माईया डुकू : आदिवासी लोक-कथा

Maiya Duku : Adivasi Lok-Katha

पुलुगा देवता से बड़ा कोई देवता नहीं होता है। पुलुगा ने ही जल, थल और आकाश बनाया। उसी ने हवा बनाई और दिशाएँ बनाईं। देवता पुलुगा ने अंडमान में माईया डुकू को पैदा किया। माईया डुकू अंडमान का आरंभिक पुरुष था।

माईया डुकू ने जन्म तो ले लिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि जीवन कैसे व्यतीत किया जाए। तब देवता पुलुगा ने माईया डुकू को स्वप्न में दर्शन दिया और उसे जीवन जीने की पद्धति सिखाई। देवता पुलुगा ने माईया डुकू को शिकार करने का ढंग सिखाया। फिर ‘चमेरे-बेर’ और ‘ता-चोई’ नामक लकड़ियों को परस्पर रगड़कर आग जलाना सिखाया। देवता पुलुगा ने माईया डुकू को कंद-मूल-फल की भी पहचान बताई। जिससे माईया डुकू अपना पेट भर सके और अपना जीवनयापन कर सके।

देवता पुलुगा की शिक्षाओं से माईया डुकू का जीवन सुगम हो गया। अब उसे पता था कि कैसे शिकार करना है, कैसे कंद-मूल-फल ढूँढ़ना है और कैसे आग जलानी है। माईया डुकू इन शिक्षाओं को पाकर देवता पुलुगा के प्रति कृतज्ञता का अनुभव करता। उसे लगता कि जब देवता पुलुगा ने उसे इतनी अच्छी शिक्षाएँ दी हैं तो उसे भी देवता पुलुगा के लिए कुछ करना चाहिए। उसे समझ में नहीं आता था कि वह ऐसा क्या करे जिससे देवता पुलुगा के प्रति आभार व्यक्त हो सके और देवता पुलुगा जान सकें कि माईया डुकू उनके प्रति कितना कृतज्ञ है।

एक दिन माईया डुकू अपना धनुष बाण लेकर समुद्र में मछली मारने गया। उन दिनों धनुष-बाण से मछली मारी जाती थी। स्वच्छ पारदर्शी जल में मछलियों को देखकर बाण चलाया जाता। बाण मछली को बींधता और इस तरह मत्स्याखेट होता।

माईया डुकू ने समुद्र के जल में मछलियों को ध्यानपूर्वक देखा और बाण चला दिया। संयोगवश बाण मछली को नहीं लगा और कच्चे लोहे के टुकड़े में जा धँसा। उस समय तक लोहे के बारे में किसी को ज्ञान नहीं था। बाण की नोंक पर भी लोहा नहीं लगाया जाता था। माईया डुकू ने लोहे के टुकड़े को पानी से बाहर निकाला और ध्यानपूर्वक जाँचा-परखा। उसे वह टुकड़ा विचित्र वस्तु प्रतीत हुआ।

माईया डुकू लोहे के उस टुकड़े को अपनी झोपड़ी में ले आया। वह विचार करने लगा कि इस टुकड़े को किस उपयोग में लाया जाए? उसने लोहे के टुकड़े को धारदार पत्थर से काटना चाहा किंतु वह नहीं कटा। तब माईया डुकू ने उस टुकड़े को घिसना प्रारंभ किया। टुकड़ा धीरे-धीरे घिसने लगा। कई दिन के अथक परिश्रम के बाद लोहे का वह टुकड़ा इतना नुकीला हो गया कि उसे माईया डुकू अपने बाण के सिरे पर लगा सकता था। माईया डुकू ने जब लोहे के टुकड़े को अपने बाण के सिरे पर लगाया और उससे शिकार किया तो उसे लगा कि वह इस प्रकार बड़े से बड़े पशु का भी शिकार सुगमता से कर सकता है। वह बहुत ख़ुश हुआ।

अब वह प्रतिदिन समुद्र के पानी में उतरता और लोहे के टुकड़े बटोर लाता। फिर उन टुकड़ों को घिस-घिसकर तरह-तरह के आकार देता। इस काम में उसे बहुत आनंद आता। यह उसके लिए एक नया अनुभव था।

एक दिन माईया डुकू दिन भर की मेहनत के बाद सो रहा था कि उसे स्वप्न में देवता पुलुगा दिखाई पड़े।

‘माईया डुकू, मैं तुम्हारी इस लगन और परिश्रम से बहुत प्रसन्न हूँ। किंतु मैं देखता हूँ कि तुम लोहे को घिसकर आकार देने का जो प्रयास करते हो उसमें बहुत समय लगता है।’ देवता पुलुगा ने माईया डुकू से कहा।

‘आप सच कहते हैं प्रभु! लेकिन मुझे और कोई उपाय सूझता ही नहीं है जिससे कि मैं इन टुकड़ों को मनचाहा आकार दे सकूँ।’

‘चिंता मत करो, इन टुकड़ों को मनचाहा आकार देने की मैं तुम्हें एक सरल पद्धति बताता हूँ। तुम लोहे के टुकड़ों को पहले तेज़ आग में गर्म करना और जब लोहा गर्म हो जाएगा तो वह इतना नर्म हो जाएगा कि तुम उसे मनचाहे आकार में ढाल कर अस्त्र-शस्त्र बना सकोगे।’ यह शिक्षा देकर देवता पुलुग्म अदृश्य हो गए।

माईया डुकू की नींद खुल गई। उसने हड़बड़ा कर इधर-उधर देखा लेकिन देवता पुलुगा वहाँ नहीं थे। माईया डुकू का मन देवता पुलुगा के प्रति श्रद्धा से भर उठा। उसे लगा कि देवता पुलुगा उसका कितना ध्यान रखते हैं, उसकी सदैव सहायता करते रहते हैं। उसी क्षण माईया डुकू को यह भी लगा कि एक वह है कि देवता पुलुगा के लिए ऐसा कुछ नहीं कर पाता है जिससे कि देवता पुलुगा को उनके प्रति माईया डुकू की श्रद्धा और समर्पण का पता चल सके। उसने उसी पल निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए किंतु वह किसी न किसी तरह देवता पुलुगा के प्रति अपनी कृतज्ञता अवश्य प्रकट करेगा।

उस दिन माईया डुकू ने लकड़ियाँ जलाकर आग सुलगाई और तेज़ आग में लोहे के टुकड़ों को गर्म करने लगा। लोहे के टुकड़े गर्म होने पर उन्हें लकड़ी और पत्तों की सहायता से सीप की खोलों में भरकर तथा पत्थर से पीट-पीटकर विभिन्न आकार में ढाल दिया। पिघले हुए लोहे की जो बूँदें पत्थर पर टपककर फैल गई थीं उन्हें देखकर माईया डुकू को लोहे के पत्तर बनाने का विचार आया। इस प्रकार माईया डुकू ने देवता पुलुगा की कृपा और अपनी बुद्धि के प्रयोग द्वारा लौह धातु को काम में लाने लायक ढालना सीख लिया। उसने भाले की नोंक बनाई, बाण की नोंक बनाई, लोहे की पत्तरें बनाईं और नाना प्रकार की आकृतिएँ बना डालीं।

एक रात माईया डुकू को फिर एक विचित्र स्वप्न दिखाई पड़ा। सपने में उसे एक आदमी मिला जो और कोई नहीं, वह स्वयं था।

‘माईया डुकू! तुम्हारे लिए देवता पुलुगा ने इतना कुछ किया और तुमने अभी तक उनके लिए कुछ भी नहीं किया। यह तो उचित नहीं है।’ स्वप्न वाले माईया डुकू ने असली माईया डुकू से कहा।

‘मैं भी देवता पुलुगा के लिए कुछ करना चाहता हूँ लेकिन मुझे समझ में नहीं आता है कि मैं क्या करूँ?’ असली माईया डुकू ने स्वप्न वाले माईया डुकू से कहा।

‘यह तो तुम्हें ही तय करना होगा कि तुम देवता पुलुगा को क्या दोगे। तनिक सोचो कि तुम्हारे पास क्या है जो तुम उन्हें अर्पित कर सकते हो।’ स्वप्न वाले माईया डुकू ने कहा।

‘मैं अपने प्राण दे सकता हूँ।’ असली माईया डुकू ने उत्साहित स्वर में कहा।

‘यदि तुम देवता पुलुगा को अपने प्राण दे दोगे तो फिर तुम उन कामों को कैसे करोगे जो वे तुमसे कराना चाहते हैं?’ स्वप्न वाले माईया डुकू ने असली माईया डुकू से पूछा।

‘तुम सच कहते हो। अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूँ!’ असली माईया डुकू ने चिंतित होते हुए पूछा।

‘तुम सुबह उठकर अपने आस-पास ध्यानपूर्वक देखना फिर तुम्हारे मन में जो पहला विचार आए उसी पर अमल करना।’ यह कहते हुए स्वप्न वाला माईया हुकू अदृश्य हो गया।

उसने अपने आस-पास ध्यानपूर्वक देखा। उसे लगा कि चाहे सूरज हो या हवा हो सब सुबह उठकर माईया डुकू जब शिकार के लिए अपनी झोपड़ी से निकला तो के सब नि:स्वार्थ भाव से कुछ न कुछ देते रहते हैं। सूरज गर्मी और प्रकाश देता है।

हवा साँस देती है। इसी प्रकार देवता पुलुगा ने भी उसे नि:स्वार्थ भाव से पहले जीवन दिया फिर जीवन को जीने की पद्धति सिखाई और अब जीवन जीने की पद्धति को और भी आसान बना दिया। जबकि माईया डुकू अभी तक देवता पुलुगा को कुछ भी अर्पित नहीं कर सका है।

सोच-विचार में डूबा माईया डुकू समुद्र के किनारे रेत पर जा पहुँचा। उसने भूमि पर बिछी हुई रेत की परत को हवा में उड़ते देखा तो उसके मन में विचार कौंधा कि क्यों न वह अपने शरीर की त्वचा देवता पुलुगा को अर्पित कर दे। यह विचार आते ही माईया डुकू प्रसन्न हो गया। उसने सूर्य की ओर देखा जिससे उसके मन में और अधिक उत्साह का संचार होने लगा। फिर उसने लोहे के टुकड़े से बनाए धारदार पत्तर से अपने शरीर की त्वचा को खुरचना शुरू कर दिया। उसके शरीर से लहू बहने लगा। उसने बहते हुए लहू की परवाह किए बिना अपने शरीर से पूरी त्वचा उतार डाली और देवता पुलुगा को अर्पित कर दी।

अपना निश्चय पूरा होने की प्रसन्नता में वह झूम-झूम कर गाने लगा—

तोन माँ लिर पिरेन
तोन विटिकेन
तोन माँ लिर पिरेन
तोन विटिकेन...

(अर्थात् इसमें मेरा क्या है, जो मैंने अर्पित किया वह तो उसी का था।)

देवता पुलुगा माईया डुकू के इस अनोखे अर्पण से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने माईया डुकू को नई त्वचा दे दी। इस प्रकार त्वचा के अर्पण के बाद नई त्वचा पाकर माईया डुकू प्रसन्नतापूर्वक शताधिक वर्ष जीवित रहा।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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