मन का जादू : पेरू की लोक-कथा
Man Ka Jadu : Lok-Katha (Peru)
बहुत पुरानी कहानी है। तब पेरू में एक शक्तिशाली राजा राज्य करता था।
उसका साम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था। राजा के सन्देश लाने-ले जाने के लिए
दरबार में सन्देशवाहकों की एक पूरी टोली काम करती थी।
हुलाची नाम का व्यक्ति उस टुकड़ी का मुखिया था। राजा हुलाची पर बहुत
विश्वास करता था। अगर राजा को कोई अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और गुप्त सन्देश
भेजना होता हो वह हुलाची को ही सौंपता था।
हुलाची बहुत वीर और दयालु स्वभाव का था। शुरू-शुरू में तो सब
ठीक-ठाक चला, लेकिन अब उसका स्वभाव ही उसके रास्ते का रोड़ा बनने लगा।
हुलाची किसी को दुःखी नहीं देख सकता था। अगर वह रास्ते में किसी दीन-दुःखी
को देखता, तो सारा काम-काज छोड़कर उसकी देखभाल में जुट जाता। उस समय
वह बिल्कुल भूल जाता था कि राजा ने उसे एक महत्त्वपूर्ण सन्देश देकर भेजा है,
जिसे तुरन्त पहुंचाना है। कई बार इस कारण से राजा के सन्देश विलम्ब से
पहुंचते। इससे कभी-कभी नुक्सान भी हो जाता।
राजा को पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुआ। उसने हुलाची को खूब
डांटा-फटकारा। चेतावनी दी कि अगर अब कभी सन्देश विलम्ब से पहुंचा तो उसे
कड़ा दण्ड दिया जाएगा।
हुलाची सिर झुकाए सुनता रहा । लेकिन वह अपना स्वभाव न बदल सका। एक
बार वह राजा का सन्देश लेकर जा रहा था तो उसने एक व्यक्ति को बेहोश पड़े देखा ।
वह वहां रुकने को हुआ, लेकिन तभी उसे राजा की चेतावनी याद हो आयी । वह मन
मारकर आगे बढ़ गया। पर सारे रास्ते उसका मन उसे कचोटता रहा।
एक बार हुलाची सन्देश लेकर पहाड़ी रास्ते से जा रहा था। आकाश में
बादल घिरे थे, वर्षा हो रही थी। तभी उसने एक बुढ़िया को फिसलकर गिरते
देखा। उसने झट दौड़कर बुढ़िया को पकड़ लिया। अगर हुलाची समय पर वहां न
पहुंच जाता तो बुढ़िया हज़ारों फीट गहरी खाई में गिर जाती।
लेकिन फिर भी बुढ़िया को काफी चोट आयी थी। पत्थर से टकराकर
उसका सिर फट गया था और खून बह रहा था। बुढ़िया बेहोश हो गई थी।
हुलाची धर्म-संकट में पड़ गया। अगर बुढ़िया की देखभाल करता है तो
सन्देश पहुंचने में विलम्ब हो जाएगा, राजा क्रोधित होंगे। और अगर सन्देश देने
जाता है तो देखभाल न होने से न जाने बुढ़िया की क्या दशा हो। वहां कोई था
भी नहीं, जिसे हुलाची बुढ़िया की देखभाल के लिए छोड़ जाता। हुलाची सोचता
रहा, सोचता रहा। आखिर उसने निर्णय लिया कि चाहे जो हो, वह बुढ़िया के
स्वस्थ होने के बाद ही आगे जाएगा।
हुलाची ने वहीं बुढ़िया के लिए एक झोंपड़ा बनाया। उसकी मरहमपट्टी की
और जब वह ठीक हो गई तो उसे एक गांव में छोड़कर आगे बढ़ चला। बुढ़िया
ने हुलाची को खूब आशीर्वाद दिए।
सन्देश पहुंचने में बहुत देर हो गई थी। हुलाची समझ गया कि राजा इस
बार अवश्य दण्ड देंगे। और यही हुआ भी। जब राजा को पता चला तो उसने
हुलाची को न सिर्फ नौकरी से हटा दिया बल्कि अपना राज्य छोड़कर चले जाने का
भी आदेश दिया।
बेचारा हुलाची क्या करता! वह चुपचाप राज्य छोड़कर चला गया। वह सारा
दिन इधर-उधर फिरता रहता। जंगली फल-फूल खाकर पेट भरता। कहीं किसी
दीन-दुःखी को देखता, या घायल जानवर पर नजर पड़ती, तो सब कुछ भूलकर
उसकी सेवा में लग जाता।
लेकिन हमेशा तो ऐसे नहीं चल सकता था। हुलाची को कई-कई दिन खाना
न मिलता ।
एक दिन वह जंगल में घूम रहा था। उसने वहां एक झोंपड़ी देखी। शायद
कुछ खाने-पीने को मिल जाए, यह सोचकर वह उस ओर बढ़ चला। जैसे ही
हुलाची झोंपड़ी के पास पहुंचा, एक बुढ़िया अन्दर से निकली। यह वही बुढ़िया थी,
जिसे हुलाची ने खड्ड में गिरने से बचाया था। बुढ़िया भी उसे पहचान गई। वह
हुनाची को झोंपड़ी में ले गई और उसे भरपेट भोजन कराया।
खाना खाते समय हुलाची की आंखों में आंसू आ गए। आज न जाने कितने
दिन बाद उसने भरपेट भोजन किया था। बुढ़िया ने पूछा तो हुलाची ने सारी
कहानी बता दी।
सुनकर बुढ़िया ने एक जोड़ी चप्पल हुलाची को दीं। बोली, “बेटा, इन्हें
पहन ले ।”
हुलाची आश्चर्य से बुढ़िया को देखता रहा । बात उसकी समझ में नहीं आयी
थी। बुढ़िया हुलाची के मन की बात समझ गई। मुस्करा कर बोली, “बेटा, ये
चप्पलें उड़ने वाली हैं। मैं एक जादूगरनी हूं। मैं इतने दिनों से किसी ऐसे आदमी
की तलाश में थी, जो निःस्वार्थ भाव से परोपकार करता हो। तू सचमुच बहुत
अच्छा इन्सान है। ये चप्पलें तेरे बहुत काम आएंगी। इन्हें पहनकर तू जहां चाहे
जा सकेगा। जरा भी देर नहीं लगेगी।”
हुलाची जादुई चप्पलें पहनकर बाहर आया। उसने उड़ने की बात सोची तो
सचमुच वह हवा में उड़ने लगा। यह देख वह बहुत प्रसन्न हुआ और बुढ़िया को
धन्यवाद देकर वापस चल दिया।
अब हुलाची फिर राजा के पास पहुंचा। राजा से कहा कि उसे फिर से
नौकरी पर रख लिया जाए। अब वह बिल्कुल ठीक-ठीक काम करेगा। राजा
हुलाची को अच्छा आदमी समझता था। उसका गुस्सा भी उतर चुका था। उसने
हुलाची को फिर से नौकरी पर रख लिया।
हुलाची उन जादुई चप्पलों की मदद से पलक झपकते ही सन्देश यहां से
वहां पहुंचा देता था। इससे राजा बहुत खुश हुआ।
एक दिन हुलाची सन्देश लेकर उड़ा जा रहा था। एकाएक उसने नीचे
देखा-एक आदमी एक चट्टान पर खून से लथपथ बेहोश पड़ा था। हुलाची आगे
न जा सका। उसने वहीं उतरकर उस आदमी की मरहम-पट्टी की, फिर आगे बढ़ा।
इस बार सन्देश पहुंचाने में फिर देर हो गई थी। राजा ने फिर उसे बुरा-भला
कहा। हुलाची ने मन-ही-मन निश्चय किया कि वह अपने काम-से-काम रखेगा,
किसी ओर नहीं देखेगा और खाली समय में ही दीन-दुखियों की सहायता का काम
करेगा।
एक दिन हुलाची एक जंगल से जा रहा था। तभी न जाने क्या हुआ, उसने
देखा वह जमीन पर खड़ा है। वह उड़ते-उड़ते एकाएक धरती पर उतर आया था।
हुलाची ने फिर से उड़ने की इच्छा की, लेकिन कई बार इच्छा करने के बाद भी वह
उड़ा नहीं। उसी जगह खड़ा रहा। हुलाची ने सोचा, शायद जादुई चप्पलों का प्रभाव
जाता रहा। वह खड़ा-खड़ा सोच ही रहा था कि तभी वही बुढ़िया वहां आयी । उसे
देखते ही हुलाची ने सब कुछ बता दिया।
सुनकर बुढ़िया ने आश्चर्य से सिर हिला दिया। बोली, “बेटा, ऐसा कभी
नहीं हो सकता। ये चप्पलें तो बहुत चमत्कारी हैं। ला, मैं देखूं, क्या बात है।”
बुढ़िया ने चप्पलें स्वयं पहनीं तो वह एकदम आकाश में उड़ने लगी। यह
देखकर हुलाची चक्कर में पड़ गया। यह मामला क्या था। उसने बुढ़िया से चप्पलें
लेकर पहनी, लेकिन वह नहीं उड़ सका।
फिर तो कई बार ऐसा हुआ। बुढ़िया ने जब भी चप्पलें पहनीं वह आकाश
में उड़ने लगी और हुलाची उड़ने में सफल नहीं हुआ।
यह देख बुढ़िया बोली, “बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि यह रहस्य
क्या है?”
तभी हुलाची की नजर सामने गई। उसने देखा, एक गाड़ी के नीचे एक
घायल कबूतर पड़ा हुआ है। वह दौड़कर वहां पहुंचा। उसने कबूतर की मरहम-पट्टी
कर दी।
और इस बार जब उसने चप्पलें पहनीं तो वह एकदम आकाश में उड़ गया।
हुलाची तुरन्त नीचे उतर आया। उसने चप्पलें बुढ़िया के सामने रख दीं।
बोला, “अम्मा, ये उड़ने वाली चप्पलें तुम्हें ही मुबारक हों।”
“क्यों, बेटा ?” बुढ़िया ने पूछा।
“अब मैं समझ गया हूँ कि मैं पहले क्यों नहीं उड़ पा रहा था और अब कैसे
उड़ सका। असल में चप्पलें तो ठीक हैं। खराबी मेरे मन में ही है।” हुलाची ने कहा।
बुढ़िया चुपचाप उसकी बात सुन रही थी।
हुलाची कहता गया, “सामने घायल कबूतर पड़ा था और मैं उसे छोड़कर
उड़ जाना चाहता था। इसलिए मेरे मन ने मुझे रोक दिया। तेरी जादुई चप्पलें भी
मन के सामने बेबस हो गईं। मेरा मन उस घायल कबूतर की आवाज़ सुन रहा
था। यही कारण था कि कबूतर के ठीक होते ही चप्पलों का जादू वापस आ गया।
इसलिए मैं तो इनके बिना ही ठीक हूं। आज मैं समझ गया हूं कि मुझे क्या करना
चाहिए। मैं वही करूंगा। और उस काम के लिए मुझे इन जादुई चप्पलों की कोई
आवश्यकता नहीं है।”
सुनकर बुढ़िया हँस पड़ी। बोली, “बेटा, तूने ठीक कहा। मन के जादू के
सामने हर जादू बेकार है। तू दीन-दुखियों की सेवा कर। उसी जादू से तुझे सुख
मिलेगा ।”
बस, उस दिन से हुलाची ने सारे काम छोड़ दिए। वह दीन-दुखियों की सेवा
करता हुआ घूमने लगा। कहते हैं हुलाची आज भी अमर है।