मंदिर का दीपक : यहूदी लोक-कथा
Mandir Ka Deepak : Jewish Folk Tale
बहुत पहले, एक यूनानी (ग्रीक) राजा ने यरूशलेम में यहूदी लोगों पर शासन किया। उसने यहूदियों को अपना धर्म त्यागने का आदेश दिया। राजा ने यहूदियों से कहा कि वे अपने भगवान की पूजा करना बंद करें। उसकी बजाए वे राजा के कुलदेव की प्रार्थना करें।
लेकिन यहूदियों ने राजा की बात मानने से इंकार किया। इसलिए राजा ने अपने सैनिकों को यरूशलेम के मंदिर में भेजा। वो मंदिर यहूदियों के लिए एक बहुत खास जगह थी।
सैनिकों ने मंदिर को तोड़ डाला और उसका खजाना लूट लिया। फिर उन्होंने मंदिर में हमेशा जलते रहने वाले तेल के दीपक को बुझा दिया। जलता दीपक वहां भगवान की उपस्थिति को दर्शाता था।
फिर जुडाह नामक एक बहुत बहादुर यहूदी ने यहूदियों की सेना का नेतृत्व किया। अंत में उन्होंने यूनानी सैनिकों को यरूशलेम से बाहर निकाल फेंका।
जुडाह और उसके अनुयायियों ने मंदिर की सफाई की ताकि यहूदी लोग फिर से वहाँ पूजा कर सकें। फिर जुडाह ने मंदिर के दीपक को दुबारा जलाने के लिए कुछ तेल खोजा।
लेकिन सैनिकों ने तेल के सभी जग तोड़ डाले थे और तेल फेंक दिया था। फिर जुडाह को एक छोटा प्याला मिला, जिसकी तली में अभी भी थोड़ा तेल बचा था।
लेकिन उतना तेल दीपक को केवल एक दिन जलाने के लिए ही पर्याप्त था। अतिरिक्त तेल लाने में उन्हें कम-से-कम आठ दिन लगते। उस स्थिति में जुडाह क्या करे?
दीपक जलाया। फिर एक आश्चर्यजनक बात हुई। एक दिन ख़त्म होने के बाद भी दीपक बुझा नहीं ! जब तक जुडाह तेल लेकर लौटा नहीं, तब तक परमेश्वर ने दीपक को जलाए रखा।