Manav Aur Samp : Aesop's Fable
मानव और साँप : ईसप की कहानी
एक दिन एक किसान अपने पुत्र के साथ खेत में काम कर रहा था। अचानक उसके पुत्र का पांव एक साँप की पूंछ पर पड़ गया। पूंछ दबते ही साँप फुंकार उठा और उसने किसान के बेटे को डस लिया।
साँप विषैला था। उसके विष के प्रभाव से किसान का पुत्र तत्काल मर गया।
अपने सामने पुत्र की मृत्यु देख किसान क्रोधित हो गया और प्रतिशोध लेने के लिए उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और साँप की पूंछ काट दी। साँप दर्द से छटपटाने लगा।
उसे भी अत्यधिक क्रोध आया और प्रतिशोध लेने की ठान कर वह किसान की गौशाला में घुस गया। वहाँ उसने मवेशिओं को डस लिया। सारे मवेशी मर गए।
इतना नुकसान देख किसान विचार करने लगा – “साँप से बैर के कारण मेरी अत्यधिक हानि हो चुकी है। अब इस बैर का अंत करना ही होगा। मुझे सर्प की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिए।”
उसने एक कटोरे में दूध भरा और साँप के बिल के पास रख दिया। फिर कहने लगा, “हम दोनों ने एक-दूसरे का बहुत नुकसान कर लिया। अब इस बैर का अंत कर मित्रता कर लेते हैं। जो हुआ तुम भूल जाओ। मैं भी भूल जाता हूँ।”
साँप ने बिल के अंदर से ही उत्तर दिया, “दूध का कटोरा लेकर तुरंत यहाँ से चले जाओ। मेरे कारण तुमने अपना पुत्र खोया है, जो तुम कभी भूल नहीं पाओगे और तुम्हारे कारण मैंने अपनी पूंछ गंवाई है, जो मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। इसलिए अब हमारे बीच मित्रता संभव नहीं है।”
शिक्षा : अपकार क्षमा तो किया जा सकता है, किंतु भुलाया नहीं जा सकता।