मानष भक्षी : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Maanas Bhakshi : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
पुराने समय की बात है। किसी राज्य में जालिम सेन नाम का राजा राज्य करता था। अपने नाम के अनुरूप ही वह जालिम था। और तो और उसे आदमी का मांस खाने की भी आदत थी। उसके जुल्मों से लोग तंग थे किन्तु राजा के खिलाफ कौन मुंह खोले।
एक बार वह राजा अपने सिपाहियों के साथ शिकार खेलने के लिए जंगल चला गया। वे सारा दिन शिकार की तलाश में रहे किन्तु उन्हें शिकार नहीं मिला। रात भी उन्होनें वन में ही काटी। दूसरे दिन भी उनकी वही स्थिति बनी रही। चलते रहने और भूख से सभी के बुरे हाल थे। अब तो राजा जालिम सेन को मांस खाने की तलब भी हो आई थी। उसने सभी को बता दिया कि अब तो किसी आदमी का मांस ही खाना पड़ेगा। सभी सिपाही जानते थे कि जालिम सेन उन्ही में से किसी का मांस खाएगा। शिकार मिले या ना मिले राजा तो आदमी का मांस खाएगा ही। राजा किसी का नाम ले इससे पहले ही एक पहाड़ी सिपाही ने कहा- “महाराज, जिसके सिर पर चीड़ वृक्ष की कस्टी गिरे उसे ही काट लिया जाए। राजा झट मान गया और उसने यही आदेश सुनाया। चीड़ के पेड़ पर लगी कस्टियां बहुत सुन्दर दिखाई दे रही थी। सब जन पेड के नीचे खडे हो गए। अचानक एक कस्टी राजा जालिम सेन के सिर पर पड़ी। उस पहाड़ी सिपाही ने तुरन्त कहा- “राजा जी का आदेश मानों और तुरन्त इनका ही सिर काट लो।"
एक सिपाही ने अपना दिल कड़ा किया और आव देखा ना ताव तुरन्त ढांखरू मार कर राजा का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस तरह मानष भक्षी राजा का अन्त हुआ और वे सिपाही राजधानी लौट आए। तो जी वे वहां और हम यहां।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)