ममता की पहचान : पंजाबी लोक-कथा

Mamta Ki Pehchan : Punjabi Lok-Katha

किसी देश में एक राजा राज्य करता था। उसकी कोई भी सन्तान न थी, जिस कारण वह बहुत दुःखी रहा करता था। वह रात-दिन इस बात के लिए बहुत चिन्तित रहता था कि उसके घर में कोई भी बच्चा नहीं है। उस राजा की रानियाँ तो सात थीं, परन्तु किसी को भी उससे सन्तान की प्राप्ति नहीं हो पाई थी। सन्तान पाने के लिए उस राजा ने बहुत यज्ञ, दान, पुण्य आदि करवाये थे। अन्त में, आख़िर उस राजा की सन्तान-सम्बन्धी इच्छा पूरी होने का समय भी आ गया। राजमहल में चारों ओर खुशियों की लहरें फैली हुई थीं। गाँव की निर्धन लड़कियों को मुँह-माँगा दान दिया जा रहा था और पण्डितों को भरपेट भोजन भी खिलाया जा रहा था।

एक बच्चा राजा की सबसे छोटी रानी के गर्भ में था, परन्तु शेष रानियाँ इसी बात से उससे बहुत जलती थी, क्योंकि उन्हें पता था कि जब बच्चा पैदा हो जाएगा तो राजा इसी प्यारी रानी को पटरानी बना देगा। जब बच्चे के जन्म का समय निकट आया, तब राजा के कहने पर सबसे छोटी रानी के पास एक नगाड़ा रखवा दिया गया कि जब भी बच्चा हो, तो सबसे पहले राजा को पता चलना चाहिए, ताकि तुरन्त सन्तान होने की खुशियाँ मनाने के लिए वह सभी को उपस्थित होने का आदेश दे सके।

भगवान की कृपा से रानी ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। जब रानी ने अपने बच्चे को देखने की इच्छा प्रकट की, तब एक बड़ी रानी ने उस छोटी रानी को दूसरे दो मरे हुए बच्चे दिखा दिए। यह देखकर वह रानी एकदम अपने होश-हवास ही खो बैठी। जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने उस बड़ी रानी को लम्बे बनवास में भेज देने के लिए कठोर आदेश दे दिया।

उधर राजकुमार और राजकुमारी को दो सन्दूकों में बन्द करके बाहर फेंक दिया गया। वहाँ से उसी समय सौभाग्यवश एक सन्त-महात्मा गुज़र रहे थे। तभी उन्हें उन दो बच्चों के रोने की आवाज़ अपने कानों में सुनाई पड़ी। उन्होंने तुरन्त उसे उस बड़े सन्दूक से बाहर निकाला और उन्हें अपने घर ले गए। महात्मा जी इस घटना के बाद उन बच्चों का आप ही पालन-पोषण करने लगे।

यह बात किसी तरह रानियों के पास भी पहुँच गई कि छोटी रानी के दोनों बच्चे अभी मरे नहीं, बल्कि जीवित हैं और बहुत ही अच्छे ढंग से उनका किसी साधु के घर में उसके ही द्वारा अच्छी तरह से पालन-पोषण हो रहा है। उन ईर्ष्यालु रानियों ने एक सेविका के हाथ दो ज़हर के पेड़े भेजे और कहा कि जब कभी वह महात्मा जी अपने घर से बाहर जाएँ, तो ये पेड़े उन दोनों बच्चों को दे दिये जायें। सेविका ने जहर के वे दोनों पेड़े उन दोनों बच्चों को खिला दिए। उन पेड़ों को खाते ही उन दोनों मासूम बच्चों की तुरन्त मृत्यु हो गयी।

जब महात्मा जी बाहर का सारा काम निपटा कर अपने घर वापस आए, तो यह देखकर उनके हृदय को बहुत आघात पहुँचा। वे समझ गए कि उनके जाने के बाद पीछे उनका शत्रु अपनी घृणित चाल चल गया है। महात्मा जी ने उन दोनों बच्चों की समाधि अपने आँगन में ही बना दी। कुछ समय बाद राजकुमार की समाधि पर आम का एक पौधा और राजकुमारी की समाधि पर चम्पा का एक पौधा उग आया। समय बीतता गया और वे पौधे भी बढ़ते चले गए। आम के पौधे पर मंजरियाँ निकल आईं और चम्पा के पौधे पर भी सुन्दर फूल खिल उठे।

एक दिन एक कौआ चम्पा का फूल तोड़ कर ले गया। वह कौआ जब राजा के महल की छत पर आया, तो वहाँ अपने बाल सुखा रही किसी स्त्री ने उसे ढेला मार कर वहाँ से उड़ा दिया। कौए का फूल डर के मारे वहीं पर गिर गया। उस स्त्री ने कौए की चोंच से चम्पा का गिरा हुआ वह फूल बड़ी रानी को दे दिया। किन्तु जब राजा ने फूल को देखा तो कहा, "शीघ्र जाकर कहीं से ठीक ऐसे और फूल तोड़ कर लाओ।” बहुत-से व्यक्तियों ने फूल तोड़ने के प्रयत्न तो किये, परन्तु वे फूल किसी से भी नहीं टूट पाये। जो कोई व्यक्ति ज्यों-ही उन्हें तोड़ने की कोशिश करता था, त्यों-ही वे फूल उस मनुष्य के कद से बहुत ऊँचे हो जाते थे। आख़िर में जब राजा स्वयं फूल तोड़ने के लिए गया, तो वृक्ष के फूल उस (राजा) के सिर से भी दस गज़ ऊपर हो गए।

इतने में वहाँ समीप ही एक समाधि से आवाज़ आई कि “महाराज ! यदि आपको फूल चाहिए, तो आप उस स्त्री को भेजें, जिसने कौए को उड़ाया है। बच्चों को पता होता है कि यही हमारी माँ है, इसलिए वे राजा को उस स्त्री को भेजने के लिए कहते हैं। राजा ने ऐसा ही किया। जब बच्चों की माता उन पौधों के पास आई. तो वृक्ष नीचे की ओर झुक गए। अब उस वृक्ष ने अपनी शाखाओं को बच्चों की माता के इर्द-गिर्द लपेट लिया। माँ ने अपने बच्चों को अच्छी तरह प्रकार से पहचान लिया और उसकी छाती से सहसा दूध की धाराएँ बहने लगीं।

इतने में वे महात्मा जी भी वहाँ आ गए। उन्होंने राजा को सारी बात बता दी। जब राजा को पता चल गया कि रानियों ने उसे बहुत ही चतुराई से मूर्ख बनाया है, तो उसने बहुत पश्चात्ताप किया। इसके बाद उस महात्मा ने दोनों समाधियों को खुदवाया और मंत्रों द्वारा उन दोनों भाई-बहनों को जीवित कर दिया। वे दोनों दौड़ कर अपनी माँ की गोद में बैठ गए।

राजा ने आदेश दिया कि बड़ी रानियों को हाथियों के पाँव से बाँध कर सारे शहर में घसीटा जाए । इसके बाद वह बड़ी धूमधाम से छोटी रानी को बहुत ही शान-ओ-शौकत से राजमहल में ले आया। इस प्रकार वे सभी प्रसन्नता से अपना शेष जीवन व्यतीत करने लगे।

साभार : डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ

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