मच्छर और शेर : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Machhar Aur Sher : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
शेर पेड़ के नीचे अक्कड़ से लेटा-लेटा अपनी मूंछ को जीभ से पान चढ़ा रहा था। वह अपने सामने पत्ते पर बैठे मच्छर को छोटू-छोटड़ा-पिद्दू कहकर उसकी खिल्ली उड़ा रहा था। कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली जैसी कई कहावतें उसे सुनाकर उसको कमजोर, फूंक से ही मुर्छित होने वाला, पता नहीं क्या-क्या बना कर उसकी बुद्धि ही ढीली कर दी थी। शेर ने अपनी ताकत का उसे पूरा महाभारत ही सुना दिया। खुशी से फूल कर वह अपनी खाल से ही बाहर निकल गया था।
मच्छर ने शेर से काफी निवेदन किया और समझाया भी कि अपनी शक्ति का अधिक घमण्ड ठीक नहीं है। उसने यह भी कहा कि कमजोर आदमी भी कभी-कभी बड़े ताकतवर को धरती में घसीट घसीट उस की बोलती बन्द करा देता है। विनम्र व्यक्ति ही इज्जत पाता है। पर शेर के कान में नेताओं की तरह जूं नहीं रेंगी।
मच्छर ने खूब सोच-विचार के बाद शेर के कान के पास जाकर कहा”तो सम्भलिए बलवान। अक्कड़ खां शेर सम्भलता इससे पहले ही मच्छर शेर के कान में गुनगुनाहट करता और शीघ्र शेर को पीठ, पेट, कान, जंघा, सिर से काट-काट कर उसका खून पी लिया। शेर बहुतेरे पंज्जे मार-मार मच्छर को पकड़ने की कोशिश की किन्तु वह पकड़ में नहीं आया। उलटे शेर सारा लहू लुहान हो गया। उसका सारा हिलना-डुलना, पंज्जे मारना उसके लिए ही घातक हुआ। मच्छर का तो बाल तक टेढा न हुआ किन्तु शेर घायल हो गया। मच्छर ने शेर की सारी अक्कड़ उतार दी। सयाने सच्च कहते हैं कि घमण्डी का सिर सदा नीचा ही रहता है।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)