दयालु लड़की : चीनी लोक-कथा

Magnanimous Girl : Chinese Folktale

चिंग लिंग नाम की एक जगह पर एक कू नाम का आदमी रहता था जो काबिल तो बहुत था पर गरीब भी बहुत था। उसकी एक बूढ़ी माँ थी जिसकी वजह से उसको घर छोड़ने में भी बहुत मुश्किल थी। इसलिये वह लिखता था चित्रकारी करता था और उससे जो पैसा कमाता था वह अपनी माँ को दे देता था।

ऐसा करते करते वह 25 साल का हो गया था और उसकी अभी तक शादी नहीं हुई थी।

उसके घर के सामने एक मकान था जिसमें बहुत दिनों से कोई रहता नहीं था कि एक दिन एक बुढ़िया और एक नौजवान लड़की उसमें रहने के लिये आ गयीं पर उनके साथ कोई आदमी नहीं था। कू ने इस बात को जानने की कोई कोशिश भी नहीं की कि वे कौन थीं और कहाँ से आयी थीं।

कुछ दिन बाद ही इत्तफाक से एक दिन जब कू अपने घर में घुस रहा था तो उसने एक नौजवान लड़की को अपने घर के दरवाजे से बाहर निकलते देखा। वह लड़की कोई 18 या 19 साल की रही होगी। देखने में वह होशियार लग रही थी और किसी अच्छे घर से आती दिखती थी।

कुल मिला कर वह एक ऐसी लड़की थी जिस पर किसी की आँख मुश्किल से ठहरती थी। जब उसने मिस्टर कू को देखा तो वह वहाँ से भागी नहीं बल्कि सीधी खड़ी रही।

जब वह घर में आ गया तो उसकी माँ ने कहा — “वह सामने वाले घर में रहने वाली लड़की थी जो मेरा टेप और कैंची लेने आयी थी। उसने मुझे बताया कि उसके घर में केवल वह और उसकी बूढ़ी माँ हैं। उसको देखने से ऐसा नहीं लगा कि वे किसी नीची जाति के हैं।

मैंने उससे पूछा कि उसकी अभी शादी क्यों नहीं हुई तो बोली कि उसकी माँ बूढ़ी है। मुझे कल उनके घर जाना चाहिये और जा कर मालूम करना चाहिये कि वे लोग कैसे हैं। अगर उनको बहुत ज़्यादा की जरूरत न हो तो तुम उनकी सहायता कर दिया करो।”

सो अगले दिन कू की माँ उन लोगों के घर गयी तो उसे पता चला कि उस लड़की की माँ को सुनायी नहीं देता। इसके अलावा वे बहुत गरीब भी दिखायी दे रहे थे। उनके घर में तो एक दिन का भी खाना नहीं था।

कू की माँ ने पूछा कि वे लोग अपना घर चलाने के लिये क्या करते थे तो लड़की की माँ ने कहा कि वे उस लड़की के हाथों की दस उँगलियों पर ज़िन्दा थे।

तब कू की माँ ने उसको बातों बातों में कहा कि वे दोनों परिवार मिल कर एक हो जाते हैं। ऐसा लगा जैसे वह बुढ़िया तो इस बात पर तैयार हो गयी हो पर लड़की से सलाह लेने पर लगा कि वह तैयार नहीं थी।

मिसेज़ कू अपने घर वापस लौट आयी और अपने बेटे से बोली “शायद वह सोचती है कि हम लोग बहुत गरीब हैं। वह न हँसती है न बोलती है। वह एक बहुत ही अच्छी सुन्दर लड़की है जैसे खालिस बर्फ। मुझे तो वह कोई मामूली लड़की नहीं लगती।”

उस दिन यह बात वहीं खत्म हो गयी कि एक दिन कू अपने पढ़ने के कमरे में बैठा हुआ कि उसके घर में एक भला आदमी आया। उसने कहा कि वह किसी पड़ोस के गाँव से आया है और कू से अपनी तस्वीर बनवाना चाहता है।

जल्दी ही दोनों नौजवान आपस में दोस्त हो गये और अक्सर मिलने लगे। एक दिन उस नौजवान ने पड़ोसन लड़की को देख लिया तो उसने कू से पूछा “यह लड़की कौन है?”

कू ने उसे बताया कि वह कौन है तो दूसरा नौजवान बोला — “यह तो वाकई सुन्दर है पर अपनी शक्ल से कुछ जिद्दी सी लगती है।”

कू अन्दर गया तो उसकी माँ ने उसे बताया कि लड़की उससे कुछ चावल माँगने आयी थी क्योंकि सारा दिन उन्होंने कुछ खाया नहीं था। उसकी माँ फिर बोली — “वह एक अच्छी बेटी है और मुझे उसके लिये बहुत दुख होता है। हमको उनकी कुछ सहायता करनी चाहिये।”

यह सुन कर कू ने अपने कन्धे पर कुछ चावल रखा और जा कर उनका दरवाजा खटखटाया और कहा कि वह चावल उसकी माँ ने भिजवाया है।

लड़की ने उससे चावल तो ले लिया पर वह उससे बोली कुछ नहीं पर उसके बाद से वह कू की माँ के पास आने लगी और उसके घर के कामों में उसका हाथ बँटाने लगी। अब वह वहाँ इस तरह से रहती जैसे वह उसकी बहू हो।

कू इस बात के लिये उसका बहुत कर्जदार था। जब भी उसके पास कभी भी कुछ भी कुछ अच्छा होता तो वह उसे उसकी माँ के घर भेज देता। हालाँकि लड़की ने कभी उसको इसके लिये अपने आपसे धन्यवाद नहीं दिया।

काफी दिनों तक इस तरह चलता रहा कि एक दिन कू की माँ की टाँग पर फोड़ा हो गया। फोड़े में दर्द बहुत था सो वह बेचारी रात दिन रोती रहती।

लड़की ने उस अपाहिज की बहुत सेवा की। वह उसके पास ही खड़ी रहती। उसकी दवाओं का ख्याल वह कुछ इस तरह से रखती कि एक दिन वह बोली — “काश मेरे कोई ऐसी बहू होती जैसी तुम हो और मेरे आखिरी दम तक मेरी देखभाल करती।”

लड़की ने उसे तसल्ली दी — “आपका बेटा तो मुझसे भी ज़्यादा वफादार बेटा है। मेरा क्या मैं तो एक गरीब विधवा की अकेली बेटी हूँ।”

“पर यह जरूरी तो नहीं है कि एक वफादार बेटा अच्छा सेवा करने वाला भी हो। इसके अलावा अब मेरी ज़िन्दगी तो खत्म होने वाली है जब मेरा शरीर कोहरे और ओस को दे दिया जायेगा। मुझे अपने पुरखों की पूजा भी तो करनी है और फिर अपना वंश भी तो आगे चलाना है।”

जब वह यह सब कह रही थी कि तभी कू वहाँ आ गया। उसकी माँ ने रोते हुए कहा — “बेटा मैं इस लड़की की बहुत ज़्यादा कर्जदार हूँ। इसकी अच्छाई का बदला चुकाना भूलना नहीं।”

कू बहुत नीचे तक झुक गया पर वह लड़की बोली — “सर, जब आप मेरी माँ पर इतने मेहरबान थे तब मैंने तो आपको कोई धन्यवाद नहीं दिया। तब यह धन्यवाद मुझे क्यों?”

यह सुन कर कू के दिल में उसके लिये प्यार और बढ़ गया पर अपने लिये उसके ठंडे व्यवहार को वह ज़रा सा भी नहीं हिला सका। एक दिन वह उसका हाथ पकड़ने में सफल हो गया। इस पर उसने उससे कहा कि वह आगे से कभी ऐसा न करे। उसके बाद उसने उसको न तो देखा और न ही उसके बारे में कुछ सुना।

उस लड़की में उस अजनबी नौजवान के लिये जो कू के घर आता जाता था बहुत ही ज़्यादा नफरत सी पैदा हो गयी थी। एक शाम जब वह कू से बैठा हुआ बातें कर रहा था वह लड़की वहाँ आयी।

पर कुछ ही देर बात करने के बाद उसके कुछ कहने पर वह बहुत नाराज हो गयी और अपने कपड़ों में से एक फुट लम्बा चमकता हुआ एक चाकू निकाल लिया। यह देख कर नौजवान डर के मारे वहाँ से भागा और वह लड़की उसके पीछे भागी पर वह तो कहीं गायब हो गया था।

तब उसने अपना चाकू ऊपर हवा में उछाल दिया। “व्हिश।” उस चाकू से इन्द्रधनुष जैसी एक किरन सी निकली और कोई चीज़ आ कर झप से नीचे गिर गयी। कू को रोशनी दिखायी दी तो वह उसको देखने के लिये उठा कि वह क्या चीज़ थी। लो वहाँ तो एक सफेद लोमड़ी पड़ी हुई थी – उसका सिर एक तरफ और धड़ दूसरी तरफ।

लड़की चिल्लायी — “देखो वह तुम्हारा दोस्त है। मुझे पहले ही मालूम था कि वह मुझे अभी या देर से उसको मारने पर मजबूर करेगा।”

कू ने उसको अपने घर के अन्दर खींच लिया — “हम कल तक इन्तजार करते हैं। कल इस बात पर बात करेंगे। तब तक हम लोग शान्त भी हो जायेंगे।”

अगले दिन वह लड़की कू के घर आयी तो कू ने उससे पूछा कि उसका यह जादू कहाँ से आया। तो उसने कू से कहा कि ऐसी चीज़ों के बार में उसको चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। इसके अलावा उसने उससे यह भी कहा कि वह उसको भेद ही रखे तो अच्छा है नहीं तो उसकी खुशियों पर भी असर पड़ सकता है। उसके बाद कू ने उससे विनती की कि वह उससे शादी कर ले। उसका जवाब उसने यह दिया कि वह तो पहले से ही उसकी माँ के पास उनकी बहू की तरह से रह रही है और अब उसको और आगे बढ़ने की कोई जरूरत नहीं है।

कू ने पूछा — “क्या यह इसलिये कि मैं बहुत गरीब हूँ?”

लड़की बोली — “मैं भी कोई अमीर नहीं हूँ। पर सच्चाई तो यह है कि अच्छा है हम अलग अलग ही रहें।”

उसके बाद उसने उससे विदा ली और चली गयी। अगली शाम जब कू उसके पास फिर से यह कहने के लिये गया कि वह उससे शादी कर ले उसने देखा कि वह तो वहाँ थी ही नहीं। उसको फिर कभी नहीं देखा गया।

यह लोक कथा यह नहीं बताती कि क्या वह लड़की भी कोई लोमड़ी थी। इसके अलावा उसके घर में तो उसकी माँ भी थी तो वह कहाँ गयी आदि आदि।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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