लोमड़े और कौए की कहानी : अलिफ़ लैला

Lomade Aur Kauve Ki Kahani : Alif Laila

एक लोमड़ा एक पहाड़ की एक गुफा में रहता था। जब भी उसको एक बच्चा पैदा होता और वह बड़ा हो जाता तो वह उसको खा जाता क्योंकि उसको भूख बहुत लगती थी। अगर वह अपने बच्चों को न खाता तो उसके वे बच्चे बड़े हो जाते और फिर वह अपने बच्चों का आनन्द लेता। पर फिर भी उसके लिये यह बड़े दुख की बात थी।

अब हुआ यह कि कुछ समय बाद पास के एक पेड़ पर एक कौए ने अपना घोंसला बना लिया। जब उस लोमड़े ने उसे देखा तो उसने सोचा कि वह उससे दोस्ती कर ले ताकि वह उसको रोज का खाना लाने में सहायता कर सके। क्योंकि कौआ ऐसे मामलों में उसके लिये बहुत कुछ कर सकता था जो वह खुद अपने लिये नहीं कर सकता था।

सो वह कौए के पास गया और बोला — “मैं तुमको सलाम करता हूँ ओ कौए, तुम मेरे पड़ोसी हो और तुम्हारा मेरे ऊपर हक है। इसके अलावा मैं तुमको प्यार भी बहुत करता हूँ। बोलो क्या बोलते हो?”

कौआ बोला — “हालाँकि सच बोलना ही अच्छा बोलना होता है पर मुझे कुछ ऐसा लग रहा है कि ये शब्द तुम्हारे दिल से नहीं निकल रहे इसलिये तुम मेरे दुश्मन हो।

मैं तुम्हारा खाना हूँ और तुम मुझे खाने वाले हो। मैं तो चिड़िया की जाति का हूँ और तुम जंगली जानवर की जाति को हो इसलिये भी हमारी तुम्हारी दोस्ती नहीं चल सकती।”

लोमड़ा बोला — “मैं तुम्हारे साथ ज़िन्दगी भर रहना चाहता हूँ ताकि हम लोग एक दूसरे की सहायता कर सकें। मेरे पास दोस्ती की अच्छाई की बहुत सारी कहानियाँ हैं अगर तुम सुनना चाहो तो मैं तुम्हें उन्हें सुना सकता हूँ।”

कौआ बोला — “तुम चाहो तो वे कहानियाँ मुझे सुना सकते हो ताकि मैं निश्चय कर सकूँ कि मैं तुमको अपना दोस्त बनाऊँ या नहीं।”

लोमड़ा बोला — “तो लो सुनो यह कहानी एक खटमल और एक चूहे की। बहुत पुरानी बात है कि एक शहर में एक सौदागर रहता था। उसके पास बहुत पैसा था और बहुत सारा सामान था।

एक रात एक खटमल ने उस सौदागर के बिस्तर में बसेरा कर लिया। उसको सौदागर का शरीर बहुत मुलायम लगा। वह खटमल बहुत भूखा था सो उसने सौदागर का खून पीने के लिये सौदागर को काटा।

खटमल के काटने से सौदागर जाग गया और उसने अपनी एक नौकरानी और कई नौकरों को उस खटमल को ढूँढने के लिये बुलाया। उन्होंने उस खटमल को ढूँढने की बहुत कोशिश की पर वह तो वहाँ से भाग गया था और जा कर एक चुहिया के बिल में छिप गया।

चुहिया ने जब उसे अपने घर में देखा तो उससे पूछा — “तुम यहाँ मेरे पास क्यों आये हो? न तो तुम मेरे स्वभाव जैसे हो और न ही तुम मेरी जाति के हो।”

वह खटमल बोला — “मैं तुम्हारे घर में मरने से बचने के लिये शरण लेने आया हूँ। मैं यहाँ कोई शरारत या कुछ और भी नहीं करूँगा जो तुमको अपना घर छोड़ना पड़े। मैं तुम्हारी इस दया का बदला जरूर चुका दूँगा।”

यह सुन कर चुहिया बोली — “अगर जो कुछ तुम कह रहे हो वह सच है तब तुम यहाँ रह सकते हो। इस सौदागर के खून के नुकसान के लिये तुम इतने दुखी न हो। तुम सन्तुष्ट रहो। यहाँ तुम हिफाजत से रहोगे।”

खटमल बोला — “ठीक है। मैं तुम्हारा कहना जरूर मानूँगा।”

और इस तरह वह खटमल उस चुहिया के घर में रहता रहा। दिनों दिन उन दोनों में प्यार बढ़ता जा रहा था। वह खटमल रात को सौदागर के बिस्तर में पहुँच जाता और दिन भर वह चुहिया के घर में रहता।

एक दिन ऐसा हुआ कि वह सौदागर घर में बहुत सारी दीनार12 ले कर आया और उनको रखने लगा।

जब चुहिया ने उन सिक्कों की आवाज सुनी तो उसने अपना सिर अपने बिल के बाहर निकाला और उन दीनारों की तरफ देखा और तब तक देखती रही जब तक वह उनको अपने तकिये के नीचे रख कर सो नहीं गया।

उसके सोने के बाद वह चुहिया खटमल से बोली — “तुमने देखा नहीं है कि उस सौदागर के पास कितना खजाना है। क्या तुम कोई रास्ता बता सकते हो जिससे वह दीनारें हमारे पास आ जायें?”

खटमल बोला — “यह कोई अच्छा विचार नहीं है जब तक कि इस काम को करने में कोई होशियार न हो। जैसे बेचारी चिड़िया अन्न का दाना उठाती है और शिकारी के जाल में फँस जाती है। तुम्हारे अन्दर इतनी ताकत नहीं है कि तुम दीनार को उठा कर अपने घर ला सको और न ही मेरे अन्दर इतनी ताकत है कि मैं उसको घसीट कर ला सकूँ। मैं तो एक सिक्का भी वहाँ से नहीं ला सकता। पर तुम उनका करोगी क्या?”

चुहिया बोली — “मैंने अपने घर के 70 दरवाजे बनाये हैं पर मैंने अपने घर में कीमती चीजें रखने के लिये एक अलग जगह बना रखी है। जब तक तुम इस सौदागर को इसके घर से नहीं भगा देते तब तक मैं अपने काम में कामयाब नहीं हो सकती और वह हमारी बदकिस्मती होगी।”

“ठीक है। मैं इस सौदागर को तुम्हारे लिये घर से भगाने की कोशिश करूँगा।” उस रात खटमल ने उस सौदागर को रात में कई बार काटा और बहुत तेज़ काटा।

उस सौदागर का धीरज छूट गया और वह वहाँ से उठ कर अपने दरवाजे के बाहर बिछी बैन्च पर जा कर लेट गया और सुबह तक वहीं सोता रहा।

इस बीच चुहिया आयी और वहाँ से उसने सौदागर के तकिये के नीचे रखी दीनारें ले जानी शुरू कर दीं। वह उनको तब तक ले जाती रही जब तक कि वह उन सबको अपने घर नहीं ले गयी।”

लोमड़े ने अपनी कहानी जारी रखी — “इस तरह उस कीड़े ने उस चुहिया के उपकार का बदला चुहिया को उन दीनारों को ले जाने में सहायता करके चुकाया।”

कौआ बोला — “यह तो आदमी आदमी पर निभर करता है कि वह दूसरे का ऐहसान पलट कर वापस करना चाहता है या नहीं। अगर मैं तुम्हारी सहायता करूँ जो मेरा दुश्मन है तो मैं तो सारी दुनियाँ से ही अलग हो जाऊँगा। क्योंकि तुम बहुत चालाक हो। तुम तो अगर अपने ऊपर भी कसम खाओ उसके बाद भी तुम्हारे ऊपर विश्वास नहीं किया जा सकता। अभी अभी तो मैं भेड़िये के साथ तुम्हारे बुरे कामों की कहानी सुन कर चुका हूँ कि तुमने उसके साथ किस तरह का बरताव किया। तुमने ऐसा बरताव तो उसके साथ किया जो तुम्हारी अपनी जाति का था और जिसके साथ तुम कुछ दिनों से रह रहे थे फिर भी तुमने उसके साथ बुरा बरताव करना नहीं छोड़ा। फिर मैं तुम्हारे ऊपर कैसे विश्वास कर सकता हूँ? जो तुम्हारी किस्म का नहीं है, जो तुम्हारी जाति का नहीं है और जो तुम्हारा दुश्मन भी है। मैं तो तुम्हारा और अपना केवल बाज़ और चिड़ियों से ही मुकाबला कर सकता हूँ।”

“कैसे?”

कौआ बोला — “एक बार एक बाज़ था जो अपनी जवानी के दिनों में बहुत बेरहम था। वह हमेशा दूसरी चिड़ियों को तंग किया करता था। पर जैसे जैसे वह बड़ा होता गया वह कमजोर होता गया।

सो उसकी ताकत तो कम होती गयी पर उसकी चालाकियाँ बढ़ती गयीं। अब वह अपना खाना धोखे और चालाकी से ले लेता था। तुम भी वैसे ही हो। तुम भले ही किसी काम में फेल हो जाओ पर तुम्हारी चालाकी कभी फेल नहीं हो सकती। अगर तुमको खाना सीधे सीधे नहीं मिलता तो तुम उसको धोखे से लेने की कोशिश करोगे। पर मैं उस तरह का नहीं हूँ। मेरा दिमाग भी तेज़ है और आँखें भी। पर मैं तुम्हारे लिये चिन्ता करता हूँ कि अगर तुमको कभी तुम से ज़्यादा चालाक मिल गया तो तुम उसी तरीके से परेशान होगे जैसे कि चिड़ा हुआ था।”

लोमड़े ने पूछा — “चिड़ा कैसे परेशान हुआ था मुझे उसकी कहानी सुनाओ।”

कौआ बोला — “एक बार एक चिड़ा एक भेड़ के ऊपर बैठा हुआ था जब उसने इधर उधर देखा तो उसको एक बड़ा गरुड़ दिखायी दिया जो एक नये पैदा हुए मेमने को अपने पंजे में पकड़ कर उड़ गया।

यह देख कर उस चिड़े ने अपने पंख फड़फड़ाये और बोला — “मैं भी ऐसा ही करूँगा।” और उसने उस गरुड़ से भी बड़ी नकल करने की कोशिश की।

वह उड़ा और एक मोटे से मेमने के ऊपर जा कर बैठ गया। जैसे ही वह वहाँ बैठा उसने उड़ने के लिये अपने पंख फड़फड़ाये पर उसके पैर उसकी ऊन में फँस गये। उसने उड़ने की बहुत कोशिश की पर वह वहाँ से उड़ ही नहीं सका।

भेड़ चराने वाला यह सब देख रहा था – पहली वाली घटना भी और यह वाली घटना भी। वह भागा भागा आया और उसने चिड़े को पकड़ लिया। उसने उसके दोनों पैर एक रस्सी से बाँध दिये और उसे अपने बच्चों की तरफ उनके खेलने के लिये फेंक दिया। सो तुम ऐसे ही हो। जाओ और जा कर शान्ति से अपने घर में रहो।”

लोमड़े ने नाउम्मीदी और दुख से अपने दाँत पीसे। कौए ने उस के दाँत पीसने की आवाज सुन कर कहा — “यह तुम अपने दाँतों से कैसी आवाज निकाल रहे थे?”

लोमड़े ने जवाब दिया — “मैं अपने दाँत पीस रहा हूँ क्योंकि तुम मुझसे भी बड़े नीच और बेईमान हो।” और अपने घर वापस चला गया।

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