मां बाप और एक कालेज का लड़का (कहानी) : वारणासि नागलक्ष्मी
Maan Baap Aur Ek College Ka Ladka (Telugu Story in Hindi) : Varanasi Nagalakshmi
मौसी का फोन आया था। यह बताने कि प्रकाश घर छोडकर कहीं चला गया।जब से इंटर के नतीजे आए चलपती और सुजाता उदास दिखाई दे रहे थे। इकलौता बेटा घर से भाग गया तो वे पूरी तरह टूट गए।
कुछ देर पहले ही मां बाप की आशाओं को पूरी न कर सकनेवाले लडके को कौन्सेलिंग करके आई थी मैं।बस,चलपति और सुजाता पर बहुत गुस्सा आया।पढे लिखे मूर्ख हैं,मन ही मन उन्हें कोसा।इस तरह के मां बाप ज़्यादा होंगे तो मानसिक रोगियों और छात्रों की आत्मयत्याओं की संख्या भी बढती ही जाएगी।सीमित परिवार,बडे बुज़ुर्गों की दखल के बिना अकेले बच्चों को पालना,और यह सोचकर छाती फुलाए फिरना कि बाकी सब बेकार हैं,हमीं अकेले हैं जो बच्चों की बेहतरीन परवरिश करते हैं।नन्न्हे बच्चों को कोई तकलीफ हो तो बताने केलिए दादी या दादी का न होना,यह सब सोचकर ही दिल बैठा जाता है।मां बाप चाहते हैं कि जो कुछ वे हासिल न कर सके वह सब बच्चे हासिल करें,ज़िंदगी में ऊंचे उठें,नाम कमाएं और दोनों हाथों खूब पैसा कमाएं।इस तरह के हवाई महल खडे करनेवाले पति पत्नी की सोच मेरी समझ में नहीं आती।दूसरों से तुलना करके,"देखा वह पढाई में कितना तेज़ है? तुझे किस बात की कमी है?सबकुछ तो दे रहे हैं?" उस कोमल मन को चोट पहुंचाना,उसपर बोझ डालना,यह सब उनकी नज़र में प्रोत्साहन देना हो सकता है,पर यह तो निरा पागलपन के सिवा क्या है?
बच्चों में इतना तजुर्बा नहीं होता कि वे बडों के हालात समझ सके।पर मां बाप को क्या हो गया?कभी वे भी बच्चे ही थे ना?उनकी आशाओं के बॊझ तले दबकर,उनकी बडी बडी मांगों से घबराकर बच्चे गलत कदम उठाते तो फिर तब क्यों इनपर गाज गिरता है?और ऐसे लोगों को देखकर बाकी लोगों में ज़रा भी बदलाव आता?उनसे सीख पाते?नहीं।वे सोचते ,हमारा बच्चा ऐसा नहीं है!और वही गलती दोहराते जाते।
मेरे पास ऐसे कई केस आते रहते हैं। उनको याद करने लगी। सर में दर्द शुरू हुई तो जाकर ठंडे पानी से नहाया और सिर भी धोया।बाल सुखाने बाल्कोनी में गई।हाथ में गर्म काफी का गिलास था। अंधेरा होने लगा और एक एक करके तारे निकल आए।मैं काफी का और आसमान का मजा ले रही थी ,इतने में फोन की घंटी बजी, मां का फोन।
मौसी की बात को ही मां ने दोहराया और कहा कि पास ही तो है उसका घर,जरा झांक आना।कुछ मदद हो सके तो कर देना।इकलौता बच्चा है तेरी मौसी कह रही थी कि दोनों बहुत घबराए हुए हैं।एक ही शहर में रहते हो, ऐसे वक्त उन्हें मदद की जरूरत होगी।
मैंने कहा," नहीं जाऊंगी मां, सुनकर ही चिढ होती है मुझे।कितने सारे बच्चे हैं जो मां बाप की मूर्खता के शिकार हो जाते हैं,फिर भी बडे चेतते नहीं! उसे ऐसे कालेज में डाल दिया ,तब मैंने क्या कहा,याद है? वह वैसे भी पढाई में इतना तेज नहीं है, मेहनत नहीं कर सकता, फिर ऐसे कार्पोरेट कालेज भेज दिया पढने को? बिल्कुल दिमाग काम नहीं करता चलपती और उसकी बीवी का!" मुझे गुस्सा आ गया।
हैदराबाद में हमारे रिश्तेदारों की कमी नहीं। हमेशा किसी न किसीको कोई जरूरत पडती ही रहती है।मदद न मांगने पर भी मां का दिल करता है कि मदद केलिए जा पहुंचे।अगर उनके कहे अनुसार जीना हो तो खुद केलिए वक्त ही नहीं रह जाता।और वे नहीं जानती कि बिन बुलाए मदद करने जाओ तो आजकल उसे दखल देना कहते हैं।
मैंने यह कहा तो मां बुरा मान गई और बोली," देखो,सबकी समस्याएं एक जैसी नहीं होतीं।वैसे भी यह बहस करनेवाली बात नहीं है।अगर तुझे फुरसत नहीं तो पिताजी केलिए कुछ इंतजाम करके मैं आ जाऊंगी।ऐसे वक्त उन्हें बडों का सहारा चाहिए।रात की बस पकडकर निकलूंगी तो सुबह होते ही उनके घर पहुंच जाऊंगी।भगवान करे वह सही सलामत वापस आ जाए,तब सुनूंगी तेरा भाषण !"
"क्या मां,अभी तो आई हूं अस्पताल से...आज मरीजों की भीड इतनी थी कि सिर फटा जा रहा है।अभी बैठकर काफी पीने लगी हूं।कल सुबह चली जाऊंगी,ठीक है?"
"हां ,हां ठीक है...पर उनके साथ जरा प्यार से..."आगे मां कुछ कहने जा रही थी।मैंने उनकी बात काटकर कहा,"क्या मैं इतना भी नहीं जानती मां?रोज दस पंद्रह मरीजों का काउन्सेलिंग करती हूं,पर तुम्हारे लिए तो मैं वही नादान लडकी हूं!" और हंस दी।
"ठीक है,बेटी मैं तो सठिया गई हूं,छोडो।हां काफी पीकर सो मत जाना।दही चावल खा लेना ठंडक पहुंचाएगा।"मां ने फोन काट दिया।
सुबह का अपायिंटमेंट कैन्सिल करके,आठ बजे ही घर से चल पडी।पौने नौ तक चलपती के घर पहुंच गई।
अपार्टमेंट तीसरी मंजिल पर था। दरवाजा खुला था,पर हाल में कोई नहीं था।डोर बेल बजाऊं या नहीं यही सोच रही थी ,इतने में चलपती कमरे से बाहर आता दिखाई दिया।कान पर सेल फोन था।
"ठीक है भैया,हम ठीक हैं,परेशान मत होना।बाद में फोन करता हूं," कहकर फोन काट दिया।
"मां और मौसी ने फोन किया तो रहा न गया,चली आई।कुछ पता चला?"मैंने कहा।
"शुरिया दीदी,कल रात ग्यारह बजे रेल्वे स्टेशन में मिला...घर ले आए।"
मेरा सारा तनाव गायब हो गया।"चलो अच्छा हुआ।कितने घबरा गए थे हम?" सोफा पर बैठते हुए उसकी आंखों की ओर देखा।आंखों में थकान तो थी ही ,साथ ही कुछ और भी भाव था।
"सुजाता कहां है?"पूछा ,पर उसके जवाब देने से पहले सेल और लैंड लाइन दोनों बज उठे।एक पर बात करते करते दूसरा भी उठाया।मेरी ओर देखा और मुझे अंदर जाने का इशारा किया।उसकी बातें सुनते सुनते मैंने रसोई में झांककर देखा।वहां कोई नहीं था।फिर सोने के कमरे का परदा सरकाकर वहां देखा।
सुजाता अभी लेटी थी।कहीं सेहत तो नहीं खराब है? यह जानने केलिए माथा छूकर देखा।गरम नहीं था।पर वह जिस तरह लेटी थी और धीमी आवाज में खर्राटे भर रही थी,मुझे कुछ अस्वाभाविक सा लगा।चुपचाप बाहर निकलकर दूसरे कमरे की ओर बढी।हाल में चलपती अभी भी फोन पर था।दूसरी ओर से आते सवालों का जवाब देने में मशगूल था।बेटा कब गायब हुआ,घर से क्यों चला गया ,कहां मिला ऐसे ही सवाल।
दूसरे कमरे में पलंग पर दीवार से पीठ टिकाए बैठा था प्रकाश।खिडकी से बाहर देख रहा था।मेरे आने की आहट सुनकर मुडकर देखा।उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।फोन पर हो रही अलपति की बातें कमरे तक सुनाई दे रही थीं।
"मैं ही पागल था जो डेढ लाख जमा किए थे।उससे कुछ भी नहीं होगा।उसके नसीब में मेरी तरह छोटी नौकरी लिखी हो तो क्या कर सकते हैं?हम मां बाप कितना भी हाथ पैर मारें कोई फायदा नहीं।कुछ नहीं बदलेगा...ठीक है,वह सब छोडो, वहां सब ठीक हैं ना?"
सुनते हुए मेरा मन कराह उठा, 'अच्छा ,तो फिर तुम क्यों गुमाशता ही रह गए?तुम्हें बेटे से जो आशा है,क्या तुम्हारे पिता ने तुमसे वह आशा नहीं की थी? तो फिर अपने पिता की इच्छा तुमने पूरी क्यों नहीं की? तुम तो कभी इम्तहान में अव्वल नंबर पर नहीं आए,पर बेटा हमेशा अव्वल आए,यही चाहते हो,पर क्यों?' मेरा मन चाहा कि चलपती और सुजाता से ये सवाल करूं।मां बाप की अधूरी इच्छाएं, उनके बोझ तले छटपटाते बच्चे...सोचकर ही डर लगा।इन बच्चों को ये बातें कहीं गलत रास्ते पर न ले जाएं!
प्रकाश की ओर देखा।चेहरा आवेग से तमतमाया था।मैं जाकर उसके पास बैठी और उसका हाथ पने हाथ में लिया।उस पर मुझे बहुत तरस आने लगा।
"पापा के वक्त इतनी सारी परीक्षाएं और एंट्रेन्स एग्जाम नहीं थे।वे कहां अव्वल आए थे कभी?पर मुझसे आशा करते हैं हमेशा अव्वल नंबर पर आऊं।हर वक्त पीछे पडे रहते हैं कि नब्बे से ज्यादा नंबर क्यों नहीं लाया? सुबह चार बजे उठकर पढनॅ को कहा था या नहीं?बस जान के पीछे पड गए! रमेश को आइआइटी में सीट क्या आया ,बस मॅरी जान खाने लगे दोनों...इसीलिए मुझे रमेश से नफरत है...आइआइटी से नफरत है...पढाई से ही नफरत हो गई है," बिना मेरी ओर देखे प्रकाश ने अपने मन की सारी कडुआहट उगल दी।
उस्के सिर पर हाथ फेरते मैंने कहा," तेरी तकलीफ मैं समझ सकती हूं,प्रकाश।लेकिन बच्चों की बेहतरी चाहनेवाले मां बाप कुछ कहते तो..." मेरी बात पूरी होने से पहले वह भडककर बोला," नहीं बुआ! यह मेरी बेहतरी चाहना नहीं । जो काम वे नहीं कर सके वह ्मुझसे करवाने केलिए जोर जबर्दस्ती करना है...मुझपर दबाव डाल रहे हैं ये !"
प्यार से उसका हाथ दबाते हुए मैंने कहा," कुछ दिन मेरे पास आकर रहो। तेरे फूफा जी भी बाहर गए हुए हैं। हम दोनों कुछ समस्याओं पर बात कर सकेंगे...क्या ख्याल है?"
टेढी मुस्कान के साथ उसने पूछा," काउन्सेलिंग करना चाहती हो?"
उसे गौर से देखते हुए मैंने कहा," हम बडों को तुम बच्चों से काउन्सेलिंग लेना जरूरी है,प्रकाश...सच्मुच!" मैंने घडी देखी।फौरन निकलना होगा।मैंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा," फिर मिलेंगे..."और बाहर आई । देखा चलपती रसोई में था।
"क्या काफी बना रहे हो? मुझे नहीं पीनी।रुकने केलिए वक्त नहीं है।आज बहुत सारे अपायिंट्मेंट हैं," मैंने उससे कहा।
"हां जानता हूं तू कितनी बिजी रहती है।सुजाता केलिए बनाया,आधा कप तुम भी पीओ,"कहकर प्याला मुझे पकडाया।मैं थोडी हैरान हुई।वैसे चलपती रसोई में कभी नहीं जाता।सारा काम सुजाता ही करती है।आज बात कुछ अजीब है , इतने सारे फोन आ रहे हैं,फिर भी सुजाता यों ही लेटी रही।और भी अचरज की बात यह कि चलपती उसके लिए काफी बनाकर ले जा रहा है।
चलपती को मेरे चेहरे पर हैरानी दिखी होगी,इसलिए कहने लगा," तीन दिन से खाना नहीं खाया,रात को वह घर आया तो दो कौर खाया पर वह भी पेट में नहीं ठहरा। बोली कि छाती में जकडन सी है।मैं दिन भर भागदौड करता रहा इसलिए गहरी नींद आ गई।सुबह आंख खुली तो बाहर आकर देखता हूं कि वह उलटी कर रही है।फिर चुपचाप जाकर लेट गई।जब सो गई तो मैं दरवाजा बंद करके आ गया।तब से फोन पर फोन आ रहे हैं। यह तो होना ही था ना?" वह फीकी मुस्कान के साथ कहा।
मुझे कहने को कुछ नहीं सूझा तो आंखों से ही सहानुभूति प्रकट करके काफी पीने लगी।
" अभी अभी उठकर बाथरूम गई है।काफी पीने से सुस्ती खत्म हो जाएगी," चलपती ने कहा।इस बीच हस्पताल से फोन आने लगे।मैंने फिर आकर सुजाता से मिलने का वादा किया और वाहां से निकल आई।
सारा दिन मरीजों के साथ व्यस्त रही,पर दोपहर खाना खाते वक्त बचपन की यादों ने मुझे घेर लिया।गरमी की छुट्टियों में मौसी के घर जाते थे।उनके बच्चों के साथ खूब खेलना,ऊधम मचाना,मासूमियत से भरे थे वे दिन।पचास साल भी पूरे किए बिना ही चल बसे थे मौसा जी।चलपती के दो बडी बहनें हैं।उनकी शादी करानी थी।इसलिए चलपती को डिग्री खत्म करते ही नौकरी करनी पडी।आगे की पढाई नहीं हो सकी।दोनों बहनें अच्छे घरों में ब्याही गईं,पर चलपती छोटी नौकरी में कामचलाऊ वेतन पाकर जिंदगी की गाडी को ठेलते रहना पडा।
मियां बीवी दोनों ने तय कर लिया था कि इकलौता बेटा ही काफी है। मौसी को दुःख हुआ कि दो बच्चों को पालने की स्थिति में चलपती नहीं है।
दो साल पहले मौसी की सेहत बहुत बिगड गई और उन्हें अस्पताल में इलाज केलिए रखा गया था। तब नौ दस बार मैं मां के साथ मौसी को देखने गई थी।तभी प्रकाश को मैंने नजदीक से देखा और जाना ।बाद में जब पता चला उसे 'बेस्ट ब्रेयिन 'स्कूल में भेज रहे हैं तो मैं झुंझुला उठी।प्रकाश पढाई में ठीक है पर आइआइटी कोचिंग जैसा कोर्स उसके बस की बात नहीं है।मैं जानती थी कि इस तरह उस लडके पर बोझ डालने का नतीजा क्या होगा।चलपती से मैंने कहा भी,पर उसने बताया कि जो भारी भरकम फीज उसने भरी वह वापस नहीं दिया जाएगा,तो मैं चुप रह गई।उसके कुछ ही दिन बाद मौसी गुजर गई।
एक ही शहर में रहने के बावजूद अपने अपने काम में व्यस्त रहकर हमें ज्यादा मिलने का मौका ही नहीं मिला।उसके बाद आज फिर उनसे मिली मैं।
सुबह काम पर जाने की जल्दी में सुजाता से मिलना नहीं हुआ।सोचा,काम खत्म करके फिर उनके घर जाऊंगी और सुजाता से मिलूंगी।अगर प्रकाश राजी होगा तो उसे अपने साथ घर ले जाऊंगी,वरना वहीं बैठकर उससे इतमीनान से बात करूंगी।कल मां से फोने पर बात करते वक्त गुस्सा किया था,पर यहां आकर इनसे मिलने के बाद पुरानी आत्मीयता जैसे फिर से लौट आई।उन्होंने मुझसे मदद नहीं मांगी,फिर भी उस घर में फैली निराशा का मूल कारण जानकर मदद करने की इच्छा हुई।प्रकाश के मन की पीडा को उसके मां बाप समझ लें,इस केलिए मैं कुछ करना चाहती थी।
" जरूरत के वक्त काम न आनेवाले रिश्तों का क्या फायदा?" मां के ये शब्द याद आए।शादी ब्याह में जाकर ,कुछ उपहार देकर,दावत करके आना ही रिश्तेदारी निभाना नहीं होता है ना? आज हो सके तो उन तीनों के साथ बैठकर इस समस्या को सुल्झाने की कोशिश करनी चाहिए!
जब तक मैं वहां पहुंचती चलपती दफ्तर से आ चुका था।सुजाता ने छुट्टी ले रखी थी।मेरी पहली कोशिश कामयाब हुई।हम चारों एक जगह इकट्ठा हुए।मैंने कहना शुरू किया,"प्रकाश , मैं बिल्कुल मानती हूं कि तूने जो किया उसके पीछे तेरी कोई वजह जरूर होगी।पर हम भी उसके बारे में जानना चाहते हैं।अपने मन की बात सबको साफ साफ बता दोगे तो घर का माहौल हल्का हो जाएगा।सबके लिए यह अछा होगा...बता तूने ऐसा काम क्यों किया?" मैंने पहले प्रकाश से बात की।
पर उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।बार बार पूछने पर भी यही कहकर टाल दिया ,"आप नहीं जानती बुआ...इस तरह की बहस से कोई फायदा नहीं..."
कुछ देर की चुप्पी के बाद चलपती ने मुझसे कहा," छोडो दीदी! हम यह नहीं पूछेंगे कि उसने ऐसा क्यों किया,पर यह तो बताए कि आगे क्या करना चाहता है?इंटर में इसे जो अंक मिले उन्हें देखते हुए किसी भी अच्छे कालेज में दाखिला मिलने की उम्मीद नहीं कर सकता।मेनेजमेंट सीट खरीदने की मेरी हैसियत नहीं।तो फिर आगे की बात सोचनी पडेगी ना?"
मैंने प्रकाश की ओर देखा।उसके चेहरे पर तिरस्कार का भाव साफ नजर आया।क्या करने से यह आग बुझेगी?वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिनके कारण उसे घर छोडकर भागना पडा?अगर अब भी वैसी परिस्थितियां घर में हैं तो उन्हें दूर कैसे किया जाए? यह सब जानना हो तो उसके घर से भागने से पहले क्या हुआ ,यह जानना जरूरी है।तभी यह उलझन भरी गांठ खुलेगी।
प्रकाश के मुंह से जवाब उगलवाने केलिए बहुत कोशिश करनी पडी।एक बार कहना शुरू किया तो एक एक करके बहुत सारी बातें बताता गया।दूसरे लडकों से उसकी तुलना करते हुए मां बाप ने क्या क्या कहा, अच्छी कालेज में दाखिला दिलाने केलिए कितने लाख खर्च किए कितना दबाव डाला, यह सब बताकर प्रकाश ने कहा कि उस दबाव की वजह से ही वह इम्तहान में पूरा ध्यान लगाकर जवाब नहीं लिख सका।यह सब बताते वक्त उसकी आंखों से आंसू बह निकले।जब नतीजे आए तो उसके अंक देखकर सुजाता ने जो खरी खोटी सुनाई,जो अपमान किया,उसके बारे में प्रकाश के मुंह से सुनकर मेरा मन पसीज गया।
प्रकाश ने कमीज से आंख और नाक पोंछते हुए तेज तर्रार आवाज में मुझसे कहा," बुआ, इन्हें बता दो कि मेरे लिए इतना पैसा न खर्च करें।मेरी वजह से तकलीफ न सहीं।" मैंने तुरंत सुजाता की ओर देखा।उसके चेहरे पर कोई भाव न देखकर मैं हैरान रह गई।
"चलपाती, क्या जवाब है तुम्हारा?"मैंने धीमी आवाज में पूछा।
"क्या कहूं? बहुत बडी गलती हो गई हमसे। बस,अब वह जो करना चहे वही करे..." चलपती ने इस अंदाज में कहा जैसे वह आगे इस बात पर बहस नहीं करना चाहता है।बहुत ही मुख्य पदवी से इस्तीफा देनेवाले की तरह कहा उसने।
मैं फिर सुजाता की ओर मुडी और पूछा," तुम यह तो नहीं सोच रही हो न मैं तुम्हारे घर के मामलों में दखल दे रही हूं?सुबह तुम लोगों की हालत देखकर एक बार फिर तुम सबसे मिलना चाहा,इसीलिए चली आई।" मैं समझ रही थी कि यह समावेश उन तीनों को पसंद नहीं आ रहा है।या कहूं कि वे सोचते हैं इससे कोई फायदा नहीं होनेवाला है।
साडी की किनारी पर उंगलियां फेरते हुए सुजाता ने कहा," ऐसा क्यों सोचती हैं भाभी? आजकल कौन किसीके बारे में सोचता है?और तुम्हारी सलाह केइंतजार में तो इतने सारे लोग रहते हैं।हमारा ख्याल करके ही तो आप हमारे घर खुद चली आईं और..." वह बीच में ही रुक गई।
" अरे ये क्या,मैं क्या पराई हूं जो तुम इस तरह की बातें कर रही हो?मैंने सोचा सब इकट्ठा बैठकर तसल्ली से एक दूसरे की बात सुनें और समझें।प्रकाश की बात तो तुमने सुन ली,अब अपनी कहो," मैंने कोमल आवाज में कहा।
सिर उठाकर सुजाता कुछ कहने ही वाली थी ,पर नफरत से भरा बेटे का चेहरा देखकर रुक गई।फिर बोली,"कहने को कुछ भी नहीं है भाभी।उसकी सारी बातें सच हैं।"
"यह क्या बात हुई भला? उसकी उम्र ही कितनी है?उसकी तरफ से भी सोचो।हर किसी का अपना सामर्थ्य होता है,उसकी एक सीमा होती है।उससे परे की चीज वह हासिल नहीं कर सकता।आप लोग चाहते होंगे वह अच्छे से अच्छे इन्स्टिट्यूट में पढे और बडा इंजीनियर या वैज्ञानिक बने।अगर उसके मन में यह सब करने की इच्छा, तेज दिमाग या लगन न हो तो यह संभव नहीं होगा।हम जिसे हासिल न कर सके और जिसकी हमें इच्छा है,उसे उसके सिर मढना कहां तक ठीक होगा? और यह भी सोचने की बात है कि तुम दोनों एक ही बात को लेकर बैठ गए और उसे अकेला्पन सताने लगा हो।यह घर,यह परिवार मेरा है,ऐसी भावना क्यों उसके मन से दूर हो गई?अब देखो..."
मेरी बात पूरी होने से पहले सुजाता हंसते हुए बीच में बोल पडी," हां भाभी।दुनिया यही सोचती है कि बच्चे और बूढे असहाय और कमजोर हैं और अधेड सब बलवान और निर्दयी हैं।"
उसकी बात सुनकर मैं पहले अवाक रह गई,फिर संभलकर कहा," यह कैसी बातें कर रही हो? ऐसा अब किसने कहा?दूसरों से हमेशा तुलना करते हो तो उसे बुरा लगता है। उसके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे इसका ख्याल हमींको रखना है कि नहीं?"
"आप सच कह रही हैं।उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाकर गलती की हमने।उसके क्लास में उसीकी तरह मामूली मध्यवर्ग घरों से आए उसके बराबर के लडके अच्छे नंबरों से आगे निकल रहे थे तो उनसे इसकी तुलना करना भी गलत था।जब यह कहता कि क्लास में ठीक से पढाई नहीं होती तो यह पूछना कि फिर बाकी बच्चे इतना अच्छा कैसे कर रहे हैं...यह भी हमारी गलती थी।यह लेक्चरर को 'इडियट',स्टुपिड' कहता और बेइज्जती से उनके बारे में कुछ कहने लगता तो टोकना भी ठीक नहीं था।मन लगाकर पढे और टीवी और वीडियो गेम्स में कीमती वक्त जाया न करे,यह कहना भी गलत ही था!" सुजाता की आवाज में आवेग छिपा था।होंठ फडक रहे थे , नाक लाल हो गई थी और आंखों में हल्की सी पानी की परत दिखाई दी। वह दीवार से पीठ टिकाकर जमीन पर बैठी थी और साडी भी सलवटों से भरी थी।वह सच में बहुत दुःखी दिखाई दी।
"प्लीज,सुजाता...मैंने ऐसा तो नहीं कहा ना? मैंने गलत और सही की बात ही कहां की? तुम्हें यह समझानेवाली मैं कौन होती हूं ?प्रकाश कोई बाहर का लडका नहीं तुम दोनों का अपना बेटा है।तुम्हारी जान उसी में अटकी रहती है।ऐसे में आज जो हादसा हुआ उसका सामना करना तुम दोनों केलिए कितना मुश्किल रहा होगा इसकी कल्पना मैं कर सकती हूं। चाहे हालात कैसे भी हों ,मां बाप और बच्चों के बीच में हमेशा संपर्क बना रहना चाहिए।इसीलिए कह रही हूं कि मिल बैठकर बात करेंगे। हम दो विरोधी दल नहीं हैं।एक दूसरे के नजरिये को समझने की कोशिश करते हुए इस उलझन को सुलझाएंगे," मैंने समझाने के अम्दाज में कहकर चलपती की ओर देखा।वह कुर्सी पर बैठकर बाहर बाल्कोनी की तरफ देखते हुए हल्के हल्के मुस्कुरा रहा था।
" हां भाभी,वह हमारी जान जरूर है,पर हम यह नहीं जानते उसके मन में हमारे लिए क्या भावना है।हमेशा पेड से फल को पोषण मिलता है,फल से पेड को नहीं,है ना? तुम इतना कह रही हो,हालत सुधारने की भरपूर कोशिश कर रही हो,इसलिए हम बात करेंगे,मैं तैयार हूं।दसवीं के बाद वह 'बेस्ट ब्रेयिन्स' स्कूल में क्यों गया,किसके कहने पर गया,यह उसीसे पूछिये," सुजाता ने सीधे मेरी आंखों में देखते हुए कहा।
मैंने प्रकाश की ओर सवालिया नजरों से देखा।वह चुपचाप दीवार की ओर देखता बैठा रहा।
मियां बीवी दोनों ने तय कर लिया था कि इकलौता बेटा ही काफी है। मौसी को दुःख हुआ कि दो बच्चों को पालने की स्थिति में चलपती नहीं है।
दो साल पहले मौसी की सेहत बहुत बिगड गई और उन्हें अस्पताल में इलाज केलिए रखा गया था। तब नौ दस बार मैं मां के साथ मौसी को देखने गई थी।तभी प्रकाश को मैंने नजदीक से देखा और जाना ।बाद में जब पता चला उसे 'बेस्ट ब्रेयिन 'स्कूल में भेज रहे हैं तो मैं झुंझुला उठी।प्रकाश पढाई में ठीक है पर आइआइटी
कोचिंग जैसा कोर्स उसके बस की बात नहीं है।मैं जानती थी कि इस तरह उस लडके पर बोझ डालने का नतीजा क्या होगा।चलपती से मैंने कहा भी,पर उसने बताया कि जो भारी भरकम फीजउसने भरी वह वापस नहीं दिया जाएगा,तो मैं चुप रह गई।उसके कुछ ही दिन बाद मौसी गुजर गई।
एक ही शहर में रहने के बावजूद अपने अपने काम में व्यस्त रहकर हमें ज्यादा मिलने का मौका ही नहीं मिला।उसके बाद आज फिर उनसे मिली मैं।
सुबह काम पर जाने की जल्दी में सुजाता से मिलना नहीं हुआ।सोचा,काम खत्म करके फिर उनके घर जाऊंगी और सुजाता से मिलूंगी।अगर प्रकाश राजी होगा तो
उसे अपने साथ घर ले जाऊंगी,वरना वहीं बैठकर उससे इतमीनान से बात करूंगी।कल मां से फोने पर बात करते वक्त गुस्सा किया था,पर यहां आकर इनसे मिलने के बाद पुरानी आत्मीयताजैसे फिर से लौट आई।उन्होंने मुझसे मदद नहीं मांगी,
फिर भी उस घर में फैली निराशा का मूल कारण जानकर मदद करने की इच्छा हुई।प्रकाश के मन की पीडा को उसके मां बाप समझ लें,इस केलिए मैं कुछ करना चाहती थी।
" जरूरत के वक्त काम न आनेवाले रिश्तों का क्या फायदा?" मां के ये शब्द याद आए।शादी ब्याह में जाकर ,कुछ उपहार देकर,दावत करके आना ही रिश्तेदारी निभाना नहीं होता है ना? आजहो सके तो उन तीनों के साथ बैठकर इस समस्या को सुल्झाने की कोशिश करनी चाहिए!
जब तक मैं वहां पहुंचती चलपती दफ्तर से आ चुका था।सुजाता ने छुट्टी ले रखी थी।मेरी पहली कोशिश कामयाब हुई।हम चारों एक जगह इकट्ठा हुए।मैंने कहना शुरू किया,"प्रकाश , मैं बिल्कुलमानती हूं कि तूने जो किया उसके पीछे तेरी कोई वजह जरूर होगी।पर हम भी उसके बारे में जानना चाहते हैं।अपने मन की बात सबको साफ साफ बता दोगे तो घर का माहौल हल्का होजाएगा।सबके लिए यह अछा होगा...बता तूने ऐसा काम क्यों किया?" मैंने पहले प्रकाश से बात की।
पर उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।बार बार पूछने पर भी यही कहकर टाल दिया ,"आप नहीं जानती बुआ...इस तरह की बहस से कोई फायदा नहीं..."
कुछ देर की चुप्पी के बाद चलपती ने मुझसे कहा," छोडो दीदी! हम यह नहीं पूछेंगे कि उसने ऐसा क्यों किया,पर यह तो बताए कि आगे क्या करना चाहता है?इंटर में इसे जो अंक मिले उन्हेंदेखते हुए किसी भी अच्छे कालेज में दाखिला मिलने की उम्मीद नहीं कर सकता।मेनेजमेंट सीट खरीदने की मेरी हैसियत नहीं।तो फिर आगे की बात सोचनी पडेगी ना?"
मैंने प्रकाश की ओर देखा।उसके चेहरे पर तिरस्कार का भाव साफ नजर आया।क्या करने से यह आग बुझेगी?वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिनके कारण उसे घर छोडकर भागना पडा?अगर अबभी वैसी परिस्थितियां घर में हैं तो उन्हें दूर कैसे किया जाए? यह सब जानना हो तो उसके घर से भागने से पहले क्या हुआ ,यह जानना जरूरी है।तभी यह उलझन भरी गांठ खुलेगी।
"अगर एंट्रेन्स की परीक्षाओं में नहीं बैठना था तो फिर कोचिंग कालेज में दाखिले केलिए इतना हठ क्यों किया था?पूछिए उसीसे!डेढ लाख फीज, किताबों और आने जाने केलिए स्कूल बस कापचास हजार ! क्या हम जैसे मामूली नौकरी करनेवाले इतना खर्च कर सकते हैं? हमने कहा भी था,घर के पास जो कालेज है वहां भी पढाई अच्छी होती है,रिजल्ट अच्चे आते हैं, पर उसने हमारीबात मानी कहां?उसके स्कूल के दोस्त सब जहां जा रहे थे,उसे भी वहीं जाना था।उनके पास खूब सारा पैसा है,हमारे पास क्या है?इस फ्लैट का लोन भी चुकाने की जिम्मेदारी सर पर है... रातदिन मेहनत करके,किसी तरह निभाते आ रहे हैं।ऐसे में इसे बहुत जिम्मेदारी से पढाई करनी है कि नहीं?
"आइआइटी या बिट्स पिलानी में पढने की इतनी ही चाह है तो फिर खूब मन लगाकर पढाई करना चाहिए था।तब पैसा खर्च करके भी उसे सीट न मिलता तो हमें इतना दुःख न होता।जब मेहनतनहीं कर सकता था तो फिर ऐसे कोचिंग कालेज में जाने की जरूरत ही क्या थी? वह तो सुख सुविधाओं से भरा पडा कालेज है। एसी कमरे, सुबह छः बजे से रात ग्यरह बजे तक खुला रहनेवालासूपर लाइब्रेरी, कोई भी सवाल हो फौरन उसे हल करनेवाले लेक्चरर।इस कालेज में जाने केलिए वह इतना जिद कर बैठा था कि हमें मनाने केलिए दो दिन रूठकर खाना नहीं खाया।तो फिर बादमें मेहनत करने से क्यों जी चुराता रहा?मैं स्कूल से साढे चार बजे घर पहुंचती हूं।उसके क्लास एक बजे खत्म हो जाते हैं। चार बजे तक लाइब्रेरी में बैठकर पढ सकता था,कोई बात समझ में नआए तो लेक्चरर से पूछकर जान सकता था।पर नहीं...क्लास खत्म होते ही घर आ जाता । उसके बाद क्या करता रहता था,यह वही जाने।मैं सुबह चार बजे उठकर घर का काम,रसोई का कामनिपटाकर ,उसका टिफिन तैयार करके देती थी।पर वह अक्सर वापस ले आता था।दोस्तों के साथ कालेज कैंटीन में कु्छ भी खा लेता।पूछने पर कहता,पढ पढकर दिमाग गरम हो जाता है,जराहवा खाने कैंटीन चला गया तो क्या हो गया?" सुजाता थकी आवाज में कहती गई जैसे इन सब की आदी हो चुकी हो।
तबतक चुपचाप सुनता बैठा प्रकाश झट से उठा और वहां से जाने को हुआ।मैंने उसका हाथ पकडकर रोका और कहा," ठहरो प्रकाश, हम जब बोल रहे थे तो तुम्हारे मां और पिता ने चुपचापसुनी थी ना, तो फिर वे जो कहना चाहते हैं उसे हमें भी सुनना चाहिए कि नहीं?"
एक मिनट के बाद सुजाता के चेहरे पर विरक्ति से भरी मुस्कान आई।वह फिर कहने लगी," उस कालेज में ज्यादातर बच्चे अमीर घरों से हैं।बाकी जो कुछ बच्चे हैं वे किसी लक्ष्य को पाने केलिएरात दिन मेहनत करने की ठानकर वहां भर्ती हुए थे।और हम इन दोनों मे से किसी भी वर्ग में नहीं आते।हमारे बहुत समझाने के बावजूद वह नहीं माना, वहां भर्ती कराने तक सत्याग्रह करतारहा।हमारे लाड प्यार का फायदा उठाया और हमें ब्लैक मेल किया। खूब जी लगाकर पढूंगा,यह वादा किया था,पर वादा निभाने की जरूरत नहीं समझी इसने।
"उसका कोर्स प्राइमरी टीचर मेरी समझ में आने से रहा।पेरेंट टीचर मीटिंग में जब भी जाते हमें खाली कापियां और उत्तर पत्र दिखाकर लेक्चरर जो सवाल पूछते हमसे उनका जवाब नहीं देतेबनता था। अवाक रह जाते।प्रकाश से पूछा तो उसने कहा स्कूल में सीबीएससी के सिलबस और यहां के सिलबस में बहुत फर्क है।उसे सीखने में वक्त लगेगा और मैं जल्दी सीख जाऊंगा।हम भी इनबातों को ज्यादा जानते नहीं हैं।उसकी बात पर यकीन करते रहे।दूसरे लडकों के साथ पढने और स्पेशल क्लास का बहाना करके कई बार फिल्म देखने या घूमने चला जाता था।हमने कितने प्यारसे पाला था,उसपर कितना यकीन किया था,फिर हमसे झूठ बोलने की जरूरत ही क्या थी?" सजाता की पीडा को मैं समझ रही थी।मुझसे कुछ जवाब देते नहीं बना।
प्रकाश कुर्सी पर बार बार पहलू बदल रहा था,उसे बेचैनी महसूस हो रही थी।
कुछ देर वहां चुप्पी छाई रही।फिर सुजाता ने कहना शुरू किया," सब कहते हैं बच्चों को दूसरों का उदाहरण देकर उनसे तुलना करना गलत है।मैं भी यही सोचती थी।पर मैंने बचपन में सुना था,'स्पर्धया वर्धते विद्या'।किसी से भी आच्छी बातें सीख सकते हैं, प्रेरणा पा सकते हैं।पर आज कल के बच्चे सलाह को भी जबर्दस्ती समझने लगे हैं।बच्चे कुछ गलत करे तो उन्हें डांटने से मां बाप खुदघबराते हैं।मनोविज्ञान कहता है बच्चों को आजादी मिलनी चाहिए,उनका विकास स्वाभाविक रूप से होना चाहिए।पर ये सारे प्रयोग वे दूसरों के बच्चों पर ही करते हैं।अनुशासन में रहना, मन कोकाबू में रखना पढते बच्चों को कितना जरूरी है,यह तो कोई सोचता ही नहीं!कुछ दिन बाद शायद अमेरिका की तरह बच्चों को डांटने पर मां बाप को यहां भी जेल भेज देंगे!
"मेरी दीदी का बेटा घर के काम में उसकी मदद करता है और पढाई में भी तेज है।और एक यह है कि मां कितना भी खटे कुछ परवाह नहीं।कभी कोई छोटा मोटा काम करने को कहती तो लंबाभाषण देने लगता है कि कालेज की पढाई करके मैं बहुत थक गया हूं,और भी बहुत सारा होमवर्क भी करना है...
"हम उसकी तुलना किसीसे करें तो गलत करते हैं,पर वह हमें ताने दे सकता है कि संदीप ने नये स्पोर्ट्स शू खरीदे या बॉबी ने अपना जन्मदिन पिज्जा हट में मनाया या सुधीर रोज बेन्ज गाडी मेंस्कूल आता है..."
सुजाता एक पल केलिए रुकी तो चलपती बीच में बोल पडा," रहने भी दो ना,यह कहानी तो जल्दी खत्म नहीं होनेवाली...एक दिन की कहानी थोडे ही है,दो साल का एक्शन,रियाक्शन,औरइनाक्शन की दास्तान है...आज केलिए बस करते हैं।काफी पीकर कुछ और बात करते हैं..." और उठ गया।
यह सब सुनकर मैं ऊबने न लगूं ,एक तरफ यह डर और दूसरी तरफ इतने दिनों बाद अपने मन का दुःख बेटे की समझ में आए इस बात की आतुरता, दोनों चलपती के चेहरे पर साफ नझर आरहे थे।
चलपती उठकर रसोई की ओर जाने लगा तो सुजाता ने कहा," अपने भाई को देखा आपने? सारे बाल झड गए और गंजे होने लगे हैं।नींद पूरी न होने से आंखों के नीचे काले साये...देखा कितनेकमजोर हो गए?दफ्तर के काम के बाद शाम को पार्ट टाइम दूसरी नौकरी भी करने लगे हैं। रात का खाना खाने घर आने की भी फुर्सत नहीं मिलती तो वहीं होटल में कुछ नाश्ता कर लेते है और रात दस बजने के बाद घर आते हैं।और मेरी प्राइवेट स्कूल की नौकरी तो आप जानती हैं कैसी होती है।अब वह अठारह का हो गया,वोट डालने लायक उम्र हो गई।नेता चुन सकता है।पर आप जैसे बुद्धिमानों की नझर में असहाय है।मां बाप की हिंसा का शिकार मासूम बच्चा है। और तो और,वह भी यही सोचता है।"
चलपती ने उसकी बातें सुन लीं तो दौडता आया और घबराया सा बोला," क्या है सुजाता,क्या बात कर रही हो?"
" ठहरो चलपती उसे कहने दो!" मैंने रोका।
"वह चाहता है पचास साल का पिता और चालीस साल की मां उसकी सारी जरूरतें पूरी करें,तो फिर परिवार केलिए मैं क्या कर सकता हूं,यह सवाल क्यों नहीं आता उसके मन में? पैसों की बात नहीं कर रही हूं।दिन भर हड्डी पसली एक करके देर रात घर पहुंचनेवाले पिता से प्यार से दो बोल नहीं बोल सकता?इस छोटे से काम से उन्हें कितनी खुशी मिलती! कितना भी पढाई में डूबा हो, थककर घर आए को एक गिलास पानी तो दे सकता है,है ना? उनके हाथ से बैग ले सकता है ना? कुछ भी तो नहीं करता।अमेरिका के बच्चों की तरह आजादी तो चाहिए पर उनकी तरह सोलहवें साल से आत्मनिर्भर बनना नहीं चाहता।हमेशा ताने मारता रहता है कि फलां के पिता बहुत अमीर हैं,किसीकी मम्मी खुद गाडी चलाकर आती है और बेटे को स्कूल छोडती है।कोई बहुत माडर्न और स्टायिलिश है,कोई पिता सिंगापूर और आस्ट्रेलिया से बेटे केलिए अच्छे अच्छे तोहफे लाकर देते हैं...इस फेहरिस्त का अंत ही नहीं...!
"एक बार कालेज में पेरेंट्स मीट केलिए गए तो इसे हमारे साथ बैठने में शर्म आ रही थी।हमारी बारी आने तक गलियारे में ही चहलकदमी करता रहा।हमने वजह पूछी तो असली बात मालूम हुई।खीजकर बोला," तुम ऐसे बहनजी की तरह क्यों आती हो,मम्मी? अच्छे कपडे पहनकर स्टायिलिश क्यों नहीं दिखती?" मैं अवाक रह गई।
सुजाता के वाक्प्रवाह में बहती जा रही थी मैं।थोडा रुककर उन दोनों को गौर से देखा।सचमुच दोनों बहुत बदल गए।अपनी उम्र से लगभग दस साल बूढे दिख रहे थे।
" बचपन में मां और दादी मुझसे भी अक्सर कहती रहती थीं कि दूसरों को देखकर अच्छे गुण सीखो। उनकी बातों पर गौर करके अच्छी बातें जहां भी दिखाई देतीं सीख लेते थे।आज के बच्चों के आगे किसीकी तारीफ करना या किसीसे तुलना करना गुनाह है।हमेशा अपने बच्चे की तारीफ करते रहें,छोटी सी सफलता पर भी खूब तारीफ के पुल बांधें।फिर ये दूसरों से क्या सीखेंगे?कभी गलती से कुछ कह दिया तो घर से भाग जाएंगे।और भी कुछ कर सकते हैं।तब बच्चा भी नहीं रहेगा और लोगों की सहानुभूति भी नहीं मिलेगी।सब हमीं को दोषी मानेंगे!इतने साल परवरिश करके बडा किया फिर भी कोई सलह भी नहीं दे सकते।मन की बात कह नहीं सकते।एक बात बताइए भाभी,आज मां बाप बच्चों को इतनी छूट दे रहे हैं ना,क्या इसका नतीजा हमेशा अच्छा ही होता है? क्या आप जानती हैं कई मां बाप बच्चों से डरते हुए जी रहे हैं?मां बाप का बच्चों से रिश्ता इतना नाजुक हो गया कि छूते ही चटक जाए? उसकी जिंदगी अच्छी तरह कटे इसीलिए खुद मुश्किलें सहकर भी हमने उसकी पसंद के कालेज में सीट दिलाया।हमारा यह उद्देश्य बिल्कुल नहीं था कि कल वह बडा इंजीनियर या अफसर बन जाता तो हम गर्व महसूस करेंगे,या अपनी अधूरी इच्छाओं को उसके सर मढने का भी हमारा इरादा नहीं है।बाहर धक्के खाते हुए,तनाव का सामना करते हुए बडे जतन से पालते हैं,ऐसे में बच्चे हमारा तिरस्कार या अपमान करेंगे तो जिंदगी कडुई लगने लगती है।फिर भी हम जिंदगी से कहीं भाग भी नहीं सकते!अगर उसकी जगह हम घर से भाग जाते तो क्या वह हमें ढूंढकर घर वापस लाने केलिए इतनी तकलीफ उठाएगा? क्या कहती हैं आप?" सुजाता ने होंठों पर मुस्कान लाते हुए कहा।
वह मुस्कान खुशी की नहीं बल्कि उदासी से भरी थी।वह मेरे दिल को घायल कर गई।इतने में चलपती ट्रे में काफी के प्याले लाया।पहले प्रकाश के पास जाकर कहा," बोर्नवीटा का कप लेले,बेटे!"प्रकाश ने आंखें उठाकर अपने पिता को देखा।उसकी आंखें नम थीं और शीशे की तरह चमक रही थीं। अपना कप लेते हुए ," आइ एम सारी,पापा..." कहने लगा तो गला रुंध गया,जैसे गले में कुछ अटक गया हो।पर आंखों से दो मोती जरूर चू पडे।मुंह से न कह सका,पर उसकी आंखों ने सबकुछ कह दिया।फिर उसने उसी भाव से अपनी मां की ओर देखा।
काफी पीकर कुछ देर यूं ही बैठे रहे।मैं घर जाने केलिए उठी तो बाहर तक आकर चलपती और सुजाता ने मुझे धन्यवाद कहा।मैंने आज उनसे जो सीखा,उसके लिए शब्दों में कृतज्ञता कैसे प्रकट की जाए यह समझ में नहीं आया तो मैं कुछ कहे बिना ही वहां से चल दी।
(अनुवाद : आर. शान्ता सुन्दरी)