लोकतंत्र की नौटंकी (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई

Loktantra Ki Nautanki (Hindi Satire) : Harishankar Parsai

कुछ लोग कहते हैं - चेन्ना रेड्डी क्या बुरे थे ! दूसरे कहते हैं - अंजैया भी क्या बुरे थे ! वैसे तो बहुत पहले संजीव रेड्डी भी बुरे नहीं थे और ब्रह्मानंद रेड्डी भी बुरे नहीं थे। ये सब अच्छे हैं। अच्छे ही अच्छे आंध्र के मुख्यमंत्री हुए हैं। वेंकटराम रेड्डी जो अभी मुख्यमंत्री हुए हैं, वे भी अच्छे हैं। सभी अच्छे हैं-सो 'आर दे ऑल, आर ऑनरेबल मैन!' मगर हैदराबाद में एक हफ्ता जो नाटक हुआ वह जरूरी था । लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक चक्र पूरा हो गया । अब मैं भारत में लोकतंत्र के भविष्य के बारे में पूर्ण आश्वस्त हूँ । लोकतंत्र का पाँव अंगद के पाँव की तरह जम गया है। अब लोकतंत्र विरोधी 100 रावण भी इस पैर को उखाड़ नहीं सकते।

दिलचस्प और अर्थवान नाटक रहा यह हैदराबाद में, लोकतंत्र की नौटंकी थी । 'सरूप' थे। नगाड़े थे। डॉयलॉग थे । रहस्य था । तिलिस्म था । चमत्कार था । बर्नार्ड शॉ ने हैदराबाद और दिल्ली में होनेवाली नौटंकी देखी होती तो दूसरा 'एपिल कार्ट' लिखता ।

नगाड़े की चोट पर उद्घोषक ऐलान कर रहा था - अंजैया जा रहे हैं। अंजैया इस्तीफा दे रहे हैं। लो, अंजैया ने इस्तीफा दे दिया। अब विधान सभा पार्टी का दूसरा नेता चुना जाएगा। दूसरा नेता। दूसरा मुख्यमंत्री !!

कांग्रेस का हाईकमान है। एक केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड है। लेकिन इन दोनों के ऊपर भी एक आलाकमान है, इंदिरा गांधी। दिल्ली में केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड ऐलान करता आंध्र के नए नेता का चुनाव होगा। आखिर यह लोकतंत्र है, मजाक नहीं ।

नारायणदत्त तिवारी और मूपनार पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए। ये दोनों अपने सामने आंध्र विधायक दल के नेता का चुनाव कराएँगे। नारायणदत्त और मूपनार ने सूटकेस में मतपेटी और मतपत्र रखे और उड़ गए हैदराबाद। घर्र-घर्र-घर्र !

विधायक दल बैठा है। नारायणदत्त तिवारी और मूपनार बैठे हैं। दोनों पर्यवेक्षक हैं। पर्यवेक्षक कहते हैं - हमें केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड ने भेजा है।

विधायक कहते हैं - यह क्या होता है? क्यों भेजा है?

नारायणदत्त कहते हैं - आप लोग अंजैया की जगह नया नेता चुन लो ।

विधायक पूछते हैं- नेता साथ में लेकर आए हो?

मूपनार कहते हैं-हम नेता क्यों लाएँगे। नेता तो तुम्हें चुनना है।

विधायक पूछते हैं—किसे नेता चुनना है? कुछ खबर लेकर आए हो? नाम लाए हो ?

नारायणदत्त ने कहा-हम कोई नाम नहीं लाए। आप लोग चुनने को स्वतंत्र हैं।

विधायक बोले- हमें स्वतंत्र नहीं होना ।

मूपनार ने कहा- ये मतपेटी और मतपत्र हैं। मतपत्र पर नेता का नाम लिखकर मतपेटी में डालो।

विधायक बोले- दूसरी पेटी खोलो। उसमें से नेता निकालो।

नारायणदत्त ने कहा- हम दिल्ली से कोई नेता नहीं लाए ।

विधायक बोले-नहीं लाए तो आता होगा। बताओ कौन आ रहा है?

नारायणदत्त ने कहा- दिल्ली से नेता नहीं भेजा जाएगा। तुम्हें ही चुनना है।

विधायकों ने कहा- ऐसा नहीं होता। नेता भेजा जाता है।

मूपनार ने कहा- नहीं, ऐसा नहीं होगा। नेता चुनने का तुम्हें लोकतांत्रिक अधिकार है।

विधायकों ने कहा-हमें नेता नहीं चुनने का भी लोकतांत्रिक अधिकार है।

नारायणदत्त ने कहा- तुम में से हरेक को मत देने का अधिकार है। विधायकों ने कहा- हममें से हर एक को मत नहीं देने का भी अधिकार है। छुपाओ मत। हमें बताओ, इंदिराजी ने किसे नामजद किया है।

तभी खबर फैली कि दिल्ली से गृहराज्य मंत्री वेंकट सुबैया आ रहे हैं। शोर हुआ-आ गए! दिल्ली से भेजे हुए आ गए! इंदिराजी ने वेंकट सुबैया को नेता बनाकर भेज दिया। दिल्ली का विमान रुका । वेंकट सुबैया उतरे। कई कांग्रेसी नेता मालाएँ लेकर बढ़े - बधाई है। आंध्र के नेता मुख्यमंत्री का स्वागत है। वेंकट सुबैया घबराए। बोले- ऐसी जल्दबाजी मत करो। मुझे नारायणदत्त तिवारी और मूपनार से तो मिलने दो ।

विधायकों ने कहा- उनसे क्या पूछना है?

वेंकट सुबैया ने कहा- उनसे पूछना है कि आप लोगों ने नया नेता किसे चुना ।

विधायकों ने कहा-उनसे क्या पूछना है; हमने चुना ही नहीं। आपको इंदिराजी ने भेजा है तो हमने आपको ही चुना ।

वेंकट सुबैया ने कहा- नहीं, नहीं, मैं तो पहले से तय दूसरे कार्यक्रम के लिए आया हूँ। और किसी तरह से बचकर राज्य अतिथिगृह पहुँचे।

वहाँ भी मालावालों ने उन्हें घेरा । आ गए! दिल्ली से भेजे हुए आ गए! आंध्र के नए मुख्यमंत्री का स्वागत है। बेचारे वेंकट सुबैया बड़े परेशान ! क्या सचमुच इंदिराजी ने पर्यवेक्षकों को यह आदेश देकर भेजा है कि मुझे चुनवा दें? क्या इन लोगों ने मुझे बाकायदा चुन लिया है? मामला क्या है?

उधर नारे लग रहे हैं-वेंकट सुबैया जिंदाबाद ! आंध्र के नए मुख्यमंत्री वेंकट सुबैया ! वेंकट सुबैया ने घबराकर कहा- मैं तो मंदिर जा रहा हूँ। और अतिथिगृह से भाग गए ।

पर्यवेक्षकों ने दिल्ली बात की - ये विधायक नेता नहीं चुनना चाहते।

हाईकमान ने कहा- उनसे नेता चुनवाओ। एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए।

पर्यवेक्षकों ने कहा- पर वे चुनने को तैयार नहीं हैं। हम क्या जबरदस्ती उनके हाथ पकड़कर उनसे मतपत्र भरवाएँ? वे कहते हैं कि दिल्ली का फरमान बताओ। इंदिराजी ने किसे नामजद किया है?

हाईकमान ने कहा - इंदिराजी कहती हैं कि मुझे वैसे ही बदनाम किया जाता है कि मैं अधिनायकवादी हूँ। मैं किसी को नामजद नहीं करूँगी। विधायक स्वतंत्र मत से नेता चुन लें।

पर्यवेक्षकों ने यह बात विधायकों से कही। विधायकों ने कहा- हमारा स्वतंत्र मत यह है कि इंदिराजी जिसे कहें उसे हम अपना नेता मान लेंगे। हम मतपत्र पर इसके सिवा और लिखने को तैयार नहीं हैं। पर्यवेक्षकों ने दिल्ली यह खबर कर दी।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया के नाटक में घोर सस्पेंस का क्षण है यह! अब क्या होता है ? क्या वेंकट सुबैया नए नेता बनाए जाते हैं? क्या दिल्ली से उन्हीं का नाम आता है ?

उधर दिल्ली में पर्दे के पीछे कुछ होता है। केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड बैठता है और तय करता है कि वेंकटरामा रेड्डी नए नेता होंगे।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया का नाटक समाप्त होता है। वेंकट सुबैया स्टेज से गायब हैं। वेंकटरामा स्टेज पर हैं। कहते हैं- मैं अपने साथी विधायकों से सलाह करके मंत्रिमंडल के नाम तय करूँगा और दिल्ली में नेताओं से मशविरा करके मंत्रिमंडल बनाऊँगा ।

13 मार्च, 1982

  • मुख्य पृष्ठ : हरिशंकर परसाई के हिन्दी व्यंग्य, कहानियाँ, संस्मरण
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां