मानिक रायतांग : खासी/मेघालय की लोक-कथा

Manik Raitong : Lok-Katha (Khasi/Meghalaya)

पुराने समय की बात है, शिलांग से कुछ ही दूरी पर एक महान् राजा रहता था, जिसका राज्य अत्यंत विस्तृत था। अपनी न्याय प्रियता एवं व्यवस्थित प्रशासन के कारण उसकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसका विवाह एक अत्यंत सुंदर अप्सरा जैसी युवती से हुआ था, जो अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध थी। वह छरहरे बदन की सुंदर युवती थी, जिसके शरीर का रंग कंचन की तरह निखरा हुआ था। कोमल अंगोंवाली उस रानी के होंठ मूँगे की तरह सुर्ख थे। लंबे, घने, काले उसके बाल थे, जब वह चलती तो ऐसा लगता, मानो वनदेवी विचरण कर रही हो। राजा और रानी अपने राज्य में बहुत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे।

परंतु एक दिन राजा को अपनी शासन व्यवस्था की जिम्मेदारियों के कारण लंबे समय के लिए परदेश जाना पड़ा। रानी से बिछुड़ने की बात सोचकर वह अत्यधिक दुःखी हो गया, परंतु अपने राज्य की भलाई के लिए राजकीय दायित्वों को अपने मंत्रियों को सौंपकर वह परदेश जाने के लिए तैयार हो गया। भारी मन से उसने रानी से विदा ली।

उसके राज्य में मानिक रायतांग नामक एक अत्यंत गरीब नवयुवक निवास करता था। उसके परिवार के सभी सदस्य एक महामारी के कारण असमय में काल कवलित हो चुके थे, जिसके कारण वह चुपचाप अकेले रहता और कभी किसी से कुछ बोलता-चालता न था। लोग उसके इस व्यवहार के कारण उसके साथ कभी कोई संबंध नहीं रखते। रायतांग दुःखी मन से मैले-कुचले कपड़े पहने चुपचाप जंगलों में घूमता और किसी तरह अपना जीवन व्यतीत करता था, परंतु प्रतिदिन जब रात गहरी हो जाती, मानिक रायतांग नहा-धोकर, स्वच्छ, अच्छे कपड़े पहनकर अपने सुखमय दिनों को याद करता। ऐसे में अकसर वह प्रसन्नतापूर्वक बाँसुरी की मीठी धुनें निकालता और मन-ही-मन सुखद समय की याद में डूबा रहता, परंतु लोग उसके इस रूप से पूरी तरह अनभिज्ञ थे, क्योंकि देर रात सबके सोने के बाद ही वह अपने इस शौक को पूरा करता और सुबह होते ही पुनः उन्हीं मैले-कुचले वस्त्रों को धारण कर लेता।

एक रात जब रानी को देर तक नींद नहीं आ रही थी और वह किसी तरह सोने की कोशिश कर रही थी, उसके कानों में अचानक बाँसुरी की सुरीली आवाज पड़ी। पहले तो उसे भ्रम हुआ, लेकिन धीरे-धीरे बाँसुरी की आवाज और अधिक तेज और साफ होती गई। उसे लगा, शायद दूर परियों के देश से यह आवाज आ रही है। उसने बाँसुरी की इस धुन में पीड़ा की अदृश्य लहर महसूस की और अत्यंत उत्सुकतापूर्वक अपने महल की खिड़की से इस आवाज को सुनने की कोशिश करने लगी, अब तो वह हर रात देर रात तक जागकर बाँसुरी की उसी मीठी धुन की प्रतीक्षा करती।

बाँसुरी की धुन में इतनी मिठास थी कि एक रात वह अपने आप को रोक न सकी और जैसे मानो उसके पाँव अपने आप उस बाँसुरी की धुन की दिशा में चल पड़े। उसे महसूस हुआ कि बाँसुरी की आवाज कहीं आसपास से ही आ रही है। वह उसका पीछा करते-करते एक छोटे से घर के सामने पहुँची, जिससे यह आवाज निकल रही थी। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि यह एक छोटी झोंपड़ी थी, जिसमें कोई बैठा इतनी मधुर धुन निकाल रहा था। उसने एक छोटे से छेद में झाँककर अंदर देखने की कोशिश की। मानिक रायतांग अपने सुंदर कपड़ों में सजा-धजा, अपनी धुन में डूबा हुआ बाँसुरी बजाने में मशगूल था। उसे रानी के आने का कुछ भी पता न चला। मानिक रायतांग के रूप-सौंदर्य और चेहरे की कोमलता से आकृष्ट होकर रानी उस पर रीझ गई और उसने धीरे से दरवाजा खटखटाया, परंतु मानिक रायतांग बाँसुरी बजाने में इतना तल्लीन था कि वह उस आवाज को सुन न सका। अचानक रानी ने दरवाजे को धक्का दिया और वह पूरी तरह खुल गया। मानिक रायतांग ने जब अचानक रानी को अपने सामने देखा तो घबरा उठा। उसे लगा जैसे कोई परी उसके सामने खड़ी है, जब मानिक रायतांग को पता चला कि सामने खड़ी सुंदर स्त्री उस राज्य की महारानी है तो वह उसके सामने नतमस्तक हो गया, परंतु रानी मानिक रायतांग के रूप-सौंदर्य पर पूरी तरह मोहित थी। मानिक रायतांग ने रानी की मर्यादा और अपनी सीमा का ध्यान रखते हुए बार-बार रानी से वापस लौट जाने की विनती की, परंतु रानी तो मानिक रायतांग के ऊपर पूरी तरह आसक्त थी। अंत में मानिक रायतांग भी रानी के प्रेम-पाश में उलझ गया, अब तो रानी प्रतिदिन देर रात उससे मिलने झोंपड़ी में आने लगी। उन दोनों के इस प्रेम-प्रसंग की किसी को कानोकान खबर तक नहीं थी।

इस तरह महीनों बीतते गए और राजा के लौटने का समय भी नजदीक आने लगा। राजा के लौटने की खुशी में सारी जनता झूम उठी और राजा के स्वागत की तैयारी करने लगी, लेकिन रानी ने जब राजा के आने की बात सुनी, वह अत्यधिक परेशान हो उठी। जहाँ पूरी जनता राजा के स्वागत के लिए बेताब थी, वही रानी की चिंता का पारावार न था। रानी को छोड़कर बाकी सभी लोग अत्यंत प्रसन्न थे। रानी की उदासी का रहस्य एक दिन तब खुला, जब रानी ने महल के अंदर एक पुत्र को जन्म दिया। राज परिवार ने इस घटना को सबसे छुपाए रखा और रानी तथा उसके पुत्र को एक कमरे में बंद कर दिया, जब रानी से उस पुत्र के पिता के बारे में पूछा गया तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया, जब राजा लंबे समय के बाद अपने राज्य में वापस पहुँचा तो चारों ओर उसका भव्य स्वागत हुआ। वह बहुत उत्सुकतापूर्वक रानी से मिलने महल में पहुँचा, परंतु जब उसे पूरी घटना का पता चला तो दुःख और पीड़ा से वह तिलमिला उठा। उसने निश्चय किया कि वह उस व्यक्ति को कठोर से कठोर सजा देगा, जिसने राज्य की मर्यादा को धूल-धूसरित किया है, परंतु बार-बार पूछने के बावजूद रानी ने संतान के पिता का नाम बताने से इनकार कर दिया।

धीरे-धीरे यह बात राज्य में चारों ओर फैल गई। राजा ने अपराधी का पता लगाने के लिए एक सभा बुलाने का निर्णय किया। उसने एक निर्धारित तिथि पर राज्य के सभी पुरुषों को उस सभा में एकत्र होने का हुक्म दिया और कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने हाथ में एक केला लेकर सभा में उपस्थित होगा। राजा ने घोषणा की कि बच्चा जिस व्यक्ति के हाथ से केला ले लेगा, वही उसका पिता मान लिया जाएगा। अगले दिन राजा के आदेशानुसार राज्य के सभी पुरुष हाथ में केला लेकर सभा में एकत्र हुए। बच्चे को सबके बीच एक चटाई पर लिटा दिया गया। राज्य के सभी पुरुष एक-एक कर बच्चे के सामने आते और अपने हाथ का केला सामने बढ़ाते, परंतु बच्चे ने किसी भी पुरुष से केला नहीं लिया। राजा सोच में पड़ गया। उसने मंत्रियों से पूछा कि क्या कोई ऐसा भी व्यक्ति है, जो यहाँ उपस्थित न हुआ हो, तब लोगों को अचानक मानिक रायतांग की याद आई, जिसे उसके अजीब व्यवहार के कारण सभा में आमंत्रित नहीं किया गया था। मंत्रियों ने उसे राजा की सभा में आमंत्रित करने योग्य नहीं समझा था, जब इसका पता चला तो राजा ने मानिक रायतांग को भी सभा में उपस्थित होने का निर्देश दिया।

आदेश सुनकर मानिक रायतांग भी हाथ में एक केला लेकर सभा में उपस्थित हुआ। वह जैसे ही बच्चे के सामने उपस्थित हुआ, बच्चे का चेहरा प्रसन्नता से चमक उठा और उसने रायतांग के हाथ से केला ले लिया। यह देखकर लोगों की आँखें आश्चर्य से फटी-की-फटी रह गईं। राजा को अत्यंत शर्मिंदगी महसूस हुई कि उसकी परम सुंदरी रानी ने इस मैले-कुचले, समाज बहिष्कृत व्यक्ति को अपने प्रेमी के रूप में चुना है। वह क्रोध से पागल हो उठा और उसने तत्काल अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि मानिक रायतांग को महल के सामने वाली ऊँची पहाड़ी पर जिंदा जला दिया जाए।

रायतांग ने राजा के इस आदेश को चुपचाप स्वीकार कर लिया, क्योंकि उसे लगा कि सचमुच दोष उसी का है, परंतु उसने राजा से यह निवेदन किया कि वह जलने के लिए अपनी चिता स्वयं बनाएगा और जलने से पूर्व वह अपनी बाँसुरी से एक शोक-गीत बजाएगा। राजा ने उसकी बात मान ली और उसे इसकी अनुमति मिल गई। अगले दिन सुबह मानिक रायतांग ने लकड़ियाँ एकत्र कीं और राज महल के सामने की ऊँची पहाड़ी पर एक विशाल चिता तैयार की। चिता तैयार हो जाने के बाद मानिक रायतांग अपनी झोंपड़ी में गया और नहा धोकर साफ-सुथरे और सुंदर कपड़े पहने, फिर वह हाथ में बाँसुरी लेकर सुरीली धुन बजाता हुआ चिता की ओर चल पड़ा। उसकी बाँसुरी की धुन की मर्मस्पर्शी आवाज ने मानो सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उसकी पीड़ा में मानो सभी लोग डूब गए। तमाम लोग सबकुछ भूलकर धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे चलने लगे। मानिक रायतांग चलते हुए पहाड़ की ऊँची चोटी पर पहुँच गया और विशाल चिता के ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया। उसने लकड़ियों में आग लगाई और पूरी तन्मयता के साथ एक बार फिर अपनी बाँसुरी से एक हृदयस्पर्शी धुन बजाई। उसके बाद आग के तीन चक्कर लगाकर उसने अपनी बाँसुरी को सामने मिट्टी में उलटा गाड़ दिया और धधकती चिता में कूद पड़ा।

जब यह घटना घटित हो रही थी, तब बाँसुरी की उस पीड़ादायी धुन को सुनकर रानी समझ गई कि यह रायतांग की बाँसुरी की ही धुन है और उसे निरपराध दंड दिया जा रहा है। वह बदहवास अपना महल छोड़कर महल के सामने की ऊँची पहाड़ी की ओर पूरी ताकत लगाकर दौड़ी, परंतु जब तक वह वहाँ पहुँचती, रायतांग चिता में कूद चुका था। बेबस रानी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और उसने भी उसी चिता में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

राजा चुपचाप अपने महल में बेबस और उदास बैठा हुआ था। उसे महल से रानी के निकल जाने की खबर नहीं थी, परंतु जैसे ही रानी आग में कूदी, ठीक उसी समय राजा को एक विचित्र सी अनुभूति हुई। अचानक कमरे में रखा रानी का प्रिय दुशाला उड़कर उसके पैरों से लिपट गया। वह हड़बड़ाकर अपनी प्रिय रानी के कमरे में पहुँचा, तब उसे पता चला कि रानी वहाँ से जा चुकी है। उसे एहसास हुआ कि जरूर रानी अपने प्रेमी रायतांग से मिलने पहाड़ की ओर गई होगी। वह भी पीछे पीछे उस पहाड़ी की ओर दौड़ा, परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रायतांग के साथ रानी भी जल कर उस चिता में भस्म हो चुकी थी।

जिस स्थान पर इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु हुई थी आज भी वहाँ उलटे बाँस के झुरमुट पैदा होते हैं। ये नीचे की ओर बढ़ते हैं। कहते हैं कि रायतांग की बाँसुरी से ही ये जनमे हैं। आज भी शिलांग से कुछ दूरी पर एक पर्वत शिखर रायतांग के नाम से जाना जाता है। लोगों का मानना है कि यह पूरी घटना इसी पर्वत पर घटित हुई थी। खासी परंपरा में यह बाँसुरी ‘शराती’ के नाम से जानी जाती है, जिस पर अकसर शोक धुनें बजाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि मानिक रायतांग की परंपरा के कारण ही यह रिवाज प्रचलित हुआ।

(साभार : माधवेंद्र/श्रुति)

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