लुक्यो मुङ : सिक्किम की लोक-कथा

Lukyo Mung : Lok-Katha (Sikkim)

किसी गाँव में सात भाई रहते थे। वे सभी शिकार के अभ्यस्त थे। उन सबका विवाह हो चुका था। उन सभी भाइयों का काम जंगल में जाना और शिकार करके लाना था। उन सातों की पत्नियों को मांस खाने की आदत पड़ चुकी थी। सातों भाई सबेरा होते ही शिकार को निकल जाते थे और शाम होते-होते अपने घर लौट आते थे। जिस दिन शिकार नहीं मिलता और सभी भाई खाली हाथ लौटते, उस दिन उनकी पत्नियाँ उनसे बहुत नाराज हो जातीं। उनका भोजन मांस के बिना अधूरा होता। उनकी पत्नियाँ मुङ (चुड़ैल) के नाम से जानी जाती थीं। जिस दिन घर पर खाने को मांस होता या उनके पति शिकार लाते, वे बड़े प्रसन्न होती। उस दिन पत्नियाँ अपने पति की खूब सेवा-टहल करतीं और जिस दिन उन्हें मांस नसीब नहीं होता, उनका व्यवहार बड़ा चिड़चिड़ा हो जाता।

एक दिन जंगल में शिकार करते भाइयों को कोई शिकार नहीं मिला। दिन भर की भागा-दौड़ी के बाद भी कोई शिकार हाथ नहीं लगा, उस पर भूख से उनका बुरा हाल हो रहा था। भूख से स्थिति इतनी बुरी थी कि खाने को कुछ भी आ जाए, उसे वे खाने को तैयार थे, पर उनके पास कुछ नहीं था। उनके पास चलने तक की ताकत शेष नहीं थी। थकावट के मारे चलते नहीं, साँप की भाँति रेंगने लगे थे। तभी उन्हें एक आदमी की लाश जमीन पर पड़ी हुई दिखी, जिसका आधा हिस्सा जंगली जानवर खा चुके थे। भाइयों की स्थिति भूख से बेहाल हो चुकी थी। उन्होंने आपस में कहा, “अगर भूख मिटानी है तो इस लाश को ही खाना होगा, वरना कोई दूसरा उपाय नहीं है। अगर इसे छोड़ आगे बढ़ते हैं तो कहीं यह भी हाथ से न निकल जाए!” अंत में उन्होंने उसी लाश को चीर-फाड़ करके खाया और अपनी भूख को शांत किया। उसके पश्चात् भाइयों में इस विषय पर बातचीत होने लगी कि आदमी के मांस खाने संबंधी बात का भविष्य में कभी किसी के साथ जिक्र नहीं किया जाएगा। यह बात हमें अपनी पत्नियों से भी छिपाए रखनी है, वैसे भी हमारी पत्नियाँ मुङ (चुड़ैल) के नाम से जानी जाती हैं। वे मांस के प्रति गहरा लगाव रखती हैं, अगर उन्हें इस विषय में जानकारी होगी तो वे हमें खा जाएँगी। आपस में कभी इस बात का खुलासा किसी के सामने नहीं किया जाएगा, ऐसा प्रण करके सभी अपने घरों की ओर लौटे।

इधर पत्नियाँ पति की राह तकते-तकते थक चुकी थीं और मांस के आने की उम्मीद में बैठी थीं। लेकिन भाइयों के गृह-प्रवेश पर जब उन्हें जानकारी हो गई कि मर्द आज खाली हाथ लौटे हैं तो उनकी निराशा की कोई सीमा नहीं रही, सभी पति पर बहुत क्रोधित हुईं। उन्हें लगा, दिन भर में जो शिकार हाथ लगा होगा, उसे वे जंगल में ही मिल-बाँटकर खा आए हैं। मर्दों ने अपनी पत्नियों को बहुत विश्वास दिलाया कि आज दिन भर कुछ हाथ नहीं आया, पर उनकी पत्नियाँ कुछ सुनने को तैयार नहीं थीं। वे तो बस रट लगाए बैठी थीं कि उन्हें मांस चाहिए। जैसे-तैसे उन्हें मना कर सब सोए। रात में छोटे भाई की पत्नी उठी, उसने अपने पति का मुँह सूँघा। उसे मांस की महक आई, तभी उसने देखा, दाँतों के बीच मांस का टुकड़ा फँसा हुआ है, जिसे उसने निकालकर खाया। पत्नी को वह टुकड़ा अब तक खाए मांस से बहुत भिन्न और अत्यधिक स्वादिष्ट लगा। आखिर उसने अपने पति से पूछ ही लिया। मर्द ने बात को काफी घुमाने की चेष्टा की, क्योंकि ‘इस बात का कभी खुलासा नहीं होगा’ करके प्रण लिया गया था; परंतु बहुत दबाव में आ जाने से उसे अंत में सच उगलना पड़ा। जब मर्द सो गया, तब पत्नी ने उसके शरीर का कुछ हिस्सा काटकर खाया। यह बेहद स्वादिष्ट लगा, वह अपने को रोक नहीं पाई और अपने पति को मारकर उसका मांस जमकर खाई।

सबेरा होने से पूर्व वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी, क्योंकि सबके सामने उसका सच खुल जाता। सूर्योदय से पूर्व उसने अपने को बचाने के लिए तालु (सूप) का पंख बनाया, झाड़ू की पूँछ बनाई और लुक्यो मुङ (एक प्रकार का पक्षी, चील और उल्लू से मिलता-जुलता पक्षी) की तरह भागने लगी। वह घबराकर भाग रही थी, बीच-बीच में उछल भी जाती और अचानक उसके मुँह से ‘मक्ष’ (माँ) शब्द निकल आता। इस घटना के बाद से जब लुक्यो मुङ की आवाज में ‘मक्ष’ शब्द निकलता है तो बड़ा ही अशुभ माना जाता है। गाँव में बड़े-बुजुर्गों का मानना है, जब भी गाँव में लुक्यो मुङ पक्षी की आवाज आती है, तब गाँव में किसी की मृत्यु जरूर होती है। इस समाज में आज भी इसकी आवाज को अशुभ माना जाता है।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

  • सिक्किम की कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां