मछली क्यों हँसी ? : लोक-कथा (बंगाल)

Machhli Kyon Hansi ? : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

एक मछुआरिन मोहल्ले में जा-जाकर मछली बेचती थी। एक दिन उस राज्य के राजभवन के पास से गुजरते हुए उसने हाँक मारी, "मछली चाहिए, मछली!" ।

उसकी पुकार सुनकर रानी ने दरवाजा खोलकर उसे बुलाया। मछुआरिन के निकट आने पर वह बोली, “मैं मछली खरीदूंगी। देखूँ कौन सी मछली है?"

मछुआरिन ने जैसे ही टोकरी उतारी, एक बड़ी मछली उछल पड़ी।

रानी ने पूछा, "मछली नर है या मादा?"

रानी की बात सुनकर मछली हो-हो कर हँसने लगी।

मछुआरिन बोली, "रानी माँ, यह नर मछली है।"

रानी बोली, "तब तो इस मछली को मैं नहीं खरीदूंगी। कारण, राजा को छोड़ कोई भी पुरुष प्राणी मेरे महल में प्रवेश नहीं कर सकता है। मैं मादा मछली खरीदना चाहती हूँ।"

मछली की टोकरी के अंदर से फिर 'हो-हो कर' एक मछली की हँसी सुनाई पड़ी।

रानी ने दरवाजा बंद कर दिया। मछुआरिन मछली की टोकरी लेकर अपने रास्ते चली गई।

रानी गुस्से से काँपते-काँपते अपने कमरे में आई।

शाम को राजा आए। रानी ने अन्य दिनों की तरह राजा का स्वागत हँसकर नहीं किया। मुँह फुलाकर गंभीर होकर बैठी रही।

राजा समझ गए कि जरूर कुछ बात हुई है, तभी रानी इतने गुस्से में है। इसीलिए वह उसकी ओर ताक भी नहीं रही है।

राजा ने पूछा, "बात क्या है? क्या तुम अस्वस्थ हो?"

रानी बोली, “मैं ठीक हूँ, लेकिन एक मछली खरीदने के लिए मछुआरिन ने मछली दिखाई। मैंने पूछा, "यह नर है या मादा? इसपर एक मछली हो-हो कर हँस उठी। मैं जानना चाहती हूँ कि मछली क्यों हँसी? इसका कारण न जान पाने पर मैं विष खाकर मर जाऊँगी।"

राजा ने हँसकर कहा, "मछली हँसी थी, असंभव! निश्चय ही तुमने स्वप्न देखा होगा!"

रानी बोली, “मैं क्या इतनी बुद्धू हूँ? मैंने अपनी आँखों से मछली को भी देखा है और अपने कानों से उसे हँसते हुए भी सुना है।"

यह सुनकर राजा बहुत चिंतित हो गए। उन्होंने कहा, "यह तो विचित्र बात सुन रहा हूँ। ठीक है, मैं पता करवाता हूँ। मछली क्यों हँसी, इसका कारण तुम शीघ्र जान पाओगी।"

दूसरे दिन दरबार में आकर राजा ने मंत्री को सारी बातें बताईं। फिर बोले, "मंत्री, मछली क्यों हँसी, इसका जवाब मुझे चाहिए। छह माह का समय तुम्हें दे रहा हूँ। इसका कारण न बताने पर तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"

मंत्री के सिर पर मानो आसमान फट पड़ा! राजा का हुक्म मानना ही होगा। उसने कहा, "जो आज्ञा महाराज ! आज ही घर जाकर मैं पोथी-पत्र लेकर बैलूंगा। छह माह बाद मैं आपको बता दूँगा कि मछली क्यों हँसी थी!"

कहने को तो मंत्री ने कह दिया, किंतु आकाश-पाताल एक करके भी उन्हें उस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला। अनेक ग्रंथों, पोथियों को देखा, अनेक स्थानों में वे गए, अनेक लोगों से पूछा। ज्ञानी, विद्वान्, जादूगर, तंत्र-विद्या जाननेवाले, सभी से पूछा, लेकिन मछली क्यों हँसी, इस रहस्य की व्याख्या कोई भी नहीं कर पाया। सोच-सोचकर मंत्री की नींद उड़ गई, भूख खत्म हो गई। शरीर कंकाल जैसा हो गया।

देखते-देखते पाँच माह गुजर गए। मंत्री समझ गए कि उसकी जिंदगी मात्र एक माह की है, उसके बाद मृत्यु निश्चित है। वे राजा को अच्छी तरह जानते थे। राजा जो बोलते थे, वही करते थे। मंत्री ने खुद को मृत्यु के लिए तैयार कर लिया। अपनी सारी संपत्ति बेटे के नाम लिख दी। मंत्री इस बात को समझ रहे थे कि उसको मृत्युदंड देने के बाद भी राजा का क्रोध कम न होगा। उसके पुत्र को भी राजा के क्रोध का सामना करना पड़ेगा। इसीलिए एक दिन मंत्री ने अपने पुत्र को बुलाकर कहा, "तुम देशभ्रमण के लिए निकल पड़ो। जब तक राजा का क्रोध शांत न हो जाए, तब तक तुम इस राज्य से बाहर ही रहो।"

मंत्री का बेटा बहुत बुद्धिमान था। देखने में भी वह अत्यंत सुंदर था। पिता की बातों का अर्थ समझकर वह एक दिन पैदल ही घर से निकल पड़ा। चलते-चलते कुछ दिनों बाद वह एक गाँव में पहुँचा। रास्ते में एक वृद्ध किसान से उसकी भेंट हुई। किसान कहीं गया था, अब घर लौट रहा था। उसके साथ बातचीत कर उसे अच्छा लगा। उसने सोचा, अच्छा हुआ, एक संगी मिल गया। दोनों एक ही पथ पर जा रहे थे। लंबा रास्ता था, बातचीत करते हुए रास्ता कट जाएगा। दोनों एक गेहूँ के खेत से गुजर रहे थे। बातों ही बातों में मंत्री-पुत्र ने कहा, "बीच-बीच में हम लोग यदि एक-दूसरे को ढोएँ, तो अच्छा होगा।"

यह सुनकर किसान ने सोचा, यह लड़का मूर्ख है क्या, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।

फसल काटने का समय हो गया था। गेहूँ के खेत सोने की तरह झलमल कर रहे थे। उधर दिखाकर मंत्री-पुत्र ने पूछा, “क्या वह सब खाया जाता है?"

वृद्ध किसान समझ नहीं सका कि क्या उत्तर दे! वह बोला, “मैं ठीक से नहीं जानता हूँ।"

इसी तरह चलते-चलते वे एक-दूसरे गाँव में पहुँचे। गाँव बहुत बड़ा था। मंत्री-पुत्र ने एक छुरी देकर उससे कहा, "लो मित्र! इसे साथ ले जाओ और दो घोड़े लेकर आओ। यह छुरी बहुत कीमती है। गलती से कहीं फेंक मत देना।"

मंत्री-पुत्र की बात सुनकर कभी वृद्ध किसान को मजा आता था, कभी गुस्सा आता था, लेकिन वह कुछ कहता नहीं था। उसने छुरी को उसकी ओर ठेलकर बड़बड़ाते हुए कहा, “अच्छे मित्र से पाला पड़ा है ! या तो यह पागल है या अनजान होने का भान कर रहा है।"

मंत्री-पुत्र ने किसान की बात सुनकर भी न सुनने का भान किया। कुछ कहा भी नहीं। चुपचाप वे चलते रहे। ग्राम पार करने के बाद वे एक शहर में पहुँचे। शहर में लोगों की काफी भीड़ थी, परंतु किसी ने भी उनसे कुछ बातचीत नहीं की। बाजार को पार कर वे एक मस्जिद के पास पहुँचे। इतनी दूर तक चलते-चलते दोनों बेहद थक गए थे, किंतु वहाँ भी किसी ने बाहर निकलकर थोड़ी देर सुस्ताने के लिए नहीं कहा।

मंत्री-पुत्र ने किसान से कहा, "यह तो विशाल कब्रगाह है।"

यह सुनकर किसान ने मन-ही-मन सोचा, यह तो अद्भुत बात है! इस आदमी का आचरण तो विचित्र है। मनुष्यों से भरपूर शहर को देखकर कब्रगाह कह रहा है ! शहर का एक पथ कब्रगाह की ओर गया था। वहाँ कुछ लोग एक कब्र के निकट खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे। मृत प्रियजन के नाम पर राहगीरों को रोटियाँ बाँटी जा रही थीं। मंत्री-पुत्र एवं किसान के निकट आने पर उन्हें भी दोनों हाथों में भरकर रोटियाँ और मिठाइयाँ दी गईं। मंत्री-पुत्र बोल उठा, "चमत्कारी शहर!"

सुनकर किसान ने सोचा, यह तो बिल्कुल पागल है। शहर के कहता है कब्रगाह और कब्रगाह को कहता है चमत्कारी शहर! इसके बाद जल को कहेगा थल और थल को कहेगा जल! विचित्र आदमी है यह। लेकिन उसने अपना मनोभाव प्रकट नहीं किया।

चलते-चलते सामने एक नदी मिली। नदी पार होना था। किसान अपनी कमीज एवं जूते खोलकर नदी में उतरा। मंत्री-पुत्र ने लेकिन वैसा नहीं किया। वह जूते, कमीज पहनकर ही नदी को पार कर गया। किसान ने सोचा, ऐसा मूर्ख आदमी कभी नहीं देखा। कथनी और करनी दोनों दृष्टियों से वह मूर्ख लग रहा है। लेकिन बातचीत में वह काफी विनम्र था। उसने सोचा कि इसे अगर अपने घर ले जाऊँ तो पत्नी, बेटी बहुत खुश होंगी। यह सोचकर किसान ने मंत्री-पुत्र से कहा, "निकट ही मेरा घर है। चलो रात मेरे यहाँ बिताकर जाना।"

मंत्री-पुत्र ने कहा, "आपकी आंतरिकता देखकर खूब खुशी हुई। आपके घर के दरवाजे एवं कुंडी मजबूत तो हैं?"

ऐसी बेतुकी बात सुनकर किसान फिर कुछ बड़बड़ाया एवं मन-ही-मन हँसते हुए कहा, "यह मेरा घर है। तुम थोड़ी प्रतीक्षा करो। मैं भीतर खबर देकर आता हूँ।"

वृद्ध किसान ने अपने घर के लोगों से कहा, “ मुझे एक बहुत मजेदार पथ-संगी मिला है। वह लड़का बहुत दूर तक मेरे साथ आया है। देखने में बहुत सुंदर है, भद्र परिवार का लगता है। तब ऐसा मूर्ख है कि क्या बताऊँ ? उसकी बेसिर-पैर की बातें कुछ भी समझ में नहीं आती हैं। हमारे घर में उसे रुकने को कहा तो बोला कि घर के दरवाजे और कुंडी मजबूत तो हैं? इन सब बातों का भला कोई मतलब है?"

किसान की एकमात्र बेटी थी। वह बहुत बुद्धिमती थी। पिता की बात सुनकर वह बोली, "पिताजी, वह मूर्ख नहीं है, बहुत बुद्धिमान है। वह संकेत में अपनी बातें कहता है।"

किसान ने कहा, "अच्छा! मैं तो उसे मूर्ख समझता था!"

बेटी ने कहा, "दरवाजा एवं कुंडी मजबूत हैं कि नहीं, यह पूछकर वह यह जानना चाहता था कि हम लोग उसका आतिथ्य सत्कार कर पाएँगे या नहीं।"

किसान ने कहा, "क्यों नहीं कर पाऊँगा? हमारे घर में किस चीज का अभाव है ? देख रहा हूँ कि उस लड़के की बातचीत में विचित्र रहस्य है। राह में चलते-चलते वह मुझसे कह रहा था कि क्यों न हम एक-दूसरे को ढोएँ, इससे थकावट कम होगी।"

किसान की कन्या ने कहा, “दरअसल वह बताना चाह रहा था कि एक जन दूसरे को कहानी सुनाए तो समय अच्छी तरह कट जाएगा।"

किसान आश्चर्यचकित होकर बोला, “अच्छा, ऐसी बात थी!" जब हम एक गेहूँ के खेत के पास से गुजर रहे थे तो उसने पूछा, 'क्या यह खाया जाता है ?'

किसान की बेटी बोली, "पिताजी, इतनी सरल बात भी आप नहीं समझे? वह जानना चाहता था कि खेत का मालिक ऋणग्रस्त है या नहीं। अगर ऋणग्रस्त है तो उसके गेहूँ को समझ लें कि महाजन ने खा लिया है। वह गेहूँ जाएगा ऋणदाता महाजन के घर और किसान को मिलेगा ठेंगा!"

किसान ने सिर हिलाकर कहा, "हाँ, हाँ यही बात होगी। तब एक बात और सुनो, हम दोनों एक गाँव में घुसे। एक छोटी छुरी देकर उसने मुझसे कहा, दो घोड़ा लेकर आओ, छुरी लाना न भूलना। इसका क्या मतलब हुआ?"

किसान की बेटी ने कहा, “पथ पर चलने पर जैसे घोड़े की जरूरत पड़ती है, वैसे ही लाठी की भी जरूरत पड़ती है। उसके कहने का मतलब होगा कि दो मोटी लाठी काटकर लाओ और छुरी लाना मत भूलना, कारण, छुरी की जरूरत बाद में पड़ सकती है।"

किसान ने सहमति से सिर हिलाया। उधर मंत्री-पुत्र बाप-बेटी की बातचीत सुन रहा था। वह समझ गया कि किसान की बेटी अत्यंत बुद्धिमती है। तब उसने उन्हें अपना वास्तविक परिचय दिया और घर छोड़ने की सारी बातें उन्हें बताईं।

मछली के हँसने का कारण पर किसान की बेटी बोली, "मछली रानी की मूर्खता पर हँसी थी। मछली को कोई व्यक्ति जीवित तो खाता नहीं है। उसे काटकर, अच्छी तरह धोकर आग में पकाया जाता है। जब मछली को काटा जाता है, उसी समय नर-मादा का भेद मिट जाता है। पकाने के बाद तो रहा-सहा भेद भी खत्म हो जाता है। रानी की इसी बुद्धिहीनता पर मछली हँस पड़ी थी।"

यह सुनकर मंत्री-पुत्र बहुत खुश हुआ। वह तुरंत अपने राज्य में पहुँचा एवं अपने पिता को सारी बातें बताईं। मंत्री ने राजा को यह बात बताई। उत्तर सुनकर राजा संतुष्ट हुए और उन्होंने मंत्री को मृत्युदंड से मुक्त कर दिया।

मंत्री ने अपने बेटे के लिए किसान की पुत्री का हाथ माँगा। किसान सहर्ष तैयार हो गया और एक शुभ दिन में किसान की पुत्री के साथ मंत्री-पुत्र का विवाह हो गया।

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