महामल्ल : कर्नाटक की लोक-कथा

Mahamall : Lok-Katha (Karnataka)

बात पुरानी है। कर्नाटक भू-भाग के शुभवती राज्य में शंबल नाम के राजा का राज था। उसके यहां बड़े-बड़े वीर और मल्लयोद्धा, यानी पहलवान, रहते थे।

एक बार राजा शंबल के दरबार में महामल्ल नाम का एक पहलवान आया । वह कई राज्यों में कई पहलवानों को हरा कर पुरस्कार, उपाधियां प्राप्त कर चुका था।

दरबार में पहुंचते ही महामल्ल ने राजा शंबल को संबोधित करते हुए कहा, "राजन्! आपके राज्य में यदि कोई मल्ल-योद्धा है, तो उसे बुलवाइए । मैं उसे कुछ ही मिनटों में हरा दूंगा । यदि आपके यहां ऐसा कोई योद्धा नहीं है, तो फिर आप अविलंब मझे अपने यहां की उपाधि तथा प्रशंसा-पत्र प्रदान करें।"

महामल्ल के गर्व भरे दावे को सुनकर सभी दरबारी सत्न रह गये। राजा की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या उत्तर दे।

तभी एक मंत्री एकाएक उठकर यूं बोला, "दयानिधान. । हमारे यहां के चंड-प्रचंड-दोदंड गोलमल्ल के सामने कोई भी मल्लयोद्धा टिक नहीं सकता । यह बात सभी जानते हैं । वह कहीं बाहर गया हुआ है। दो-एक दिन में आयेगा।

खैर, महामल्ल के लिए पूरे सम्मान के साथ राजमहल में रहने की व्यवस्था कर दी गयी। उसके कानों में मंत्री की बात बराबर गूंजे जा रही थी। वह गोलमल्ल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त कर लेना चाहता था। इसलिए वह नौकरों से कुरेद-कुरेद कर सवाल पूछ रहा था ।

नौकरों ने उसे जो बताया, वह इस प्रकार था:"गोलमल्ल यहां के सभी मल्लयोद्धाओं के गुरु हैं । वह हमेशा योग साधना में लीन रहते हैं। वह तभी बाहर निकलते हैं जब राज्य की प्रतिष्ठा पर आंच आ रही हो। उनका शरीर वज्र के समान है।

दूसरे दिन महामल्ल के विश्रामकक्ष के बाहर एक और विश्रामकक्ष खड़ा कर दिया गया । उस विश्रामकक्ष का प्रवेश-द्वार काफी ऊंचा और चौड़ा था। उसे देखकर महामल्ल ने आश्चर्य मे भरकर नौकरों से पूछा, "यह क्या है?"

नौकरों ने कहा, "गोलमल्ल जी आने वाले हैं। वह विशाल शरीर वाले हैं। साधारण द्वार में से वह निकल नहीं पाते । इसीलिए इतना बडा द्वार बनवाया गया है।

उधर अपने मजदूरों से राज-मिस्त्री कह रहा था, "अरे, फर्श को अच्छी तरह दुरमुस से कूटो ताकि वह खूब पक्का हो जाये, वरना गोलमल्ल जी का पांव पडते ही वह धंस जायेगा और उसमें गड्ढे पड़ जायेंगे।

अब गोलमल्ल के लिए बड़े-बड़े बर्तनों में बादाम, पिस्ता, दूध, मक्खन आदि आने लगे। यह तमाम हलचल महामल्ल अपनी आंखों से देख रहा था।

उसी शाम राजधानी में घोषणा हुई कि अगले दिन नये विश्रामकक्ष में गोलमल्ल जी प्रवेश करेंगे। फिर सुबह-सुबह एक विशाल बग्धी वहां आकर रुकी। उसे आठ घोड़े खींच रहे थे। वहां उपस्थित सभी लोग ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाने लगे, - "चडं-प्रचंड-दोदड गोलमल्ल की जय!"

गोलमल्ल का स्वागत करने के लिए वहां राजा शंबल स्वयं भी उपस्थित थे ।

कुछ ही देर बाद राजा के पास एक सैनिक आया और बोला, "अन्नदाता, महामल्ल अपने विश्राम-कक्ष में नहीं है। पहरेदार कहते हैं कि वह बिना कुछ कहे ही वहां से चला गया।

राजा का मंत्री भी वहीं पास ही खड़ा था। वह धीमे से मुस्करा कर बोला, "महाराज, हमने जो सोचा था, वैसा ही हुआ । महामल्ल हमारी गतिविधि से इतना भयभीत हो गया कि वह नगर छोड़कर भाग निकला । वह अब तक हमारे राज्य की सीमा भी पारकर चुका होगा।

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