मदिवन्न का गधा : तमिल लोक-कथा
Madivann Ka Gadha : Lok-Katha (Tamil)
पगडंडी के किनारे आम और इमली के वृक्षों से घिरा वह वृत्ताकार मैदान अपनी घनी छाया में राहगीरों के आकर्षण का केंद्र था। यहाँ-वहाँ कुछ नीम के पेड़ भी थे, जिनके कोमल पल्लवों से स्पर्श कर ठंडी बयार मन को सुकून और शांति देती थी। मैदान के बीचो-बीच समय चक्र के झंझावातों से जूझता बूढ़ा बरगद अपनी बाँहें फैलाए ऐसा प्रतीत होता था, मानो अपने पुत्र-पौत्रों की प्रतीक्षा में आतुर हो, अपने अंक में समेटने के लिए लालायित हो।
मदिवन्नन प्रतिदिन इसी पगडंडी से अपने गधे पंचकल्याणी के साथ उसकी पीठ पर कपड़ों की गठरियाँ लादे गुजरता था। मैदान में एक वृक्ष के नीचे गुरु सत्यमूर्ति बच्चों को पढ़ाते थे। गाँव के बच्चे खिलदंड स्वभाव के होते हैं। उनकी कक्षा में एक विद्यार्थी न केवल शरारती था, बल्कि कुछ उद्दंड भी था। गुरु सत्यमूर्तिजी एक दिन जब कक्षा ले रहे थे तो उन्होंने उस बालक से कहा, ‘अपनी शरारतें तथा उद्दंडता छोड़कर पढ़ाई में ध्यान लगाओगे तो जीवन सुधर जाएगा, वरना...वैसे मैंने अच्छे-अच्छे गधों को आदमी बनाया है।’
पगडंडी से गुजरते मदिवन्न् के कानों में गुरुजी का अंतिम वाक्य पड़ा—‘मैंने अच्छे-अच्छे गधों को आदमी बनाया है।’
अब धोबी मदिवन्नन सोच में पड़ गया। उसके दिमाग में खलबली मच गई। उसने सोचा, यदि मेरा गधा पंचकल्याणी आदमी बन जाए तो हम दोनों मिलकर अधिक कपड़े धो सकेंगे। और कपड़े अधिक धुलेंगें तो पैसा भी अधिक मिलेगा। यदि ऐसा हो गया तो! तो मैं धोबी से सेठ बन जाऊँगा, गाँव के चेट्टियार की तरह। गाँव वाले मेरे भाग्य पर ईर्ष्या करने लगेंगे। किंतु क्या यह संभव है? लेकिन गुरुजी तो कह रहे थे। ठीक है, मैं अपने मित्र चेन्नेराम से पूछता हूँ। वह सही सलाह देगा।
चेन्नईराम उसके भोलेपन पर मुसकरा पड़ा। उसने कहा—मित्र, यह संभव नहीं, किंतु मदिवन्नन अपनी बात पर अड़ा रहा। उसने कहा—मित्र, गुरुजी ऐसा कह रहे थे और गुरुजी कभी झूठ नहीं बोलते। वे अवश्य ही ऐसी कोई विद्या जानते हैं, जिसके द्वारा गधे को आदमी बनाया जा सकता है।
चेन्नईराम ने अपने तर्कों द्वारा बहुत समझाने का प्रयत्न किया, पर सब बेकार। मदिवन्नन अपने गधे पंचकल्याणी को लेकर गुरुजी सत्यमूर्ति के घर पहुँचा।
सत्यमूर्ति ने मदिवन्नन से पंचकल्याणी के साथ आने का कारण जाना तो उन्होंने उससे कहा, वे ऐसी कोई विद्या नहीं जानते।
‘लेकिन गुरुजी, आप अपनी कक्षा में एक छात्र से कह रहे थे कि मैं गधों को भी आदमी बना सकता हूँ।’
‘अरे, वो! वो तो मैं इस प्रकार छात्र को धमकी दे रहा था, ताकि मार के डर से वह पढ़ाई में मन लगाने लगे।’
‘नहीं, मैं नहीं जानता, मैं गरीब हूँ, शायद इसलिए आप मेरी मदद करना नहीं चाहते।’
‘गुरुजी के अथक समझाने के बाद भी मदिवन्नन अपनी जिद पर कायम रहा। उसे पूरा विश्वास था कि गुरुजी यह विद्या जानते हैं, किंतु उसकी मदद करना नहीं चाहते। हार कर गुरुजी ने कहा, ‘अच्छा, अपना पंचकल्याणी यहाँ छोड़ जा, मैं कोशिश करूँगा।’
मदिवन्नन खुशी-खुशी घर लौटा, आँखों में सपना सँजोए।
दूसरे दिन मदिवन्नन सत्यमूर्ति के घर पहुँचा। उसने गुरुजी से पूछा कि क्या उसका पंचकल्याणी आदमी बन गया है। सत्यमूर्ति ने उससे कहा, ‘हाँ, मदिवन्नन्, तुम्हारा गधा पंचकल्याणी बहुत बड़ा आदमी बन गया है।’
‘कहाँ है गुरुजी?’
‘पास ही के गाँव में। वह वहाँ का मुखिया बन गया है। वहीं जाकर उससे मिल लो।’
मदिवन्नन तुरंत उस गाँव की ओर चल दिया। उसने देखा, एक हृष्ट-पुष्ट आदमी कुछ लोगों से घिरा उनकी बातें सुन रहा है। शरीर से लंबी काया, उस व्यक्ति के चेहरे पर आभा खेल रही थी और आवाज में रोब था। उसने समझ लिया वहीं गाँव का मुखिया है, इसलिए गाँववासी आदर की मुद्रा में खड़े थे। मदिवन्नन का हृदय खुशी में बल्लियों उछलने लगा। उसने सोचा-अभी मेरा पंचकल्याणी लोगों की समस्या से उलझा हुआ है। जब वह मेरी ओर देखेगा तो दौड़कर मेरे पाँव छुएगा और क्यों न वह सम्मान देगा मुझे? आखिर मैंने ही इस गधे को गधे से आदमी बनवाया है।
मुखियाजी अपने काम में व्यस्त थे। काफी समय पश्चात् मदिवन्नन ने जब देखा कि वे उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं तो उसने हाथ के संकेत से उनका अपनी ओर आकर्षित करना चाहा। निष्फल होने पर मुख से ‘सी ई, सी ई’ की ध्वनि निकाली तो मुखिया का ध्यान उसकी ओर गया। उन्होंने देखा, एक अनजान आदमी वहाँ खड़ा उन्हें कुछ इशारे कर रहा है। गाँव वालों का ध्यान भी उस ओर गया। वे उसके इशारों की भाषा नहीं समझ सके और नया व्यक्ति समझकर पुन: मंत्रणा में लीन हो गए।
मदिवन्नन ने स्वयं को उपेक्षित, अपमानित महसूस किया। वह क्रोधित हो उठा। उसी की बिल्ली और उसी को म्याऊँ! उसने जोर से पुकारा—ऐ पंचकल्याणी, इधर आ!
मुखिया और गाँव वालों ने इधर-उधर देखा। उन्हें पंचकल्याणी नामक आदमी नजर नहीं आया। मुखिया ने भी अपने आसपास देख मदिवन्नन की ओर पुन: देखा।
‘अबे गधे, मेरा मुँह क्या ताक रहा है। तुझे ही बुला रहा हूँ, इधर आ।’ उसने मुखिया से कहा।
अब गाँव वालों को क्रोध आने लगा।
मदिवन्नन ने फिर डाँटने के स्वर में उलाहना देते हुए कहा, ‘अबे मूर्ख! गधे से आदमी क्या बन गया, अपने मालिक को ही भुला बैठा। चल, इधर आ। नहीं तो अभी आकर तेरे कान खींचता हूँ।’
कोई परदेशी उनके मुखिया का अपमान कर रहा है। उन्हें गधा कहकर संबोधित कर रहा है, यह देखकर गाँव वालों का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन सभी ने मिलकर मदिवन्नन की अच्छी तरह से धुलाई की और गाँव के बाहर धकेल दिया।
मदिवन्नन अपने भाग्य को कोसता-कोसता सत्यमूर्ति के द्वार पर पहुँचा। हाथ जोड़कर बोला, ‘गुरुजी, मेरे साथ मेरे गधे ने धोखा किया है। आप कृपया मेरे पंचकल्याणी को पुन: गधा बना दीजिए।’ और सारी आप बीती उसने गुरु को सुना दी।
गुरुजी मन-ही-मन मुसकराए, परंतु चेहरे पर गंभीरता ओढ़कर बोले, ‘मदिवन्नन्! मैंने आज तक आदमी को गधा नहीं बनाया, यह मेरे लिए मुमकिन नहीं।’
‘नहीं गुरुजी, मुझ गरीब की खातिर कुछ कीजिए। मेरे पंचकल्याणी को गधा बना दीजिए, वरना मैं भूखों मर जाऊँगा।’
‘ठीक है। तेरी व्यथा सुनकर मेरा हृदय भी पसीज रहा है। मैं वायदा तो नहीं करता, लेकिन कोशिश अवश्य करूँगा। अब तू जा। कल आना।’
दूसरे दिन मदिवन्नन गुरुजी के पास पहुँचा। पंचकल्याणी जो उनके घर के पिछवाड़े में बँधा था, उन्होंने उसकी डोर खोलकर मदिवन्नन के हाथों में थमा दी। मदिवन्नन कृतज्ञता से नत हो गया।
चेन्नईराम रहस्य भरी विद्या को समझ, आदमी और गधे का संबंध समझने का प्रयास करने लगा।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)