमात्र मानव बची हो, जिसे खत्म करके राक्षसी अपनी दुनिया बसाना चाहती है, इसलिए यहाँ से भाग जाओ और मानव नस्ल की रक्षा करो, वरना सब समाप्त हो जाएगा।"

भयभीत छोटी बेटी को कुछ समझ नहीं आया। उसने कहा, "मैं यहाँ से कैसे भाग सकती हूँ, मैं तो अभी बच्ची हूँ। मेरे थके पैर दौड़ने में मेरी सहायता करने में असमर्थ हैं। मैं क्या करूँ? मैं वैसे भी बहुत थकी हुई हूँ। दिन भर यहाँ पहुँचने के लिए चली हूँ, इसलिए मेरे पैर टूटने को हैं। राक्षसी मुझे बड़ी आसानी से पकड़ लेगी, अब मैं क्या करूँ?"

कुत्ते और बिल्ली ने कहा, “तुम यहाँ से भागो और तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, हम तुम्हारी रक्षा करेंगे। मानव नस्ल की रक्षा करने के लिए हमने कुत्ते और बिल्ली का जन्म लिया है। यहाँ तुम्हारे लिए तीन जादुई चीजें हैं-कंघी, लकड़ी का कोयला और सफेद पत्थर। इनकी सहायता से तुम भागने में कामयाब होगी। जब तुम भागते हुए पहले पहाड़ को पार करोगी, तब तुम इस कंघी को वहाँ छोड़ जाना। जब दूसरे पहाड़ पर पहुँचो तो लकड़ी का कोयला और तीसरे पहाड़ पर तुम सफेद पत्थर को छोड़ देना। तीसरे पहाड़ को पार करने के बाद तुम्हें एक बड़ी नदी मिलेगी, जो चौथे पहाड़ के नीचे बह रही होगी। वहाँ तुम्हारे पूर्वजों का वास स्थान है। वे तुम्हारी अवश्य कोई मदद करेंगे। नदी पार करना तुम्हारे लिए आसान नहीं है, ऐसे में अपने पूर्वजों से कोई सहायता माँग सकती हो। अब तुम यहाँ से जल्दी जाओ, किसी भी समय बुढ़िया लौट सकती है। हमने जो भी हिदायतें दी हैं, उनको स्मरण रखना। तुम्हारा भला हो, हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।" कहकर कुत्ते-बिल्ली वहाँ से चले गए।

लड़की को बहुत हिचकिचाहट हुई, पर उनके समझाने पर वह आगे बढ़ी। पहले पहाड़ को पार करते हुए उसने कंघी को वहाँ छोड़ दिया। राक्षसी उसके पीछे दौड़ी आ रही थी, तब तक लड़की दूसरे पहाड़ पर चढ़ चुकी थी। राक्षसी के लंबे घने बाल कंघी में उलझ गए, जिसके कारण वह काँटों से भरी झाड़ी में फँस गई। उसे अपने शरीर-पैरों में फँसे काँटों को निकालने में काफी समय लग गया। दूसरे पहाड़ पर लकड़ी का कोयला छोड़ दिया। जैसे ही राक्षसी ने दूसरे पहाड़ पर कदम रखा, वहाँ आग लगने लगी, जिसको शांत होने तक राक्षसी को इंतजार करना पड़ा। उस बीच छोटी बेटी तीसरे पहाड़ पर पहुँच चुकी थी। जहाँ उसने सफेद पत्थरों को रख दिया और स्वयं बड़ी नदी की तरफ बढ़ गई।

जैसे ही राक्षसी वहाँ पहुँची, छोटे पत्थर बड़े-बड़े पहाड़ में तब्दील हो गए। लेकिन राक्षसी बहुत शक्ति-समर्थ होने के कारण बड़ी आसानी से उसको पार कर गई। जिसे देखकर छोटी बेटी घबरा गई। उसके छोटे-छोटे पैर अब तक बहुत थक चुके थे। छोटी बेटी को नदी पार करने में मदद की जरूरत हुई। वह तुरंत नदी के सामने घुटनों के बल बैठ गई और मधुर स्वर में प्रार्थना करने लगी। नदी पार करने के लिए अपने पुरखों से सहायता माँगने लगी। उसके तीन बार निवेदन करने से नदी ने सहायता के लिए लोहे की रस्सी भेजी, जिसे पकड़कर उसने नदी को पार किया। जबकि सिंपिंदी राक्षसी उसके बहुत करीब पहुंच चुकी थी। राक्षसी जब नदी में पहुँची तो उसने भी उस लड़की की भाँति गाकर प्रार्थना करना शुरू किया, पर जहाँ लड़की ने प्रार्थना में सहायता के लिए लोहे की रस्सी माँगी, वहीं राक्षसी ने बाजरे के आटे की बनी रस्सी की माँग की। रस्सी उसकी मदद के लिए आई भी, परंतु उसे पकड़कर जैसे ही उस पार जाने को तैयार हुई कि वह टूटकर नदी में गिर गई। जहाँ डूबकर राक्षसी की मौत हो गई और अंतिम मनुष्य नस्ल की लड़की बची रह गई। उसी से मानव सृष्टि की संकल्पना मूर्त रूप में मिलती है और राक्षस जाति अपने जिस मकसद को लेकर आगे बढ़ रही थी, उसमें उनको सफलता नहीं मिली।

कहा जाता है कि मानव और दानव के मध्य काफी संघर्ष हुआ, जिसमें अंतत: सफलता मनुष्य को मिली।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

  • सिक्किम की कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां