मजदूर का जीवन : बांग्ला/बंगाली लोक-कथा
Majdoor Ka Jiwan : Lok-Katha (Bangla/Bengal)
एक गाँव में मजदूर पेरू रहता था । वह पत्थरों को तोड़- तोड़कर उनके छोटे-छोटे टुकड़े किया करता था। पेरू को अब इतना अनुभव हो गया था कि वह कठोर से कठोर पर्वत को भी अपने औजारों की सहायता से काट देता था । वह बहुत ईमानदार था और कम रुपयों में ही अपना जीवनयापन खुशी से करता था। वह दो वक्त की रोटी जुटाता और जो समय बचता, उसमें माँ काली की पूजा करता था। पेरू को माँ काली पर बहुत आस्था थी । वह हमेशा लोगों की मदद करता था और उनके साथ मिलकर उनकी समस्याएँ हल करवाता था।
एक दिन कुछ मजदूर आपस में बोले, "पेरू, तू तो माँ काली का भक्त है। माँ काली से वरदान माँगकर इस जीवन से छुटकारा क्यों नहीं पा लेता।" दूसरा मजदूर बोला, "पेरू, मुझे तो लगता है कि यदि तू माँ काली की आराधना कर उससे कोई भी वर माँगेगा तो वह तेरी इच्छा जरूर पूरी करेगी।" सभी मजदूरों ने उसे ऐसा कहा। उनकी बातें सुनकर पेरू बोला, "अरे, तुम लोगों को क्या लगता है कि मेरा जीवन अब सुखी नहीं है। मैं तो अपने जीवन से बहुत खुश हूँ और मुझे तो अपने काम से प्यार है। तुम बताओ, जिस तरह हम तुम चुटकी बजाते ही हर पत्थर और पहाड़ को काटकर रास्ते की बाधा दूर कर देते हैं, क्या वह सब लोग कर सकते हैं।"
उसकी बात सुनकर मजदूर बोले, "तेरा कहना ठीक है, पर दूसरों के घर बनाते-बनाते हम अपने लिए घर कहाँ बना पाते हैं? हम शक्तिशाली लोगों में से नहीं हैं। एक बार तू शक्तिशाली बनकर तो देख ।" इसी प्रकार चर्चा करते-करते रात हो गई।
खाना खाने के बाद वह सोने जा ही रहा था कि क्या देखता है कि उसकी झोंपड़ी में चारों ओर उजाला फैल गया है और माँ काली उसके सामने साक्षात् खड़ी उसे बोल रही हैं, “पेरू, मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूँ। बोल, तेरी क्या इच्छा है?" अचानक कुछ देर पहले हुई बात इस तरह सच हो जाएगी, यह यकीन तो पेरू को भी न था ।
उसने माँ को दंडवत् प्रणाम किया और फिर कुछ सोचते हुए बोला, "हे माँ, आप तो मुझे फल-फूलों से लदा एक छायादार वृक्ष बना दीजिए। मुझे लगता है कि छायादार वृक्ष सबसे शक्तिशाली होता है।" माँ काली ने उसकी बात पूरी कर दी। कुछ ही देर में पेरू एक छायादार वृक्ष बन गया। लेकिन थोड़ी देर में ही उसे महसूस हुआ कि सूरज की गरमी से उसके पत्ते सूखकर झड़ गए हैं। यह देखकर उसने सूरज की ओर देखा तो पाया कि वही सबसे शक्तिशाली है। अब उसने फिर से माँ काली की आराधना की। माँ काली बोली, "कहो बेटा, क्या हुआ ?" पेरू बोला, “माँ, वृक्ष सबसे शक्तिशाली नहीं है। मुझे तो सबसे शक्तिशाली सूरज लगता है, जिसकी गरमी से दुनिया दहल जाती है। सूरज न हो तो जीवन बेकार है। मुझे तो आप सूरज बना दीजिए।" उसकी इस बात पर माँ काली मुसकराई और बोली, "तथास्तु" कुछ ही देर में पेरू सूरज बनकर आसमान में चमकने लगा।
अब पेरू को लगा कि सचमुच सूरज शक्तिशाली है। तभी कुछ ही देर में बादलों के टुकड़े आए और उन्होंने सूरज को ढक दिया। अब चारों ओर छाया हो गई। ठंडक से लोगों को राहत मिली और लोग बादलों का गुणगान करने लगे। यह देखकर पेरू को लगा कि बादल तो सूरज से भी अधिक ताकतवर हैं। बस फिर क्या था, उसने एक बार फिर माँ काली की आराधना की। माँ काली उसके सामने प्रकट हुई तो वह बोला, "माँ, मुझे तो बादल का जीवन चाहिए। आप मुझे बादल का टुकड़ा बना दीजिए। मुझे लगता है कि उसका जीवन सबसे अधिक अच्छा है।" माँ काली मुसकराई और बोली, "बादल बनकर भी देख लो।"
कुछ ही देर में पेरू बादल बनकर आसमान में घूमने लगा। लेकिन तभी तेज वायु का एक झोंका आया और बादल गेंद की तरह इधर-उधर लुढ़कने लगा। अब तो वह बहुत परेशान हो गया ।
उसने फिर माँ को आवाज दी। माँ इस बार उसके बोलने से पहले ही समझ गई और उसे वायु बना दिया। पेरू वायु बनकर इधर-उधर घूमने लगा। तभी उसने देखा कि एक विशालकाय पर्वत ने उसका मार्ग रोक लिया है। यह देखकर पेरू को लगा कि सचमुच पर्वत से शक्तिशाली कोई नहीं है। पर्वत तो सबको रोक सकता है।
इस बार उसने फिर माँ को बुलाया। माँ ने इस बार उसे पर्वत बना दिया। अब पेरू पर्वत बनकर खड़ा रहा। लेकिन एक दिन उसने देखा कि कोई उसके नीचे प्रहार कर रहा है और उस प्रहार से वह हिलने लगा है। पर्वत ने नजरें नीची करके देखा तो दंग रह गया। उसने पाया कि हूबहू एक पेरू जैसा दिखनेवाला व्यक्ति अपने औजारों से उसे काट रहा था। यह देखकर पर्वत बोला, ओह "मैं बेकार ही सबको शक्तिशाली समझकर उनके जैसा बनने का प्रयास करता रहा। आज मुझे पता चला कि मैं जैसा भी था, बहुत अच्छा था। मेरा जीवन और काम दोनों ही बहुत अच्छे थे। मुझे अपने काम और व्यक्तित्व से संतुष्ट रहकर आगे बढ़ते रहना चाहिए था।' इस बार उसने दुःखी मन से माँ काली को बुलाया और बोला, "माँ, मुझे समझ आ गया है कि मैं जैसा भी था, बहुत अच्छा था। मेरा जीवन और काम दोनों बहुत अच्छे से चल रहे थे। आप तो बस मुझे एक बार फिर से पेरू बना दीजिए। अब मैं आपसे कोई शिकायत नहीं करूँगा ।"
यह सुनकर माँ काली बोली, "बेटा, इस दुनिया में अकसर कई लोग तुम्हारी जैसी गलती करते हैं। दूर से दूसरों को देखकर उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनके जीवन में सब अच्छा-अच्छा है। लेकिन ऐसा नहीं होता। संघर्ष और मेहनत हर किसी के जीवन का पहला पाठ है। जो अपने इस पाठ में पास हो जाता है, वह दुनिया की हर कठिन से कठिन वस्तु को प्राप्त कर लेता है और चैन से जीवन जीता है। "
इसके बाद माँ काली ने पेरू को फिर से पेरू में बदल दिया। तभी पेरू की आँख खुल गई। आँख खुलते ही उसने खुद को दर्पण में देखा तो पाया कि वह जैसा था वैसा ही है। वह यह सोचकर मुसकरा दिया कि एक सपने ने उसके जीवन में बहुत बड़ी सीख दे दी है।
(साभार : रेनू सैनी)