महाते की महिमा : बुंदेली लोक-कथा

Mahaate Ki Mahima : Bundeli Lok-Katha

एक गाँव में एक महाते हते।महाते कों ज पद अंगेरजी सिरकार की राज-विवस्था में मिलो हतो सो गाँव में उनको रुतवा कछू जादईं हतो। महाते एक काम ज करत हते क़ै गाँव में या आस पास मिडोपन में कहूँ काउ कें कछूँ शादी-व्याह या और कछूँ कारज होत्तो तौ वा में वे खुद नइँ जात्ते,गाँव वाले काउ आदमी के हांतन भेंट-व्यवहार और अपइं पनहैंया पहुँचाय देत्ते और कभाय देत्ते कै हमाइं पनहैंयन कों ही हमाई हाज़िरी मानी जय।

पुराने जमाने के लोग हते, महाते की इज्जित करत्ते सो कोऊ कछू नइँ कहात हतौ। अब समय बल्दौ,अँगरेजी राज चलौ गओ लेकिन तोऊ महाते मुखियन कौ रितवा कछूँ दिनन तक बैसोइ चलत रह्यो।

इतेऊ ज़मानों बल्दौ, लरिकन की नई खैल आइ गयी।उन्ने जब महाते की ज हरकत देखी तौ उन्हें भौत बुरौ लगौ।

इते संजोग ज परौ कै कछू दिनन मेंईं महाते कें बिटिया कौ बिआव आय गओ।गाँव, मुहल्ला और मिडोपन में खूब नौते बटे। मौका देख केँ गाँव और मिडोई लरकन ने एक योजना बनाई।ज योजना की भनक जब गाँव के बड़े-बूढ़िन कों लगी तौ उन्ने लरिकन कौं समझाओ कै देखौ लरिका हौ! बिटिया कौ बिआव तौ पुन्न कौ काम होत है सो जामें कौनौ गलत हरकत करबौ बिल्कुलऊँ ठीक बात नहियाँ।

सिब लोग बात मान गए सिबन्नेइं खूब शौक से बिआव में भाग लओ।

फिर अगर साल में महाते कैं लरका कौ बिआव आय गओ।अबकी बेर महाते ने नाते-रिश्तेदारी में,गाँव में खूब शौक सें कछूँ जादईं नौते बंटवाए। बिआव कौ दिन जब ढिंगनइँ आय गओ तब गाँव और मिडोई के लरकन नें अपयें पुरखन सें कही, देखौ दद्दा, हम पेहलें तौ तिहाई बात मान गए ते, अकेले अबकी बेर हमें अपयें मन की कल्लेन देउ।सिबने कही ठीक है भई तुम्हें जैसो ठीक लगै तैसो करौ।

लरकन ने का करौ कै गाँव में और मिडोपन में जा जा कें महाते कौ नौतौ आओ हतौ उन सिबके घर सें उनकी पनहैंयाँ इकट्ठी करीं,उन्हें एक पुटरिया में बांधो ,फिर एक आदमी कों पटओ और बाय बिआव के दिना बा पुटरिया लेकें और सिबकौ भेंट-व्यवहार लेकें महाते के घरै पहुँचाय दओ,और सिबकी ओर सें कभाय दई कै महाते दद्दा हम सिबकी इन पनहैंयन कों ईं हम सिबकी हाज़िरी मानौ जय।

अब बिआव के दिना महाते के घरै पाँच-दस मेहमान और एक हज़ार पनहैंया हाज़िर।महाते ने माथौ पीट लओ।

(साभार : डॉ. आर बी भण्डारकर)

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