महापादरी का बावरची (स्पेनिश कहानी) : जुआन वलेरा

Mahapadari Ka Bawarchi (Spanish Story in Hindi) : Juan Valera

प्राचीन समय में, जब महापादरी लोग धनी एवं शक्तिशाली होते थे, टोलेडो में एक महापादरी रहता था। इतना कठोर और त्यागी था कि उसकी खाने की मेज पर बहुत कम आहार होता था - केवल मछली, सब्जियाँ और अनाज की ही रकाबियाँ होती थीं। दरअसल वह थोड़ा खाने का आदी हो गया था।

परमात्मा के इस आदरणीय शाकाहारी सेवक ने अपने लिए विशिष्ट भोजन की व्यवस्था की थी और वह भी उसके सिद्धांतों के अनुसार ही था । उसका बावरची दोपहर के भोजन में सब्जियों का अत्यंत स्वादिष्ट और पौष्टिक सूप दिया करता था, जो बावरची के कथानुसार मसूर, फलियों और मटर से तैयार किया जाता था। सूप बनाने में बावरची इतना प्रवीण था कि उसके द्वारा बनाए गए सूप की सुगंध बढ़िया से बढ़िया और बहुमूल्य पदार्थों की सुगंध जैसी होती थी।

दुर्भाग्य से बावरची में एक बड़ा भारी दोष था । वह खानसामे से सहमत नहीं था और दोनों में छोटी- छोटी बातों को लेकर बराबर झगड़ा चलता रहता था । परिणामस्वरूप बावरची को सेवा से हटा दिया गया।

महापादरी की मेज को तैयार करने के लिए एक दूसरा बावरची आया । उसको महापादरी के दोपहर के खाने के लिए अच्छा शाकाहारी सूप बनाने का निर्देश दिया गया। उसने अपना सारा जोर लगा दिया, परंतु महापादरी ने सूप को तिरस्कार योग्य पाया। उसने उस खानसामे को हटाने और किसी दूसरे बावरची को लाने के लिए कहा। एक के बाद एक करके आठ-नौ बावरची आए, परंतु स्वादिष्ट एवं सुगंधित सूप तैयार करने में कोई भी सफल नहीं हुआ । अतः उन्हें भी अपनी अयोग्यता के कारण अपमानित होकर लौटना पड़ा।

अंत में एक बावरची की नियुक्ति की गई, जिसके पास पाक - कला में प्रवीणता और अच्छे सामान्य ज्ञान के साथ-साथ तीक्ष्णता भी थी। अपने काम की जिम्मेदारी संभालने से पहले वह पुराने बावरची के पास गया और परमात्मा तथा सारे संतों के नाम पर उसने पूछा कि वह शाकाहारी सूप किस प्रकार बनाता था, जो महापादरी को बहुत ही स्वादिष्ट लगता था और पसंद था ।

पहला बावरची इतना विशाल हृदयी था कि उसने अपने नए उत्तराधिकारी को सूप बनाने का अब तक रहस्य बना वह नुस्खा ईमानदारी से बता दिया ।

नए बावरची ने उन निर्देशों का पालन ध्यानपूर्वक किया और नुस्खे के अनुसार सूप को सुगंधित किया तथा गिरजे के कठोर प्रधान के सम्मुख पेश किया।

ज्यों ही महापादरी ने उसको चखा, उसके मुँह से प्रसन्नतापूर्वक 'वाह, वाह ! ' निकला और शाकाहारी सूप की प्लेट का आनंद लेता हुआ उसे समाप्त कर गया। फिर उसने अत्यंत अनुराग से कहा, "परमात्मा को धन्यवाद है! अंत में उसने ऐसा बावरची भेज ही दिया, जो पहले बावरची जैसा या उससे भी अच्छा सूप बना सकता है। यह काफी स्वादिष्ट और भूख लगानेवाला है। बावरची को यहाँ भेजो। मैं उसे बताना चाहता हूँ कि मैं उससे कितना खुश हूँ ।"

बावरची खुशी-खुशी आ गया। महापादरी ने शानदार ढंग से उसका स्वागत किया और उसके कौशल की बहुत प्रशंसा की।

रसोई के कलाकार की बड़ाई की गई। वास्तव में ईमानदार, आज्ञाकारी और अच्छे ईसाई होने के नाते, वह अपने मालिक को न केवल अपने व्यवसाय के कौशल का सबूत देना चाहता था बल्कि अपनी उत्तम नैतिक इच्छाओं से भी परिचित करवाना चाहता था, जिनपर भौतिक कार्यों की अपेक्षा उसे अधिक गर्व था ।

अतः नए बावरची ने महापादरी से कहा, "महाराज, बावजूद इसके कि मैं आपका अत्यंत आदर करता हूँ, मैं सोचता हूँ कि यह मेरा दायित्व है कि मैं आपको अवगत करवाऊँ कि पहला बावरची आपको धोखा दे रहा था और यह उचित नहीं कि उसके बुरे उदाहरण का मैं अनुकरण करूँ। अब तक सूप केवल मटर और फलियों से ही नहीं बनाया जाता रहा था । उसको सूअर के मांस, चूजे की छाती, जिगर, छोटे पक्षियों के गुरदों और मांस के टुकड़ों से सुगंधित किया जाता था । देखा जाए कि किस प्रकार महाराज को धोखा दिया गया। "

महापादरी ने अपनी दृष्टि को बावरची पर जमाया और अपनी अंगुली को हिलाते हुए मुसकराकर तथा निराशा और मनोविनोद के मिश्रित स्वर में कहा, "उस स्थिति में, ओ दुष्ट, इस धोखे को तुम्हें अपने पास ही बनाए रखना चाहिए था ! "

(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)

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