माँ का दर्द : स्वीडिश लोक-कथा

Maan Ka Dard : Lok-Katha Sweden

दिन ढल रहा है। आकाश में परिंदे वापस अपने घोंसलों की ओर जा रहे हैं। उन घोंसलों में उनके नन्हे-मुन्ने बच्चे भोजन की आस लगाए अपने माँ-पिता की राह देख रहे हैं। परिंदों के पंखों में थकान की फड़फड़ाहट है तो एक तेजी भी है कि घर पहुँचकर परिवार से मिलने का सुख मिलेगा और साथ ही विश्राम भी ।

एक चिड़िया तेजी से अपने घोंसले की ओर भागी जा रही है। आकाश में बादल घिर आए हैं। उसे वर्षा आने से पहले अपने बच्चों के पास पहुँचना है और भूखे बच्चों को दाना देना है। जैसे ही वह एक पेड़ की डाल से गुजरी, वहाँ से चूँ- चिर्र की आवाज आई। आवाज चिड़िया को अपने बच्चों जैसी लगी। वह धक से रह गई और तुरंत सोचने लगी कि उसके बच्चे यहाँ कैसे आ गए? उसका घोंसला तो अभी बहुत दूर है। वह आवाज की दिशा में मुड़ी। बच्चे भूख से माँ-माँ चिल्ला रहे थे। उनकी चीख-पुकार सुनकर चिड़िया बोली, 'बच्चो, मत रोओ ! मैं आ गई हूँ, तुम्हारे लिए भोजन भी लाई हूँ।' यह बोलकर जैसे वह सपने से जागी। भला ये उसका घोंसला कहाँ है? उसका घोंसला तो अभी दूर है । फिर इस घोंसले में उसे ये बच्चे अपने जैसे क्यों लग रहे हैं? चिड़िया ने ध्यान से देखा तो पाया कि वे बच्चे बेशक उसके न थे, पर उसके अपने बच्चे जैसे थे। चिड़िया का दिल उनकी भूख-प्यास से पिघल गया। तभी उसे ध्यान आया कि रास्ते में एक चिड़िया पेड़ के नीचे पड़ी थी, कहीं वह इनकी माँ ही तो नहीं थी । पक्का वह इन्हीं की माँ थी। चिड़िया ने अपने पास रखे दानों को उन बच्चों को खिला दिया । दाने पाकर बच्चे शांत हो गए और कुछ ही देर में सो गए। सोए हुए बच्चे बेहद मासूम लग रहे थे। चिड़िया को उन पर बहुत वात्सल्य उमड़ रहा था। तभी तेज की बिजली कड़की तो चिड़िया ने आसमान की ओर देखा। वह फिर नींद से जागी अरे उसके अपने बच्चे। उसे न पाकर उनका क्या हाल हो रहा होगा। चिड़िया वहाँ से उड़ान भरने को हुई, लेकिन फिर उसे लगा कि नींद से जागने पर जब ये अपनी माँ को पास नहीं पाएँगे तो इनका क्या होगा?

वह तुरंत उस ओर चल पड़ी, जहाँ उसने चिड़िया को देखा था। चिड़िया घायलावस्था में पड़ी थी। चिड़िया नीचे उतरी और उसे सांत्वना देते हुए बोली, 'बहन चिंता न करो। तुम्हारे बच्चों को दाना मैंने दे दिया है। वे अब सो रहे हैं। तुम ठीक हो जाओगी।' चिड़िया की बात सुनकर घायल चिड़िया मुसकराते हुए बोली, 'बहन, एक माँ ही माँ का दर्द समझती है।' तभी दो व्यक्ति वहाँ गुजरे। उनमें से एक व्यक्ति घायल चिड़िया को देखकर बोला, 'ओह "हमें इस नन्हीं घायल चिड़िया की मदद करनी चाहिए।' दूसरा व्यक्ति बोला, 'तुम पशु-पक्षियों के डॉक्टर हो, तुम इसका इलाज करो।' डॉक्टर ने घायल चिड़िया का इलाज किया।

कुछ देर बाद ही घायल चिड़िया उड़ने की हालत में हो गई। घायल चिड़िया दूसरी चिड़िया से बोली, 'बहन, अब तुम अपने घर जाओ। बहुत रात हो - गई है। मैं अब सही-सलामत अपने घोंसले तक पहुँच जाऊँगी।' चिड़िया बोली, 'मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ। मेरा घोंसला तुम्हारे घोंसले से होकर ही पड़ता है।' इसके बाद चिड़िया घायल चिड़िया को उसके घौंसले तक ले आई। बच्चे अभी भी सो रहे थे। अपने बच्चों को भरपेट भोजन करने के बाद गहरी नींद में देखकर घायल चिड़िया की आँखों में आँसू आ गए। वह बोली, 'बहन, आज तुम मेरे बच्चों की और मेरी मदद नहीं करतीं तो हममें से कोई जीवित नहीं बचता।' चिड़िया बोली, 'ऐसा नहीं कहते! हर माँ दूसरी माँ का दर्द समझती है। अब मुझे देर हो रही है। मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे।' घायल चिड़िया ने मुसकराकर उसे विदा किया और बोली, 'तुम्हें जब भी मेरी मदद की जरूरत हो, बिना हिचक यहाँ चली आना।' चिड़िया ने उसकी बात से सहमति जताई और खुले आसमान में उड़ान भरने के लिए चल पड़ी अपने घोंसले की ओर। वह सोच रही थी कि आज उसके बच्चों का उपवास हो जाएगा, पर मन में यह संतोष था कि आज एक माँ की जान बच गई और वह अपने बच्चों के पास सकुशल है । यह सोचकर प्रसन्न मन से चिड़िया अपने घोंसले की ओर बढ़ चली।

(साभार : रेनू सैनी)

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