लुटेरे का विवेक (कहानी) : वृंदावनलाल वर्मा

Lutere Ka Vivek (Hindi Story) : Vrindavan Lal Verma

बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवहृत और व्यक्त किया था—‘रैयत सब राजी रहे, ताजी रहे सिपाह’। भीम बल-पराक्रम और प्रजा-पालन के लिए एक समान प्रसिद्ध था।

मुहम्मद साम ने गुजरात पर आक्रमण किया। भीम ने उसे बुरी तरह हराया। हार खाई, साम का धन-जन बहुत नष्ट हुआ। गुजरात की राजधानी पाटन थी। पाटन में गजनी का बसाबुहीर नाम का एक मुसलमान व्यवसायी बहुत समय से रहता था। उसके जहाज चलते थे। पाटन से बगदाद और गजनी माल भेजा-मँगाया करता था। लाखों की संपत्ति पाटन में थी और कम-से-कम दस लाख की गजनी में। बसाबुहीर पाटन की नगर पंचायत का एक मुखिया भी हो गया था।

मुहम्मद साम दिल्ली लौटकर फिर से गुजरात पर चढ़ाई करने की बात सोचने लगा; परंतु इतना नुकसान उठाकर आया था कि रुपए-पैसे की बहुत कमी पड़ गई। सिपाही और रुपए दोनों की आवश्यकता। बड़ी सेना खड़ी करने के लिए काबुल-कंधार इत्यादि से लड़नेवाले चाहिए। इन लड़नेवालों के लिए पैसा का ही आकर्षण सबसे बड़ा था। इधर साम की गाँठ बहुत कमजोर।

साम के एक मंत्री ने उसे सुझाव दिया, ‘बसाबुहीर नाम का एक गजनवी पाटन में रहता है। उसने बहुत माल-जायदाद पाटन में जोड़ रक्खी है, और कम-से-कम दस लाख की गजनी में। गजनवी होने पर भी बसाबुहीर हिंदी हो गया है—पाटन शहर का एक मुखिया तक। गजनी में उसकी जो जायदाद है, वह जब्त कर ली जाए। उस रुपए से काबुल-कंधार के लड़ाकुओं को इकट्ठा करने में बड़ी मदद मिलेगी; फिर गुजरात की फतह बाएँ हाथ का खेल हो जाएगा।’

साम सोचने लगा और सोचता रहा। कई दिन तक उसने अपने मंत्री को कोई उत्तर नहीं दिया।

मंत्री उकता रहा था। उसने अपने हाथ से लिखकर एक प्रार्थना-पत्र मुहम्मद साम के पास भेजा, जिसमें उसने अपने जबानी सुझाव को विस्तार के साथ प्रकट किया था।

मुहम्मद साम निश्चय पर पहुँच गया। मंत्री के प्रार्थना-पत्र पर साम ने लिख भेजा—‘अगर कभी पाटन शहर मेरे हाथ में आया तो बसाबुहीर की पाटनवाली जायदाद की कौड़ी-कौड़ी लूटकर अपने कब्जे में कर लूँगा—मेरा हक होगा; लेकिन उसकी जो जायदाद गजनी में है, उसे जब्त करना बटमारी के बराबर होगा और इनसाफ के बिल्कुल खिलाफ।’

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