Majnu (Hindi Nibandh) : Munshi Premchand
मजनूँ (हिन्दी निबंध) : मुंशी प्रेमचंद
मजनूँ फारसी और अरबी इश्क की दुनिया का बादशाह है मगर उसकी दास्तान पढ़कर ताज्जुब होता है कि उसे यह जगह कैसे मिल गई। न कोई दिलचस्पी है और न कोई वाकया। बस वह आशिक पैदा हुआ, आशिक जिया और आशिक मरा गोया उसकी जिंदगी ही इश्क थी। इससे गरज नहीं कि इतिहास हमें उसका हवाला देता है या नहीं। इतिहास हुस्न-ओ-इश्क का जिक्र नहीं करता। हाँ, यह सब जानते हैं कि बड़े से बड़े नाम पैदा करने वाले, बड़े से बड़े मुल्क जीतने वाले को वह अमर जीवन नहीं मिला। उसके नाम पर शायर का कलम झूमता है। उसके नाम से इश्क की दुनिया कायम है वर्ना अब ऐसे आशिक कहाँ। वह आशिकों की आहों, उम्मीदों, नाउम्मीदी, पागलपन, आत्मविस्मृति की जिंदा तस्वीर है। वह खुद एक कवि की सुंदर कल्पना है। फारस और अरब के शायरों ने आशिक के लिए जो जगह कायम की है मजनूँ उसी का हकदार है। वहाँ का आशिक एक लंबा, कमजोर, दुबला-पतला आदमी होता है। उसके नाखून और बाल बड़े-बड़े होते हैं, बदन पर कोई कपड़ा नहीं होता और अगर होता है तो गरेबाँ से दामन तक फटा हुआ, आँखों से आँसुओं को नदी जारी, गाल पीले, नाखून से बदन खसोटे हुए, जमीन पर खाक-धूल में लोटता हुआ, पागल, मतवाला, हद से ज्यादा कमजोर दिल, मस्त ऐसा कि माशूक को भी न पहचाने, पहाड़ों और जंगलों में खाक छाने, न कुछ खाये न पिये, खाये तो गम, पिये तो आँसू, हवा के सहारे जिंदा रहे, ये आशिकों की ख़ासियतें हैं और मजनूँ में ये ख़ासियतें हद को पहुँच गई हैं।
पुराने जमाने के हीरों का आम कायदा है कि वह उसी वक्त पैदा होते हैं जब उनके निराश माँ-बाप पहुँचे हुए फकीरों और अल्लाह के दोस्तों की चौखटों पर माथा रगड़ते-रगड़ते बूढ़े हो जाते हैं। मजनूँ ने भी यही ढंग अपनाया। आप पैदा हुए तो बाप ने सारी दौलत लुटा दी। यह बच्चा माँ के पेट से आशिक पैदा हुआ, बूढ़ी दाई की गोद में उसे चैन न आता, रो-रोकर दुनिया सिर पर उठा लेता मगर जब कोई खूबसूरत औरत गोद में लेती तो आप खिल जाते।
बा दायये खुद न मी शुदे राम
बे माहरुख न दाश्त आराम
अपनी दाई के बस में नहीं आता था और किसी चन्द्रमुखी के बिना चैन न लेता था।
गर सौते खुशश बगोश रफ्ते
आं तिफ्ल दमे जे होश रफ्ते
अगर कोई अच्छी आवाज सुनता तो झूम उठता और मस्त हो जाता। ज्योतिषियों ने जब इस आशिक लड़के का सितारा देखा तो बोले कि ‘यह उठती जवानी में पागल हो जायेगा।’
कां तिफ्ल व सेले रोजगारे
दीवाना शवद जे बेह्रेयारे
जमाने के बहाव के साथ दीवाना हो जाये किसी माशूक के इश्क में।
दर इश्के बुते फसाना गरदद
रुसवा शुदये जमाना गरदद
माशूक के इश्क में कहानी की तरह सारी दुनिया में मशहूर हो जायेगा।
लेकिन फितदश गहे जबानी
दरसर हवसे चुना के दानी ( हातिफी)
लेकिन जब उस पर जवानी आयेगी तो उसके सर में एक हवस पैदा हो जायेगी जिसे इश्क कहते हैं।
अज़ इश्क बुते नजंद गरदद
दीवाना ओ मुस्तमंद गरदद
इश्क में बदनाम, पागल और परीशान होगा।
जब लड़के की पढ़ाई का वक्त आया तो माँ-बाप ने उसे मकतब में बिठा दिया।
इस मकतब में कुछ लडकियाँ भी पढ़ती थीं। लैला उनकी रानी थी। हुस्न और नजाकत में लाजवाब। आशिक मजनूँ ने उसे छाँटा। दोनों मकतब में बैठे-बैठे इशारे-नजारे करते। इश्क रंग लाने लगा। (समझदार लड़के और लड़कियों को एक ही मकतब में पढ़ाना ठीक है या नहीं इस सवाल पर राय कायम करने में यह दास्तान पढ़ने वालों को बहुत दिक्कत नहीं हो सकती।)
आ गुलशने हुस्न रा ब एक बार
शुद कैस ब नक्दे जां खरीददार
कैस यानी मजनूँ इस हुस्न के बाग को फौरन ही अपनी जान की कीमत देकर खरीदने पर तैयार हो गया।
लैला चू रफीके खेश दीदश
ऊ नीज ब मेह्रे दिल खरीदश
लैला ने जब मजनूँ को अपना दोस्त पाया तो उसने भी उसे अपने दिल की मेहरबानी से मोल ले लिया।
इश्क आमद व दर्द सीना जा कर्द
खुद रा बदो यार आशना कर्द
इश्क आया और सीने में दर्द की जगह पैदा की और अपने आप को दोनों से परिचित कराया।
दर खानये सब्र आतश उफ्ताद
शुद खिरमने नंगोनाम बरबाद
सब्र की जगह पर आग गिर पड़ी और इज्जत-आबरू का खलिहान बर्बाद हो गया।
धीरे-धीरे यह भेद लड़कों पर खुल गया। चर्चा फैली। लैला की माँ ने यह हालत देखी तो लड़की को मकतब से उठवा लिया। समझाने लगी।
गुफ्तश के शनीदम अज़ फलाने
का शुफ्तईतू शुदी जवाने
मैंने किसी से सुना है कि तू किसी जवान पर आशिक हो गई है।
वीं हम के तू नीज असीरे रूये
आजुर्दा जे जख्मे तीरा रूये
और यह भी कि तू इश्क में फँसी तो उसके जो काला सियाह है।
गीरम बुअदत हजार आशिक
माशूका शुदन जे तू चे लायक
मैंने माना कि तेरे हजारों आशिक हैं लेकिन तुझे किसी का आशिक होने की क्या जरूरत।
दुख्तर कि ब ईनो आ न शीनद
जुज़ रू सियही दिगर न बीनद
लैला ने माँ की बात न सुनी और सिवाय मुँह काला करने के कोई सूरत नजर न आई।
गुल रा शरफ ओ लताफते हस्त
चंदां के न कर्द कस बदूदस्त
फूल की इज्जत और उसकी नजाकत तभी तक है जब तक कि कोई उसे न छुए।
आं कम के गिरफ्त आ कर्द बूयश
अज़ दस्त बेफगनद बकूयश
जैसे ही आदमी ने उसको छुआ और सूँघा, हाथ में रखने के बदले मुहल्ले में फेंक दिया।
तरसम के चू गरदद ई ख़बर फाश
बदनाम शवी मियाने औबाश
मैं डरती हूँ कि अगर यह बात फैली तो तू बदमाशों में बदनाम हो जायेगी।
सूफी कि रवद ब मजलिसे मैं
वक्ते बचक्रद प्याला बरवै
सूफी जब शराब की मजलिस में जाता है तो वह छलकता हुआ शराब का प्याला चढ़ा जाता है।
आं कस कि मगस जे कासा रानद
नाख्रुरदन ओ ख्रुरदनश न दानद ( खुसरो )
वह आदमी जो प्याले में से मक्खी निकाल देता है तो वह उसका खाना और नहीं खाना नहीं जानता यानी खाना न खाना बराबर समझता है। मगर लैला पर इन नसीहतों का वही असर हुआ जो आशिकों पर हुआ करता है।
उसने फौरन इन बातों से अपने को अनजान जताया, भोली-भाली लड़की बन गई और कहने लगी, ‘अम्मां, इश्क क्या होता है?’
कै मादर दहर इश्क गो चीस्त
माशूक कुदाम व आशिकम कीस्त
ऐ मेरी माँ, इश्क क्या चीज है, मैं किसकी आशिक हूँ और मेरा माशूक कौन है?
आं इश्क गुलेस्त दूर बहारे
या नाम दिहेस्त दूर दयारे
वह इश्क बहार का कोई फूल है क्या या किसी मुकाम का नाम है?
या इश्क जे जिन्स खुर्द पिनहास्त
अज़ बह्रे खुदा ब मन बिगो रास्त
या वह इश्क कोई छिपी हुई चीज है, खुदा के वास्ते मुझे अच्छी तरह ठीक- ठीक बता।
हरगिज न शनीदाएम ई नाम
लफ्जे के नीस्त दूर जहाँ आम
मैंने यह नाम कभी नहीं सुना। ऐसा कोई लफ्ज दुनिया में आम नहीं है। माँ बेचारी सीधी-सादी औरत थी। लड़की की बातों पर यकीन आ गया। इधर इश्क ने और पाँव निकाले। मियां मजनूँ मदरसे जाते और रो-पीटकर घर चले आते। आखिर जब देखा कि इस रोने-धोने से काम न चलेगा तो एक दिन आप अंधे बन बैठे और लैला के दरवाजे पर जाकर रास्ता पूछा। लैला ने उनका हाथ पकड़कर रास्ता बताया। दिल की कहानी कहने-सुनने का भी मौका मिल गया। अब तो आपको चस्का पड़ गया। अब आप फकीर बनकर लैला के दरवाजें पर पहुँचे और आवाज लगाई, लैला ने आवाज़ पहचान ली। खुद भीख लेकर दरवाजे पर आई। नजरें मिलीं ओर दिल ठंडे हुए। फिर तो मियां मजनूँ रोज एक न एक स्वांग भरते यहाँ तक कि बहरूप खुल गया। लोग मजनूँ की ताक में रहने लगे कि मौका पायें तो हमेशा के लिए किस्सा पाक कर दें। यह पांसा भी पट पड़ा। लैला की जुदाई ने मजनूँ को पागल बना दिया।
दीवानए इश्क शुद ब एक बार
रुसवाये मुहल्ला गश्त ओ बाजार
वह इश्क में पागल हो गया। मुहल्ले-बाजार में बदनाम हो गया।
गश्ते सरोपा बरहना पैवस्त
तिफ्लाने कबीला संगे दरदस्त
हमेशा नंगे पाँव और नंगे सर रहता और कबीले के बच्चे उसे पत्थर मारते।
दर कू बफुगां जे संगे एशां
दरखाना बजां जे पंदे खेशां
मुहल्ले में उनके पत्थरों से परेशान और घर में घर वालों की नसीहत से तंग।
हर हर सरे कोह फसानए ऊ
दर हर महफिले तरानए ऊ
हर पहाड़ की चोटी पर उसी की कहानी थी और हर मफफिल में उसी का तराना था।
मजनूँ का इतना बुरा हाल देखा तो बाप को फिक्र हुई। पहले तो समझते रहे कि यह इश्क यूं ही है, होश आयेगा तो आप ही असर जाता रहेगा। मगर जब देखा कि हर रोज रंग गाढा होता जाता है तो एक दिन आपने मजनूँ से पूछा – तुम्हारी यह क्या हालत है? क्या फिक्र है? इस पागलपन का क्या सबब है? अगर इश्क ने सताया है तो माशूक कौन है?
परवानए शोलए चे शमई
आशुफ्ताये गुलरुखे चे जमई
तू किस चिराग के शोले का परवाना है और किस फूल जैसे गालों वाले का आशिक है?
आहुए कुदाम लालाज़ारत
कर्द अज़ नज़रे चुनी शिकारत
तेरा हिरन किस बाग का है जिसने एक निगाह में तुझे शिकार कर लिया? मगर मजनूँ की अक़्ल बिल्कुल ठिकाने न थी। बाप को भी न पहचान सका। पूछने लगा – तुम कौन हो, कहाँ से आए हो? और जब मालूम हुआ कि यह बुजुर्ग मेरे बाप हैं तो बोला –
मजनूँ गुफ्तश बिगो पिदर चीस्त
गैरज़ लैला कसे दिगर कीस्त
मजनूँ ने उससे कहा – बाप क्या चीज है, सिवाय लैला के दूसरा कौन है।
नामद जे मए कि इश्क दादश
अज़ मादरो अज़ पिदर बयादश
उसको इश्क ने जो शराब पिलाई है उसमे वह माँ-बाप को भूल गया है। बेटे का तो यह हाल, बूढ़े बाप ने नसीहतों का दफ्तर खोल दिया। दुनिया की ऊँच-नीच सुझाई, कमाल पैदा करने की नसीहत की और अपनी लंबी- चौड़ी बातें औरतों की बेरुखी और मक्कारी पर खत्म कीं।
जीं शेफ्तगी व खामकारी
बिसियार कशी जे दहर खारी
इस मुहब्बत और नातजुर्बकारी की वजह से तू दुनिया में बहुत बेइज्जत होगा।
खाही चू सआदते गरामी
दानिश तलब ओ बलंद नामी
अगर तू चाहता है कि खुशु किस्मत हो तो इल्म और बड़ा नाम हासिल कर।
अकनूं कि जवानओ होशमंदी
बायद तलबीदन अर्जुमंदी
अभी तू जवान और समझदार है, तुझे चाहिए कि इज्जत और नाम पैदा करे।
फर्दाकि शवी बसाने मन पीर
अफसोस खुरी व नीस्त तदबीर
कल तू मेरी तरह बुड्ढा हो जायेगा फिर अफसोस करेगा लेकिन तब कोई इलाज न होगा।
बा अस्ल ओ नसब मबाश मगरूर
कां हस्त जे मर्दुमी दूर
खानदान और जात-पांत पर घमंड न कर क्योंकि ये बातें मर्दानगी से दूर हैं।
कस मेह्रो वफा जे जन न जूयद
कज़ शोरा ज़मीं समन न रूयद
कभी औरत से मुहब्बत और मेहरबानी की उम्मीद न रखनी चाहिए. क्योंकि बजर जमीन में चमेली कभी नहीं लगती।
चश्मश कि नजर बनाज़ कर्दा
बर तू दरे फितना बाज़ कर्दा
उसकी चितवन ने एक खास नजर करके तुझ पर फितने और फसाद का दरवाजा खोल दिया है।
मगर आशिकों पर नसीहतों का असर कब हुआ है। खासतौर पर ऐसी नसीहत का जिसमे दिल की हालत का जरा भी खयाल न रक्खा गया हो और जिसमे हमदर्दी का काई पहलू न हो। मजनूँ ने इसके जवाब में मजबूरी और बेबसी जतायी और किसी कदर बेअदबी के साथ कहा, ‘आप इस गली से वाकिफ नहीं, आप मेरे दर्द को जया जानें, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए।’
ईं शेफ्तगी बदस्ते मन नीस्त
कस दुश्मने जान खेश्तन नीस्त
यह इश्क मेरे बस का नहीं है क्योंकि कोई आदमी अपनी जान का दुश्मन नही होता।
खाही जे फिराके ऊ न नालम
बरखेज ओ बरारश अज़ ख़यालम
अगर तू चाहता है कि मैं उसकी जुदाई में न रोऊ-चिल्लाऊँ तो उठ और उसका खयाल मेरे दिल से निकाल दे।
खिजलतजदा ओ सियाहकारम
वज़ कर्दये खेश शर्मसारम
मैं कुसूरवार हूँ और अपने किये पर शर्मिंदा हूँ।
चूं नीस्त बदस्त अख्तियारम
बगुजार पिदर, मरा बकारम
जब मुझे अपने पर अख्तियार नहीं तो यही अच्छा है कि ऐ बाप तू मुझे मेरी हालत पर छोड़ दे।
आं बेह कि नसीहतम न गोई
दस्त अज़ मनो कारे मन बशोई
यही अच्छा है कि तू मुझे कोई नसीहत न कर और मुझसे और मेरे काम से हाथ धो ले।
आं दीदा कि आमद अज़ अज़ल कूर
अज़ यारिए सुरमा कैदिहद नूर
वह आँख जो पैदा ही अंधी हुई उसको सुरमे की मदद से क्या रोशनी मिल सकती है।
पंदम चे दिही, चे जाये पंदस्त
पंदे तू मरा न सूदमंदस्त
तू मुझे नसीहत करता है, यहाँ नसीहत की क्या जगह है, तेरी नसीहत से मुझे क्या फायदा।
अब जवाब का आखिरी टुकड़ा मतलब से भरा हुआ है जो एक हद तक असलियत का रंग लिये हुए है।
ऊ नै लैला ओ मन न मजनूँ
यक तन शुदाएम हर दो अकनूं
वह लैला नहीं है और मैं मजनूँ नहीं हूँ। हम दोनों अब एक बदन हो गये हैं। उधर लैला की हालत भी खराब थी। दिन-रात रोती-धोती रहती थी।
मी गुफ्त कि आह चूं कुनम चूं
मजनूँ शुदाअम जे इश्के मजनूँ
कहती थी कि हाय मैं क्या करूँ । मजनूँ के इश्क में खुद मजनूँ हो गई हूँ।
ऐ बादेसबा चू मी तवानी
कज़ मन ख़बरे बाऊ रसानी
कहती, ऐ सुबह की नर्म और ठंडी हवा, अगर तुझसे हो सके तो मेरी हालत उससे कह देना।
मन हम जे तू कुश्तए फिराकम
जुफ्तम ब गमत गरज तू ताकम
मैं भी तेरी जुदाई की मारी हुई हूँ। अगरचे तुझसे जुदा हूँ लेकिन तेरे गम के साथ हूँ।
ऐ दोस्त बिया दबाये मन कुन
फिक्रे मनो दर्दहाय मन, कुन
ऐ दोस्त आ और मेरी दवा कर, मेरे दर्द की फिक्र कर।
मसलत न हरीफे रंजो दुर्दम।
दानी कि जनम न चूं तू मर्दम।।
तुझ जैसा मेरे गम और दर्द का साथी नहीं है। तू जानता है कि मैं औरत हूँ मर्द नहीं हूँ।
ज़न जे आतशे इश्क बेश सोज़द
खाशाके ज़ईफ पेज सोज़द
औरत इश्क की आग में ज्यादा जलती है जैसे कमजोर घास-फूस फौरन ही जलकर राख का ढेर हो जाते हैं।
मजनूँ के बाप ने जब देखा कि खाली नसीहतों और तसल्लियों से काम न चलेगा और लड़का बिल्कुल दीवाना हो चुका है तो लैला के बाप से दरख्वास्त की कि मजनूँ से लैला की शादी कर दें मगर लैला के बाप ने बड़ी बेदर्दी से इंकार कर दिया और अपनी मजबूरी इन शब्दों में व्यक्त की –
फर्जन्दे तू देव जिश्त खूईस्त
दीवाना ओ तुंद ओ हर्जगोईस्त
तेरा बेटा शैतान की सी प्रकृति रखता है। वह पागल है, सख्त तबीयत है और बकवास करता रहता है।
इस्लाह पिजीर नीस्त मजनूँ
अज़ वर्तये अक़्ल हस्त बेरूं
मजनूँ सीधे रास्ते पर नहीं आ सकता। वह अक़्ल के घेरे से दूर जा पड़ा है।
बदनामतरे अजू न बीनम
खुदकामतरे अजू न बीनम
मैंने उससे ज्यादा बदनाम और उससे ज्यादा मतलबी दूसरा नहीं देखा।
दानी कि मरा न बा तू जंगस्त
न अज़ तू व खेशिये तू नंगस्त
तू जानता है कि मेरी तुझसे लड़ाई नहीं है और न तुझसे और तेरे रिश्तेदारों से मैं कोई शर्म रखता हूँ।
ईं कार वले न कारे सहसस्त
दीवानए तू न यारे अहलस्त
लेकिन यह काम आसान नहीं है क्योंकि तेरा दीवाना दोस्ती के लायक नहीं है।
तूती कि ब चोग्द हम नफस कर्द
बुलबुल कि ब जाग दूर कफस कर्द
यह एक ऐसी ही बात है जैसे तूती का साथी उल्लू को बनाना या बुलबुल के साथ कौवे को पिंजरे में रखना।
मजनूँ के बाप ने इन ऐबों की सफाई में बहुत जोरदार तकरीर की और कहा कि आपका यह खयाल बिल्कुल गलत है। मजनूँ न तो बदमिजाज है और न बदमस्त। उसे सिर्फ इश्क की बीमारी है, उसकी दवा मिली और वह होश में आया। आप खुद उसे देख लें, उसकी आदत का इम्तहान कर लें, किसी के कहने-सुनने में न आयें। हुक्म हो तो हाजिर करूँ । वह इस बात पर राज हो गया और हज़रत मजनूँ बुलाए गए मगर सवाल-जवाब की नौबत आने के पहले ही किस्मत की बात कि लैला का कुत्ता उधर से निकल पड़ा।
‘दीवानारा हुए बसस्त’ मजनूँ को अब कहाँ सब्र, आप उठे और दौड़कर कुत्ते को सीने से चिपका लिया, कभी उसके नाखूनों को चूमते, कभी उसके मुँह को प्यार करते और उसकी तारीफों के पुल बाँध दिये।
बरजस्त जे जाये खेश आजाद
वज़ शौक बदस्तओ पायश उप्ताद
अपनी जगह से बेचैन होकर उठा और उसके पाँव पर गिर पड़ा।
मालीद ब पुश्त ओ पाये ऊ रूए
कीं पाये गुज़श्ता जस्त जां कूए
उसकी पीठ और पाँव पर अपना चेहरा मला क्योंकि उसके पाँव लैला के मुहल्ले से गुजरते थे।
आवुर्द बहस्रतश दूर आगोश
खारीद ब नाखुन आं सरोगोश ( हातिफी)
बड़े अरमान से उसे गोद में लिया और उसका सर और कान खुजलाने लगा।
पायश जे कुलूखे खार मीरुफ्त
वज़ पाओसरश गुबार मी रुफ्त
उसके पाँव से काँटे साफ करता था और उसके पाँव और सर की मिट्टी साफ करता था।
दामन बतहश फिगंदा दूर खाक
मीकर्द ब आस्तीं सरश पाक
अपना दामन उसके नीचे बिछाता और उसका सर आस्तीन से झाड़ता।
बोसीदा सरश ब रुफ्क ओ आरज्म
खारीद तनश बनाखुने नर्म
उसका सर प्यार से चूमता और उसका बदन धीरे-धीरे नाखून से खुजाता।
गुफ्त ऐ गिलेस्त अज़ वफा सरिश्ता
नक्शत फलक अज़ वफा सरिश्ता
कहता जाता है कि तेरी मट्टी वफा से गूंधी हुई है और तेरी तस्वीर वफा के आसमान से बनाई हुई है।
हमनान कसां हलाल खुर्दा
हम खुर्दा खुद हलाल कर्दा
तूने जिसका खाया उसे हलाल करके खाया और अपना खाया हुआ हलाल कर दिया।
सद रौज़ये खुश बजेरे पायत
दर रौज़येगह बिहिश्त जाएँत
तेरे पाँव के नीचे सैकड़ों बाग हैं और हर बाग में एक जन्नत है।
सद खूं जे लबत चकीदा दूर खाक
वज़ लौसे ख़बासतत दहन पाक
सैकड़ों खून तेरे होंठ से टपके लेकिन तेरा मुँह खूबासत से पाक है।
गर तू सगे अज़ सरिश्ते दौरां
ईनक सगे तू मनम बसद जां
अगरचे तू दुनिया का कुत्ता है लेकिन अब मैं तेरा कुत्ता हूँ।
मजनूँ की जबान ने इस वक्त कमाल का जोर दिखाया। यह गोया अपनी उम्मीदों और मुरादों का मर्सिया था। मजनूँ से दामन छु ड़ाकर लैला के बाप ने बेटी की शादी इब्ने सलाम से कर दी। लैला को बहुत गम हुआ। जहाँ तक शर्म ने इजाजत दी उसने अपनी नाराजी जाहिर की मगर जब कुछ जोर न चला तो रो-धोकर चुप हो गई। खुशी की महफिल सजाई गई। काजी साहब तशरीफ लाये। शादी की रस्में अदा की गईं और दूल्हा-दुल्हन के मिलने की तैयारियाँ होने लगीं। दूल्हा बन-ठन के दुल्हन के कमरे में आया।
आमद ब सूए उरूस दामाद
बा खातिरे खुर्रम ओ दिले शाद
बड़ी खुशी और शौक से दूल्हा दुल्हन की तरफ बढ़ा।
दर पहलुए ज़न निगार बनशस्त
मी खास्त के सूए ऊ बर दस्त
सवाँरी हुई दुल्हन के पास बैठा और चाहता था कि उस पर हाथ डाले कि –
बर रूये जदश तमाचए सख्त
मदां गूना दरू फिताद अज़ तख्त
दुल्हन ने दूल्हे को इस जोर से तमाचा रसीद किया कि वह तख्त से नीचे गिर पड़ा।
गुफ्तश चे ख़याले खाम दारी
गुल बूए मकुन जे काम दारी
और उससे कहा कि किस बेहूदा खयाल में है। मेरी जवानी के फूल का रस न चूस।
ई तख्त मुकामे ताजदारीस्त
कीं खुतबा बनामे शह्रयारीस्त ( हातिफी)
यह मुकाम ताजदार का है और यह खुतबा बादशाह का।
लैलीश चुना तमाचए जद
कि उफ्ताद मर्द मुर्दा बेखुद
लैला ने उसके इस जोर से तमाचा मारा कि वह मुर्दे की तरह गिर पड़ा। यहाँ किस्से में कुछ विरोध है। निजामी और हातिफी कहते हैं कि लैला की शादी इब्ने सलाम से हुई और दोनों की एक राय है कि लैला ने अपने लालची शौहर के मुँह पर तमाचा मारा। आखिर वह गरीब चांटा खाकर भाग खड़ा हुआ और तलाक के सिवा कोई सूरत नजर न आई। मगर खुसरो फरमाते हैं कि मजनूँ की शादी नूफल की लड़की से हुई। नूफल शायद मजनूँ के कबीले का सरदार था। उसे मजनूँ की परेशानी पर तरस आया। मजनूँ की तरफ से लैला के बाप के पास शादी का पैगाम भेजा और इंकार की हालत में लड़ाई की धमकी दी। लैला का कबीला भी लड़ाई में एक ही था। लड़ाई हुई और लैला का बाप हारा। मगर जब उसके कबीले वालों ने इस मार-काट को खत्म करने के लिए लैला को मार डालना चाहा तो मजनूँ बेताब हो गया। उसने नूफल से दरख्वास्त की कि खुदा के वास्ते इस हंगामे को खत्म कीजिए।
आ तीर मज़न बदुश्मनां पेश
कजं वै दिले दोस्तां कुनी रेश
दुश्मनों पर वह तीर न चला, जिससे दोस्तों का दिल जख्मी हो जाएँ।
चूं जामये बख्ते मन कबूदस्त
अज़ कोशिशे मर्दुमा चे सूदस्त
चूंकि मेरी किस्मत का लिबास आसमानी है यानी मैं बदनसीब हूँ, लोगों की कोशिश से क्या फायदा।
नूफल ने अपनी फौज हटा ली मगर उसकी बहादुरों जैसी हमद ु र्दी ने यह न चाहा कि वह मजनूँ को अपना दामाद बना ले। मजनूँ ने रिश्तेदारों के समझाने और नूफल की बहादुरी से प्रभावित होकर यह शादी मंजूर कर ली। धूम-धाम से ब्याह हुआ मगर –
चूं शुद गहे आ कि खुर्रम ओ शाद
हम ख्वाबा शवंद सर्व ओ शमशाद
खुशी से भरी हुई घड़ी में सरो और शमशाद जैसे दूल्हा-दुल्हन एक कमरे में सोने गये।
अज़ तख्ते शही सुबुक फुरू जस्त
बर रूये जमी चू खाक बनशस्त
मजनूँ दुल्हन की सेज से नोचे कूदा और जमीन पर मट्टी की तरह बैठ गया।
मह दूर पये आं कि शवद जुफ्त
दीवाना जे माहेनौ बर आशुफ्त
चाँद जैसी दुल्हन इस फिक्र में कि अपने दूल्हे से मिले और मजनूँ की ऐसी हालत जैसी नये चाँद पर पागल का पागलपन और बढ़ जाता है।
अज़ बसके गिरीस्त सीना पुरताब
शुद नक्शे बिसात शुस्ता जां आब
सीने को आग की बेचैनी से इस कदर रोया कि आँसुओं से फर्श के फूल बेल धुल गये।
लैला ने यह खूबर सुनी तो बेचैन हो गई। उस वक्त शिकायत के ढंग पर एक चिट्ठी लिखी, कोमल भावनाओं से भरी हुई, कि मैं तुम्हारे नाम पर कसम खाये बैठी रहूँ, तुम्हारे लिए रोऊँ, तुम्हारे वियोग में जलूँ और घर वालों के ताने सहूँ और तुम वफादारी की शर्त को इस बेदर्दी से भुला दो।
मन बे तू चुनी बगम नशस्ता
अज हर चे बजुज तू रूये बस्ता
मैं तेरे गम में इस तरह बैठी हुई हूँ और सिवा तेरे सबसे मुँह बाँधे हुए हूँ।
चू साया रवद बराहे बा मन
फरके न कुनी जे साया ता मन
तू मेरे रास्ते में साये की तरह रहता है, मुझमें और मेरे साये में फर्क नहीं करता।
दीदी के ब मारिजे हलाकम
चूं बाद बरो शुदी जे खाकम
तू देख रहा है कि मैं मरने के किनारे तक पहुँच गई हूँ और तू मेरी खाक पर हवा की तरह गुज़र रहा है।
बेगाना सिफत खराम कर्दी
बेगानगी तमाम कर्दी
गैरों का रास्ता अख्तियार कर रहा है और परायेपन को तूने हद कर दी।
अकनूं ब विसाल खुफ्तये शाद
हमखाबये तू मुबारकत बाद
अब तू अपनी दुल्हन के साथ खुशी-खुशी सो रहा है, तुझे तेरे साथ सोने वाली मुबारक हो।
बाई हमा दोस्तदारी यारम
बा यारे तू नीज़ दोस्तदारम
मैं इन तमाम बातों पर भी तेरी दोस्त हूँ और तेरे साथी की भी दोस्त हूँ।
आं यार कि दोस्त दाश्त यारम
दुश्मन बुअदम अर न दोस्त दारम
वह दोस्त जो मेरे प्रेमी को दोस्त रक्खे अगर मैं उस दोस्त न रक्खूँ तो उसकी दुश्मन हूँ।
गर तू ब कुनी ब मेह्र यादम
अज़ तरबियते गमे तू शादम
अगर तू मेहरबानी से मुझे याद करे तो तेरे गम में भी खुश हूँ।
मजनूँ तो आशिक ही थे उसका एक लंबा-चौड़ा जवाब लिखा। खूब रोये गिड़गिड़ाये और मान लिया कि मैंने शादी की, मजबूर था, बेबस था मगर मैंने अगर इस माशूक की सूरत देखी हो तो मेरी आँखें फूट जायँ। कैसा नाजुक शेर हैं –
मुर्ग कि परश बिरेख्त अज तन
बेहूदा बुअद कफस शिकस्तन
वह चिड़िया जिसके पर उखाड़ दिये गये उसका पिंजड़ा तोडना फिजूल है। यह खुसरो की रवायत है मगर हमारे खयाल में निजामी और हातिफी की रवायत ज्यादा सही है। मजनूँ अपने बाप को कई बार बेअदबी से जवाब दे चुका था। इस वक्त सिर्फ अदब की खातिर उसका काबू में आ जाना मुमकिन नहीं मालूम होता। इसके विपरीत लैला औरत थी और अपने जिद्दी माँ-बाप की ज्यादा खुल्लम-खुल्ला मुखालिफत नहीं कर सकती थी। इसलिए जब मजनूँ को मालूम हुआ कि लैला की शादी इब्ने सलाम से हो गई तो उसने एक दर्द से भरी हुई चिट्ठी लिखी थी। खुली-खुली शिकायतें की थीं। तुम वादा तोड़ने वाली हो, दगाबाज हो, फरेबी हो।
दानी ब मनत चे वादहा बूद
हरगिज ब तू ईं गुमां कुजा बूद
तू जानती है कि मुझसे तूने क्या वादा किये थे, मुझे तुझसे यह उम्मीद कहाँ थी।
ऐ गंजे सुखन दरोग वादा
वै दिलबरे बे फरोग वादा
ऐ बातों के खजाने, ऐ वादा न पूरा करने वाले, ऐ माशूक, ऐ वादा भूल जाने वाले।
गाहम ब सुख़न फरेब दादी
बा वादा गहे शके ब दादी
कभी तूने मुझे अपने वादों से तसल्ली दी और कभी अपनी बातों से धोखा दिया।
लैला ने इसका बड़ी गंभीरता से जवाब दिया और मजनूँ की तसल्ली की। आजकल के उर्दू शायरी वाले माशूकों की तरह खंजर हाथ में न लिये रहती थी, वफा की शर्त और कायदे को जानती थी।
अफसानये कस न कर्दा अम गोश
पस खुर्द ये कस न कर्दा अम नोश
मैंने किसी की बातों पर यकीन नहीं किया और न किसी का जूठा खाया है।
दानी कि मरा ब तू वयारे
दर बस तने अक्द इख्तियारे
तू जानता है कि मेरी तुझसे दोस्ती है। अपनी शादी करने के लिए तुझे अख्तियार है।
चीजे कि बर इख्तियारे मन बूद
जां मुद्दहयत न गश्ता खुशनूद
जो चीज कि मेरे बस में थी उससे तेरा दुश्मन खुश न हुआ।
कम कुन जे शर्मसारम
मन खुद जे तू इन्फे आल दारम
ज्यादा गुस्सा न हो, मैं शर्मिंदा हूँ। मुझे खुद तुझसे संकोच होता है। इश्क की बीमारी बढ़ती गई। पहले तो कैस ही मजनूँ थे अब लैला भी मजनूँ (पागल ) बनी। शर्म और हया की रोक-थाम कम हुई। उसने एक दिन सपना देखा कि मजनूँ आया है और बहुत दर्दभरे, दिल के टुकड़े कर देने बाले अंदाज में अपनी गम की दास्तान सुना रहा है। रोता है और उसके तलुओं से आँखें मलता है। यह सपना देखते ही बेचैनी के मारे लैला की आँख खुल गई। उसने दिल को फूंक देने वाली एक आह भरी और सुबह होते ही शर्म हया पर लात मारकर अपने ऊँट पर सवार होकर नज्द का रास्ता लिया और पागलों की तरह मजनूँ को ढूँढ़ने लगी। आह, इस आग ने मजनूँ को बिल्कुल घुला डाला। ऐसा कमजोर हो गया था कि लैला उसे पहचान न सकी। घुटनों पर सर झुकाए, एक चट्टान का तकिया बनाए, खुले मैदान में, जहाँ न कोई पेड़ न छाया, वह बैठा हुआ था। उसकी मुहब्बत का ही असर था कि जंगल के खूनी जानवर हिरनों के साथ उसके आस-पास बैठे थे। ऊँट इन जानवरों को देखते ही भागा मगर लैला फुर्ती से कूद पड़ी और जानवरों के बीच में से निर्भय निकलकर मजनूँ के पास खड़ी हो गई और उसकी सेवा-शुश्रूषा करने लगी।
आं सर के बखाके रह फितादश
बर जानुए खेश्तन निहादश
वह सर जो रास्ते की खाक पर पड़ा था उसे अपनी जांघ पर रक्खा।
अश्क अज़ रुखे गरीब गमनाक
मी कर्द ब आस्तीने खुद पाक
अपनी आस्तीन से उस गरीब गम के मारे के चेहरे से आँसू पोंछे। मजनूँ को दोस्त की निकटता ने अधीर कर दिया। लैला उसकी अधीरता से प्रभावित होकर बोली –
ऐ आशिके जार गमगुसारम
मकसूदे तू चीस्त ता बरारम
ऐ मेरा गम खाने वाले आशिक, बता तू क्या चाहता है। तेरी कोई ख्वाहिश ऐसी नहीं जिसे मैं पूरा न कर सकूँ ।
आं बेह के दिहेम दस्त बाहम
वां गह ब निहेम सर ब आलम
यह अच्छा होगा कि हम-तुम (हमेशा के लिए) एक दूसरे का हाथ थाम लें और फिर दुनिया में रहें।
यह लहज़ा जुदा न बाशेम
ब हेचकस आशना न बाशेम
पल भर को भी जुदा न हों और दूसरे किसी से कोई मतलब न रक्खें। मगर मजनूँ को इश्क और रोने-धोने से काम था। शायद लैला से मिलने और उसकी सूरतें निकालने की तरफ उसका खयाल ही नहीं गया था। तड़पना और जलना उसकी तबियत बन गई थी। इस मौके पर शायरों में कुछ मतभेद हो गया है। हजरत खुसरो कहते हैं –
आसूद दो मुर्ग पर दूर यके दाम
वामीख्त दो बादा दूर यके जाम
दो बुलबुलें एक जाल में ऐसी खुशी से मिल गईं कि जैसे एक प्याले में दो शराबें मिला दी हों।
दर सुब्ह बहम दमीदा अज दूर
दो शोलारा यके शुदा नूर
दर से सुबह की रोशनी चमकी और दो शोलों से एक नूर पैदा हो गया। ू मगर हजरत निज़ामी और हातिफी ने मजनूँ की इश्क की इज्जत बहुत ऊँची कर दी है। चुनांचे इस मौके पर हातिफी ने मजनूँ के पाक दामन पर धब्बा नहीं लगाया। खयाली इश्क को अमली मैदान में कदम नहीं रखने दिया। मजनूँ को उस वक्त लैला की बदनामी का खयाल आया। सारी जिंदगी उसे बदनाम करने में खर्च की, खुद भी दुनिया के ताने सहे और उस पर उंगलियां उठवाईं मगर उस वक्त विरोधियों का डर आड़े आ गया, बोले –
आं बे कि निहाँ जे ईनो आनत
नज़दीके पिदर बरम रवानत
यह अच्छा है कि मैं तुझे बहुत परदेदारी के साथ तेरे बाप के पास ले चलूँ।
दस्तम न दिहद अगर विसालत
काने शवम अज़ तू बा ख़यालत
अगर वे तुझे मेरे साथ रखने पर खुश न हों तो न सही। मैं तेरे खयाल ही से खुश रहूँगा।
जी पस मनम ओ ख़याले तू ऐ दोस्त
ता दस्त दिहद विसालत ऐ दोस्त
और इसके बाद फिर जब तक ऐ दोस्त, तू मुझसे न मिले मैं हूँ और तेरा खयाल।
लैला अपने घर लौट आई। आशिक की इससे ज्यादा और क्या खातिर की जा सकती थी। कुछ दिनों तक वे दोनों इसी गम में घुलते रहे। मजनूँ अब आशिकाना शेर कहकर अपने दिल की आग बुझाने लगा और उन शेरों में दर्द और दिल की तड़प का ऐसा असर होता था कि सुनने वालों के कलेजे मुँह को आ जाते थे। इश्क अपनी आखिरी हद तक पहुँच चुका था, वह इश्क जो आप अपनी मंजिल हो, वह इश्क जो दोस्त की मुलाकात की हदों का पाबन्द न हो, उसका अंजाम और क्या हो सकता था। हातिफी कहता है, लैला ने सपना देखा कि मजनूँ मर गया और उसी दिन उसे मारें गम और बेचैनी के बुखार आ गया। इस बुखार की आग ने दिल की जलन के साथ मिलकर उसका काम तमाम कर दिया। उसके मुकाबले में खुसरो की यह रवायत ज्यादा सही मालूम होती है कि एक दिन लैला बेचैन होकर अपनी कुछ सहेलियों के साथ एक बाग की तरफ निकल गई। घर पर किसी तरह चैन ही न आता था। बाग में वह जमीन पर बैठी हुई अपने दर्द व गम की दास्तान सुना रहीं थी कि इसी अर्से में मजनूँ के एक हमदर्द और दोस्त उधर आ निकले। जवान लड़कियों का यह जमघट देखा तो लैला को पहचान गए। इस खयाल से कि देखें मजनूँ के पागलपन ने लैला के दिल पर भी कुछ असर किया है या नहीं, आपने मजनूँ को एक दर्द भरी गजल गानी शुरू की। लैला ने सुनी तो जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो गए। दीवानों की तरह उठी और उस गजल गाने वाले के पाँव पर अपने गाल रख दिए और मजनूँ की खूबर पूछी।
जा गमज़दा कीं तराना रानी
मारा खूबरें देह अतंवानी
जिस गम के मारे हुए का यह गीत है, अगर हो सके तो, उसका हाल भी बयान कर।
वह हज़रत इश्क और आशिक्री के भेदों के वाकिफ न थे, अपनी उसी इम्तहान लेने की धुन में बोले – मजनूँ तो चल बसे।
दिल रा ब तू दादा बूद आजाद
जां नीज़ बबेदिली ब तू, दाद
उसने दिल तो तुझे आजादी से दे ही दिया था, आखिरकार जान भी तुझे ही दे दी।
ताजीम्त नजर बसूए तू दाश्त
चू मरहमे आर्जुए तू दाहत
उसने मरते दम तक तेरा रास्ता देखा क्योंकि तू उसकी उम्मीदों का मरहम रखती थी।
लैला यह दिल छेद देने वाली खूबर सुनते ही पछाड़ खाकर गिरी और घायल परिंदे की तरह तड़पने लगी। मियां गजल गाने बाले बहुत शर्मिंदा हुए और चाहा कि इस घाव को खुशी को खूबरों से भर दें – मजनूँ अभी जिंदा हूँ, नज्द में उसकी दर्दभरी आवाज अब भी सुनाई दे रही है, मैंने तो परखने के लिए झूठ मूठ कह दिया था। मगर इन बातों का लैला के दिल पर कुछ असर न हुआ, रूह को ऐसा सदमा पहुँचा कि सँभल न सकी। घर पहुँचते पहुँचते बुखार आया और हालत बिगड़ गई और मौत के लक्षण दिखाई पड़ने लगे। मरते वक्त उसने अपनी माँ को बुलाया और उससे बेअदबी और अपनी शरारतों की माफी माँगने के बाद यह आखरी गुजारिश –
चू अज़ पये मरकदे निहानी
पोशी ब लिबासे आ जहानी
जब तू मुझे कब्र में रखने के लिए उस दुनिया का लिबास पहनाए।
अज़ दामने चाक यारे दिल सोज
यक पारा बियार ओ दूर कफन दोज
तो मेरे दिल जले दोस्त के दामन का एक टुकड़ा भी कफन में सी देना।
ता बाखुद अजां मुसा हिबते पाक
पैवन्दे वफा बरम तहे खाक ( खुसरो )
ताकि मैं उस पाक दोस्त के साथ वफादार रहने का रिरता खाक में भी ले जाऊँ ।
रोजे कि बकस्रे जाविदानी
रू आरम अजीं सराये फानी
जिस दिन कि अपने उस हमेशा कायम रहने वाले महल यानी कब्र में इस सराये फानी दुनिया से जाऊँ ।
आवाज देह आं असीरे मारा
वां कुश्तये जख्मे तीर मारा
तू मेरे उस कैदी, मेरे तीर के जख्मी को आवाज देना।
अहवाल मेरा चुनां के दानी
गोई बतरीके तर्जुमानी
और जैसा कि तू मेरी हालत को जानती है ज्यों ही त्यों उससे कह देना।
बरगोई कि शमअए जां गुदाजां
वै चश्मो चिरागे इश्कबाजां
और कहना कि ऐ जान पिघलाने वालों के चिराग, ऐ इश्क वालों की आँख के नूर –
लैला जे गमे तू रफ्त दूर खाक
पाक आमद ओ रफ्त हम चुनां पाक
लैला तेरे गम में खाक में चली गई। वह जैसी पाक आई थी वैसी ही पाक चली गई।
संगेश कि बरसरे मजारस्त
अज़ कोहे गमे तू यादगारस्त
वह पत्थर जो उसकी कब्र पर है वह तेरे गम के पहाड़ की यादगार का एक टुकड़ा है।
मजनूँ ने जब यह जान-लेवा खूबर सुनी तो सर के बाल नोचता, रोता- पीटता लैला के मकान की तरफ दौड़ा। उस वक्त लैला का जनाजा जा रहा था। अपने-पराए जनाजे के पीछे थे। मजनूँ जनाजे के आगे-आगे हो लिया और हँसता, गजलें गाता चला। मौत की खुशी इसी को कहते हैं।
आशिक कि नज्जारए चुनां दीद
बरदाश्त कदम कि हम इनां दीद
आशिक ने यह सीन देखा, कदम उठाए कि अपने दोस्त को साथ देखा।
दर पेश जनाजा़ रफ्त खन्दां
नै दर्द नै दागे दर्दमन्दां
जनाजे के आगे-आगे हँसता हुआ चला, न अपना गम और न गम खाने वालों का खयाल।
नज्म अज सरे वज्द हाल मी खांद
खुश खुश गजलें विसाल भी खांद
जोश के साथ शेर पढ़ता और बहुत खुश होकर पिया मिलन की गजल गाता था।
इस ढंग से वह कब्र तक गया। जब रिश्तेदारों ने लैला की लाश कब्र में रक्खी तो मजनूँ कूदकर अंदर बैठ गया। लोग उसकी इस तहजीब के खिलाफ हरकत पर आग हो गए। तलवारों के वार किए कि छोड़कर भाग जाए मगर वहाँ मजनूँ कहाँ था, सिर्फ उसकी खाक थी। आखिर एक दुनिया छाने हुए बुज़ुर्ग ने उन बेअक़्लों को समझाया।
कीं कार न शहवतो हवाईस्त
सिर्रे जे खूजीनये ख्युदाईस्त
यह काम झूठे इश्क और दिखावे की चाह का नहीं है, यह तो एक भेद है खुदा के खजाने का।
वर्ना बहवस कसे न जूयद
कज़ जाने अज़ीज़ दस्त शूयद
वर्ना झूठे इश्क में कोई अपनी प्यारी जान से हाथ नहीं धोता।
खुशवक्त कसे के अज़ दिले पाक
दर राहे वफा चुनी शवद खाक
भाग्यवान है वह आदमी जो पाक दिल के साथ वफा की राह में इस तरह खाक हो जाए।
गर आशिक्री ई मुकाम दारद
तकवा ब जहाँ चे नाम दारद
अगर इश्क यह मुकाम रखता है तो दुनिया में तकवा यानी पाक जिंदगी गुजारना और किस चीज का नाम है।
ता हर दो न दूर मुगाक बूदन्द
जे आलाइशे नफ्स पाक बूदन्द
यहाँ तक कि दोनों खाक का ढेर ही नहीं हुए बल्कि दिल की सारी गंदगियों से पाक हो गए।
दाहम मी कुनद हाले जेशां
दर गर्दने मा बबाल एशां
उनसे हमारा हाल परीशान और गर्दन भारी है।
इस तरह इश्क की यह अमर कहानी खत्म होती है। इसमें कथा की न मौलिकता है न खयालों की बुलन्दी। मगर मजनूँ का कै रेक्टर जैसा कि शायरों ने खींचा है खयाली होने पर भी दिलचस्प है। निजामी ने तो इन दोनों प्रेमियों को खुदा के गहरे दोस्तों की महफिल में बिठाया है और उनका जिक्र बड़े अदब और इज्जत से करते हैं। उनका मजनूँ बहुत पाक और ऊँचे कै रेक्टर का आदमी है जिसका इश्क बेखोट और दिल की बुराइयों से साफ-सुथरा है। पागल और मस्त था मगर उसने इंसानियत की हद से बाहर कदम न रक्खा। जब कभी आशिक और माशूक मिले हैं उन्होंने इज्जत-आबरू की शर्तों की बड़ी सख्ती से पाबंदी की है। अलबत्ता खुसरो ने इस कैरेक्टर को इंसानी कसौटी की तरफ खींचा है। इसमें जरा भी शक की गुंजाइश नहीं कि मजनूँ शारीरिक प्रेम की मंजिलें तय करके आध्यात्मिक प्रेम तक पहुँच गया था जहाँ ‘मैं’ और ‘तू’ का भेद नहीं रहा।
आं सालिके इश्क कामिले बूद
दीवाना न बूद आकिले बूद
वह इश्क की राह का पहुँचा हुआ मुसाफिर था। पागल न था, अक़्लवाला था।
दाग़श न जे आतशे फतीला
दर्दश न जे गुलरुखे कबीला
उसका दाग आग न था और उसका दर्द यानी इश्क फूल जैसी सूरत वालों से न था।
सरमस्त न अज़ शराबे अंगूर
दर रक्स न अज़ सदाये तंबूर
वह अंगूर की शराब से मस्त न था और सितार की आवाज पर नहीं झूमता था।
बेहोश जे बादये दिगर बूद
अज़ जामे मुराद बेखूबर बूद
वह किसी और ही शराब से बेहोश था और अपनी मुराद की शराब के प्याले से चूर था।
आं रफअते शां कि दाश्त मजनूँ
बूद अज़ दर्जाते अक़्ल बेरूं
मजनूँ जो ऊँची शान रखता था वह अक़्ल की पहुँच से बाहर है। प्रेम एक बड़ा कोमल भाव है जो इंसान को नर्मदिल बना देता है। जिस वक्त नूफल लैला के कबीले से लौट रहा था और मजनूँ ने मार-काट का बाजार गर्म देखा तो उसका दिल पसीज गया। उसने फौरन लड़ाई बन्द करवा दी। एक बार उसने माली को सरों का पेड़ काटते देखा और उसे अपनी कीमती अंगूठी देकर पेड़ को आरे की तकलीफ से बचाया। इसी तरह बहेलिए को कई हिरन जाल में फँसाए लाते देखा और उसे अपना घोड़ा देकर उन बेजबानों को जान बचाई।
गर्दन मजनश कि बेवफा नीस्त
दर गर्दने ऊ रसन रवा नोस्त
उनकी गर्दन न मार क्योंकि वह बेवफा नहीं हैं और उनकी गर्दन में रस्सी डालना मुनासिब नहीं है।
जब लैला की इब्ने सलाम से शादी हो चुकी थी तो एक दिन मजनूँ उसे देखने के शौक से बेताब होकर लैला के घर चला आया। लैला ने झरोखे से उसे देखा तो बोली, “तुम इस तरह अपनी जान खतरे में क्यों डालते हो?” मजनूँ अपना दुखड़ा रोने लगा कि इतने में इब्ने सलाम को ख़़बर हो गई। भरा बैठा ही था। तलवार लिए गरजता हुआ आ पहुँचा और चाहा कि एक ही बार में पागलपन के साथ सर भी खत्म कर दे। मगर उसका हाथ ऊपर का ऊपर उठा रह गया। दूसरे हाथ में तलवार ली। उसकी भी वही गति हुई। शर्मिंदा होकर मजनूँ के पैरों पर गिर पड़ा और माफी चाही कि मदद कीजिए, मैं तो किसी काम का न रहा। मजनूँ ने जवाब दिया –
आजार कसां मसाज पेशा
काजुर्दगीयत रसद हमेशा
लोगों को तकलीफ न पहुँचा क्योंकि इससे तुझे हमेशा तकलीफ पहुँचती रहेगी।
और वहाँ से चला आया। बंदिश के लिहाज से यह दास्तान ज़ुलेखा की दास्तान से ज्यादा कद्र के काबिल नहीं मगर इसके प्रेम का स्थान बहुत ऊँचा है। प्रेम की असफलता फारसी शायरों का तरीका है और मजनूँ से ज्यादा अच्छी इसकी कोई मिसाल नहीं।
[‘कैस’ शीर्षक में उर्दू मासिक पत्रिका ‘जमाना’, जनवरी 1913]