लो अर्न के सुनहरी सेब : आयरिश लोक-कथा

Lough Earne’s Golden Apples : Irish Folktale

यह उस समय की बात है जब आयरलैंड के पश्चिमी प्रान्तों का कोई नाम नहीं हुआ करता था। बस जो कोई भी वहाँ पहले बस जाता था उसी के नाम से वह जगह जानी जाती थी जब तक कि वह मर नहीं जाता था। फिर वही जगह दूसरे आदमी के नाम से जानी जाती थी जो कोई वहाँ रहने आ जाता था।

वहाँ एक राजा राज करता था जिसका नाम था कौन । उस की पत्नी बिटेन की थी जिसका नाम था ऐडा। कौन के राज्य में किसी भी बात की कोई कमी नहीं थी इसलिये उसकी सारी जनता आनन्द से अपने दिन बिता रही थी।

उन दोनों के एक बेटा था जिसका नाम उन्होंने कौन–ऐडा रख दिया क्योंकि किसी ज्योतिषी ने उनको बताया था कि उस लड़के के अन्दर उसके माता और पिता दोनों के गुण आयेंगे।

जैसे जैसे कौन–ऐडा बड़ा होता गया उसके अन्दर सचमुच में ही उसके माता और पिता दोनों के गुण दिखायी देने लगे।

पर उसी समय बदकिस्मती से ऐडा बहुत बीमार पड़ी और उसी बीमारी में वह चल बसी। राजा और उसकी जनता ने रानी की मौत का एक साल तक बहुत दुख मनाया और फिर ज्योतिषियों के समझाने पर राजा ने दूसरी शादी कर ली।

नयी रानी बहुत अच्छी थी। बरसों तक वह पुरानी रानी की तरह ही रही और सभी उससे बहुत खुश थे।

इस बीच उसके कई बच्चे हुए पर कुछ साल बाद ही उसको लगने लगा कि राजा कौन–ऐडा को बहुत चाहता है और बाद में भी वह उसी को राजगद्दी देगा और उसके अपने बच्चों की परवाह नहीं करेगा।

यह सोच कर रानी बहुत परेशान हुई। रानी की यह परेशानी इतनी बढ़ी कि उसने कौन–ऐडा को मारने का फैसला कर लिया। वह एक जादूगरनी के पास पहुँची और उसको अपने आने की वजह बतायी।

जादूगरनी वह सब सुन कर बोली — “अगर मैं तुम्हारा यह काम कर दूँ तो तुम मुझे क्या इनाम दोगी?”

रानी बोली — “जो तुम चाहो।”

जादूगरनी बोली — “तुमको मेरी बाँह से बनी खाली जगह रुई से भरनी पड़ेगी और जहाँ मैं अपने तकुए से छेद करूँगी वहाँ लाल गेहूँ भरना पड़ेगा।”

रानी बोली — “मैं तैयार हूँ।”

जादूगरनी ने अपने घर के पास अपनी बाँह को नीचे जमीन पर रख कर एक छेद सा बना लिया और अपना घर रुई से भरवा लिया।

फिर वह अपने भाई के घर पर चढ़ गयी। वहाँ उसने तकुए से छेद किया और उसके घर को उसने लाल गेहूँ से भरवा लिया। इस सबको करने के बाद वह रानी बोली — “अब तुमको अपना इनाम मिल गया अब तुम मेरा काम करो।”

जादूगरनी बोली — “तुम यह शतरंज ले जाओ और राजकुमार के साथ शतरंज खेलो। पहले ही खेल में तुम जीत जाओगी पर खेलने से पहले तुम एक शर्त रखना, वह यह कि जो कोई भी बाजी जीतेगा वह हारने वाले से कोई भी काम करा सकता है। जब तुम बाजी जीत जाओ तब तुम उससे कहना कि या तो वह तुमको एक साल और एक दिन के अन्दर अन्दर फ़िरबोग के बाग में लगे तीन सुनहरे सेब, उसका काला घोड़ा और उसका अनोखी ताकत वाला कुत्ता ला कर दे और वह अगर यह काम नहीं कर सकता तो फिर कभी तुमको अपनी शक्ल न दिखाये।

फ़िरबोग लो अर्न में रहता है और इन सबकी इतनी ज़्यादा देखभाल करता है कि उसके महल में से इनको लाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है।

वह खुद अपनी ताकत से इनको नहीं ला सकता और अगर उसने लाने की कोशिश की तो उसको जान से हाथ धोना पड़ेगा।”

रानी यह सुन कर बहुत खुश हुई और वह जादूगरनी से शतरंज ले कर घर चली गयी। घर पहुँचते ही उसने राजकुमार को शतरंज खेलने के लिये बुलाया और दोनों शतरंज खेलने बैठे।

जैसा कि जादूगरनी ने कहा था रानी शतरंज की पहली ही बाजी जीत गयी।

परन्तु वह राजकुमार को पूरी तरह से अपने कब्जे में करना चाहती थी इसलिये उसने दूसरी बाजी बिछा दी। परन्तु आश्चर्य, दूसरी बाजी राजकुमार बिना किसी कोशिश के ही जीत गया।

राजकुमार बोला — “क्योंकि पहली बाजी आप जीती थीं इसलिये पहले आप अपनी शर्तें बताइये।”

रानी बोली — “मेरी शर्त यह है कि तुम मुझको एक साल और एक दिन के अन्दर अन्दर फ़िरबोग के बाग में लगे तीन सुनहरे सेब, उसका काला घोड़ा और उसका अनोखी ताकत वाला कुत्ता ला कर दो और अगर यह काम न कर सको तो देश छोड़ कर चले जाओ, और या फिर मरने के लिये तैयार हो जाओ।”

राजकुमार बोला — “ठीक है। अब आप मेरी शर्त सुनें। जब तक मैं लौट कर आऊँ आप पास वाली मीनार की चोटी पर बैठें और उतना ही लाल गेहूँ खायें जितना कि आपका तकुआ उठा सकता है और कुछ भी नहीं।

और अगर मैं एक साल और एक दिन तक न लौटूँ तो समय पूरा होने पर आप आजाद हैं।”

कौन–ऐडा को लम्बा सफर करना था सो वह रानी को मीनार की खुली छत पर एक साल और एक दिन के लिये बिठा कर चल दिया।

उसको मालूम था कि वह खुद अपनी ताकत से तो इन चीज़ों को पा नहीं सकता इसलिये वह अपने एक जादूगर दोस्त फ़ियोन डाढना के पास सलाह करने जा पहुँचा। फ़ियोन डाढना ने उसका प्रेम से स्वागत किया, गरम पानी से उसके पैर धोये, कुछ खिलाया पिलाया और फिर उससे उसके वहाँ आने की वजह पूछी।

कौन–ऐडा ने उसको अपनी सारी कहानी बता कर पूछा —
“अब यह बताओ कि तुम मेरी इसमें क्या सहायता कर सकते हो?”

फ़ियोन डाढना बोला — “मैं अभी तो तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता पर कल सुबह मैं अपने हरे कमरे में जाऊँगा और जादू से पता करूँगा कि मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ।”

अगले दिन जब सुबह हुई, सूरज उगा तो फ़ियोन डाढना ने अपने जादू से अपनी पूजा से अपने देवता से बात की।

बाद में उसने कौन–ऐडा को बुला कर कहा — “दोस्त, तुम एक भारी परेशानी में पड़ गये हो। यह जाल तुमको मारने के लिये बिछाया गया है।

क्योंकि धरती पर लौ कौरिब की सबसे बड़ी जादूगरनी कैल्लीच जो लो अर्न के राजा की बहिन है और आजकल यहीं आयरलैंड में है, वही रानी को ऐसी सलाह दे सकती है। वह जादूगरनी मेरी और मैं जिस देवता की पूजा करता हूँ उसकी, हम दोनों की ताकत से बाहर है। पर तुम उम्मीद न छोड़ो। ऐसा करो कि तुम आदमी के सिर वाली चिड़िया स्लियाभ मिस के पास चले जाओ। उसके बस में अगर कुछ होगा तो वह तुम्हारे लिये जरूर कर देगी। क्योंकि इस पश्चिमी दुनियाँ में उसके जैसी चिड़िया और कोई नहीं है।

वह भूत, वर्तमान और भविष्य सबके बारे में सब कुछ जानती है। वह कहाँ रहती है यह जानना थोड़ा मुश्किल काम है पर सबसे ज़्यादा मुश्किल काम है उससे जवाब पाना। पर मैं कोशिश करता हूँ।

तुम इस लम्बे बालों वाले छोटे घोड़े पर बैठ कर चले जाओ क्योंकि वह चिड़िया तुमको तीन दिन बाद दिखायी देगी। यह घोड़ा तुमको उसके रहने की जगह तक ले जायेगा।

हो सकता है कि वह चिड़िया तुम्हारे सवालों के जवाब देने से इनकार कर दे। ऐसी हालत में तुम यह रत्न रखो। यह तुम उसको भेंट में दे देना। इस भेंट को पा कर वह तुम्हें तुम्हारे सवालों के जवाब जरूर दे देगी।”

राजकुमार ने अपने जादूगर दोस्त को बहुत बहुत धन्यवाद दिया और उससे रत्न ले कर उस छोटे से लम्बे बालों वाले घोड़े पर बैठ कर चल दिया।

जैसा कि उसके दोस्त ने बताया था वह तीन दिन में ही चिड़िया के पास पहुँच गया। जा कर उसने चिड़िया को रत्न भेंट किया और अपना सवाल पूछा।

चिड़िया ने पत्थर पर रखा हुआ रत्न अपनी चोंच में उठाया और एक ऊँची चट्टान पर जा बैठी और आदमी की आवाज में बोली —
“ए कौन–ऐडा, क्रुआचेन के राजा के बेटे, अपने दाहिने पाँव के नीचे का पत्थर हटाओ। उसके नीचे एक गेंद और एक प्याला रखा है। उसे उठा लो।

फिर घोड़े पर चढ़ कर उस गेंद को अपने घोड़े के सामने फेंको। उसके बाद तुम्हारा घोड़ा ही तुमको बता देगा कि तुमको क्या करना है।” इतना कह कर चिड़िया तुरन्त उड़ कर वहाँ से चली गयी।

राजकुमार ने बड़ी सँभाल कर चिड़िया के बताये अनुसार सब कुछ किया। गेंद एक तरफ को लुढ़कती चली गयी और उसका घोड़ा उस गेंद के पीछे पीछे चल दिया।

वह घोड़ा उसको लो अर्न के राज्य की हद तक ले आया। वहाँ आ कर वह गेंद झील के पानी में चली गयी और गायब हो गयी।

अब घोड़ा बोला — “देखो, अब तुम मेरे कान में हाथ डाल कर वहाँ से एक छोटी बोतल और एक टोकरी निकाल लो और मुझे तेज़ी से भगा ले चलो क्योंकि अब तुम्हारे सामने बहुत सारी मुश्किलें आने वाली हैं।”

कौन–ऐडा ने घोड़े को बहुत बहुत धन्यवाद दिया और उसने घोड़े के कान में हाथ डाल कर एक छोटी बोतल और एक टोकरी निकाल ली।

जब वह घोड़े पर बैठा जा रहा था तो झील का पानी उसके सिर के ऊपर छत की तरह दिखायी दे रहा था। लगता था घोड़ा झील के अन्दर घुस गया था। झील में घुसने के बाद उसको वह गेंद फिर दिखायी दे गयी थी।

चलते चलते अब वे एक ऐसी जगह आ गये थे जहाँ से एक रास्ता जाता था और उस रास्ते पर तीन डरावने साँप पहरा दे रहे थे।

घोड़ा बोला — “देखो, टोकरी खोलो और उसमें से तीन माँस के टुकड़े इन तीनों साँपों के मुँह में डाल दो और फिर मेरे ऊपर ठीक से बैठ जाओ ताकि हम इन साँपों के बीच से गुजर सकें।

अगर तुम इन तीनों साँपों के मुँह में माँस के टकड़े ठीक से डाल सके तो हम लोग इनके बीच से ठीक से गुजर जायेंगे नहीं तो बस समझो कि गये।”

कौन–ऐडा का निशाना अच्छा था सो उसने तीनों माँस के टुकड़े उन तीनों साँपों के मुँह में ठीक से डाल दिये। यह देख कर घोड़ा बोला — “तुम्हारी विजय हो राजकुमार।”

और यह कहते हुए उसने छलाँग लगा दी। उस छलाँग में उसने नदी और साँपों द्वारा रक्षित दोनों ही जगहें पार कर दीं।

घोड़े ने पूछा — “कौन–ऐडा, तुम मेरे ऊपर बैठे हो न?”

राजकुमार बोला — “यह काम तो मेरी आधी ताकत से ही हो गया।”

घोड़ा बोला — “तुम बहुत बहादुर राजकुमार लगते हो। एक खतरा तो हमने जीत लिया पर अभी दो खतरे और बाकी हैं। भगवान ने चाहा तो तुम उनको भी जीत लोगे।”

वे गेंद के पीछे पीछे आगे बढ़ते जा रहे थे। चलते चलते वे एक ऐसे पहाड़ के पास आ गये जो आग उगल रहा था। घोड़ा बोला — “राजकुमार, अब तुम इस खतरनाक कूद के लिये तैयार हो जाओ।”

राजकुमार डर के मारे काँप गया। उससे कोई जवाब नहीं बन पा रहा था। वह जितनी अच्छी तरह से हो सकता था घोड़े की पीठ को कस कर पकड़ कर बैठ गया।

घोड़े ने दूसरी कूद लगायी और आग उगलते हुए पहाड़ के दूसरी ओर कूद गया। घोड़ा फिर बोला — “कौनमौर के बेटे कौन ऐडा, तुम ठीक तो हो न?”

राजकुमार बोला — “बस ज़िन्दा हूँ क्योंकि मैं आग से बहुत झुलस गया हूँ।”

घोड़ा बोला — “क्योंकि तुम ज़िन्दा हो इसी लिये मैं कहता हूँ कि तुम अपने काम में जरूर ही सफल होगे। हमारे भयानक खतरे टल गये हैं और आशा है कि अब हम तीसरा और आखिरी खतरा भी ठीक से पार कर लेंगे।”

कुछ दूर और चलने के बाद घोड़ा बोला — “देखो, बोतल में से मरहम निकाल कर अपने घावों पर लगा लो।”

राजकुमार ने घोड़े की बात मान कर ऐसा ही किया। मरहम लगाते ही उसके सारे घाव भर गये और वह पहले की तरह से ठीक हो गया।

वे गेंद के पीछे पीछे चलते एक शहर के पास आ गये थे। उस शहर के चारों तरफ ऊँची ऊँची दीवार खड़ी थी।

उस शहर में घुसने का केवल एक ही दरवाजा दिखायी दे रहा था और वह दरवाजा भी हथियारबन्द लोगों से रक्षित नहीं था बल्कि दो ऊँची ऊँची मीनारों से सुरक्षित था जिनमें से आग निकल रही थी।

घोड़ा यहाँ आ कर रुक गया और राजकुमार से बोला — “मेरे दूसरे कान में से एक चाकू निकाल लो। मुझे मार डालो और मेरा पेट चीर कर उसमें बैठ जाओ। इस तरह तुम बिना किसी तकलीफ के इन मीनारों के बीच में से निकल जाओगे।

अन्दर शहर में जा कर जब तुम्हारी इच्छा हो तब बाहर निकल आना। एक बार तुम शहर के अन्दर पहुँच गये तो फिर तुम जब चाहो बाहर आ सकते हो और जब चाहो अन्दर जा सकते हो। इसके बदले में मैं तुमसे एक ही प्रार्थना करना चाहूँगा कि जैसे ही तुम दरवाजे में से शहर के अन्दर घुसोगे तुम उन सब शिकारी चिड़ियों को भगा दोगे जो मेरे शरीर को खाने आयेंगीं।

और दूसरे अगर तुम्हारी बोतल में ज़रा सा भी मरहम बचा होगा तो उसे मेरे शरीर पर डाल देना ताकि मेरा शरीर सड़े नहीं। और अगर हो सके तो एक गड्ढा खोद कर मेरे शरीर को उसमें गाड़ देना।”

कौन–ऐडा बोला — “ओ वफादार घोड़े, तुमने मेरी इतनी ज़्यादा सहायता की है कि ऐसा कह कर तुम मेरा अपमान कर रहे हो।

मैं राजकुमार की हैसियत से तुम्हारा बहुत ही आभारी हूँ और यह कहता हूँ कि मेरे ऊपर कितनी भी बड़ी मुसीबत क्यों न आ जाये मैं कभी अपनी दोस्ती को अपनी जान बचाने के लिये कुर्बान नहीं करूँगा। मैं ऐसा नहीं कर सकता जो तुम मुझसे कह रहे हो।”

घोड़ा बोला — “तुम मेरी फिक्र न करो, जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही करो। भगवान तुमको तुम्हारे काम में सफलता दे।”

राजकुमार बोला — “नहीं, कभी नहीं, मैं ऐसा कर ही नहीं सकता।”

घोड़ा दुखी आवाज में बोला — “राजकुमार, अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम दोनों ही बरबाद हो जायेंगे और फिर हम कभी नही मिल पायेंगे पर अगर तुम जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही करोगे तो सब कुछ इतना आसान हो जायेगा कि तुम अभी उसे सोच भी नहीं सकते।

मैंने तुम्हें अभी तक कभी धोखा नहीं दिया इसलिये तुम्हें मेरी इस सलाह पर भी शक नहीं करना चाहिये इसलिये जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही तुम करो वरना मेरी मौत से भी बदतर हालत होगी। और अगर अब भी तुमने मेरा कहा न माना तो समझ लेना कि हमारी तुम्हारी दोस्ती खत्म।”

राजकुमार को घोड़े की बात समझ में आ गयी। और दूसरा कोई उपाय दिखायी न देने पर राजकुमार ने घोड़े के दूसरे कान में से चाकू निकाला और काँपते हाथों से उसकी गरदन पर चला दिया। राजकुमार की आँखों से टपाटप आँसू बह निकले।

पर जैसे ही वह चाकू उसने घोड़े की गरदन में घुसाया वह जैसे किसी जादुई ताकत से वहीं अटक कर रह गया। घोड़ा मर गया और गिर पड़ा।

राजकुमार घोड़े के मरने पर बहुत ज़ोर ज़ोर से रोया और इतना रोया कि रोते रोते बेहोश हो गया। कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो उसने घोड़े के कहे अनुसार काम करना शुरू किया। उसने घोड़े का पेट चीरा। उसकी खाल को उसने उसके शरीर से अलग कर लिया और उसमें छिप कर वह उस शानदार शहर में चला।

वह बिना किसी रोक टोक के उस शहर में घूम रहा था। वह शहर बड़ा और शानदार था पर राजकुमार अपने दोस्त घोड़े के मर जाने से बहुत दुखी था। वह केवल पचास कदम ही चला होगा कि उसको घोड़े की आखिरी बात याद आयी।

वह लौटा तो क्या देखता है कि बहुत सारी माँस खाने वाली चिड़ियें घोड़े का माँस खाने पर लगी हुई हैं। उसने कुछ ही पल में वे सारी चिड़ियें भगा दीं और बोतल में से निकाल कर मरहम की कुछ बूँदें उसके शरीर पर डाल दीं।

मरहम की वे बूँदें घोड़े के शरीर पर पड़ते ही उसमें कुछ बदलाव आये और देखते ही देखते वह एक सुन्दर नौजवान में बदल गया। दोनों एक दूसरे से लिपट गये।

जब एक की खुशी कम हुई और दूसरे का आश्चर्य, तो वह नौजवान राजकुमार से बोला — “ओ कुलीन राजकुमार, आज तुमको देख कर मैं धन्य हो गया। मैं लो अर्न शहर के राजा फ़िरबोग का भाई हूँ। उस बदमाश फ़ियोन डाढना ने मुझे घोड़ा बना कर रखा हुआ था।

उसको मुझे तुम्हें देना ही पड़ा क्योंकि मैं अपनी शर्त तोड़ चुका था। फिर भी जैसा मैंने तुमसे कहा था अगर तुमने वैसा नहीं किया होता तो मैं कभी भी अपने इस रूप को वापस नहीं पा सकता था। वह मेरी ही बहिन थी जिसने तुम्हारी सौतेली माँ को वह सब लाने के लिये कहा जो मेरे भाई के पास है। पर तुम मेरा विश्वास करो कि मेरी बहिन तुमको किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहती थी बल्कि तुम्हारा कुछ भला ही करना चाहती थी, यह तुम बाद में जानोगे।

क्योंकि अगर वह तुम्हारा ज़रा भी बुरा चाहती तो बिना किसी कठिनाई के कुछ भी कर सकती थी। पर वह तुमको आगे आने वाले खतरों से भी बचाना चाहती थी और साथ में मुझे भी मेरा पुराना रूप वापस दिलवाना चाहती थी।

आओ, तुम मेरे साथ आओ। घोड़ा, वह अनोखी ताकत वाला कुत्ता और सुनहरी सेब सब कुछ तुम्हारा है। मेरे भाई के घर में तुम्हारा बड़ा शानदार स्वागत किया जायेगा क्योंकि तुम केवल इन्हीं के नहीं बल्कि और बहुत कुछ चीज़ों के भी अधिकारी हो।”

समय गँवाने की बजाय वे दोनों लो अर्न के राजा के महल की तरफ चल दिये। राजा और उसके दरबारियों ने सचमुच ही उन दोनों का बड़ा शानदार जब राजा ने कौन–ऐडा के आने की वजह सुनी तो उसने कौन ऐडा को काला घोड़ा, अनोखी ताकत वाला कुत्ता और ज़िन्दगी देने वाले तीन सुनहरे सेब जो उसके बगीचे में लगे थे एक शर्त पर उसको दे दिये कि जब तक उसका एक साल और एक दिन पूरा होता है वह उसका मेहमान बन कर रहेगा।

कौन–ऐडा राजी हो गया और आनन्द से वहाँ रहा। जब उसके जाने का समय आया तो राजा ने अपने आनन्द भवन के बगीचे के क्रिस्टल के पेड़ से तीन सुनहरी सेब तोड़ कर उसे दे दिये। कुत्ते के गले में चाँदी की एक जंजीर बाँध कर कौन–ऐडा के हाथ में पकड़ा दी और घोड़े के ऊपर उसका साज सजा कर कौन–ऐडा की सवारी के लिये तैयार कर दिया।

राजा ने खुद कौन–ऐडा को उस घोड़े पर चढा,या और उसके हाथों में कुत्ते की चाँदी की जंजीर दी।

राजा ने कौन–ऐडा को यह भी यकीन दिलाया कि रास्ते में उसको अब आग उगलने वाला पहाड़, मीनार और दोनों साँपों से डरने कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वह घोड़ा उन सबसे बचा कर उसको उसके देश पहुँचा देगा।

उन्होंने कौन–ऐडा से भी एक वायदा लिया कि वह हर साल कम से कम एक बार उन लोगों से मिलने जरूर आता रहेगा। कौन ऐडा ने दोनों से विदा ली। उसका दोस्त बहुत दुखी था। कौन–ऐडा बिना किसी रोक टोक के आराम से अपने घर पहुँच गया।

उधर रानी यह सोचे बैठी थी कि कौन–ऐडा तो अब वापस नहीं आयेगा इसलिये राजगद्दी अब उसी के बेटों को मिलेगी। पर जब उसने कौन–ऐडा को काले घोड़े पर सवार और कुत्ते को उसके पीछे आते देखा तो उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर गया और वह दुखी हो कर मीनार से कूद गयी। नीचे गिरते ही वह मर गयी।

राजा अपने बेटे को देख कर बहुत खुश हुआ। वह तो एक साल से इसी लिये दुखी था कि पता नहीं उसका बेटा ज़िन्दा भी है या नहीं। जब उसको रानी के बुरे इरादों का पता चला तो गुस्से के मारे उसने रानी का शरीर जला दिया।

कौन–ऐडा ने वे तीनों सेब अपने बगीचे में लगा दिये और उनको बोते ही वहाँ एक हरा पेड़ निकल आया जिसके ऊपर वैसे ही तीन फल लगे थे।

इस पेड़ की मेहरबानी से उनके राज्य में खूब पैदावार होने लगी। घोड़ा और कुत्ता भी राज्य के बहुत काम आये। इसी कौन ऐडा के नाम पर उस जगह का नाम कौनौट पड़ा।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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