लेना (रूसी उपन्यासिका) : सेर्गेइ अन्तोनोव
Lena (Russian Novella) : Sergei Antonov
1
उस दिन बड़े भोर ही मेद्वेदित्सा नदी की बर्फ फटने लगी।
‘‘जरा उधर तो देखो,’’ केवट अनीसिस ने स्टबो नामधारी दस बरस के लड़के से कहा, ‘‘बरस के इन दिनों में तो हम लोग अपनी स्लेज गाड़ियों से बर्फ पार करते थे, लेकिन इस बरस नदी पर बर्फ अभी से टूटने लगी।’’
ये लोग नदी के कगार से कोई पाँच कदम दूर गाँव के आखिरी घर के दरवाजे के सामने एक बेंच पर बैठे हुए थे। उनके पास से ही बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े एक दूसरे को ठेलते, किटकिटाते, गड़गड़ाते और उछलते-कूदते, गदले सफेद झुण्ड में बढ़े चले जा रहे थे।
स्टबी बोला: ‘‘वेलीकि लूकि में जहाँ का मैं रहने वाला हूँ, बर्फ इन्हीं दिनों फटती है।’’
‘‘सो तो ठीक है। वहाँ तुम्हारे यहाँ मैदानी जमीन है, लेकिन यहाँ हम चोटी पर रहते हैं। हमारे यहाँ से नदियाँ चारों दिशाओं की तरफ बहती हैं। नन्हे-मुन्ने, उस तरफ वोल्गा है। इस तरफ द्विना है। मैं तुम्हारे वेलीकि लूकि भी हो आया हूँ। तुम्हारे यहाँ तो बर्फ भी नहीं गिरती।’’
‘‘वाह रे! वाह! बिल्कुल नहीं गिरती,’’ स्टबी बोला।
‘‘अरे उसे भी क्या बर्फ कहते हैं कि एक गली में कहीं जम गयी तो दूसरी में गलने लगी। वहाँ तो लोग जाड़े भर गाड़ियों से सफर कर लेते हैं। और यहाँ सात फुट बर्फ गिरती है। घरों के दरवाजे खोलना भी दुश्वार होता है।’’
‘‘ठीक है, जहाँ से मैं आया हूँ, वह जरा गर्म जगह है।
‘‘गर्म जगह हुई तो क्या हुआ। यहाँ भी कोई ज्यादा ठण्ड नहीं होती। और यहाँ आनेवालों की तादाद बढ़ती ही जाती है। सो क्यों? इसलिए कि ऐसी जगह कोई दूसरी नहीं है। झीलें, जंगल हर तरह के जानवर...’’
‘‘देखो बाबा,’’ स्टबी ने कहा, ‘‘वहाँ कोई खड़ा हुआ है और चिल्ला रहा है। हमें पुकार रहा है।’’
अनीसिम ने हथेली से आँखों पर छाया की और नजरे दूर पर गड़ा दी।
उस पार पानी के किनारे पर एक आदमी खड़ा था और अपनी टोपी हिला रहा था।
‘‘क्या पागल है,’’ अनीसिम बोला। ‘‘हवा उसके खिलाफ है... फिर यहाँ सब तरह के जानवर हैं। मसलन जंगली बकरे। बड़े दिन के पहले, अगर तुम बकरा मारो और उसे पकाओ, और बकरे के एक टुकड़े को भेड़ के गोश्त के पास रखो तो दोनों में फर्क बताना मुश्किल होगा।’’
‘‘वह अभी भी चिल्ला रहा है,’’ स्टबी ने कहा। ‘‘वह अभी भी वहीं खड़ा है।’’
‘‘या ऊदबिलाव को ही लो। कभी-कभी झील के किनारे तुम्हें घास सी तैरती नजर आयेगी। वहीं तैरता हुआ ऊदबिलाव मिल जाएगा।’’
‘‘यह ऊदबिलाव कैसा होता है?’’
‘‘उसके खाल के बदले में तुम्हें ढेर भर रुपये, आटा, शक्कर या कपड़ा मिल सकता है। वह इस तरह की होती है।’’
नदी को देखने के लिए सामूहिक फार्म के किसान आ रहे थे।
उनमें ग्रीशा था जो पहले छापामार-योद्धा था। भले स्वभाव का आदमी है, बस जरा बिगड़ैल है। स्टबी की माँ दाशा भी आयी थी जो इतनी लजीली है कि जरा सी बात पर शर्मा जाती है। चार साल पहले वह अपने तीन बच्चों के साथ वेलीकि लूकि के पास के किसी स्थान से यहाँ आयी थी। उन्होंने अब अपना घर यहीं बना लिया है, यहाँ के आदी भी हो गये हैं और अब हमेशा के लिए यहीं टिक गये हैं। और वह दुबली-पतली महिला, ब्रिगेड लीडर मरीया तिखोनोवना आयी-भौंहों तक अपने को शाल में लपेटे हुए।
‘‘उधर कौन चिल्ला रहा है,’’ मरीया तिखोनोवना ने बड़े महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह सभी मौजूद लोगों की तरफ मुखातिब होकर पूछा।
‘‘कौन जाने,’’ अनीसिम ने जवाब दिया।’’ बन्दर की तरह कभी इस और कभी उस पैर पर कूदता फिरता है।’’
‘‘वह कृषि विशेषज्ञ है जो जिला दफ्तर से आया है,’’ ग्रीशा ने कहा। ‘‘वह या तो नये कोटे तय करने आया होगा या लेना के सामने शादी का प्रस्ताव रखने।’’
कोई आदमी सामूहिक फार्म के अध्यक्ष पावेल किरीलोविच को बुलाने जा पहुँचा। शीघ्र ही वह सड़क के मोड़ पर प्रकट हो गया। वह धूप सा उज्ज्वल कोट पहने था, जिस पर कन्धे की पट्टी और मेडल लगाने की जगह पर हरे धब्बे पड़े हुए थे। वह अभी भी जवान था लेकिन छितरी दाढ़ी के कारण उसके चेहरे पर बुजुर्गियत का भाव आ गया था। अपनी शक्ल को जरा रौबदार बनाने के लिए हाल में उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी, क्योंकि अपने मातहत लड़कियों को सम्भालना उसके लिए बड़ी मुसीबत हो रही थी। वे उसकी एक न सुनती थीं। हमेशा बेवकूफ बनाती थीं और किसी भी काम को गम्भीरतापूर्वक करने से इन्कार कर देती थीं।
उसने दूर से ही कहा: ‘‘तुम लोगों ने मुझे जरा जल्दी क्यों नहीं बुलाया। तुम लोगों की पल्टन की पल्टन यहाँ खड़ी है, लेकिन किसी से न हुआ कि आकर मुझे बता जाय। और मैं उसका तीन दिन से इंतजार कर रहा हूँ। वह वसन्त की बुआई के लिए आया है।’’
अध्यक्ष नदी के किनारे तक गया बत्तख की तरह गर्दन फैलायी और पूरा जोर लगाकर चिल्लाया:
‘‘प्योत्र मिखा...आ...आ...लोविच! हल्लो! जोर से बोलो।’’
उसने एक हाथ अपने कान पर रखा और गले पर जोर लगाया, लेकिन तभी चौड़े मुँह, दबी नाक, लड़के जैसी शक्ल की लेना नाम की लड़की आई और ग्रीशा उसे किनारे से नीचे ढकेलने की कोशिश करने लगा। वह इतने जोर से चीखी कि गाँव के दूसरे छोर पर उसकी आवाज सुनी जा सकती थी।
‘‘चुप रहो! नहीं रहोगी?’’ अध्यक्ष उबल पड़ा। ‘‘लेना यह चीखना-चिल्लाना बन्द करो वरना मैं उठा कर फेंक दूँगा।’’
‘‘अच्छा जी, यह बात?’’ लेना ने कहा।
‘‘यह बेवकूफी बन्द करो और कामरेड देमेन्तियेव क्या कह रहे हैं, उसे सुनो। जब नहीं होना चाहिये तब तो तुम्हारे कान जरा ज्यादा तेज हो जाते हैं। तुम्हें जो बात नहीं सुननी चाहिए, वही अक्सर सुन लेती हो।’’
अच्छा जी, यह बात?’’ लेना ने फिर कहा। बुजुर्गों ने सलाह दी कि कृषि विशेषज्ञ के लिए गोरोदेत्स की तरफ से गाड़ी भेज दी जाय। पाँच मील दूर गोरोदेत्स में नदी पर पुल है। ग्रीशा ने बताया कि बर्फ गलने के कारण पुल उतार दिया गया। दूसरों ने कहा कि अभी नहीं उतारा गया।
‘‘बहस बन्द करो,’’ अध्यक्ष चिल्लाये, ‘‘लेना सुनो तो, वह क्या कह रहे हैं।’’ हर व्यक्ति खामोश हो गया। लेना ने होंठ भींच लिये और कान लगा दिये।
‘‘तो वह क्या कह रहे हैं,’’ अध्यक्ष ने पूछा।
‘‘समझ में नहीं आ रहा है,’’ लेना ने कहा। ‘‘लगता है डाँट पिला रहे हैं।’’
‘‘डाँट? जरा फिर तो सुनो।’’
‘‘एक मिनट रुको। हाँ डाँट ही है। बहुत जोरदार।’’
अध्यक्ष फौरन सतर्क हो गया। लेना ने उसकी तरफ देखा और फिर हँसी से लोटपोट हो गयी।
‘‘तो यह बात है! तुम मेरी हँसी उड़ा रही हो!’’ अध्यक्ष तन गया। ‘‘यहाँ से दूर भागो! मेरा मजाक बनाने की जुर्रत कैसे करती है!’’
‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो? क्या तुम्हारा ख्याल है कि मैं रेडियो सेट हूँ कि बस दूर की बात भी सुन लूँ?’’ लेना ने कहा। ‘‘आगे चल कर तुम हुकुम दोगे कि बताओ, गोरोदेत्स में लोग क्या बातें कर रहे हैं?’’
अध्यक्ष महोदय की प्रेमिका गोरोदेत्स में रहती है इसलिए सभी लोगों ने खीसें निपोर दीं।
‘‘तुम तो शैतान हो,’’ अध्यक्ष ने अरुचि से थूकते हुए कहा। ‘‘तुम्हारे भेजे में इतनी सी भी अक्ल नहीं है।’’ और वह गुस्से में भरकर किनारे पर इधर-उधर टहलने लगा। ‘‘और देमेन्तियेव अभी भी गला फाड़कर चिल्ला रहा है। अगर जरूरी बात है, तो वह खुद क्यों नहीं यहाँ आ जाता। बर्फ इतनी मोटी तो है ही, कि उसे सम्भाल सके।’’
‘‘अगर तुम इतने बहादुर हो तो खुद ही उधर क्यों नहीं चले जाते,’’ लेना ने जरा हँसकर कहा।
‘‘मैं चला भी जाऊँगा। तुम क्या समझती हो कि मैं हवाई जहाज का इंतजार करूँगा?’’
‘‘ऐसा न कर बैठना,’’ मरीया तिखोनोवना ने कहा।
‘‘फिक्र न करो वह यह नहीं करेगा,’’ लेना ने कहा। ‘‘वह सिर्फ बहादुरी की बात कर रहा है। हमें डराना चाहता है।’’
अध्यक्ष ने उसकी तरफ नजर डाली। उसके चेहरे की माँसपेशियाँ चल रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहने जा रहा है लेकिन तभी बिना एक शब्द कहे वह एड़ियों के बल पर किनारे से उतरा, नाव के पास बर्फ में गड़े हुए डण्डे को उखाड़ा, आँखों से आरपार की दूरी नापी और एक तैरती हुई बर्फ की सिल पर कूद पड़ा।
‘‘हमेशा यही गड़बड़ी होती है,’’ अनीसिम ने अपने आप ईश्वर वन्दना का चिन्ह बनाते हुए कहा। ‘‘जब तक लेना नहीं आयी थी हर चीज शान्त और खामोश थी लेकिन जिस घड़ी यह आ गयी, सारा मामला उलट-पुलट हो गया। और यह अपने को कोम्सोमोल का सदस्य कहती है!’’
‘‘उधर जाने के लिए मैंने उसे मजबूर नहीं किया,’’ लेना ने घबराकर कहा, ‘‘वह खुद जाना चाहता था। मैंने उसे मजबूर नहीं किया।’’
वितृष्णा से अनीसिम ने मुँह फेर लिया और फिर उधर देखने लगा।
नर्म बर्फ के ऊपर पावेल किरीलोविच उस डण्डे को भाले की तरह पकड़े हुए चला जा रहा था। ऊपर किनारे पर खड़े लोगों को वह इस तरह दिखायी दे रहा था मानो कोई अँधेरे में राह टटोलता एक तरफ से दूसरी तरफ ठोकरें खाता चला जा रहा हो। बर्फ के टुकड़े किटकिटाते, चटखते, एक दूसरे पर चढ़ने और गिरने के साथ सफेद फेन उछालते हुए बह रहे थे।
जब पावेल किरीलोविच बीच नदी में पहुँचा तो जरा तेज चलने लगा। और यह आवश्यक भी था। किश्ती से कोई पाँच सौ फुट की दूरी पर भोज पत्र के झुरमुटों के पास नदी यकायक चौड़ी हो गयी थी। बर्फ के टुकड़ों को गुंजाइश ज्यादा मिल गयी थी और पेड़ों की नंगी टहनियों के बीच साफ पानी के काले चकत्ते झलक रहे थे। पावेल किरीलोविच इसी चौड़े स्थल की तरफ बहा जा रहा था, और इतनी तेजी से कि यद्यपि उस किनारे पर कृषि विशेषज्ञ गिरता पड़ता हुआ बराबर दौड़ रहा था, मगर पावेल किरीलोविच एक चौड़ी और गन्दली बर्फ की सिल पर चढ़कर अपना रास्ता बना रहा था। इस बर्फ खण्ड के बीच में एक छेद था जो कि उसके दूर से बहकर आने का चिन्ह था। स्पष्ट था कि यह बर्फ खण्ड गोरोदेत्स से तमाम रास्ता तय करके यहाँ तक आ पहुँचा था। अध्यक्ष गिर पड़ा, फिर उठ बैठा और उस बर्फ खण्ड पर एक छोर से दूसरे छोर तक लँगड़ाते हुए चलने लगा। जाहिर है, वह छलाँग मारने का प्रयत्न कर रहा था। इस बर्फ खण्ड और उसके आगे के बर्फ खण्ड के बीच में तेरह फुट नहीं, तो कम से कम दस फुट का फासला था। ‘‘वह तुम्हारे सामने ही है!’’ ग्रीशा चिल्लाया।
‘‘मुँह बन्द रखो,’’ मरीया तिखोनोवना ने मुड़कर देखे बिना ही कहा।
अध्यक्ष को नदी की धारा भोजपत्र के झुरमुटों तक बहा ले गयी और उसको देख पाना अनीसिम के लिए और ज्यादा मुश्किल हो गया। बुड्ढे की आँखें कमजोर थीं ही, तिस पर सर्द हवा आँसू ढरका कर अन्धा बना रही थी।
आँखों को विश्राम देने के लिए अनीसिम ने उन्हें हथेली से ढक लिया। सब ठीक हो जाएगा। अब वह किनारा कोई सौ फुट दूर ही तो रह गया है और धारा भी धीमी हो गयी है। पावेल किरीलोविच ने तेज धार पार कर ही ली है, इसको भी पार कर लेगा।
यकायक दाशा ने चीख मारी।
अनीसिम ने अपना हाथ झटक दिया। ग्रीशा और दो और लड़के कगार से उतर कर भागे। पावेल किरीलोविच नदी पर कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। छेदवाला बर्फ खण्ड अभी भी दिखाई दे रहा था। मगर उस पर कोई नहीं था। किसी और बर्फ खण्ड पर भी कोई नहीं दिखलायी दे रहा था। कुछ दिखाई दे रहा था तो सिर्फ उस किनारे पर इधर-उधर डोलती हुई कृषि विशेषज्ञ की अकेली छाया।
‘‘मेरी आँखें तो मुझे धोखा देने लगी हैं,’’ अनीसिम ने बच्चे की तरह कहा, मानो वह सचाई जानने से घबरा रहा है। ‘‘लेना, वह कहाँ है?’’
‘‘मैंने तो हँसी में बात कह दी थी,’’ लेना बोली। वह डर के मारे इतनी सफेद पड़ गयी थी कि उसकी नाक पर तिल और भी स्याह लगने लगा था।
किसी ने उसकी तरफ नहीं देखा। हर आदमी ने उसकी तरफ से मुँह फेर लिया। वह एक अजनबी की भाँति अकेली थी। अनीसिम ने ठण्डी साँस ली और एक कदम पीछे हट गया।
यकायक लोग चिल्लाये: ‘‘अरे वह उधर है, वह उधर तैर रहा है!’’
अनीसिम ने नदी की तरफ नजरें गड़ा दीं। छेदवाले बर्फ खण्ड के पास पानी में कोई काली-सी चीज नजर आ रही थी। सिर होगा। हाँ सिर ही है। पावेल किरीलोविच का सिर। वह अगले बर्फ खण्ड तक तैर कर गया। उसके किनारे पर हाथ रखा और कुहनी मोड़कर उस पर जोर देते हुए वह लटक गया। और मुड़कर पीछे देखने लगा। जाहिर है, उसे बहकर आने वाले दूसरे बर्फ खण्डों से अपने कुचल जाने का डर था। अरे पावेल किरीलोविच तुम तो घबरा रहे हो। बर्फ खण्ड तुम्हें कुचल नहीं सकते, क्योंकि पानी में उनका कोई वजन नहीं होता।
उस बर्फ खण्ड पर चढ़ने की कई कोशिशें विफल हो जाने के बाद अध्यक्ष किनारा पकड़े हुए कुछ देर बिना हिलेडुले पानी में लटके रहे।
अनीसिम ने कहा: ‘‘थक गया है।’’
यकायक एक तख्ता लेकर कृषि विशेषज्ञ दौड़ पड़ा। अनीसिम को वह तभी दिखायी दिया जब उस छेदवाले बर्फ खण्ड के पास गया। कृषि विशेषज्ञ ने तख्ता फेंका, अध्यक्ष के पास तक पहुँचा, उसके हाथ पकड़े और पानी से बाहर खींच लिया। और फिर वे वहीं खड़े होकर देर तक बातें करते रहे मानो वे दफ्तर में हों। ‘‘ऐसी खुशी में वे सिगरेट क्यों नहीं पीते?’’ अनीसिम ने कहा। जब उन्होंने बातचीत खत्म कर ली तो कृषि विशेषज्ञ और अध्यक्ष ने बर्फ खण्डों के बीच खुली जगहों के ऊपर तख्ता रखकर नदी पार करना शुरू किया।
किनारे पर आकर पावेल किरीलोविच जंगल के धुँधले ऐसे धब्बे की तरफ दौड़ पड़ा, जो सिगरेट के धुएँ की तरह धुँधला नीला दिखायी दे रहा था। कृषि विशेषज्ञ थकित भाव से उसके पीछे चल दिया।
‘‘वह वन रक्षक की झोंपड़ी की तरफ गये हैं,’’ अनीसिम ने कहा।
‘‘अरी लोमड़ी! मरीया तिखोनोवना ने लेना की तरफ मुड़कर सिर हिलाते हुए कहा। ‘‘तुम्हें अपने ऊपर शर्म नहीं आती। तूने एक भले आदमी का आज मार ही डाला होता। तू तो लोमड़ी बस, है, लोमड़ी। ऊपर से तू हँसने की हिम्मत कर रही है?’’
‘‘तुम नाराज क्यों होती हो,’’ लेना ने मुड़कर कहा। उसकी आँखें चमक रही थीं,’’ वह आखिर पहुँच तो गया। कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। वह डूब तो नहीं गया।’’
‘‘डूबा नहीं, वाह, क्या कहना है। और क्यों, इन दिनों में तुम्हें नदी में घुसना पड़े तो कोई खास नुकसान थोड़े ही होगा।’’
‘‘उसको अब तबीयत भर वोदका पीना चाहिए,’’ ग्रीशा बोल उठा। वह अभी भागकर लौटा था।
‘‘वन रक्षिका तो है महिला। उसक पास क्या वोदका होगी।’’
‘‘वह! वह तो वोदका से ऐसे बिचकती है जैसे धूपबत्ती से भूत प्रेत।’’
‘‘तू इस बात पर खुश कैसे हो रही है, लेना?’’ मरीया तिखोनोवना ने अपनी बात जारी रखी। ‘‘तू हमेशा गाँव को सिर पर उठाये रहती है। अब जरूरी यह है कि तेरी शादी कर दी जाय और घर बसा दिया जाय।’’
‘‘स्टबी को जरा जवान हो जाने दो। मैं उससे शादी कर लूँगी,’’ और सिर मटकाकर लेना घर की तरफ भागी।
‘‘भरे जाड़े में यह लड़की अपने आदमी को नदी में फेंक देगी।’’ अनीसिम ने कहा।
लेना को गये देर नहीं हुई थी। दस ही मिनट में वह एक बोतल लेकर लौट आयी। पीछे-पीछे उसकी माँ भी अपने शाल के भीतर बाल घुसेड़ती हुई आ पहुँची। वह दुबली-पतली, मगर सुन्दर औरत थी।
‘‘अब किसको बर्फ पार करने भेजना चाहती हो,’’ मरीया तिखोनोवना ने पूछा।
‘‘इस बार मैं खुद जाऊँगी,’’ और यह कह कर लेना कगार से उतर कर भागी।
‘‘यह क्या है?’’ मरीया तिखोनोवना चिल्लायी और लहँगा सम्भाले हुए लेना के पीछे दौड़ी। ‘‘इसी घड़ी लौटो। सुनती है?’’
‘‘छोड़ दो, तिखोनोवना,’’ निराशा के भाव से हाथ हिलाकर लेना की माँ ने आवाज लगायी। ‘‘तुम तो उसे जानती ही हो।’’
लेना एक बर्फ खण्ड पर चढ़ गयी।
‘‘अरी मूर्ख, अपने साथ बाँस तो लेती जा,’’ मरीया तिखोनोवना ने कगार पर इधर से उधर चक्कर लगाते हुए कहा। लेकिन लेना बर्फ खण्डों को पार करती बढ़ी ही जा रही थी।
यह याद करके कि अध्यक्ष को धारा किस तरह बहा ले गयी थी उसने धारा की उल्टी दिशा में तिरछे-तिरछे बढ़ना शुरू किया। उसने दूसरे किनारे पर पड़े हुए एक लाल पत्थर को ध्यान में रख लिया और सोच लिया कि अगर वह उस पत्थर पर नजर जमाये बढ़ती जाएगी तो वह ठीक सामने पहुँच जाएगी। लेकिन अपने पैरों तले बर्फ की डगमगाहट से वह समझ गयी कि उस पत्थर पर नजर गड़ाये रहने का मौका नहीं मिलेगा।
उसके चारों तरफ हर चीज उठ गिर रही थी और उस किनारे पर बने हुए वे मकान, दूर की नीली पहाड़ियाँ और वह आसमान जिसमें दूर, कहीं दूर बादल छाये हुए थे। उसका सिर घूमने लगा।
वह सोचने लगी: ‘‘मुझे इतनी जिद न करना चाहिए थी; अपने साथ एक बाँस तो जरूर लाना चाहिए था।’’
‘‘तिरछे बढ़कर पार करना उसके लिए असम्भव हो गया था, क्योंकि बार-बार उसके सामने खुले पानी के बड़े-बड़े चकते आ जाते थे। हर अगले बर्फ पर पहुँचने के लिए उसको पाँच-छः दूसरे बर्फ खण्डों पर चक्कर काटकर पहुँचना पड़ता था। और इसलिए शुरू से ही वह कभी पीछे घूमती और कभी आगे बढ़ती और इस तरह अपने चारोंं तरफ देखने के लिए उसे मौका ही नहीं मिलता था। आसपास की चीजें बराबर ओझल होती रहीं। कभी नदी किनारा पीछे होता, तो कभी बगल में, और शायद वहाँ खड़ी हुई औरतें उसे घूर रही थीं ओर यह सोचकर कि लेना सीधी दिशा में क्यों नही बढ़ती, वे हैरान हो रही थीं-उसी तरह जैसे कि वे पावेल किरीलोविच के बारे में परेशान थीं।
लेना सावधानी से बढ़ी। उन बूटों में फिसलने से बचना कोई आसान नहीं था। बर्फ खण्ड चिकने थे और हवाओं ने उनको बुहार कर स्वच्छ कर दिया था। भूरी-भरी, हरी बर्फ के अन्दर जमे हुए बुलबुले नजर आ रहे थे और जहाँ बर्फ में सीधी दरारें पड़ी थीं वहाँ पतली-पतली, सफेद रेखायें दिखाई दे रही थीं।
उसने लगभग दो तिहाई रास्ता पार कर लिया तो यकायक करीब तीन सौ फुट चौड़े खुले पानी ने उसका रास्ता रोक दिया। कुछ मिनट पहले यहाँ इतना चौड़ा मुँह नहीं था। अब क्या किया जाय। कुछ और बर्फ खण्डों के यहाँ आकर जमा होने का इंतजार किया जाय या लौट चला जाय। वापस कैसे जाएं? ग्रीशा उस पर हँसेगा। और फिर किनारे तक पहुँचने के पहले अगर कोई धारा उसे खुले पानी की तरह बहा ले गयी तो वह और उसकी वोदका की बोतल, दोनों ही डूबते उठते ईलमेन झील में पहुँच जाएगी।
वह हँसी। जब डर लगता तो लेना हँस दिया करती। एक क्षण सोचकर वह धारा के खिलाफ दिशा में दौड़ पड़ी। खुले पानी के छोर पर दूर जाकर उसे एक बड़ा बर्फ खण्ड दिखायी दिया... इस पर एक बांस गड़ा हुआ था। जिसके छोर पर कुछ मूसा बँधा हुआ था। वह दौड़ कर इस बर्फ खण्ड के सामने पहुँच गयी। यह बड़ा भारी बर्फ खण्ड था। इतना कि अगर वह उस पर पहुँच जाय तो फिर दौड़कर वह दूसरे किनारे पर ही पहुँच जाएगी। लेकिन दौड़ से शुरू करके उसने पूरी ताकत लगाकर छलाँग मारी और बोतल को टूटने से बचाने के लिए कुहनी के बल उस बर्फ खण्ड पर आ गिरी। वह उठ बैठी तो पहले उसके दिमाग में वह बाँस उखाड़ लेने का ख्याल आया लेकिन अब उसकी जरूरत ही क्या थी। उसके दोस्त यह भी देख लें कि वह बाँस का सहारा लिये बिना भी बर्फ पार कर सकती है। अध्यक्ष को पानी में डुबकी लगानी पड़ी तो इसके लिए वे खुद ही दोषी हैं। उन्हें तेज चलना चाहिए था। वे कोई हवाखोरी के लिए नहीं निकले थे।
जब वह किनारे के पास पहुँची तो उसने छलाँग मारी जिससे उसके जूतों में पानी भर गया। और फिर पीछे कोई खास नजर डाले बिना ही वह जंगल की तरफ दौड़ पड़ी।
2 पेड़ों के तनों के बीच से वन रक्षिका नतालिया की छोटी-सी दो खिड़कीवाली झोंपड़ी नजर आ रही थी। गीली झाड़ियों से बचाने के लिए लेना ने अपनी पूरी स्कर्ट को पैरों से ऊपर समेट लिया और सीधी दरवाजे की तरफ बढ़ी। झोंपड़ी के चारों ओर गलती हुई बर्फ की बूँदों की आनन्दपूर्ण टप-टप गूँज रही थी। खिड़की के शीशों पर उस चिथड़े के निशान दिखायी दे रहे थे जिससे उन्हें पोछा गया होगा। पावेल किरीलोविच का सिकुड़ा हुआ जांघिया रेलिंग पर धूप में सूख रहा था।
घुसते ही लेना ने नतालिया को हँसते-हँसते बल खाते हुए और अपने स्कर्ट के छोर से आँखें पोंछते हुए पाया।
‘‘क्या अध्यक्ष यहाँ है?’’ लेना ने पूछा।
‘‘हाँ, नतालिया ने लाल-लाल चौड़ा चेहरा उठा कर कहा। ‘‘अरे खैर तो है,’’ वह अवाक रह गयी।
‘‘क्या बात है?’’
‘‘मेरी हँसी रोके नहीं रुकती और इससे इन्हें बुरा लगता है। और जितना यह मुँह बिगाड़ते हैं उतना ही इन्हें देखकर और ज्यादा हँसी छूटती है। यह कहते हैं मुझे पाजामा दो! अब तुम्हीं बताओ मैं कहाँ से लाऊँ।’’
‘‘माजरा क्या है,’’ इसी हैरानी को लेकर लेना अन्दर गयी।
पावेल किरीलोविच गर्म चूल्हें के नजदीक बैठा हुआ था। वह नतालिया का आधी बाँह का ब्लाउज और धारीदार हरा स्कर्ट पहने हुए था।
‘‘नतालिया कहाँ है?’’ उसने अपने नीले-नीले पैर को आग की तरफ उठाये हुए ही चिड़चिड़े स्वर में पूछा।
‘‘दरवाजे पर,’’ लेना ने कहा।
‘‘वह इतनी लोटपोट क्यों हो रही है? अगर तुमने भी ठी...ठी...ठी...ठी...की तो उठाकर बाहर फेंक दूँगा।’’
‘‘मैं क्यों ठी ठी करूँगी। मैं तुम्हारे लिए कुछ दवा लायी हूँ। मरीया तिखोनोवना ने कहा है कि मैं तुम्हारे पैरों पर उसकी मालिश कर दूँ।’’
‘‘मालिश कर दूँ,’’ अध्यक्ष ने नाक सुड़की। ‘‘अच्छा ला, मुझे दे।’’
कृषि-विशेषज्ञ प्योत्र मिखाइलोविच हल्की नीली आँखों वाला पच्चीस वर्षीय युवक मेज के सामने बैठा था। उसने एक प्याले से शीशा टिका रखा था और दाढ़ी बना रहा था। पतले कागज के टुकड़े उसके चेहरे पर दो जगह प्लास्टर की तरह चिपके हुए थे।
‘‘हलो, प्योत्र मिखाइलोविच,’’ लेना ने कहा। ‘‘या आज मुझसे नहीं बोलोगे?’’
‘‘हलो कामरेड जोरिना,’’ कृषि विशेषज्ञ ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘तुम यहाँ, आ कैसे गयी?’’
‘‘अध्यक्ष के पीछे-पीछे चली आयी।’’
‘‘डर नहीं लगा?’’
‘‘मौत के मुँह में जाने के लिए यह सदा तैयार रहती है,’’ पावेल किरीलोविच बोल उठा। ‘‘लेकिन जहाँ इसे जाना चाहिए, वहाँ नहीं जाएगी। सुनो लेना, जिला कमेटी ने इनको हमें ठीक करने के लिए भेजा है। इसकी नौबत आ गयी है। ‘लाल हलवाहा’ फार्म ने हमें पछाड़ दिया है। पता है, वहाँ के कोम्सोमोल सदस्यों ने कितना गेहूँ पैदा करने का वायदा किया है?’’
‘‘कितना?’’
‘‘इकतीस बुशल फी एकड़। और तुमने कितना वायदा किया है? साढ़े बाईस। मगर उनका अध्यक्ष भी क्या चालाक शैतान खोपड़ी है भाई।’’ पावेल किरीलोविच ने कृषि विशेषज्ञ की ओर मुड़कर कहा। ‘‘एक हफ्ते पहले वह यहाँ से गुजरा था। मुझे राह में मिल गया और खोद-खोद कर बातें निकालने लगा। कितना करोगे? कब तक करोगे? वगैरह। और मैं भी क्या बेवकूफ हूँ? सब बक गया। और वह सुनता रहा और जादू टोने करनेवालों की तरह सी-सी फू-फू करता रहा, मानो कह रहा हो कि भाई हम तुम्हारी बराबरी कभी कैसे कर सकते हैं। धत् तेरे की,’’ और फिर वह लेना की ओर मुड़ा। ‘‘लाल हलवालों ने जोरदार फसल उगानेवाले दो ब्रिगेड बनाये और उनके बारे में जिला केन्द्र को लिखा और उनके पत्र को सरकार के पास भेजे गये एक पत्र में शामिल कर लिया गया है। लेकिन हमको-तुमको शामिल नहीं किया गया। वे कहते हैं कि हमारा-तुम्हारा जिक्र करना भी कलंक की बात होती। सुना तुमने, कलंक की बात होती। तुम कोम्सोमोल संगठन की मंत्रिणी हो और कोम्सोमोल सदस्यों से आशा की जाती है कि वे सब से आगे की पाँत में रहेंगे। क्यों, गलत कहता हूँ? क्यों, मैं ठीक कह रहा हूँ प्योत्र मिखाइलोविच?’’
प्योत्र मिखाइलोविच ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया।
पावेल किरीलोविच उठ बैठा और मेज तक गया।
‘‘अपने लड़के-लड़कियों की बैठक आज ही बुलाओ और उन्हें बताओ कि लाल हलवाहे क्या कर रहे हैं। होड़ करनी है। गलत कहता हूँ? बात पी मत जाओ। कोई ऐतराज है?’’
‘‘नहीं, मैं आज ही करूँगी,’’ लेना ने कहा तो, लेकिन वह डर रही थी कि कहीं उसका दाढ़ी भरा चेहरा देखकर हँसी न फूट पड़े।
‘‘तो फिर ठीक है। हँस रही है। क्यों, हँसने की क्या बात है? अरे, तू,’’ और ठण्डी हवा में चाबुक की तरह फटकार कर अध्यक्ष ने स्कर्ट उठाया और दरवाजा इतनी जोर से भिड़ाकर बाहर चला गया कि सारी झोंपड़ी काँप गयी। एक क्षण कमरे में शान्ति छा गयी।
प्योत्र मिखाइलोविच ने तौलिया और हजामत का सामान अपनी अटैची में रखा और अपने चेहरे पर लगी प्लास्टर की चिंदियाँ देखकर नाक भौं सिकोड़ीं। फर्श पर एक चमकते हुए धब्बे को सफेद बिल्ली ने सूँघा और फिर सिकुड़कर चूल्हे के बगल में बैठ गयी।
‘‘तो, आप फसल की चिन्ता में आये हैं, प्योत्र मिखाइलोविच।’’ आखिरकार लेना ने खामोशी तोड़ी।
‘‘हाँ, पिछली बार तुम क्यों नहीं आयीं?’’ प्योत्र मिखाइलोविच ने शीशे में अपने चेहरे के प्लास्टर की तरफ घूरते हुए कहा। तुमने वायदा किया था। मैंने तुम्हारे लिए एक घण्टे प्रतीक्षा की। यह कोई भलमनसाहत है।’’
‘‘ग्रीशा ने मुझे नहीं आने दिया प्योत्र मिखाइलोविच।’’
‘‘ग्रीशा कौन है?’’
‘‘हमारे ब्रिगेड में काम करता है। चेचक मुँह चेहरा है। तुम जानते हो उसे, वह छापामार-योद्धा रह चुका था। वह कहता है कि मुझे दूसरों के साथ घूमना-फिरना नहीं चाहिये। कहता है कि हमारे फार्म पर क्या कम लोग हैं? उसने कहा कि अब अगर मैंने ऐसा किया तो मेरी टाँगें ही तोड़ देगा।’’
‘‘क्या मजाक है,’’ प्योत्र मिखइलोविच ने कहा।
‘‘इस सबके बारे में मैंने तुम्हें एक पत्र लिखा था।’’
‘‘फिर तुम बातें बना रही हो।’’
‘‘ईमान से मैंने लिखा था।’’
‘‘झूठ मत बोलो। तुमने कहाँ भेजा था? मेरा पता क्या है?’’ उसने लेना की आँखों में आँखें डालकर कहा।
‘‘अरे... पता...’’ लेना की जबान एक क्षण लड़खड़ा गयी। ‘‘मैंने तुम्हारे दफ्तर भेजा था। एक पोस्टकार्ड था।’’
न जाने क्यों, प्योत्र मिखाइलोविच ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया।
‘‘जिला कृषि विभाग को। हूँ... तो भाई लोगों के हाथ लग गया होगा। वे अब मुझे देंगे। लेना, उस पते पर अब कभी मत लिखना। मेरे घर के पते पर लिखना। पता यह है।’’
उसने कागज का एक टुकड़ा फाड़ा और झटपट पता घसीट दिया। बाहर दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनायी दी।
लेना ने ठण्डी साँस लेकर कहा: ‘‘ये लोग किसी को दो बोल भी नहीं बोलने देते।’’
‘‘नहीं जरा भी नहीं,’’ प्योत्र मिखाइलोविच ने धीमे से फुसफुसा कर कहा। ‘‘लेना, मैं बाहर चला जाता हूँ और फिर पीछे से तुम भी आ जाना।’’ और अध्यक्ष के प्रवेश का इंतजार किये बगैर ही उसने टोपी पहनी और बाहर निकल गया। ‘‘इन पर लोहा कर देना चाहिए,’’ नतालिया ने प्रवेश करते हुए कहा। वह अध्यक्ष की पतलून लिये हुए थी।
‘‘जो जी चाहे करो। लोहा करके सुखा दो, चाहे चूल्हे के पास लटका दो।’’ पावेल किरीलोविच ने कहा। वह उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था। ‘‘मुझसे यह सब बर्दाश्त नहीं होता। मुर्गियाँ तक मुझ पर हँस रही हैं। लेना, तुम गाँव चली जाओ और कह दो कि वे गाड़ी भेज दें। पुल अभी उखाड़ा नहीं गया है।’’ ‘‘मैं तो नदी पर से ही वापस जाऊँगी।’’
‘‘कोशिश कर देखो!’’
‘‘तो क्या तुम्हारा ख्याल है कि दस मील का चक्कर खाकर जाऊँगी।’’
‘‘भाड़ में जाओ। तुम मत जाओ उनमें इतनी अकल तो होगी कि खुद गाड़ी भेज दे।’’
पावेल किरीलोविच खिड़की से बाहर देखने लगा।
अहाते में जगह-जगह पानी भरा था जो सूरज की तरह चमक रहा था और बरामदे की भूरी जमीन पर मुर्गियों के पैरों के निशान से चित्रकारी का नमूना बन गया था। कुएँ तक साफ सुथरा टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता साँप की तरह पड़ा हुआ था। और आगे झाड़ियों के झुरमुट थे और उनके बाद जंगल था जो अभी भी शान्त और चित्र-लिखित सा मालूम हो रहा था।
कृषि विशेषज्ञ झाड़ियों के पास खड़ा था ओर सावधानी से एस्पेन की नुकीली पत्तियों की जाँच कर रहा था। कभी-कभी वह बेसब्री के साथ खिड़की की तरफ नजर डाल लेता था।
‘‘प्योत्र मिखाइलोविच वहाँ क्या कर रहे हैं?’’ अध्यक्ष ने पूछा।
‘‘मुझे क्या मालूम,’’ लेना ने उत्तर दिया।
अध्यक्ष ने लेना की तरफ एक संदेह भरी नजर डाली।
‘‘अच्छा, तो तुम्हारी शैतानी फिर शुरू हो गयी। उसकी जगह अगर मैं होता तो दो-एक बार, मैं अच्छी तरह से तुम्हारी खबर लेता। उसके जैसे पढ़े-लिखे आदमी को एस्पेन के इर्द-गिर्द चक्कर काटते देखकर-जैसे कि वह मुर्गा हो-मेरा सिर चक्कर खाने लगा है।’’
खिड़की खोलकर अध्यक्ष ने पुकारा: ‘‘प्योत्र मिखाइलोविच! मैं तुमसे उस पुटाश का जिक्र करना ही भूल गया। एक मिनट के लिए अन्दर तो आओ!’’
3
सामूहिक फार्म का दफ्तर स्टोरमैन के घर में था। तख्ते की दीवार खड़ी करके एक बड़े कमरे के दो हिस्सों में बाँट दिया था। आधे में स्टोरमैन और उसका परिवार रहता था और दूसरे आधे हिस्से में फार्म के मामले तय होते थे। कई किसानों ने अपने मकान बना लिये थे। मगर अभी भी रहने की जगह की बड़ी तंगी थी। लड़ाई के पहले शोमुश्का ग्राम को अपने सौ घरों पर नाज था, जो चारों तरफ से सेब के बाग से घिरे थे। गाँव का एक छोर नदी को छूता था, तो दूसरा छोर पहाड़ियों को। फासिस्टों ने बायीं तरफ का सारा भाग और दाहिनी तरफ का एक हिस्सा जलाकर खाक कर दिया था, मगर सेब के कुछ पेड़ अभी भी बच रहे थे। और शरद की काली रात में बीरान बगीचे में उनके टपकों के जमीन पर गिरने की ध्वनि अद्भुत मालूम होती थी।
पावेल किरीलोविच, मरीया तिखोनोवना, दाशा और लेना की माँ पेलगेया मार्कोवना बोर्ड की मीटिंग कर रहे थे। बाहर झुटमुटा था। लोहार ने हथौड़ा चलाना बन्द कर दिया था, गलियाँ खामोश थीं और इस खामोशी में साँझ के हलके स्वर सुनायी दे रहे थे। नदी पर बर्फ की खड़खड़ाहट, किनारे पर किसी इंजिन की हल्की फटफट, झील पर जंगली बत्तखों की आवाजें, और बड़ी कठिनाई से सुने जा सकने वाले इन स्वरों के कारण दुनिया और भी विशाल और विस्तृत महसूस होती थी।
इस समय दफ्तर में कोई आनन्द नहीं था। फर्निचर के नाम पर सिर्फ एक बेंच, एक स्टूल और एक मेज थी जिसके तीन पैरों पर रोगन था और एक पर रोगन भी नहीं था। मेज एक मुट्ठे से ढकी हुई थी, जिस पर लिखे हुए आँकड़े चींटियों की तरह जान पड़ते थे।
बोर्ड ने अभी-अभी तमाम ब्रिगेडों के फसल के कोटे बढ़ा देने का फैसला किया था।
विभाजन की उस ओर से एक बच्चे के रोने की आवाज आयी, झूले की चूँ-चूँ गूँज उठी और उसके साथ एक औरत के उनींदे संगीत के स्वर आये:
चुप भी हो जा मेरे लाल कि चुप भी हो जा! रूठ न प्यारे, रो मत सो जा...!
माँ की आवाज से ही मालूम हो रहा था कि धीरे-धीरे वह खुद भी सोती जा रही थी।
‘‘तो भाई,’’ पावेल किरीलोविच ने कागजों को एक सँवारे हुए ढेर में रखते हुए कहा, ‘‘हमें मीटिंग खत्म कर देना चाहिए। इस तरह दिल खोलकर बातें हमें पहले ही कर लेनी चाहिए थीं। हम सब एक ही बात सोच रहे थे लेकिन उसे लिखित रूप में देने में घबरा रहे थे। हम किससे डर रहे थे? खुद अपने से?’’
दाशा ने सिर हिलाया। मरीया तिखोनोवना ऐसी सीधी और निश्चल बैठी थी, मानो अपनी तस्वीर खिंचा रही हो।
विभाजन की दूसरी ओर से फिर औरत की आवाज आयी:
चुप भी हो जा मेरे लाल कि चुप भी हो जा।
अब तो रूठ न प्यारे अब तो रो मत सो जा...।
‘‘और यह मत भूलना कि कामरेड देमेन्तियेव कल हमारी मीटिंग में आ रहे हैं,’’ पावेल किरीलोविच ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘सारा काम गम्भीरता और व्यवस्था-पूर्वक होना चाहिए। बिना हाथ उठाये हुए कोई न बोले। और फसल के अलावा और कोई फिजूल की बात न की जाए। तुम जानते हो हम लोगों का क्या हाल होता है, बस, मेला जैसा शोरगुल होने लगता है। हर आदमी अपनी दून की हाँकने लगता है। मिसाल के लिए अनीसिम को लो; कितनी बार वह खड़ा हुआ है और अपने लिए नया मकान बना देने के बारे में हम लोगों को धन्यवाद दे चुका है। इस बार उसे इसकी इजाजत न दी जाए। कामरेड देमेन्तियेव के सामने यह बात शर्मनाक होगी।’’
‘‘उसकी जबान कौन रोक सकता है?’’ दाशा ने कहा।
‘‘तो फिर उसे मीटिंग की सूचना ही न दो। उसके बिना भी हमारा काम चल जाएगा।’’
विभाजन की दूसरी तरफ से आवाज आयी: ‘जरा धीमे बोलो पावेल किरीलोविच। मैं बच्चे को सुला नहीं पा रही हूँ।’’
‘‘उसके पेट में दर्द है,’’ मरीया तिखोनोवना के कहा। ‘‘न्यूरा, कुछ गर्म बाजरा या और कुछ उसके पेट पर रखो।’’
अध्यक्ष ने अपनी आवाज धीमी कर दी।
‘‘और अब भाषणों के बारे में सुनो। मैं पहले बोलूँगा। संक्षिप्त भाषण। फिर पेलेगेया बोलेगी। और फिर ब्रिगेड लीडर की हैसियत से मरीया तिखोनोवना तुम बोलो। फिर कोम्सोमोल का एक सदस्य बोलेगा। उनमें से कौन बोलेगा, इसका फैसला वे लोग कर रहे हैं। भाषण अच्छे करना, ताकि उनमें कुछ जान मालूम हो। अच्छा यह होगा कि पहले लिख लिया जाय।’’
‘‘मैं बिना लिखे काम चला लूँगी,’’ मारीया तिखोनोवना ने आपत्ति की, ‘‘आखिर लिखने की क्या बात है?’’
‘‘सार्वजनिक भाषण कैसे देना चाहिए, यह तुम नहीं जानती। तुम कहोगी क्या?’’
‘‘यह तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं कहूँगी कि हम चौंतीस बुशल फी एकड़ पैदा करने जा रहे हैं।’’
‘‘और फिर?’’
‘‘फिर क्या? बस हो गया।’’
‘‘मैंने कहा था न? तुम हमारे फार्म की सबसे बढ़िया ब्रिगेड नेता हो, मगर भाषण देना रत्ती भर नहीं जानतीं। तुम बोलो तो इस तरह कि लोगों में जोश उमड़ जाय। बेहतर है कि मेरे कहे मुताबिक लिख डालो।’’
‘‘मैं तो नहीं लिखूँगी। भाषण लिखने के लिए मेरे पास फुर्सत नहीं है।’’
‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिए लिख दूँ।’’
‘‘मरीया, जिद न करो,’’ पेलगेया मार्कोवना ने कहा, ‘‘अगर वह चाहता है, तो उसे लिख डालने दो।’’
‘‘भला वह क्या लिखेगा?’’
‘‘मैं क्या लिखूँगा?’’ पावेल किरीलोविच ने उठते हुए कहा। ‘‘तो सुनो। मैं लिखूँगा कि हम शरद की फसल में इतना गेहूँ पैदा कर लेंगे कि हमें इन मनहूस रोटी-कार्डों की जरूरत नहीं रह जाएगी। मैं लिखूँगा कि हम इस भूमि से इतना उपजायेंगे कि समस्त मेहनतकश जनता को आनन्द होगा और पूँजीपतियों पर तुषारपात, ताकि न सिर्फ हमारे बेटे-बेटी बल्कि खुद हम और तुम कम्युनिज्म का स्वाद पा सकें... और ... वगैरह, वगैरह।’’ पावेल किरीलोविच यह कहकर बैठ गया।
‘‘वाह! यह हुआ न भाषण?’’, मरीया तिखोनोवना ने कहा। ‘‘अच्छा लिख डालना, मेरी बला से।’’
नीली साँझ उतर आयी। विभाजन की दूसरी तरफ बच्चा सो गया था, लेकिन उस औरत का शान्तिमय स्वर अभी गीत गाये जा रहा था:
पहना दूँगी तुझको रेशम रेशम
घूम टहल आना यह नगरी चम चम..
और झूला चूँ-चूँ बोलता जा रहा था।
4
दाशा ने मौके की आन निभाने में और कोई कसर नहीं रखी। उसने दफ्तर का फर्श झाड़ा, बुहारा और धोया; कहीं से पता लगाकर कुछ लम्बी बेंचें भी ले आयी, मेज पर लाल साटिन का कपड़ा बिछा दिया और पानी के लिए जग भी कहीं से ले आयी, यह जग कहाँ देखा है यह सोचते-सोचते पावेल किरीलोविच ने कुछ देर तक दिमाग खपाया और तब उसे याद आ गया: यह लोहार निकीफोर का था। निकीफोर से कोई चीज पा लेना आसान नहीं है। ‘‘दाशा भी खूब है,’’ अध्यक्ष ने सोचा। ‘‘इस बार सभा में जरूर व्यवस्था रहेगी। कामरेड देमेन्तियेव भी देख लें कि हम लोग यहाँ कितने व्यवहार-कुशल हैं। हर कोई आ रहा मालूम पड़ता है। बैठने के लिए अभी कोई जगह नहीं बची। इस बार इसकी जरूरत नहीं है कि लोगों को जमा करने के लिए हर एक दरवाजा खटखटाते दौड़ा जाए।’’
लोग गम्भीर मुद्रा में आ रहे थे, शान्ति से बातें कर रहे थे और सिगरेट पीने के लिए बाहर ओसारे में चले जाते थे। ‘‘हर चीज साफ-सुधरी होने का भी क्या ही असर होता है,’’ अध्यक्ष ने अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए सोचा। नौ बजते ही वी उठ खड़ा हुआ और पानी के जग को पेन्सिल से बजाया।
सभी आरम्भ हो गयी। जब मंच समिति का चुनाव हुआ तो हमेशा-जैसी छेड़खानी नहीं हुई। मरीया तिखोनोवना, पावेल किरीलोविच और कामरेड देमेन्तियेव मेज के पास अपनी जगहों पर बैठे। देमेन्तियेव अपनी स्कूली कापी में कुछ लिखते हुए एक किनारे पर बैठे थे। मरीया तिखोनोवना हमेशा की तरह तनकर सीधी बैठी हुई थी और पलक भी नहीं मार रही थी। पावेल किरीलोविच ने उपस्थित लोगों पर नजर दौड़ाई और परेशान दृष्टि से देखा। न जाने क्यों, जब वह मंच पर बैठता है तो वह परेशान दृष्टि से इधर-उधर देखता है।
अध्यक्ष की संक्षिप्त भूमिका के बाद कामरेड देमेन्तियेव खड़े हुए। उन्होंने पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के विस्तारित फरवरी अधिवेशन में फसल बढ़ाने के बारे में स्वीकृत प्रस्तावों के विषय में और जिले के दूसरे सामूहिक फार्मों में क्या हो रहा है, उनके बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया कि सभी गाँवों के सामूहिक फार्मों ने उन गाँवों में भी जहाँ की मिट्टी के बारे में कोई दून की नहीं हाँक सकता, इस वर्ष फसल का रिकार्ड कायम करने का संकल्प किया है। जब उन्होंने सामूहिक फार्मों के किन्हीं किसानों का नाम लिया तो कमरे में मर-मर स्वर फूट पड़े। ‘‘कुवाकिन, कौन है वह?’’ ‘‘अरे वही इओन का दामाद!’’ ‘‘सुना तुमने, सिपातोव लौट आया है। लोग कहते हैं कि उसकी माँ रोई कि आँखें फूट जायें।’’ ‘‘वह तेरी कोरकिना है! उसकी तरफ कौन आँखें उठाकर भी देखेगा?’’ अध्यक्ष ने पानी के जग को टुन-टुनाया। लेकिन कामरेड देमन्तियेव लोगों के नाम गिनाते ही रहे और उन के बारे में ऐसी बढ़िया बातें बताते रहे कि औरतों, बूढ़े और बच्चे, सभी समान रूप से खुश हो उठे। जब उन्होंने भाषण खत्म किया, तो देर तक तालियाँ पिटती रहीं।
अध्यक्ष ने अपने कागज पर नजर डाली और लेना की माँ पेलगेया मार्कोवना को बुलाया। वह खड़ी हुई और अपना भाषण पढ़ने लगी। जब उसने खत्म किया तो अध्यक्ष की तरफ नजर डाली, मानो पूछ रही हो: ‘‘ठीक रहा?’’ अध्यक्ष ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया।
‘‘साढ़े बत्तीस बुशल तुमने कहा है?’’
‘‘हाँ, साढ़े बत्तीस बुशल,’’ पेलगेया मार्कोवना ने अपनी सीट पर सिकुड़कर बैठते हुए कहा।
‘‘हम लिख लेते हैं,’’ अध्यक्ष ने कहा और यद्यपि जिस कागज पर नये कोटे लिखे हुए थे वह पिछली रात से ही उसकी जेब में पड़ा हुआ था, फिर भी उसने सामने रखे कागज पर पेलगेया मार्कोवना के नाम के आगे साढ़े बत्तीस बुशल लिख लिये।
मीटिंग व्यस्थित तरीके से चल रही थी।
योजना के अनुसार लेना की माँ के बाद मरीया तिखोनोवना की बारी आयी। वह सख्त औरत है जो फार्म की सर्वश्रेष्ठ ब्रिगेड लीडर की हैसियत से अपनी क्षमता को भली-भाँति पहचानती है। वह खड़ी हुई। बड़े धीरज के साथ उसने चश्मा पहना, हाथ भर की दूरी पर कागज सम्भाला और भाषण पढ़ने लगी।
‘‘साथियो! हमारे सामने समस्या है कि कम से कम समय में हम युद्ध से पहले के उत्पादन स्तर को हासिल कर लें। शरद की इस फसल पर हमें इतना गेहूँ काटना है कि सोवियत सरकार के लिये राशन कार्ड को खत्म करना सम्भव हो जाये। प्रतिकूल...’’ वह हकला उठी, ‘‘प्रतिकूल प्राकृ...प्राकृति...यह तुमने क्या लिखा है, मेरी समझ में नहीं आता?’’ उसने अध्यक्ष की तरफ नजर डालकर कहा, ‘‘यह क्या शब्द है?’’
पावेल किरीलोविच छटपटा कर रह गया। श्रोताओें में एक हँसी की लहर गूँजकर चली गयी।
‘‘जारी रखो, जारी रखो,’’ अध्यक्ष ने कहा और न जाने क्यों, उसने पानी के जग को फिर बजा दिया।
‘‘मैं जारी कैसे रखूँ, जबकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है? मैंने कहा था कि मुझे लिखे हुए भाषण की जरूरत नहीं है।’’ मरीया तिखोनोवना ने अपना चश्मा उतार कर रख दिया एक क्षण सोचा और कहा: ‘‘तो लड़कियो! हमारे ब्रिगेड ने पैंतीस बुशम फी एकड़ फसल पैदा करने का फैसला किया है...’’
‘‘यहाँ मर्द भी बैठे हैं,’’ दरवाजे के करीब से एक आवाज आयी, ‘‘यह लड़ाई के जमाने की आदत नहीं जाती-लड़कियो ये, लड़कियो वो।
मरीया तिखोनोवना ने इस टिप्पणी पर ध्यान न देते हुए बात जारी रखी: ‘‘इसके लिए सख्त काम की जरूरत होगी। लड़कियो, इस पर गौर कर देखो। फिर शिकायत न करना। मैं इसके बारे में तुम्हें बता चुकी हूँ या नहीं और मैंने तुममें से किसी को मजबूर नहीं किया। तो क्या तुम लोग राजी हो?’’
‘‘राजी हैं! राजी हैं! बैंचों से आवाज आयी।
‘‘तो ठीक है। हमने अब तक बड़ी मेहनत से काम किया है लेकिन अब हमें और भी सख्त मेहनत के साथ काम करना होगा। समझ लो। किसी तरह की शिकायत न हो। और कल से कोई एक दिन भी काम से गैरहाजिर न हो। कोई कुनमुनाहट न हो। ध्यान रहे, यह वायदा हम एक दूसरे के साथ नहीं कर रहे हैं। सारे देश के साथ कर रहे हैं। बस, इतना ही कहना है।’’
‘‘हम इसे लिखे लेते हैं,’’ अध्यक्ष ने कहा और अपने कागज पर पैंतीस का अंक लिख लिया।
कोम्सोमोल के सदस्यों की तरफ से ग्रीशा को बोलना था। उसका नाम पुकारने के लिए अध्यक्ष उठने वाला ही था कि उसकी नजर अनीसिम पर पड़ी जो मेज के करीब ही खड़ा हुआ अपनी रोयेंदार टोपी पर फूहड़ की तरह हाथ फेर रहा था। वह कैसे अन्दर आया और कमरे की सामने वाली पाँत तक घुस आया,-यह अध्यक्ष की कल्पना से बाहर था। सख्त हिदायत थी कि नौ बजे के बाद किसी को अन्दर न आने दिया जाय।
‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ पावेल किरीलोविच ने पूछा और महसूस किया कि मीटिंग अव्यवस्थित होती जा रही है।
‘‘आपकी मर्जी हो तो एक शब्द कहना चाहता हूँ...’’
‘‘तुम्हें अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।’’
‘‘बस, एक छोटी-सी बात है। मुझ जैसे बूढ़े आदमी को तुम इंतजार करने के लिए न कहो! क्यों, प्यारे भाइयो...’’
‘‘रुको। मैंने तुम्हें बोलने की इजाजत नहीं दी।’’
बैचों पर बैठे हुए लोगों ने विरोध किया: ‘‘बोलने दीजिये। आपके लिए क्या फर्क पड़ता है।
अध्यक्ष बैठ गया और देमेन्तियेव की तरफ उसने अपराधी दृष्टि से देखा। अनीसिम ने बोलना जारी रखा: ‘‘प्यारे भाइयो! आप लोगों ने मेरे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए मैं किस मुँह से धन्यवाद दूँ। यहाँ, जिला केन्द्र के इस आदमी के सामने मैं आप लोगों को अपने मकान के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। मेरी समझ में आज भी नहीं आया कि यह सब कैसे हो गया। वह तो एक जादू सा था। ...एक सपना...,’’ बूढ़े की आवाज लड़खड़ा गयी।
‘‘बस ना?’’
‘‘भगवान ने मेरी बुढ़िया को उठा लिया, दुश्मनों ने मेरे बेटों की जान ले ली। अगर तुम भले लोगों का सहारा न होता तो मैं कहाँ का रहता? तुम लोग मेरे लिए बेटे-बेटियों के समान हो। लेकिन तुम लोग मेरे साथ ऐसा सलूक क्यों करते हो जैसे आज रात किया। क्या मुझसे कोई भूल हो गयी?’’
बूढ़े अनीसिम का गला भर आया।
सफेद सिर तान कर वह सीधा खड़ा हुआ था। आँखें आँसुओं से चमक रही थीं जो छलक पडे थे और झुर्रीदार कपोलों से बहकर नीचे टपक रहे थे; सभी लोग उसकी तरफ आँखें गड़ाये इतनी खामोशी के साथ बैठे थे कि विभाजन की दूसरी तरफ सोये हुए बच्चे की साँस के स्वर भी सुनायी दे रहे थे।
‘‘बस ना?’’ अध्यक्ष ने फिर पूछा।
‘‘नहीं अभी बस नहीं। तुम लोग यहाँ यह चर्चा करने के लिये आये हो कि अनाज की फसल कैसे बढ़ायी जाय। और मुझे बुलाते तक नहीं। जैसे कि मेरी कोई गिनती ही नहीं। लेकिन प्यारे भाइयो! मैं सत्तर साल से किसान हूँ और शायद मैं भी आपके काम में हाथ बँटा सकूँ। मैं इस जमीन को, इस धरती मैया को, उतनी ही अच्छी तरह से जानता हूँ जैसे कि अपनी आत्मा को। मैं बूढ़ा हूँ, तो क्या हुआ? क्या मैं इतना बूढ़ा हूँ कि बीज डालने या निराई का काम भी नहीं कर सकता। तुम लोगों के किसी ब्रिगेड में मुझे क्यों न रखा जाये?’’
‘‘पिछली शरद में हम तुम्हें रखना चाहते थे, लेकिन तुमने इनकार कर दिया था,’’ अध्यक्ष ने कहा।
‘‘पिछले शरद में मेरी हालत खराब थी, पावेल किरीलोेविच! तुम्हें खुद याद होगा कि मुझे कैसा बुरा गठिया था। लेकिन अब बात अलग है। मैं अपनी हड्डियों को धूप में तपा चुका हूँ। अभी उस दिन मैं इतना बड़ा लट्ठा लुढ़काकर अपने झोंपड़े तक ले गया ओर मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ। अगर तुम्हें मेरे काम के दिनों की तनख्वाह लगाने में बुरा लगता हो तो तुम्हें कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। मैं मकान के लिए लोगों का काफी देनदार हूँ। तुम लोग मुझे दाशा के ब्रिगेड में रख दो या मरीया तिखोनोवना के ब्रिगेड में, अगर उसे मंजूर हो। मैं नाव की खेवाई भी कर लूँगा। गर्मियों में कोई ज्यादा खेवाई नहीं...’’
‘‘बस ना’’ अध्यक्ष ने हिम्मत की।
अनीसिम ने टोपी लगायी और चल दिया।
‘‘उसे मेरे ब्रिगेड में रख दो’’ मरीया तिखोनोवना ने कहा, ‘‘मुझे कोई उज्र नहीं।’’
‘‘तुम किसलिए कूद रही हो’’ अध्यक्ष ने लेना को सामने की पाँत की तरफ बढ़ते हुए देखकर पूछा। ‘‘तुम्हारी बारी नहीं है। कोम्सोमोल के सदस्यों की तरफ से ग्रीशा को बोलना है।’’
लेना ने कहा: ‘‘उसने अपनी जगह मुझे बोलने को कहा है,’’ और सभी लोग हँस पड़े हालाँकि इसमें हँसी की कोई बात नहीं थी।
‘‘जरा ठहरो...’’
‘‘साथियो’’ लेना चिल्लायी और यकायक मुस्करा दी। ‘‘ग्रीशा तुम मुझे हँसाओ मत। तो साथियो, क्या आप लोग लाल हलवाहों को दो-एक सबक नहीं सिखायेंगे?
अगर इस साल हम फसल का रिकार्ड कायम कर देंगे तो उन लोगों की अकल ठिकाने लग जाएगी।’’
‘‘लगता है इस बार यह मुझे नीचा नहीं दिखायेगी’’ अध्यक्ष ने सोचा। हम नौजवानों ने सारे मसले पर बात कर ली है और तय किया है कि पैंतालीस बुशल फी एकड़ गेहूँ पैदा करके रहेंगे।’’
‘‘हम इसको भी लिख लेते हैं,’’ अध्यक्ष ने पेन्सिल उठाते हुए कहा लेकिन यकायक अधर में ही उसका हाथ रुक गया: ‘‘कितना बताया तुमने?’’
‘‘पैंतालीस बुशल।’’
‘‘तुम्हारा मतलब है पैंतीस?’’
सभी लोग हँस पड़े।
‘‘फिर अपनी शैतानी पर उतर आयी। अगर तुम्हें कुछ कहना है तो होश की बातें करो। वरना बैठ जाओ।’’
‘‘जरा ठहरो। तुम्हें यह मजाक मालूम होता है; लेकिन हमने अखबारों में पढ़ा है कि अल्ताई के किसान क्या कर रहे हैं। उन्होंने बुआई में बीजों की तादाद बढ़ाकर अपनी फसल बढ़ायी। हो सकता है, बुजुर्ग लोग इस का तजुर्बा करते डरते हों लेकिन हम नहीं डरते। और इसलिये हम इस सभा से इजाजत माँगने आये हैं कि हमें जिला कृषि विभाग द्वारा नियत किये गये बीज से डेढ़ गुना ज्यादा बीज बोने की इजाजत दी जाय।’’
सामूहिक फार्म के किसानों में मतभेद उठ खड़ा हुआ। आधे लोग जिनमें अधिकतर जवान थे कोम्सोमोल के सदस्यों को इतना बीज देने के लिए तैयार थे; दूसरे आधे लोग, जिनमें अधिकतर बुजुर्ग थे, इसके खिलाफ थे।
काफी शोरगुल, बातचीत और तर्क होने लगा।
पानी के जग की टनटनाहट किसी को नहीं सुनाई दी, सभा हाथ के बाहर हो गई ।
‘‘ऐ, तुम बैठ जाओ!’’ पावेल किरीलोविच अपने माथे से पसीना पोंछते लेना पर चिल्लाया, ‘‘तुम अपनी बात कह चुकी। अब बैठ जाओ!’’
लेकिन वह आगे की पाँत में एक कोने पर खड़ी ही रही और लोग उसके पास तक दौड़ते, चिल्लाते और हाथ हिलाते-डुलाते रहे।
लोहार निकीफोर सामने आ गया और लोगों के खामोश होने का इंतजार करने लगा। लेकिन वे चुप न हुए, इसलिए वह दूसरों की आवाज को डुबाते हुए चीखने लगा।
‘‘क्या इतना बीज हम इन लोगों को दे देंगे? मान लो, हमने दे दिया। तो दूसरे लोग क्या बोयेंगे? पत्थर? हमारी बुआई का क्षेत्र बढ़ गया है कि नहीं? और हमारे पास फालतू बीज भी है क्या? उसकी चालाकी तो देखो,-खुद तो अपने हिस्से में दो गुना ज्यादा ले लेगी और दूसरों के लिए कुछ नहीं छोड़ेगी। क्या ही शानदार ख्याल है। इस तरह तो कोई भी बेवकूफ ज्यादा फसल पैदा कर सकता है।’’ (अध्यक्ष ने सोचा: ‘‘कहीं यह गाली गलौज न करने लगे।’’) ‘‘जरा आसानी से हासिल कर लेने की कोशिश तो करो। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं उसे बीज नहीं दूँगा!’’
ग्रीशा चिल्लाया: ‘‘हमेशा की तरह फिर ठोक पीट कर रहा है,’’ और जो लोग खामोश हो गये उन्होंने फिर शोर करना शुरू कर दिया।
‘‘आशा है आप हम लोगों को क्षमा करेंगे।’’ पावेल किरीलोविच ने देमेन्तियेव की तरफ झुक कर कहा, ‘‘यह लेना हमेशा कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देती है। उसने शक्ल दिखायी कि हाय-तोबा मच गया।’’
देमेन्तियेव ने कन्धे उचकाते हुए कहा: ‘‘इसमें माफी माँगने की क्या बात है? हर चीज ठीक चल रही है। आखिरकार लोगों ने मुँह तो खोला। अभी तक तो ऐसा लग रहा था कि लोग किसी की गमी में शामिल हुए हैं।’’
पूरी तरह हतबुद्धि होकर पावेल किरीलोविच ने अपना हाथ झुलाया और परेशान हाल शक्ल बना ली।
कोई दस मिनट तक शोर मचता रहा। कई लोगों ने सिगरेटें जला लीं और नीला-नीला धुआँ उनके सिर पर परदों की तरह लहराने लगा।
आखिरकार देमेन्तियेव खड़े हो गये। सब खामोश हो गये।
‘‘साथियो,’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या मैं एक बात कह सकता हूँ?’’
‘‘जरूर कहिये,’’ निकीफोर चिल्लाया।
‘‘लेना ने दिलचस्प सुझाव पेश किया है। बिल्कुल अनूठा सुझाव है। आप लोग बीज के कोटे की ही बात किये जा रहे हैं। लेकिन यह कोटा कैसे तय किया जाता है? हम आपके यहाँ आते हैं, आपका काम देखते हैं, और उसके आधार पर कोटा तय कर देते हैं। यह आप ही लोग बताते हैं कि कोटा कितना होना चाहिए। यह ठीक है कि एक बार जब वह तय हो जाय तो, फिर बिना किसी खास वजह उसे तोड़ना नहीं चाहिये।’’
‘‘यही तो बात है,’’ निकीफोर ने टीका की।
‘‘लेकिन लेना के सुझाव से हमें अच्छी खासी वजह मिलती है। खेती के ठोस तजुर्बे पर उसकी बुनियाद है और हमारी खेती दुनिया में सबसे ज्यादा आगे बढ़ी हुई है। और आपको नये प्रयोग करने के लिए उससे अच्छे खेत नहीं मिल सकते जिस पर लेना का ब्रिगेड काम करता है। उसकी मिट्टी बड़ी बढ़िया है और जुताई भी होशियारी से की गयी है। मैं ठीक कह रहा हूँ या नहीं?’’
किसी ने जवाब नहीं दिया।
‘‘किसी बात की जरूरत है तो इस काम को पूरा कर डालने के संकल्प की। और मैं देख रहा हूँ कि ऐसा संकल्प है भी। इसी बात को लेकर लोहार और ग्रीशा में हाथापाई की नौबत आ गयी थी। इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि लेना के ब्रिगेड को डेढ़ गुना बीज दिया जाय।’’
‘‘इतना आयेगा कहाँ से?’’ निकीफोर ने पूछा।
‘‘ये तुम्हारे ऊपर है। सामूहिक फार्म तो आप ही लोग हैं। अगर आपको यह विश्वास हो गया है कि ऐसा करने से सिर्फ आपके फार्म को ही नहीं पूरे सोवियत राज्य को फायदा होगा तो आप इसका भी उपाय निकाल लो। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं भरसक आपकी मदद करूँगा। जिला कृषि विभाग और जिला पार्टी कमेटी भी मदद करेगी।’’
अन्त में तय हुआ कि बीज भण्डार का ठीक हिसाब लगाया जाय और जो कुछ बच रहे, वह सब लेना के ब्रिगेड को दे दिया जाय।
5
मीटिंग खत्म हो गयी।
छोटे-छोटे तारों से भरा हुआ आकाश गाँव पर छा गया। कुछ-कुछ सेकेण्ड बाद सामूहिक फार्म के दफ्तर का दरवाजा खुलता और रोशनी बाहर फूट पड़ती। लोग सीढ़ियों पर ठिठक कर अँधेरे के आदी बनने की कोशिश करते और उनके लम्बे साये सड़क पर तिरछे लेट जाते। लड़के एक-दूसरे की पुकार रहे थे।
निकीफोर की लड़की नास्त्या ने पुकारा: ‘‘लड़कियो, तुम लोग कहाँ हो? मेरे लिए ठहरना!’’
‘‘हम लोग यहाँ हैं?’’ कहीं दूर से लड़की की आवाज बनाते हुए ग्रीशा ने जवाब दिया।
बूढ़े लोग मकानों की चहारदीवारी के किनारे-किनारे एक पाँत में चुपचाप चले जा रहे थे। कुछ लोग अपने बगल में स्टूल दबाये हुए थे।
दरवाजा अब और भी कम खुलने लगा, आवाजें खत्म हो गयीं। और मकानों की खिड़कियों में रोशनी दिखायी पड़ने लगी। लोग अब भोजन करेंगे और सो जायेंगे।
देमेन्तियेव आज की रात पावेल किरीलोविच के यहाँ बिताने वाला था। उसके हाथ में जेबी टार्च चमक उठी और उसके सामने रोशनी का एक लोला कभी बुझता कभी दमकता हुआ नाचने लगा।
‘‘दाहिने बाजू चलो,’’ पावेल किरीलोविच ने कहा। ‘‘इस तरफ कुछ कीचड़ है।’’
‘‘मीटिंग बढ़िया रही,’’ देमेन्तियेव ने कहा।
‘‘कोई खास नहीं। हमारे यहाँ के लोग अभी यह नहीं सीख पाये हैं कि कैसे व्यवहार करना चाहिए। लेना हमेशा...।’’
‘‘क्या कहा?’’ पीछे से एक आवाज आयी।
‘‘शैतान की बात करो और... अच्छा, अपना रास्ता नापो,’’ पावेल किरीलोविच ने एक तरफ हटकर रास्ता छोड़ते हुए कहा।
‘‘लेकिन मैं आप लोगों के साथ चलना चाहती हूँ।’’
‘‘क्या है?’’ कृषि विशेषज्ञ ने शीघ्रता से पूछा। उसकी जेबी टार्च बुझ गयी।
‘‘छोड़ो भी,’’ पावेल किरीलोविच जरा त्योरियाँ चढ़ाकर भुनभुनाया। ‘‘चलो! या, आप उससे जो बात नतालिया के यहाँ कहने गये थे, वह पूरी नहीं हुई?’’
‘‘तुम जाओ,’’ लेना बोली, ‘‘वे तुम्हारे यहाँ पहुँच जायेंगे।’’
‘‘हाँ, हाँ जाओ,’’ देमेन्तियेव ने भी इशारे से कहा।
‘‘अच्छा, आपको मेरा घर मिल भी जाएगा। वह उधर कुएँ के उस तरफ जहाँ पेड़ है जहाँ वह रोशनी दिखायी दे रही है बस वहीं है। देखो?’’
अँधेरे में न तो कुआँ दिखाई दे रहा था, न पेड़, मगर देमेन्तियेव ने हामी भर दी। पावेल किरीलोविच आगे बढ़ गया और कुछ देर तक उन्हें पावेल किरीलोविच के जूते कीचड़ में छप-छप करते सुनायी दिये। नदी से नम झोंका आया और बहाते हुए बर्फ की अस्पष्ट ध्वनि ले आया मानो नींद में कोई बड़बड़ा रहा हो।
‘‘तुम यहाँ खड़े हो गये हो?’’ लेना ने पूछा, ‘‘चलो न।’’
‘‘पहले तुम चलो-महिलायें पहले!’’
‘‘यह नियम कब से हो गया कि मर्द औरतों के पीछे-पीछे चलें?’’
‘‘तहजीब है।’’
‘‘यही तहजीब है, तो यही सही। क्या तुम कल वापस जा रहे हो?’’
‘‘हाँ।’’
अगर कोई समस्या उठे, तो क्या मैं तुम्हें पत्र लिख सकती हूँ?’’
‘‘जरूर।’’
‘‘मैं तुम्हारे घर के पते पर चिट्ठी भेजूँगी, ठीक है? यह मत समझना कि मैंने पता खो दिया है। यह देखो।’’ और लेना ने अपनी आस्तीन में से कागज का एक पुर्जा निकाला और अँधेरे में लहराया।
‘‘ठीक है। घर के पते पर ही भेजना।’’ उसने कहा और हैरान होकर सोचने लगा: ‘‘यह अपने को और दूसरों को बेवकूफ क्या बनाया करती है। यह भी नहीं जानती कि वह मेरा पता नतालिया की खिड़की के पत्थर पर रखा छोड़ आयी थी। और मैं कह दूँ कि वह पता इस समय मेरे थैले में है तो क्या होगा।’’
वे लोहार के मकान से गुजरे तो खिड़की से दिखाई दे रहा था कि उसकी पत्नी केतली से चाय डाल रही थी। कपड़े के शैड से ढका लैम्प मेज से ऊपर लटक रहा था और बाहर से उसकी गुलाबी रोशनी बड़ी सुहानी और राहत भरी लग रही थी।
‘‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं प्योत्र मिखाइलोविच?’’ लेना पूछ बैठी।
‘‘हाँ क्या कहूँ?’’
‘‘मुझे कुछ सलाह दो। मैं अपना काम कैसे शुरू करूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है तुम जरूर कुछ मुझसे कहना चाहते थे।
‘‘मैं तुमसे क्या कहना चाहूँगा?’’ देमेन्तियेव ने मन में कहा, ‘‘मेरे साथ यह खिलवाड़ बन्द करो मानों मैं कोई बच्चा हूँ। लेना मैं बच्चा नहीं हूँ। तुमसे मैं यही कहना चाहता हूँ।’’ लेकिन बोला वह इस तरह: ‘‘तुम्हारे पास खाद काफी है?’’
‘‘अभी पता नहीं।’’
‘‘लो यह भी देखो। और वहाँ तुम चीख रही थीं कि तुमने हर बात पर गौर किर लिया है,’’ देमेन्तियेव ने कुछ चिढ़ कर कहा। ‘‘जरूरी यह है कि तुम अटकलबाजी जरा कम किया करो।’’
‘‘तो क्या इरादा ही छोड़ दूँ?’’
‘‘खुद फैसला करो। तुम्हें दस टन फी एकड़ खाद की जरूरत होगी। और तुम्हारे पास सिर्फ बीस गायें हैं।’’
देमेन्तियेव ने बात यकायक खत्म कर दी मानों आगे कुछ सूझ ही न रहा हो। उसने मन में कहा: ‘‘मैं कह क्या रहा हूँ। इस तरह मैं उसका दिल क्यों दुखाना चाहता हूँ?’’
नदी का किनारा आ गया था। नम हवा बर्फ और शीत का गन्ध लेकर आयी। वह सारे गाँव को चीरती हुई बगीचों को झकझोरती हुई और नये अधबने मकानों की खिड़कियों को पार कर सीटी बजाती हुई बह रही थी। नदी पर वह सनसनाती और थपेड़े लगाती जा रही थी मानो कोई अदृश्य हाथ बर्फ के टुकड़ों को इस तरह चुपचाप समेट रहा हो कि कहीं गाँव वालों की नींद न टूट जाय।
‘‘धन्यवाद,’’ लेना ने कहा, ‘‘मुझे सावधान कर दिया, धन्यवाद।’’
‘‘जरा ठहरो,’’ देमेन्तियेव ने हड़बड़ा कर कहा,’’ मुझे गलत न समझना। अपने साधनों का हिसाब-किताब लगा लो और फिर ठाठ से डेढ़ गुना बीज बोओ। अच्छा, नमस्ते... मैं बहुत थक गया हूँ, लेना।’’
लेना ने उदासी के साथ विदा ली और घर चली गयी। देमेन्तियेव नदी के ऊँचे कगार पर थोड़ी देर खड़ा रहा। नीचे पारदर्शी कुहरे से ढकी बर्फ बह रही थी। आखिरी झोंपड़े की खिड़की खुली।
‘‘कौन है?’’ अनीसिम की आवाज आयी।
‘‘मैं हूँ।’’ देमेन्तियेव ने जवाब दिया।
‘‘अरे तुम हो? अन्दर आओ। बाहर बड़ी सर्दी है।’’
‘‘कोई हर्ज नहीं।’’
खिड़की भड़ाक से बन्द हो गयी। पेड़ों के बीच हवा गुर्राने लगी। देमेन्तियेव ने अपने कोट का कालर ऊँचा कर लिया और नदी की तरफ टकटकी बाँध ली और उसे लगा, मानो वह तारों और धरती के साथ-साथ सपने जैसी मधुरता लेकर कहीं दूर उड़ा जा रहा है।
6
देमेन्तियेव ने सुबह छः बजे जाने का इरादा किया था। लेकिन पावेल किरीलोविच और उसने जब नाश्ता खत्म किया तो ग्यारह बज गये और तब वे ओसारे में निकले।
पावेल किरीलोविच ने धूप में आँखें मिचमिचाते हुए कहा: ‘‘जल्दी ही फिर आइयेगा। अगर आप न आये, तो ट्रैक्टर स्टेशनवालों से शान्तिपूर्वक समझौता मुझसे न हो सकेगा। मैं उनसे जरूर लड़ बैठूँगा।’’
‘‘मैं आऊँगा। बस पाँच-छः फार्म और देखूँगा। और जिला दफ्तर जाऊँगा,’’ देमेन्तियेव ने बरसाती कपड़ा निकालते हुए कहा।
सफेद मोजों से सुसज्जित भूरे घोड़े ने, जो उसकी छोटी-सी बग्घी में जुता हुआ था, बेसब्री के साथ आँख के एक कोने से नजर डाली, मानो पूछ रहा हो: ‘‘आओ न! यहाँ खड़े-खड़े कितनी देर बातचीत करते रहोगे?’’
‘‘और इस जुताई-निराई की मशीन के बारे में उन्हें बताना मत भूलियेगा। उनसे कह दीजियेगा कि मैं मामलों को डाले रखना नहीं चाहता। इसे लिख लीजिये भूल मत जाइयेगा।’’
घोड़ा उछल-कूद करने लगा।
देमेन्तियेव ने सलाम किया और बग्घी में सूखे कीचड़ के गिलाफ में लपटी हुई-सी सीढ़ी पर एक पैर रखकर खड़ा हो गया! घोड़ा चल पड़ा।
‘‘और उस पुटाश के मामले में उन लोगों से जल्दी कार्यवाही करा दीजियेगा।’’
पावेल किरीलोविच ने बग्घी के मडगार्ड पर एक हाथ रखे-रखे, उसके साथ चलते-चलते कहा।
‘‘करा दूँगा।’’ देमेन्तियेव ने भूरा-भरी सीट को ठीक करते और एक पैर पर फुदकते हुए कहा। ‘‘रुक जा शैतान!’’
उसने रास खींच दी, लेकिन घोड़े ने दुलकी चाल चल देने के इरादे से सिर जोर से हिलाया-डुलाया, नकुओं से आवाज की और खुर उठा लिये।
देमेन्तियेव धम से सीट में गिर पड़ा और कीचड़ उछालते हुए घोड़ा छलाँग मार कर आगे बढ़ गया। अध्यक्ष ने अपना चेहरा पोंछा, विदाई के लिए हाथ लहराया और घर में वापस चला गया।
बग्घी धूप में खड़ी हुई थी, इसलिए उससे चमड़े, भूसे और ग्रीज की गर्म गन्ध छूट रही थी। देमेन्तियेव सीट पर जम कर बैठ गया और रास छोड़ दी। घोड़े ने एहसान प्रकट करते हुए सिर हिलाया, एक्सेल बज उठी, और कृषि विशेषज्ञ के मोजों पर कीचड़ उछलकर छाने लगा। बग्घी सड़क के गड्ढों में इधर से उधर दचकें खाती हुई, डोल की तरह चूँ-चूँ करती बढ़ी जा रही थी।
शीघ्र ही गाँव का छोर आ गया। एक छोटे से पुल पर पहिये गुजरे तो गड़गड़ाहट गूँज गयी। सूखी चढ़ाई पर यहाँ-वहाँ कीचड़ के कुछ धब्बे पड़े हुए थे। दोनों तरफ छोटी-छोटी भूरी पहाड़ियाँ थीं। धूमिल ढलावों पर कुछ चकत्तों को छोड़कर, बाकी सभी जगह बर्फ गल चुकी थी, और वे धूसर और बदसूरत चकत्ते ऐसे जान पड़ते थे, मानो किसी ने राख छिड़क दी हो। एक-दूसरे में गूँथी हुई छोटी-छोटी जल-धाराएँ सड़क की तरफ दौड़ रही थीं और टहनियों तथा पत्थरों के टुकड़ों के ऊपर सफेद फेन जमा हो गया था। देमेन्तियेव ने सूरज की तरफ नजर डाली। सूरज इतना तेज था कि बड़ी देर तक उसकी आँखों के सामने काला धब्बा नाचता रहा और खेत-पहाड़ियों का दृश्य ओझल हो गया।
चढ़ाई पार जंगल आ गया।
वह पेड़ों के सायों के बीच चला जा रहा था जिनमें वसन्त की विशिष्ट स्वच्छता थी। सड़क के दोनों ओर भूरी पत्तियाँ पड़ी हुई थीं, जो जाड़े भर सड़ती रही होंगी। बरसात की बौछार की तरह, पंख फुलाये हुए गौरैयों के झुण्ड सड़क पर उतर आये और अपनी चहचहाहट से जंगल को भर दिया। घोड़े की टाप सुनकर वे एक साथ उड़ गयीं और यकायक एक नंगी एस्पेन इस तरह भर गयी मानों उसमें सफेद पत्तियाँ उग आयी हों, और उसकी टहनियाँ ऊपर-नीचे झूलने लगीं।
वह खुले खेत में आ गया और यहीं से एक और सड़क फूटी थी।
जिस जमीन में लेना का ब्रिगेड काम करता था, वह बायीं तरफ थी। देमेन्तियेव ने क्षण-भर सोचा और फिर रास खींच दी। तेजी से बग्घी ने एक पहाड़ी पार की, दूसरी भी पार की और तीसरी के ऊपर से लोग काम करते नजर आने लगे। नजदीक जाने पर देमेन्तियेव ने ब्रिगेड लीडर दाशा और ग्रीशा को पहचान लिया। कुछ दूर पर खाद से लदी हुई गाड़ी खड़ी थी। लेना और निकीफोर की बेटी नास्त्या, गाड़ी के पास बातचीत में उलझी थीं। घुटने तक कीचड़ में घोड़ी खड़ी हुई थी। गाड़ी चलानेवाला लड़का अपनी पूरी ताकत से नकेल खींच रहा था, लेकिन घोड़ी अपनी जगह से हिले-डुले बिना गर्दन लम्बी करके रह जाती थी। लेना और नास्त्या ने पहियों को धक्का देकर गाड़ी निकालने की कोशिश की। इससे भी कुछ न हुआ। देमेन्तियेव ने अपनी बग्घी रोकी।
दूसरी गाड़ी भी आ गयी। उसके पीछे ग्रीशा दौड़ा और उसको लगभग जमीन से ऊपर उठा लिया। घोड़ा लड़खड़ा गया। उस चेचक-दाग योद्धा में सचमुच बैल जैसी ताकत है-इसका अन्दाज उसका कद देखकर कोई नहीं लगा सकता।
‘‘लो यह देखो,’’ लेना ने रूआँसे होकर कहा। ‘‘हमारी घोड़ी यहाँ ऐसे खड़ी है मानो उसे जमीन में गाड़ दिया गया हो।’’ वह घोड़ी के पास गयी और उसे खुर्पी से धसकाया।
‘‘माश्का! उठ, उठ! आगे बढ़ प्यारी। तू मूर्ख लालमुंडी किसी दीन की नहीं है!’’ वह चिल्लायी। ‘‘जोर लगाओ! अरे, स्टबी, ऐसे कहीं जोर भी लगता है? और तुम नास्त्या, यहाँ मिट्टी के लोंदे की तरह खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो? देखो! वे लोग तो गाड़ी खाली भी करने लगे! पीछे से धक्का दो।’’
थकी-माँदी घोड़ी ने गाड़ी खींचने की एक और कोशिश की, मगर फिर भी थर-थर काँपती हुई जहाँ की तहाँ खड़ी रही। लेना ने उसे खुर्पी की बेंट से मारा। बेंट का निशान घोड़ी की काली और पसीने से तर पीठ पर साफ झलक आया। घोड़ी ने दीनतापूर्वक जमीन की तरफ देखा और पीली-पीली जीभ, साँप की तरह, बार-बार निकाल कर हाँफने लगी।
‘‘ब्रिगेड-लीडर!’’ देमेन्तियेव ने पुकारा।
दाशा आयीं, वह सफेद रूमाल बाँधे बहुत स्वच्छ दिखायी दे रही थीं; उसके स्कर्ट के किनारे अगल-बगल पेटी में खोंसे हुए थे, जिससे उसका पेटीकोट दिखायी दे रहा था।
‘‘अपने घोड़ों को मारने-पीटने का क्या मतलब है?’’
‘‘मैं इस लेना को कैसे समझाऊँ?’’ दाशा ने निराश भाव से कहा। ‘‘वह इस कदर गुस्सैल है!’’
हाँफती हुई लेना भी आ गयी और खुर्पी से जूतों पर जमे हुए मिट्टी के लोदों को खुरचने लगी।
‘‘प्योत्र मिखाइलोविच, जरा देखिए तो,’’ उसने कहा, सारे अच्छे घोड़े उन्होंने अपने लिए ले लिये हैं और हमारे लिए यह सूखा पिंजर भेज दिया है। इस माश्का को दाशा ले ले और हमें वलेट घोड़ा दे दे।’’
देमेन्तियेव ने लेना की तरफ देखे बिना ही कहा, ‘‘अपने ब्रिगेड के सदस्यों को जरा तौर-तरीके सिखाओ। इन घोड़ों का आगे भी तो काम में लाना है।’’
ग्रीशा लेना पर चिल्लाया: ‘‘तुम्हीं तो होड़ बद रही थीं। मैं दिखा दूँगा कि होड़ क्या होती है!’’
जुते हुए खेत पर एक नजर डालकर देमेन्तियेव समझ गया कि ये लोग क्यों इतनी जल्दबाजी मचा रहे हैं। खेत में कतार लगाकर खाद के बड़े-बड़े ढेर रखे हुए थे। लेना की कतार में साढ़े-छः ढेर थे। दाशा की कतार में नौ थे। देमेन्तियेव ने सोचा: ‘‘इन लोगों ने पौ फटने से पहले काम शुरू कर दिया होगा।’’
लेना कब दबनेवाली थी, ‘‘हमें ऐसे घोड़े देते हो, इसी को होड़ कहते हो? यह ईमानदारी नहीं है; क्यों न, प्योत्र मिखाइलोविच?’’
कृषि-विशेषज्ञ ने इस बार भी उसको जवाब नहीं दिया।
उसने दाशा से कहा: ‘‘होड़ है, तो होड़ हो। लेकिन तुम्हें अपने घोड़ों की अच्छी देख-रेख करना चाहिए और देखना चाहिए कि उनका दुरुपयोग न हो। और अगर कोई इस बात को नहीं जानता, तो उसे यह बता देना तुम्हारी जिम्मेदारी है,’’ और उसने अपने घोड़े को थपथपाया।
‘‘बेहतर हो कि आप अपने चक्रवर्ती घोड़े को खोल दें और हमारा हाथ बँटायें,’’ उसने लेना को पीठ पीछे चिल्लाते हुए सुना। ‘‘बैठकर सिगरेट पीना और हुकुम जताना बहुत आसान है।’’
उसके दिमाग में यही ख्याल उठा: ‘‘वह बहुत क्रूद्ध है,’’ और वह यह न समझ सका कि इस पर वह खुश है या दुखी।
वह कुछ ही दूर गया था कि उसने मुड़कर देखा, लेकिन खेत और उसमें काम करने वाले लोगों का दृश्य एक भूरी पहाड़ी के पीछे ओझल हो गया था।
और अब फिर हर तरफ खेतों, पोखरों और जाड़ई गेहूँ की फसलों के अलावा कुछ न रहा। उसे एक टेढ़ा-मेढ़ा चीड़ का वृक्ष मिला जिसकी शाखाएँ गाँठदार थीं। न जाने क्यों देमेन्तियेव को यह वृक्ष बड़ा प्यारा लगता है। हर बार जब वह शोमुश्का ग्राम आता है, तो यह पेड़ सड़क के मोड़ पर खड़ा हुआ खामोशी के साथ उसका स्वागत करता है और ऐसा लगता है मानो वह उस गाँव, मेदवेदित्सा नदी और लेना की तरफ का रास्ता बताता है।
इस बार इस वृक्ष ने बड़ी उदासीनता के साथ अपनी शाखाएँ हिलायीं। मानो कोई अजनबी आ रहा हो।
‘‘बढ़े चलो,’’ देमेन्तियेव ने सिगरेट के आखिरी हिस्से को एक पोखर में फेंकते हुए अपने घोड़े से कहा ।
7
छः दिन तक ब्रिगेड ने सूर्योदय से लेकर रात चढ़े तक खेत में खाद ढोकर लाने का काम किया। वे हमेशा की तरह अपने वक्त से काम करते रहने की हिम्मत नहीं कर सकते थे, जैसे कि दूसरे ब्रिगेड कर रहे थे। दूसरे खेतों में हमेशा-जितना खाद डाला जा रहा था, इसलिए उन्हें जल्दी करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन यहाँ अतिरिक्त बीज डालने के लिए अतिरिक्त खाद डालना भी जरूरी था। ईमानदार लीडर के नाते दाशा अपने ब्रिगेड के हर सदस्य को उत्साहित करती रहती थी। खाद ज्यादा नहीं है, इसलिए अगर वे जल्दी ने करेंगे, तो दूसरे ब्रिगेड सारी खाद हथिया लेंगे।
तिस पर यह कि मौसम उनके प्रतिकूल हो गया। भोर आँख खुलते ही लेना सबसे पहले खिड़की के पास जाती, लेकिन हर रोज उसे वही बात दिखायी देती: निश्चल और धूसर बादलों से भरा हुआ आसमान, और कुहरे के टुकड़े इतने नीचे उड़ते हुए कि उनसे सहज ही मकानों की छतें छू जाए। रात-दिन बारीक फुहार पड़ रही थी और भीगी हुई गौरैयाँ किसी आड़ में छिप कर शोकाकुल झाँक रही थीं। दोपहर में भी लोगों को लालटेन जलानी पड़ती थी। सड़क सूखने लगी थी और ऊँची जगहों पर बड़ी मजबूत थी, लेकिन अब वह फिर फुसफुसी हो गयी। घोड़े थक गये थे। सामूहिक खेतिहर अब उन्हें तमाम रास्ता पार कराकर खेतों पर नहीं ले जाते थे, बल्कि सड़क के किनारे पर ही खाद उतार देते थे। लेना, अनीसिम के पास गयी और उससे कुछ डलियाँ बना देने के लिए कहा, ताकि ब्रिगेड सदस्य उनमें खाद भरकर खेतों पर ले जा सकें।
छः दिन तक यही होता रहा। सातवें दिन जहाँ वे लोग काम कर रहे थे, वहाँ पावेल किरीलोविच आया।
उसने दाशा को अलग बुलाया।
‘‘मैं अपनी खलियानों से तुम्हें और अधिक खाद नहीं लेने दूँगा।’’ उसने अपने जूतों की परीक्षा करते हुए कहा। ‘‘तुमने काफी ले ली है। और कल वे घोड़े दूसरे ब्रिगेड के पास भेज दिये जायेंगे। तुमने अभी दूसरे सभी लोगों से ज्यादा खाद खेतों में डाल दी है।’’
‘‘आप दूसरों से हमारी तुलना कैसे करते हैं?’’ दाशा ने ताज्जुब से कहा। ‘‘हमें दूसरों से ज्यादा पैदावार करना है।’’
‘‘मैं तुम्हें और नहीं दूँगा। लो देखो यह चिट्ठी, जो अभी आयी है। ये हमसे कह रहे हैं कि हम चौदह बुशल बीज लाल हलवालों को दे दें। उनके पास काफी बीज नहीं है। जैसे कि हमारे ही पास है! इसलिए मैं तुम्हें कोटे से अधिक बीज भी न दे सकूँगा।’’
‘‘अध्यक्ष, क्या मजाक कर रहे हो?’’ दाशा ने शान्तिपूर्वक कहा। ‘‘पिछले एक हफ्ते से हम लोग अपनी बोटी-बोटी किसलिए पानी में गला रहे थे? यह तो नहीं सोचने लगे कि इसका कुछ फल नहीं होगा? कृषि-विशेषज्ञ ने क्या बताया था?’’
‘‘इस चिट्ठी का जबाव तो कृषि-विशेषज्ञ को नहीं, मुझे देना होगा। आखिर मैं बीज कहाँ से लाऊँगा।’’
‘‘लेकिन, बोई ने हमें इजाजत दी थी या नहीं?’’
‘‘तब दी थी, लेकिन अब नहीं देता। जिला कृषि विभाग हमारे पास सरकारी हुक्म भेज दे, तब हम उस पर विचार कर सकते हैं।’’
‘‘एक मिनट ठहरो। मैं अपने लोगों को बुला लूँ। लेना!’’
लेकिन पावेल किरीलोविच ने पीठ फेरी और वर्षा में भीगे हुए कन्धे उचकाता हुआ गाँव लौट गया।
8
उस दिन काम ठीक तरह न चल सका। रोज से जल्दी ब्रिगेड ने खेत छोड़ दिये और शाम को लेना के घर पर बाजाब्ता लिखित कार्यक्रम, कार्यवाही, आदि के साथ कोम्सोमोल की बैठक हुई। उन्होंने फैसला किया कि जितना बीच आवश्यक है, वह अपने व्यक्तिगत भण्डारों से जमा किया जाए। इसके बाद वे लोग अपने माता-पिताओं को राजी करने के लिए घर चले गये। यह काम आसान सिद्ध नहीं हुआ। पिछले साल सूखा पड़ गया था और कुछ किसानों की खत्तियाँ वसन्त तक खाली हो गयी थीं। इसके बावजूद भी अधिकांश नौजवानों को अपना काम बनाने में सफलता मिली। सिर्फ निकीफोर ही एक ऐसा आदमी था जिसे राजी नहीं किया जा सका। पहले नास्त्या ने उसे समझाया, फिर लेना ने। ज्योंही लेना के मुँह से ‘‘गल्ला’’ शब्द निकला, निकीफोर अखबार पढने लगा ओर आगे बात सुनने से उसने इन्कार कर दिया। दो घण्टे की बेकार कोशिशों के बाद लेना ने कन्धे उचकाये, दूसरों ने जितने गल्ले का वायदा किया था, उसका जल्दी से हिसाब लगाया और तय कर लिया कि निकीफोर की सहायता बिना भी काम चल जाएगा। लेकिन जब वायदा किये गये अनाज को सचमुच वसूल करने निकले, तो नया ही रंग दिखायी दिया। लोगों ने सुना कि निकोफोर ने इन्कार कर दिया है। तो वे भी दस बार सोच-विचार करने लगे।
‘‘हम क्या भेड़-बकरी हैं?’’ माता-पिताओं ने अपने बच्चों से कहा। ‘‘हम अपना सर्वस्व निछावर कर दें, और वह मौज उड़ाये? तुम्हारी सौगन्ध, यह नहीं होने की। हर कोई देगा, तो हम भी देंगे और बस बात खत्म हुई।’’
इसलिए निकीफोर के पास फिर जाना पड़ा। ब्रिगेड के लगभग सभी सदस्य उसके पास हो आये। ग्रीशा ने उसको ‘‘अन्तःकरण की दुहाई’’ तक दी। निकीफोर ने उसे अर्धचन्द्र दिखाकर बाहर कर दिया और दरवाजा बन्द कर दिया।
इतवार का लेना निकीफोर से मिलने गयी, यह तय करके कि चाहे दिन भर बैठना पड़े वह येन-केन प्रकारेण उससे वायदा करा कर ही उठेगी। वह बड़े भोर ही जा पहुँची।
निकीफोर मेज के सामने बैठा हुआ तश्तरी में चाय डालकर पी रहा था। बौनी बुढ़िया, जो उसकी बीवी है, चूल्हे में आग जला रही थी। नास्त्या भी दूधिया चाय पी रही थी। एक केतली में खौलता हुआ पानी खलबला रहा था।
‘‘नमस्ते,’’ लेना ने कहा। ‘‘मजे में तो हो।’’
‘‘नमस्ते,’’ लुहार ने फौरन सम्भलते हुए जवाब दिया। ‘‘तुमने आल्योशा को कोयले लाते देखा या नहीं?’’
‘‘देखा तो था।’’
‘‘भला हो। कितनी देर हो गयी है।’’
‘‘विश्वास रखिये, वह ला ही रहा है। मैंने वहाँ कुछ कुलाबे रखे देखे थे। क्या बढ़िया कुलाबे हैं, मानो फैक्टरी में बने हों।’’
‘‘हुँह, फैक्टरी में?’’ निकीफोर ने कहा। ‘‘ये कुलाबे तो मैंने कल ही तैयार किये थे।’’
‘‘तुम तो पूरे जादूगर हो चाचा निकीफोर। अब देखो तुमने क्राल्का को कैसे नाल लगा दियें हैं कि वह घोड़ी उसके बाद वर्षों छोटी लगने लगी। अब तो वह पाँच बरस की घोड़ी की तरह दौड़ती है।’’
‘‘उसकी नालें छोटी थीं। नाल लगाने का यह भी क्या बढ़िया तरीका था। मुझे सब की सब बदल देनी पड़ीं। सामने के खुर थे बकरे के खुर की तरह। उनके लिए मुझे नये किस्म की नालें बनानी पड़ीं। फैक्टरी की नालें फिट नहीं बैठतीं। किसी काम की नहीं होतीं। बकरे की तरह के खुर तो थे।’’
‘‘अच्छा तो मैं चलूँ।’’ लेना ने कहा।
‘‘एक मिनट ठहरो,’’ लुहार ने कहा, ‘‘थोड़ी देर और बैठो। कुछ चाय पियो।’’
‘‘धन्यवाद, मैं पीकर आयी हूँ।’’
‘‘जरा देर और सही। ऐसी जल्दी क्या है?’’
लेना बैठ गयी ओर नास्त्या की तरफ सवालिया नजरों से देखा। क्या उसके पिता ने गल्ले के बारे में अपना इरादा बदल दिया है? लेकिन नास्त्या ने भौंहें चढ़ायीं और सिर हिलाकर इन्कार कर दिया।
निकीफोर ने पूछा: ‘‘तुम लोग इशारों-इशारों में क्या बातें कर रही हो? फिर गल्ले की बात? उसके बारे में मैं एक शब्द नहीं सुनना चाहता।’’
‘‘हमें अब और ज्यादा गल्ले की जरूरत नहीं है,’’ लेना ने कहा। ‘‘जितनी जरूरत थी, उतना जमा कर लिया है। गुदीमोव ने हमें आधा बोरा दिया और ग्रीशा के पिताजी ने पूरा एक बोरा दे दिया।’’
‘‘हूँ, बड़े रईस हैं,’’ निकीफोर ने टीका की।
‘‘मेरी माँ ने भी आधा बोरा दिया है।’’
नास्त्या ने लेना की तरफ आश्चर्य से देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं।
‘‘तो हर आदमी ने कुछ न कुछ दिया है?’’ निकीफोर ने लेना पर संदेहपूर्ण दृष्टि डाल कर कहा।
‘‘और नहीं तो क्या? दाशा तक ने एक बोरा दिया, जबकि उसके तीन बच्चे हैं। अगर वह इतना दे सकती है, तो जाहिर है, मेरी माँ को भी कुछ न कुछ देना पड़ा। आखिर दाशा के तो तीन-तीन बच्चे हैं।’’
‘‘और वे सब भूखे रहेंगे।’’
‘‘नहीं, भूखे क्यों रहेंगे? उसके पास आलू काफी है। और सूखे कुकरमुत्ते भी रखे हुए हैं, और उनके बच्चे ज्यादा नहीं माँगते, वे सब समझते हैं। उन्होंने लड़ाई का जमाना भी देखा है। पिछली रात उसने सब बच्चों को मिठाई का एक-एक नग दिया और वह स्टबी, है ना, जो तुम्हारे लोहारखाने के चक्कर काटा करता है, उसने सिर्फ आधा खाया और आधे को कागज में बाँध दिया। यह उसने अगले दिन के लिए बचा लिया।’’
निकीफोर ने बेचैनी से साँस खींची और चायदानी के ढक्कन को घने बालों से भरी उँगली से दबाकर एक प्याला चाय और ढाल ली।
‘‘तो गुदीमोव ने भी कुछ दिया, क्यों?’’ यकायक उसने पूछ डाला।
‘‘सभी ने दिया। तुम्हें छोड़कर, बाकी सभी ने। लेकिन सब ठीक ही हुआ। हम लोग तुम्हारे पीछे इतने लगे रहे, इस पर नाराज मत होना। अब तो हमें और अधिक की जरूरत भी नहीं है... नास्त्या, तुम्हें पता है, स्टबी अपने घर पर लुहारी करने लगा है? उसने एक टूटी कुल्हाड़ी की निहाई बना ली है। और कहीं से उसे संडसी मिल गयी है।’’
‘‘तो मेरी संडसी वहाँ पहुँच गयी है,’’ निकीफोर ने मुस्करा कर कहा। लेना ने बात जारी रखी: ‘‘और वह सारे दिन हथौड़ाबाजी किया करता है। दाशा का तो सिर चक्कर खाने लगता है।’’
‘‘अगर उधार देने की बात होती,’’ निकीफोर ने कहा। ‘‘लेकिन वैसे ही सारा अनाज दे डाला जाये, तो कोई कैसे...’’
‘‘हम लोग वापस तो कर ही देंगे। अध्यक्ष ने वायदा किया है कि ज्योंही फसल आएगी, सारे का सारा वापस कर दिया जाएगा।’’ लेना ने कहा।
(और लेना ने सोचा: ‘‘यह पते की बात है। मैं अध्यक्ष से आज ही कहूँगी कि शरद में यह अनाज वापस कर दिया जाय। वह राजी हो जाएगा। हम उससे यह बात मनवा ही लेंगे।’’)
‘‘हमारा अनाज तो घटिया किस्म का है। बहुत बारीक।’’
‘‘हरेक का ऐसा ही है। हम उसकी छँटाई करेंगे। अच्छा, नमस्ते।’’
‘‘एक मिनट ठहरो।’’ निकीफोर ने कहा, ‘‘बच्चों की माँ, जरा जाकर देखो तो हमारे भण्डार में कितना बचा है।’’
उसकी पत्नी ने हकलाते हुए विरोध किया।
‘‘लेकिन हमें और ज्यादा की जरूरत नहीं है,’’ लेना ने कहा।
‘‘क्या बात है? मेरे गल्ले की तुम्हें जरूरत नहीं, लेकिन और सबके गल्ले की जरूरत है?’’
‘‘क्यों, तुम्हारी क्या राय है, क्या ले लिया जाए,’’ लेना ने नास्त्या की ओर मुड़कर कहा।
‘‘अगर दादा दे रहे हैं, तो जरूर ले लेना चाहिए।’’
निकीफोर की पत्नी बाहर गयी। उधर दरवाजे पर किसी पुरुष की भारी पदचाप सुनायी दी।
‘‘यह भला आदमी नाश्ते में ही सारा वक्त उड़ा देता है,’’ एक आवाज आयी।
‘‘अभी तक पहियों पर टायर नहीं चढ़ाये हैं। इधर कुछ दिनों से हजरत ने दिमाग आसमान पर चढ़ा लिया है, मानों बड़े भारी सेनापति हों।’’
लेना का कलेजा मुँह तक आ गया।
अध्यक्ष ने कमरे में प्रवेश किया।
‘‘तो ये लोग यहाँ जमे हैं। सभी एक जगह। लेना, तुम आज काम पर क्यों नहीं गयीं? कभी तो तुम किसी के हटाये खेत पर से नहीं हटतीं, और कभी...।’’
‘‘वह तो जा रही थी,’’ निकीफोर ने मामला शान्त करने के लिए कहा। ‘‘काम से आयी थी। अनाज के लिए।’’
‘‘अनाज? कौन-सा आनाज?’’
‘‘अपने खेतों के लिए। मैं दो बोरे गेहूँ दे रहा हूँ। यह तुम देखना कि मुझे वापस मिल जाए। कोई छलछंद नहीं चलेगा।’’
‘‘क्या वापस मिल जाए,’’ अध्यक्ष ने निकीफोर की तरफ टकटकी बाँधकर घूरते हुए कहा।
‘‘लो, अल्योशा कोयले नहीं लाया,’’ लेना ने कहा।
‘‘जरा ठहरो। बात बदलने की कोशिश न करो... क्या तुमने गल्ला वापस करने का वायदा किया है?’’
‘‘कौन-सा गल्ला?’’
निकीफोर की बीवी एक लकड़ी लिये हुए वापस लौटी।
‘‘बस इतना बचा है,’’ उसने लकड़ी का बीच से पकड़कर कहा।
‘‘जरा रुको, बच्चों की माँ। कितना बचा है, यह फिर देख लेंगे। यह लेना झूठ बोल रही थी। इस लड़की में जरा भी ईमानदारी नहीं है।’’
9
उस रात लेना ने पक्की स्याही की पेन्सिल को पानी में डुबो-डुबोकर यह खत लिखा:
कामरेड देमेन्तियेव,
यह पत्र तुम्हारी मित्र लेना जोरिना लिख रही है।
कामरेड देमेन्तियेव, हमने फैसला किया था कि हमारा ब्रिगेड हमेशा के मुकाबले इस बार डेढ़ गुना बीज बोयेगा और आपने इसकी इजाजत भी दे दी थी। लेकिन जब इसके करने का वक्त आया, तो अध्यक्ष ने रोड़ा अटका दिया और बीज देने से इन्कार कर दिया। बीज डालने का वक्त आ गया है, मौसम बड़ा सुन्दर है, मगर वे हमको बीज नहीं देते। कृपया, जितनी जल्दी हो सके, आ जाइये या एक पत्र लिखकर उन्हें कह दीजिये कि वे अपना वायदा न तोड़ें।
आपकी मित्र,
लेना जोरिना।
लेना ने अखबारी कागज काटकर लिफाफा बनाया, गीली काली रोटी से उसे चिपकाया और तभी उसे याद हो आया कि कृषि-विशेषज्ञ के घर का पता तो वह नतालिया की खिड़की के पत्थर पर पड़ा छोड़ आयी थी।
हो ही क्या सकता था? उसे वह पत्र दफ्तर के पते पर ही भेजना पड़ा।
10
मौसम कुछ गर्म होता जा रहा था। रोज-ब-रोज धूप तेज होती जाती थी।
छिछली पोखरियाँ सूख गयीं और अपनी जगह पर काले धब्बे छोड़ गयीं। सड़क के गढ़ों में जमा कीचड़ पर फुसफुसी पर्त्त जम आयी। पंख फटफटाते और मोटर के भौंपू की तरह शोर मचाते हुए हंस गाँव पर विचरण करने लगे। लेकिन प्योत्र मिखाइलोविच की तरफ से कोई पत्र नहीं आया।
ट्रैक्टर स्टेशन से मशीनें आ गयीं, ट्रैक्टरों में जुती हुई गाड़ियों में धातुओं के बने पीपे आ गये और एक हरी-हरी बुआई-निराई की मशीन भी आ पहुँची जो छोटे आकार के पहियों पर छोटा-सा रेल का डिब्बा मालूम होती थी। फिर यही ट्रैक्टर कुछ मोटर लारियाँ भी ले आये। रात में उनकी हुँकारों और खटपट से गूँज जाता था और मकान इस तरह काँप जाते थे, मानो उन्हें जूड़ीताप चढ़ आया हो। सुबह तक, टेªक्टरों के पहियों पर चढ़े हुए लोहे के पट्टों से सड़क सुघड़ कतरों में कट गयी और पोखरियाँ मोतियों की सीप जैसी हो गयीं। ट्रैक्टर ड्राइवरों ने अपनी मशीनें नदी के किनारे छोड़ दीं। ग्रीस से लिथड़ी, चमड़े जैसी पतलूनें पहने हुए दो श्याम-वर्ण युवक, जो भाई मालूम होते थे, घर-घर जाकर लड़कियों से परिचय बढ़ा रहे थे और अपने मिकेनिकों की आँख बचाकर मिट्टी के तेल के बदले दूध ले रहे थे। बुआई का समय आ गया था, लेकिन अभी तक न तो देमेन्तियेव आया और न उसने कोई पत्र भेजा।
नौजवानों ने अनाज-गोदाम के पास खुली जगह में अपना बीज फैला दिया और उसके छिपे हुए जीवन-तत्व को जागृत करने के लिए पानी छिड़क कर उसको फुलाया, ताकि मिट्टी से पौष्टिक तत्वों को खींच लेने की शक्ति उनमें पैदा हो जाए।
अनाज-गोदाम के पास बादलों की तरह गौरैयों के समूह उमड़ पड़े। उनसे छप्पर काले हो उठे। वे छप्परों से नीचे उड़कर इस आशा से झपट्टा मारतीं कि शायद कोई दाना चुराने में वे कामयाब हो जायें, लेकिन लड़के उन्हें डण्डे फटकार कर भगा देते।
उस बैठक में जो वायदा किया गया था, उसे शायद देमेन्तियेव भूल गया था। लेना ने सोचा: ‘‘शायद वह मुझसे नाराज हो गया है, इसीलिए न तो वह आता है और न कोई पत्र लिखता है। अगर यह सच है, तो वह किसी काम का नहीं है। दोनों बातों को एक करके कैसे देखा जा सकता है? नहीं, वह किसी काम का नहीं है।’’
लेकिन खेतों पर काम करते समय लेना इस निराशा का बराबर छिपाये रही। दूसरे साथियों पर उसे बड़ी दया आती थी। उन्होंने इतनी मेहनत से काम किया कि हिसाब-किताब रखनेवाले एकाउण्टेंट को दाशा के आँकड़ों पर विश्वास ही न हुआ और दो-एक बार वह खुद देखने आया कि उन लोगों ने सचमुच उतनी ज्यादा खाद डाली है या नहीं। लेना जानती थी कि अगर वह खुद खोयी-खोयी और चिन्ता-ग्रस्त दिखायी देगी तो ब्रिगेड के दूसरे सदस्य फौरन भाँप जाएंगे और उनका भी दिल टूट जाएगा। इसलिए वह बराबर हँसती रहती, मजाक करती और हुकुम जताती फिरती- वह इशारा देती फिरती कि उसने जिला केन्द्र को पत्र लिखा है और उसे कोई राज मालूम है। सभी व्यक्ति, यहाँ तक चालाक दाशा भी, उस पर विश्वास करते थे। और वे संदेह भी क्यों करते? कृषि विशेषज्ञ हमेशा ही लेना के पीछे-पीछे चक्कर काटता घूमता था।
एक दिन जब वे लोग घर जाने की तैयारी कर रहे थे, तब एक पोखरी में जूते धोते हए ग्रीशा ने कहा: ‘‘लो, हर चीज तो अब तैयार हो गयी है। एक-दो दिन में हम बुआई भी शुरू कर सकते हैं। लेना ही एक सहारा है। सब कुछ कर सकती है यह लड़की, और हम लोग हमेशा उसका साथ देंगे। देखते हैं, जिला केन्द्र में किसी से दोस्ती होने से क्या लाभ होता है?’’
और वे लोग, वे सभी, घर चले गये, रह गयीं लेना और दाशा, जो कुछ आखिरी नाप-जोख करने के लिए ठहर गयी थीं। लाल सूरज जमीन को छू रहा था।
लेना के पास आकर दाशा ने कहा: ‘‘अच्छा, तो आओ!’’
लेना एक पत्थर पर बैठी हुई थी और उसके कन्धे उठ-गिर रहे थे।
‘‘बात क्या है? क्या किसी ने तुम्हारा दिल दुखाया है? तुम्हारे दोस्त ने, क्या तुम्हारी बात नहीं रखी?’’
लेना ने कोई जवाब नहीं दिया।
‘‘तुम भी क्या जीव हो! यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी? दूसरों को नहीं बताया, यह तो मेरी समझ में आता है, लेकिन तुम मुझसे तो कह सकती थीं। रोना बन्द करो। तुम इतनी दुखी मत हो। मैं जाऊँगी और अध्यक्ष से बात करूँगी। हो सकता है, अभी भी कुछ रास्ता निकल आये। एक उसकी ही चलती हो, सो नहीं है। बोर्ड के हम सदस्यों की भी तो आवाज है।’’
11
कोई नहीं जानता कि दाशा ने अपने मन की मुराद कैसे पूरी कर ली, लेकिन यह सच है कि उसी रात दाशा ने लेना की खिड़की खटखटायी और आनन्दपूर्वक फुसफुस करके कहा:
‘‘हमें बीज मिल जाएगा। उसे लदाने के लिए अपने युवक-युवतियों का बड़े भोर जुटा लेना।’’
लेना एक क्षण न सो सकी। बेसब्री के साथ सुबह का इंतजार करती रही और फिर ग्रीशा, नास्त्या आदि को बुलाने चली गयी। दो गाड़ियों में उन्होंने घोड़े जोते, भण्डारी को जगाया और अनाज-गोदाम पर पहुँच गये।
बड़ी देर तक वह भण्डारी, अध्यक्ष की पर्ची के बिना, बीज देने से इनकार करता रहा। सभी ने एक स्वर से उसे विश्वास दिलाया कि पावेल किरीलोविच ने इजाजत दे दी है ओर थोड़े देर में वह खुद जायेंगे और इसकी पुष्टि कर देंगे, लेकिन इस बीज तुलाई और लदाई हो जाना चाहिए।
पहली गाड़ी पर बोरों का ढेर लगा ही था कि पावेल किरीलोविच आ ही गये।
‘‘इसे उतार दो,’’ अपने जूतों का अध्ययन करते हुए उन्होंने कहा।
‘‘क्या! तुमने ही तो हमें इजाजत दी थी।’’ दाशा ने हैरानी से कहा।
‘‘मैं कहता हूँ, इसे उतार लो।’’
‘‘तुम जानवर हो,’’ लेना ने कहा और धीरे-धीरे उसके चेहरे का रंग फक होने लगा।
‘‘जानवर?’’ पावेल किरीलोविच ने यकायक चीख कर कहा। ‘‘अगर आप लोग उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं, तो इन नव आविष्कृत विचारों को छोड़कर और लोगों की तरह पैदावार बढ़ाइये। नव आविष्कृत विचार अपने बस के नहीं हैं।’’
‘‘यह कहते हो, तुम?’’ लेना ने कहा।
‘‘हाँ, मैं कहता हूँ। क्यों, तुमने जिला केन्द्र को भी चिट्ठी लिख मारी। शिकायत कर दी कि मैं बीज नहीं देता हूँ। अच्छा लो इसे पढ़ो,’’ और अध्यक्ष ने बड़ी तेजी से अपनी जेबें टटोलना शुरू किया और अन्त में एक चमकता हुआ पत्तेशुदा कागज बाहर निकाल लिया।
लेना ने ज्योंही खोला और देखा कि कितनी सफाई से टाइप किया हुआ है और टाइप किये हुए शब्दों तक पर कितने घसीट हस्ताक्षर है, त्योंही वह समझ गयी कि मामला बिगड़ गया है। उस पर विशेष रोब पड़ा अस्पष्ट हस्ताक्षर का, जिसको एक ही अक्षर ‘‘उ’’ दस बार मिलाकर अन्त में बड़ी खूबसूरती से लकीर खींच कर लिखा गया था। उसमें लिखा था:
‘‘शोरमुश्का ग्राम के सामूहिक फार्म के अध्यक्ष के नाम।
आपके पत्र नं... (खाली), जो यहाँ... (खाली) तारीख को प्राप्त हुआ, हम आपको सूचित करते हैं कि प्रस्ताव संख्या... (एक बड़ी लम्बी संख्या) के अनुसार इस बात की सख्त मनाही है कि चुना हुआ बीज निश्चित परिमाण से अधिक बोया जाए। आप अपने सामूहिक फार्म के सदस्यों को इत्तला कर दें कि इस प्रस्ताव का उल्लंघन किया गया तो कानूनन सजा दी जाएगी।’’ इसके बार उस आदमी के दस्तखत थे जिसका नाम था ‘‘उ उ उ उ उ उ उ उउ’’।
12
उस दिन पेलगेया मार्कोवना बड़ी देर से घर लौट पायी। अनाज-गोदाम के पीछे सूरज डूब चुका था। कोने में एक चूहा किसी चीज से खेल रहा था, यह साफ सुनायी दे रहा था। वह और लेना जिस मकान में रहती थीं, वह नया ही था। ईंटों की नींव पर लट्ठे रखे हुए थे, ओर इस समय दरवाजे तक जाने के लिए तख्तों पर पैर रख कर जाना पड़ता था, क्योंकि सामने का ओसारा अभी बन नहीं पाया था। अन्दर, नये लट्ठों की गन्ध अभी भी हवा में झूम रही थी।
लालटेन जलाये बिना, पेलगेया मार्कोवना चूल्हा जलाकर खाना बनाने में जुट गयी।
‘‘सो दूसरा भी छेद हो गया तुझ में, ओ मनहूस,’’ उसने बाल्टी से कहा, ‘‘अगर तू एक साल और चल जाती, तो तब तक दुनिया और बेहतर हो जाती। खैर, मैं अब खरीद लूँगी और तुझे छुट्टी दे दूँगी।’’
पेलगेया मार्कोवना को अपने घड़े, चूल्हे या घर की किसी और चीज से बातें करने की आदत थी। अगर वह न करती, तो शायद बोलना भी भूल जाती: घर में कोई बात करने वाला भी तो नहीं था-लेना है जो पेलगेया मार्कोवना के सो जाने से पहले कभी घर नहीं आती।
पेलगेया मार्कोवना ने पानी भरा और एक मोटे लट्ठे को काटकर छोटे-छोटे टुकड़े करने लगीं। एक के बाद एक वे एक पैर पर उछलकर, फर्श पर कूद पड़ते।
‘‘तू भी शैतान है!’’ पेलगेया मार्कोवना ने बड़े प्यार से उस लट्ठे से कहा। ‘‘मेरी कुल्हाड़ी के नीचे तू हमेशा कोई गाँठ कर देता है। तुझे शर्म नहीं आती। मैं तुझे उलट-पुलट कर दूँगी और सब शैतानी भुलवा दूँगी।’’
उसने चूल्हों पर एक तिकोनी तिपाई रख दी, बर्त्तन में आलू भर दिये और फिर माचिस खोजने लगी।
माचिस का कहीं पता नहीं था। उसे खोजते-खोजते पेलगेया मार्कोवना ने उस तिकोनी तिपाई को यह बता डाला कि अगर मौसम ठीक रहा तो कल बुआई शुरू हो जाएगी, ट्रैक्टर-ड्राइवर जमीन की जाँच करने आये थे; उन्होंने शरद में जुताई करनेवाले ड्राइवरों की गलती पकड़ी; कि वे गयी-गुजरी मशीनें लाये थे और भगवान की कृपा है कि सब कुछ ठीक-ठीक ही हुआ जाता है।
माचिस खोजने के लिए उसने चूल्हे के पीछे सोने की जगह पर हाथ डाला कि यकायक उसकी उँगलियाँ किसी नर्म और गर्म चीज से छू गयीं।
‘‘बाप रे!’’ वह हाथ खींचकर चीख उठी। ‘‘कौन है?’’
‘‘मैं हूँ, माँ,’’ लेना ने उनींदे स्वर में कहा।
‘‘तूने मुझे किस कदर डरवा दिया! मेरा दम ही निकल गया होता। तू मुझे बता देती कि तू यहाँ है।’’
‘‘किसलिए बताती?’’
‘‘आज इतनी जल्दी तू कैसे घर आ गयी?’’
‘‘मैंने अपना काम खत्म कर दिया। एक दिन के हिसाब से काफी था।’’
‘‘थक गयी है?’’
लेना ने कोई उत्तर नहीं दिया। पेलगेया मार्कोवना सोच में पड़ गयी: ‘‘कोई बात जरूर है। लेकिन इस वक्त पूछने से कोई फायदा नहीं होगा। वह बतायेगी थोड़े ही।’’ आखिरकार उसे माचिस मिल गयी और जितनी खामोशी से सम्भव हो सकता था, उसने आलू और कुछ दूध उबाल लिया। फिर उसने लालटेन जलायी और लेना को बुलाया। मेज ऐसी जीर्ण-शीर्ण थी कि वह दीवार के सहारे टिका देने से खड़ी रह सकती; उसके किनारे एक बैंच पर वे दोनों बैठ गयी। लालटेन की पीली रोशनी उनके थके हुए चेहरों, कोने में खड़े हुए सन्दूक और कई तस्वीरों से भरे हुए एक फोटोफ्रेम पर पड़ रही थी। फासिस्टों से बचाने के लिए कई बार जमीन में गाड़कर रखने के कारण सन्दूक की धातु की पट्टियाँ कई जगह जंग खा गयी थीं। लकड़ी के रंग-बिरंगे फ्रेम में लगभग बीस तस्वीरें थीं-बड़ी भी और छोटी भी, कुछ तो डाक के टिकट के बराबर छोटी। अधिकांश पर गहरे धब्बे थे, और लगता था कि यह फ्रेम भी गाड़ कर रखा गया होगा। लेना और पेलगेया मार्कोवना भोजन कर रहे थे और उनकी तरफ मजबूत बूटों से लैस उत्सुक-नयन घुड़सवार, भली-भाँति सवारी हुई दाढ़ीवाले कठोर वृद्ध, और अपनी गोद में पतले-पतले हाथ रखे हुए बूढ़ी महिलाएँ उस फ्रेम से ताक रही थीं। दमकती हुई तस्वीरों में छोटी-छोटी नाकवाली लड़कियाँ अंगोरा के ऊन की चौखानेदार टोपियाँ पहने थीं, और छोटी-छोटी नाकवाले लड़के, जिन्होंने तस्वीर खिंचाने के लिए काकेशस की पोशाकें माँग कर पहन रखी थीं, अपनी मस्कान बिखेर रहे थे। एक तस्वीर लेना के बचपन की थी, जिसमें उसके जूड़े लटक रहे थे और नंगे गले में पायनियर की टाई बँधी हुई थी।
युद्ध के पहले यह बड़ा और घना सम्मिलित परिवार था, उनमें से जो कुछ बच रहा, वह इस समय बैंच पर मौजूद था। पेलगेया मार्कोवना आग की तरफ टकटकी बाँध कर देखती रही। उसकी खूबसूरत काली आँखों की गहराई में एक नारी की वेदना झलकती दिखायी दे रही थी।
खामोशी के आलम में उन्होंने खाना खत्म किया। पेलगेया मार्कोवना सिर्फ एक बार बोली:
‘‘कृषि-विशेषज्ञ की कोई खबर मिली?’’ उसने पूछा।
‘‘वह बेकार का आदमी है। उसके हाथ-पाँव ठण्डे पड़ गये हैं और शक्ल नहीं दिखाता,’’ लेना ने कहा और उठकर चारपाई पर जा लेटी। ‘‘मैं उसकी बात भी नहीं करना चाहती।’’
पेलगेया मार्कोवना ने लालटेन बुझा दी। कुछ क्षण तक मिट्टी के तेल की दम-घोंट गन्ध हवा में छायी रही। चाँदनी ने मेज पर सफेद वस्त्र बिछा दिया, और लोहे का पात्र भी इस तरह सफेद दिखाई देने लगा, मानो किसी ने उस पर दूध बिखेर दिया हो। कहीं दूर, शायद उधर नदी के किनारे, ग्रीशा अपना अकार्डियन बजा रहा था और कुछ लड़कियाँ हँस-गा रही थीं। लेकिन लेना सो गयी थी। और चूहा फिर उस कोने में किसी चीज से खेलने लग गया था।
पेलगेया मार्कोवना हौले से उठी और अपनी बेटी के पास जा पहुँची। लेना गहरी नींद में सो रही थी और उसके केश तकिये पर बिखरे हुए थे। सोते हुए भी वह बड़ी चौकन्नी-सी मालूम पड़ती थी: उसकी आँखें पूरी तरह मुँदी हुई नहीं थीं, मानों वह अभी भी ताक रही है और उसकी उँगलियाँ इस तरह मुड़ी हुई थीं, मानों वे कोई खुर्पी या कुदाली सम्भालने जा रही हैं। उसने किंचित सिहर कर करवट बदली। सावधानी से पेलगेया मार्कोवना ने उसके बालों पर हाथ फेरा। अब चूँकि उसकी बेटी जवान हो गयी, इसलिए उसे अपना लाड़-प्यार इस तरह छिपकर जताना पड़ता है। लेना इस मायने में लड़कों की तरह थी कि वह माँ के प्यार जतलाने को तनिक भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। इस व्यवहार पर माँ को ठेस लगनी चाहिए, लेकिन जब लेना का हृदय कंचन की तरह शुद्ध है तो फिर उसे ठेस कैसे लग सकती है? उसे लाड़-दुलार और प्रीत-प्रदर्शन से चिढ़ थी, लेकिन अगर उसके घर लौटने पर माँ सोती हुई मिलती थी, तो वह चुपके से अँधेरे में ही भोजन कर लेती थी। और अगर माँ जरा भी उदास हुई, तो फिर वह चाहे किनती ही थकी हुई क्यों न हो, घर का सारा काम-काज अपने हाथों ही कर डालती थी।
इधर थोड़े दिनों में लेना का वजन कम हो गया था और उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा जाया करता था। प्राण-प्यारी, तू इतनी सख्त मेहनत क्यों करती है? क्या तू अमीर बनना चाहती है, सबसे ज्यादा कमाना चाहती है? लेकिन यह तो तेरा स्वभाव नहीं है। तू अमीर नहीं बनना चाहती और न तू यह जानती है कि धन-सम्पत्ति क्या होती है। तुझसे कोई माँगे तो तू आखिरी पैसा भी दे डालेगी। तो क्या तू यश चाहती है? कोई सरकारी तमगा? लेकिन तुझे घमण्ड तो छू नहीं गया और न तू कभी अपनी प्रशंसा चाहती है।
तू क्या सपना देख रही है? वह क्या चीज है जो तुझे हर समय कठोरतम और असम्भव काम को कर डालने के लिए प्रेरित करती है? तू किस आँधी में बह रही है? तू बह रही है और इतनी ऊँची उड़ रही है कि तेरी बेचारी माँ तुझसे बात भी नहीं कर पाती और न तुझे समझ ही पाती है...?
13
शोमुश्का की राह में देमेन्तियेव ने खीझ कर त्योरियाँ चढ़ायीं और दसवीं बार यह निश्चय करने की कोशिश करने लगा कि लेना के साथ वह कैसा व्यवहार करेगा। क्या रूखा अफसरी रुख अख्तयार किया जाय, या चोटखाये हुए इंसान की तरह किया जाय, अथवा उस क्षण हृदय जो आदेश दे, उसका पालन किया जाय, जैसे कि वह हमेशा करता रहा है?
एक चित्रपट की तरह धीरे-धीरे उभरते हुए खेतों के दृश्यों ने कृषि-विशेषज्ञ के विचारों का तार तोड़ दिया-औरतें अपने रंग-बिरंगे रूमाल ओढ़े हुए थीं, घोड़े झटके के साथ हल खींच रहे थे, जुताई की भूरी लकीरें जाड़ई गेहूँ के हरे-पीले अंकुरों से सँवरी हुई थीं। थोड़ी ही दूर पर ट्रैक्टर घड़घड़ा रहा था और ड्राइवर के अगल-बगल, पाँच लड़के चढ़कर आ बैठे थे। एक के बाद एक गाँव निकलते गये; पुरानी मटमैली इमारतों के बीच नये मकानों के पीले लट्ठे, फूस के घने छप्पर और सामने की फुलवाड़ियाँ तथा उनके रेशम से चमकीले तख्तों के बने गेट दिखायी दे जाते थे। उसके बाद फिर वही खेत, किसान और ट्रैक्टर।
‘‘खुराफात,’’ देमेन्तियेव ने मन में कहा और अपने को शान्तिपूर्ण नीले आकाश से ढँकी हुई मेहनत में जुटी दुनिया का एक हिस्सा महसूस करके उसे बड़ा आनन्द मिला। ‘‘उसकी नादान सनकों की तरफ मुझे कोई ध्यान नहीं देना चाहिए। मैं अपने रोष को क्यों उभाड़ रहा हूँ? मैंने क्या कभी उसे गम्भीरतापूर्वक बताया है कि मैं उसे प्यार करता हूँ? कभी नहीं। लेकिन इस बार मैं कह ही डालूँगा। निश्चय ही कहूँगा।’’
और न जाने क्यों-शायद इसलिए कि चारों तरफ काम की गुनगुनाहट से खेत गूँज रहे थे या शायद इसलिए कि उसके विचार आनन्दपूर्ण थे और सूरज चमक रहा था-पता नहीं क्यों, प्योत्र मिखाइलोविच के हृदय में बड़ी शान्ति के साथ किसी मधुर संयोग की आवश्यम्भावी आशा जागृत हो गयी थी।
वह शोमुश्का के खेतों के पास आ पहुँचा।
हल की लकीरों पर एक दृष्टि डालकर ही वह समझ गया कि बुआई आज ही शुरू हुई है। और जैसा कि होता है, पहले दिन सारी चीजें आसानी से नहीं होतीं एक ट्रैक्टर बुआई की मशीन के साथ बेकार खड़ा था और उस पर कौए मण्डरा रहे थे। सड़क-किनारे एक मोमजामे पर अस्त-व्यस्त दशा में चार औरतें पड़ी हुई थीं। प्योत्र मिखाइलोविच ने सख्ती से घोड़े की रास खींचते हुए पूछा: ‘‘आप लोग काम क्यों नहीं कर रही हैं?’’
‘‘करने को है ही क्या? ट्रैक्टर टूट गया है।’’
‘‘ड्राइवर कहाँ है?’’
‘‘शिकायत करने गया है। अध्यक्ष का कहना है कि बुआई शुरू नहीं होगी।’’
देमेन्तियेव ने घोड़े को एड़ लगाया ओर आगे बढ़ा। उसकी आँखें अध्यक्ष को खोज रही थीं। ‘‘शायद वह आराम से घर पर पड़ा होगा। मैं सीधे उसके घर ही चला चलूँगा,’’ उसने सोचा।
पर अध्यक्ष घर पर नहीं था। सामूहिक फार्म के दफ्तर में भी वह नहीं था, न खलियान में मिला न लुहार के यहाँ ही। जहाँ कहीं देमेन्तियेव गया उसे यही उत्तर मिला: ‘‘वह अभी-अभी यहाँ था और उसी तरफ गया है।’’ कृषि-विशेषज्ञ ने अकेले ही खेतों में जाने का निश्चय किया कि अचानक किसी ने उसके पीछे से कहा: ‘‘कामरेड देमेन्तियेव! मैं तो आपको गाँव-भर में खोजता रहा हूँ। एम. टी. एस वालों में और मुझमें फिर अनबन हो गयी।’’
पसीने से तर और कीचड़ लगे कपड़ों के साथ अध्यक्ष ने लम्बी दास्तान सुनाना शुरू किया। लगता था कि एम.टी.एस. वालों ने आठ इंच की जगह सिर्फ सात इंच गहरा जोता, क्योंकि उनका कहना था कि इस कीचड़ में इससे अधिक गहरा जोतने में पेट्रोल बहुत खर्च हो जायेगा। देमेन्तियेव और अध्यक्ष खेतों में गये। सच था, जुताई अच्छी नही हुई थी। ऐसी जमीन में बुआई करने न देकर अध्यक्ष ने ठीक ही किया था। उन्होंने एम.टी.एस. वाले मैकेनिक को ढूँढ़ निकाला, दिल के गुबार उसपर उतारे, आग्रह किया कि हलों को फिर से लगाया और चलाया जाय और धमकी दी कि यदि ऐसा न किया गया तो वह एक अधिकृत शिकायत-नामा लिख देंगे। इसके बाद उन्होंने बीजों के लदान का निरीक्षण किया। देमेन्तियेव तो कभी परामर्श देता, कभी प्रशंसा करता, फिर कभी धमकी देता हुआ इतना व्यस्त रहा कि वह लेना को एकदम ही भूल गया था जबतक कि दिन न ढल चुका था और वह थकावट के मारे चूर होकर आराम करने के लिए न बैठा। तभी कोई अच्छी बात होने के आसार की झलक उसके मन में फिर आयी। उसने चारों तरह निगाह दौड़ायी। सूरज डूब रहा था। किसान खेतों से वापस घर जा रहे थे, परन्तु पहाड़ी के ऊपर एक ट्रैक्टर ऐसी कर्कश आवाज कर रहा था जैसे काठ के तख्तों पर कीलें धड़ाधड़ ठोंकी जा रही हों।
‘‘कोम्सोमोल के सदस्यों का क्या हाल है?’’ उसने अध्यक्ष से पूछा।
‘‘वही जो दूसरों का है। वे बुआई कर रहे हैं।’’ अध्यक्ष ने अपने जूतों का अध्ययन करते हुए उत्तर दिया।
‘‘चलो, जरा देख आयें।’’
‘‘देखने को वहाँ क्या रखा है? दिन खत्म हो गया। सब लोग घर चले गये होंगे।’’
‘‘तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहते, तो मैं अकेला ही चला जाऊँगा।’’
अध्यक्ष गाँव लौट गया और देमेन्तियेव ने खेतों का रास्ता किया। उसे किसी से मुलाकात की आशा नहीं थी, वह सिर्फ यह देखना चाहता था कि जमीन कैसी तैयार की गयी है।
यकायक उसे लेना दिखायी दी। वह खेत के बिल्कुल दूसरे छोर पर एक छोटे से नाले के पास खड़ी थी, यह नाला मेद्वेदित्सा में जाकर मिलता है। टाँगें फैलाये हुए वह एक बोरे के ऊपर झुकी खड़ी थी और बोरे से बीज निकालकर सावधानी से जमीन में बो रही थी। उसके पास ही स्टबी घुटनों के बल बैठा हुआ कुछ कर रहा था। देमेन्तियेव वहाँ पहुँच गया। डूबते हुए सूरज की रोशनी में उसके केश ऐसे जान पड़ते थे, मानो दहक रह हैं।
‘‘बेटा, जरा दौड़कर तो जाओ, और देखो अध्यक्ष कहाँ है,’’ देमन्तियेव ने कहा। स्टबी चला गया।
लेना ने उसकी तरफ देखे बिना ही कहा: ‘‘तुम्हें क्या पता है कि अध्यक्ष कहाँ है?’’
‘‘हाँ, जानता तो हूँ, लेकिन मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। लेना!’’
‘‘स्टबी!’’ लेना ने आवाज दी।
देमेन्तियेव ने त्योरियाँ चढ़ा लीं। स्टबी लौट आया था।
‘‘क्या इरादा है?’’ लेना ने लड़के से कहा, ‘‘चलो, अपना काम करो।’’ फिर देमेन्तियेव की तरफ व्यंग्यात्मक दृष्टि डालकर वह बोली: ‘‘तुम कोई बात क्यों नहीं करते? तुम कह रहे थे कि कुछ कहना चाहते हो। कह डालो।’’
युवक के हृदय में जितनी भी कोमल भावनाएँ उमड़ उठी थीं, वे काफूर हो गयीं।
‘‘मैं तो सिर्फ यही जानना चाहता था,’’ उसने रुखाई से कहा, ‘‘कि डेढ़ गुना बीज पाने के लिए तुमने खेत की मिट्टी कैसी तैयार की है। लेकिन रहने दो, मैं किसी और से पूछ लूँगा।’’
‘‘क्यों, क्या तुम्हें यह नहीं मालूम...?’’ लेना ने कहना शुरू किया, लेकिन कृषि-विशेषज्ञ यकायक उठ खड़ा हुआ और खेत पार करके नाले की तरफ चल दिया। वह किनारे-किनारे चल दिया और जब उसे निश्चय हो गया कि वह लेना की आँखों से ओझल हो चुका है, तब एक पत्थर पर बैठ गया।
नाले के दूसरे किनारे ऊँचे कगार पर बड़ी घनी झाड़ियाँ थीं, जिससे वह किनारा बिल्कुल स्याह लग रहा था; सिर्फ एक जगह झाड़ियों के बीच दरार से सूरज की आखिरी किरणें झाँक रही थीं, लेकिन उनकी रोशनी इतनी तेज और चकाचौंध करने वाली थी कि उस दरार में से उस पार कुछ देख पाना सम्भव नहीं था। देमेन्तियेव बड़ी देर तक किसी अदृश्य चिड़िया के भयभीत स्वर को सुनता रहा। पहाड़ियों के पीछे सूरज डूब गया। हर क्षण बीतने के साथ अँधेरा और खामोशी और बढ़ती थी और वह बड़े उदास भाव से चीखती रही-बुलाती रही और जवाब का इंतजार करती रही।
नाला भी सो गया। कृषि-विशेषज्ञ के सामने तरह-तरह की कल्पनाएँ नाच उठतीं और छिछले पानी के अँधेरे में विलीन हो जातीं। पानी बड़ी सुस्ती और अनिच्छा से साथ लुढ़क रहा था। किनारे पर झाड़ियों को चीरकर, जहाँ सूरज की एकाध किरण चमक रही थी, सिर्फ वहीं कुछ जीवन नजर आ रहा था। सैकड़ों गुलाबी चिनगारियाँ बड़ी तेजी से निकल कर नाच रही थीं मानो उस जगह पर ज्वाला की धारा, बिना किसी कोलाहल के, पानी में गिर रही हो।
यकायक देमेन्तियेव ने पानी में लेना की झाँईं देखी।
‘‘मैं थोड़ी सी जमीन अपने ढंग से बोना चाहती हूँ। इसीलिए मैं अपने हाथ से बीज डाल रही हूँ,’’ उसने अपराधी जैसे स्वर में कहा।
‘‘बोये जाओ,’’ कृषि-विशेषज्ञ ने बिना कुछ समझे-बूझे जवाब दिया। और यह जानने की परवाह न की कि उसको हाथ से बोने की जरूरत क्यों आ पड़ी है।
‘‘लेकिन यह मैं छिपा कर कर रही हूँ। ताकि कोई जान न पाये। प्योत्र मिखाइलोविच आप किसी से कुछ कहियेगा मत!’’
कृषि-विशेषज्ञ ने कोई उत्तर नहीं दिया।
लेना उसके पास एक पत्थर पर बैठ गयी।
‘‘क्या मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है?’’ उसने यकायक कहा।
‘‘नहीं तो।’’
‘‘जरूर दुखाया है! मैं जानती हूँ।’’
‘‘तुम्हारे कारण मैं अपना दिल क्यों दुखाऊँगा?’’
‘‘कोई कारण तो है। मैं जानती हूँ।’’
‘‘क्या जानती हो?’’
‘‘जो जानती हूँ, सो जानती हूँ।’’
दोनों पानी में झाँकने लगे जहाँ उनकी शक्लें लम्बी-लम्बी और टेढ़ी-मेढ़ी झलक रही थीं।
‘‘तुम कैसे जानती हो?’’
‘‘बस, मैं जानती हूँ। लेकिन तुम बुरा न माना करो। अगर मेरी कुछ मजबूरियाँ न होतीं तो हम-तुम एक हो सकते थे। लेकिन मेरे लिए कोई और भी है।’’
‘‘कौन?’’
‘‘तुम उसे नहीं जानते। वह आजकल गोर्की नगर में है। रेल से सात सौ तैंतीस मील दूर।’’
गीली-गीली साँझ उतर आयी थी। सूर्य-किरण, एक ऐसी माँ की तरह चुपचाप खिसक गयी थी, जो लोरियाँ गाकर बच्चे को सुला चुकी हो और लैम्प बुझा गयी हो। झाड़ियों में उस चिड़िया की पुकार बन्द हो गयी थी। पानी की वह चमचमाहट खत्म हो चुकी थी। कहीं कोई धड़कन शेष थी तो स्याह जल-धारा पर, जहाँ मच्छर को पकड़ने के लिए कोई मछली उछल पड़ती थी और समतल सतह पर छोटे-छोटे गोलाकार वृत्त छोड़ जाती थी।
जब खामोशी पूरी तरह छा गया तो पीले हरे आकाश में एक चमकीला सितारा उदय हुआ।
‘‘उसे गये क्या बहुत दिन हो गये?’’ देमेन्तियेव ने कुछ देर खामोश रहने के बाद पूछा।
‘‘छः महीने या कुछ थोड़ा ज्यादा हुआ होगा।’’
‘‘और तुम उसे भूल नहीं सकीं?’’
‘‘नहीं जी! मैं उसे भूल कैसे सकती हूँ?’’
‘‘खैर, मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे लिए हैं। मुझे तो कुछ ईर्ष्या ही अनुभव होती है।’’
‘‘फिक्र न करो। तुम्हें भी कोई मिल जायगा। इस दुनिया में मैं ही कोई अकेली लड़की नहीं हूँ।’’
‘‘किसी को खोज पाना इतना आसान नहीं है, लेना! मैं इतने वर्षों से इंतजार कर रहा हूँ और अभी तक मुझे कोई नहीं मिला।’’
‘‘मिल जायगा। आज कल बहुत-सी लड़कियाँ फालतू हैं। जरूरत से ज्यादा।’’ देमेन्तियेव ने सिर उठाया और लेना की तरफ देखा।
‘‘मेरी तरफ क्या घूर रहे हो?’’
‘‘तुम फिर बातें बना रही हो। वह गोर्की वाला लड़का उसको भी तुमने गढ़ लिया है। तुम्हारे एक शब्द पर मैं विश्वास नहीं कर सकता।’’
‘‘क्यों नहीं? अगर चाहो तो मैं सबूत पेश कर सकती हूँ।’’
‘‘अच्छा करो।’’
‘‘लो, यह पत्र मैंने उसे लिखा था। मैं अभी भेज नही पायी। क्या मैं पढ़कर सुना दूँ?’’
‘‘हाँ’’
लेना ने एक मुड़ा हुआ कागज खोला और पढ़ना शुरू किया:
‘‘मेरे प्राणप्रिय वसीलि परमोनोविच...’’
‘‘इस इकत्तीस नम्बर के क्या मायने?’’
‘‘बीच में टोको नहीं, वरना मैं आगे पढ़ना बन्द कर दूँगी। ‘मेरे प्राणप्रिय वसीलि परमोनोविच!’ यह नम्बर मैं हर चिट्ठी पर इसलिए डाल देती हूँ, ताकि वह इन्हें सिलसिले से रख सके। मैं अपने सभी पत्रों पर नम्बर लिखती हूँ। ‘मैं तुम्हें ढेर के ढेर चुम्बन भेजती हूँ वास्या-तुम्हारे होंठों पर चुम्बन और तुम्हारी आँखों की लम्बी-लम्बी बरुनियों पर भी चुम्बन। आज सुबह से ही मैं तुम्हें याद कर रही हूँ और वह जंगल भी याद आ रहा है, जहाँ बारिश में हम-तुम एक भोज-वृक्ष के नीचे खड़े हो गये थे और जहाँ तुमने अपना दिल खोल कर रख दिया था। इस समय अगर मैं उस जंगल में पहुँच जाऊँ तो तमाम पेड़ों के बीच में उसी भोज-वृक्ष को पहचान लूँगी। आज सुबह जब मैं जागी, तो मुझे ऐसा अकेलापन महसूस हुआ कि सारा काम छोड़कर तुम्हारे पास गोर्की चले जाने की इच्छा हुई।
‘‘लेकिन मैं अभी नहीं आ सकती। हम लोग बड़े व्यस्त हैं। हमने इस साल हमेशा से ज्यादा बीज बोने का फैसला किया था, लेकिन पावेल किरीलोविच हमें बीज नहीं देते...’’
‘‘बीज नहीं देते?’’ आश्चर्य से देमेन्तियेव ने कहा।
‘‘नहीं, वह नहीं देता। जैसे तुम्हें यह सब मालूम ही न हो।... ‘हमें बीज नहीं देते ओर हम लोग एक सप्ताह तक उँगलियाँ गलाते रहे, और इसीलिए हमें बड़ी कडुवाहट महसूस होती है। मैंने एक पत्र जिला केन्द्र को भी लिखा था और उनसे सहायता पाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन कुछ न हुआ। अगर तुम यहाँ होते...’
बाकी खत में कोई खास बात नहीं है।’’ लेना ने कागज फिर मोड़कर रखते हुए कहा।
सुनो, लेना, मेरी समझ में एक भी बात नहीं आती। मीटिंग में तुम्हें बीज देने का फैसला हुआ था कि नहीं?’’
‘‘हाँ, हुआ तो था, लेकिन तुम्हारे मनहूस कृषि-विभाग ने एक चिट्ठी भेज दी कि अगर ऐसा किया गया तो हमारे खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।’’
‘‘वह चिट्ठी कहाँ है?’’
‘‘अध्यक्ष के पास।’’
‘‘मेरे साथ चलो, हमें उससे बात कननी होगी।’’
‘‘क्या फायदा है? अब बीज बचे ही नहीं हैं। उसने हमारे सभी ब्रिगेडों को बाँट दिया है।’’
‘‘आओ, साथ तो आओ!’’
उसने लेना की बाँह पकड़ ली और सड़क तक उसे लगभग घसीटता हुआ ले चला।
अँधेरा था। बड़ी देर तक वे लोग बिना कुछ बोले-चाले चलते रहे।
‘‘चिट्ठी का गोर्की पहुँचने में कितना समय लगता है?’’ देमेन्तियेव यकायक पूछ बैठा और वह भी बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के।
‘‘मुझे पता नहीं। चार या पाँच दिन।’’
‘‘और यहाँ आने में?’’
‘‘मुझे क्या पता?’’
‘‘क्यों, क्या वह अपनी चिट्ठियों पर तारीख नहीं डालता?’’
‘‘वह मुझे पत्र नहीं लिखता।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मुझे नहीं मालूम! यहाँ से जाने के एक महीने बाद उसने मुझे एक पत्र लिखा था। लेकिन फिर कोई पत्र नहीं लिखा। सिवाय इसके कि इस गर्मी में उसने अपने पिता के नाम एक पत्र लिखा था। बस, और कोई नहीं। वह काम करता है। इस सब बातों की फिक्र करने के लिए उसको फुर्सत ही नहीं मिलती।’’
‘‘लेकिन यहाँ पर भी तो वह मेहनत से काम करता था, कि नहीं?’’
‘‘हाँ... आँ...,’’ लेना ने कुछ हिचकिचाहट के साथ कहा।
‘‘और फिर भी वह तुमसे मिलने की फुर्सत निकाल लेता था?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘वह तुम्हें छोड़ कर क्यों चला गया?’’
वह मुझे छोड़ कर नहीं गया। यह तो तुम्हें भी मालूम है कि यहाँ फसल खराब हो गयी थी। खाने को कुछ न था,’’
‘‘तुम्हारे पास भी कुछ अधिक नहीं बचा था, लेकिन तुम तो यह गाँव छोड़ कर नहीं भाग गयीं।’’
‘‘मैं?’’ वह थोड़ा सा हँसी। ‘‘अगर अब लोग चले जायेंगे, तो इन खेतों पर कौन काम करेगा?’’
‘‘लेकिन वह तो चला गया।’’
‘‘हमेशा के लिए नहीं। उसने कहा था कि जमाना बेहतर होते ही वह आ जाएगा।’’
‘‘जब जमाना बेहतर होगा?’’
‘‘हाँ, जब जमाना...’’ लेना रुक गयी और एक क्षण सोच में पड़ गयी। ‘‘सुनो,’’ उसने अपनी हथेली को उलट कर अपने माथे पर फेरते हुए कहा, ‘‘मुझे उलझाने की कोशिश मत करो... और जाओ, अध्यक्ष से अकेले ही बात कर लेना। वह अब बीज दे या न दे, मेरे लिए सब बराबर है। जाओ...’’
14
अध्यक्ष कुँवारा था। वह मरीया तिखोनोवना के मकान के एक कोने में रहता था, जिसे एक फीके-फीके परदे से अलहदा कर दिया गया था।
देमेन्तियेव पहुँचा तो काफी देर हो गयी थी। बूढ़े लोग सो गये थे, मगर अध्यक्ष कागज पेन्सिल जमाये हुए मिट्टी के तेल के लैम्प की रोशनी में सिर झुकाये बैठा था। सिरहाने लाल तकिये रखकर एक बिस्तर देमेन्तियेव के लिए लगा दिया गया था।
‘‘थक गये हो?’’ पावेल किरीलोविच ने फुसफुस स्वर में पूछा।
‘‘हाँ।’’
‘‘दूध पियोगे?’’
‘‘नहीं, धन्यवाद।’’
देमेन्तियेव बैठ गया और उस कोने की तरफ निगाह डाली, जहाँ बूढ़े लोग सो रहे थे। मरीया तिखोनोवना ने करवट बदली और एक लम्बी साँस खींची।
‘‘मैं जरा सिगरेट पीऊँगा,’’ पावेल किरीलोविच ने उठते हुए कहा, ‘‘चलो, मेरा साथ देना।’’
वे ओसारे में निकल आये और सबसे पहली सीढ़ी पर बैठ गये। सड़क के पार तिरछी दिशा में किसी घर में अभी भी रोशनी जल रही थी।
‘‘ठण्ड है,’’ पावेल किरीलोविच ने कन्धे उठाते हुए कहा।
‘‘कुछ है। तुमने लेना जोरिना की योजना क्यों बिगाड़ दी पावेल किरीलोविच? क्या तुम्हें इसका दुख नहीं है?’’
अध्यक्ष ने मन में कहा, ‘‘मैं जानता था।’’ उसने एक सिगरेट जलायी और देमेन्तियेव के सवाल का जवाब देने से पहले एक लम्बा कश लिया।
‘‘कामरेड देमेन्तियेव, तुम मेरे बारे में कोई गलत धारणा न बना लेना। तुम बुद्धिमान हो और अपने काम के बारे मे बड़ी जानकारी भी रखते हो, लेकिन मैं तुम से ज्यादा दिन दुनिया देख चुका हूँ। मेरी बात सुनो और गुस्सा मत होना। मैं यह नहीं कहता कि ये नव-आविष्कृत विचार दूर से देखने पर सही नहीं मालूम होते। लेकिन मैं सामूहिक फार्म का अध्यक्ष हूँ, और अन्य बातों के अलावा मुझसे यह भी आशा की जाती है कि मैं हक्मों का पालन करूँगा, यह कहना बड़ा आसान है कि ‘इन्हें यह दे दो, उन्हें वह दे दो,’ लेकिन अगर तुम मेरी जगह होते तो पेड़ की चोटी पर बैठे होते।’’
‘‘हरगिज नहीं।’’
‘‘अब तो तुम यही कहोगे। लेकिन जरा सोच कर देखो: तुम्हारे अनुसार, मुझे उन लोगों को उनके कोटे की हद से अधिक बीज दे देना चाहिए था। इसकी जवाबदेही कौन करता? अध्यक्ष ठीक है, इस वक्त तो जवाब देना शायद आसान होता। मैं कर लेता। लेकिन कौन जानता है कि इस प्रयोग का कुछ फल भी निकलेगा या नहीं? ओर मान लो कुछ न निकलता, तो? अगर गेहूँ काफी पैदा न होता तो? कौन जवाब देता? यही अध्यक्ष। और फिर यह मामला शायद इतना आसान नहीं होता।’’
पावेल किरीलोविच ने एक और लम्बा कश खींचा, और उसका दुबला चेहरा सिगरेट की चमक से रोशन हो उठा।
‘‘पावेल किरीलोविच!’’ देमेन्तियेव ने कहा, ‘‘ईमानदारी से सच बात बताओ-क्या तुम समझते हो कि खेत में हमेशा के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक फसल हो सकती है?’’
‘‘शायद हो सकती हो। कोशिश दिलचस्प होगी।’’
‘‘तो, मेरा भी ख्याल था कि यह कोशिश दिलचस्प होगी। मैं इस कोशिश को कर डालने के लिए जरूर कोई ने कोई रास्ता निकाल लेता।’’
‘‘यही तो गर्दन फँसाने का रास्ता है,’’ अध्यक्ष ने कहा। ‘‘शायद तुम को यह न मालूम हो, इसलिए बता दूँ, कि लड़ाई और सूखा के बाद, अब इस वर्ष हमारे पास बीज भी काफी नहीं है और इसलिए निश्चित परिमाण से अधिक बीज बोना कानून के खिलाफ है। यह सख्त जुर्म है।’’
‘‘और क्या यह जुर्म नहीं है कि एक ऐसी नयी योजना को पूरा करने में रुकावट डाली जाये जिससे पूरे देश का भला हो सकता हो? जरा मुझे माचिस दो।’’
‘‘बैठ जाओ। उत्तेजित मत हो। तुम्हारी क्या उम्र होगी?’’
‘‘पच्चीस वर्ष।’’
‘‘मैं पैंतीस का हूँ। और तुम मुझसे इस तरह बात करते हो, मानो मैं सोवियत राज्य का विरोधी हूँ। अरे भाई, मैं मोर्चे पर था और वहाँ से मैंने दो-एक बाते सीखीं। जरा सड़क पर जाओ, और जो पहला आदमी मिले, उससे पूछो कि मैं किस तरह का अध्यक्ष हूँ। वह तुम्हें सब बता देगा। और लोगों से अपनी इज्जत करा लेना ओर उनसे हुकुम मनवा लेना कोई आसान काम नहीं है। स्कूल में यह नहीं सीखा जा सकता। क्यों तुम समझते हो कि इस मोटी और बंजर जमीन पर यह फार्म चालू रखना कोई आसान बात है? क्या तुम समझते हो कि लड़ाई के थके-माँदे अधभूखे लोगों से काम लेना आसान है? क्या तुम समझते हो कि पिछले साल जब इतना सा गेहूँ हुआ था तो परिस्थिति आसान थी?’’ अध्यक्ष ने उँगलियों पर गेहूँकी मिकदार की गिनती अंकित कर दी, हालाँकि अँधेरे में उसका हाथ दिखायी भी नहीं दे रहा था। उसने आगे कहा, ‘‘क्या मेरे लिए यह आसान न होता कि मैं उराल या साइबेरिया चला जाता, जहाँ लड़ाई नहीं हो रही थी? काश, तुम्हें मालूम होता कि मैंने कितनी रातें आँखों ही में काट दीं और तदबीरें खोजने के लिए कितना दिमाग लड़ाया! तुम्हें यह पता होता, तो ऐसी बातें न कहते।’’
सड़क के उस पार के घर में भी रोशनी गुल हो गयी और रात और भी गहरी हो गयी।
पावेल किरीलोविच ने बात जारी रखी: ‘‘मोर्चे पर मैंने एक बात यह भी सीखी कि हुकुमों का पालन होना चाहिए और उनकी इज्जत करना चाहिए, क्योंकि उन्हें सोवियत सरकार और पार्टी देती है। मैं हमेशा हुकुमों का पालन करता हूँ और मैं तुम्हें भी यही सलाह देता हूँ कामरेड देमेन्तियेव। कृषि-विभाग ने कहा कि मैं अतिरिक्त बीज न दूँ और इसलिए मैंने नहीं दिया।’’
‘‘तो अब क्या करना चाहते हो-जमे रहोगे ओर अँगूठा दिखाते रहोगे?’’
‘‘अँगूठा दिखाते रहोगे? ऐसी बातें क्यों करते हो? तुम्हें मालूम हो कि मैंने उन्हें अपनी जिम्मेदारी पर बीज दे ही दिया था, मगर तभी कृषि-विभाग से पत्र आ गया और मैंने बीज वापस ले लिया। क्या मुझे हुकुम का पालन नहीं करना चाहिए!’’
‘‘पत्र में क्या लिखा था?’’
‘‘मेरी बात मत टालो: मुझे हुकुम का पालन करना चाहिए या नहीं?’’
‘‘जरूर कना चाहिए! लेकिन अन्य कामों के अलावा तुम्हारा यह भी काम है कि नये प्रयत्नों का समर्थन करो; अपनी ताकत भर पूरा साथ दो, अगर वह सबकी भलाई के लिए हों, फिर चाहे कोई खतरा ही क्यों न मोल लेना पड़े।’’
‘‘ये नारे मुझे न समझाओ। मैं सब जानता हूँ।’’
‘‘मैं कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य हूँ ओर तुम भी हो। इसलिए ये शब्द हमारे लिए महज नारे नहीं हैं। ये हमारे ही शब्द हैं-तुम्हारे और मेरे।’’
‘‘तुम पार्टी के सदस्य हो?’’ पावेल किरीलोविच ने पूछा।
‘‘हाँ।’’
‘‘अब लो, यही देखो। मैं समझता था कि तुम अभी कोम्सोमोल के सदस्य होगे।’’ पावेल किरीलोविच ने सिगरेट का आखिरी टोटा सड़क पर फेंक दिया, जो वहाँ लाल आँख की तरह चमकता रहा।
‘‘खैर, तो यह बात क्या वहीं की वहीं अटकी है जहाँ से शुरू की थी? हम लोग क्या किसी नतीजे पर नहीं पहुँचे?’’
‘‘प्योत्र मिखाइलोविच, मुझे यह कहना है: इस काम को खत्म कर देना सचमुच बुरा है, लेकिन मैं तो यही चाहूँगा कि इसका प्रयोग कोई दूसरा ही फार्म करे।’’
‘‘यह भेद तुम कैसे कर सकते हो-यह फार्म, वह फार्म? क्या हम सभी मिलकर एक विशाल सामूहिक फार्म नहीं हैं? पावेल किरीलोविच, तुम और मैं इस तरह हाथ पर हाथ धर कर यह इंतजार करते नहीं बैठे रह सकते कि हमारी जिन्दगी को आसान बनाने के लिए कोई और फार्म कोशिशें करे।’’
‘‘इससे मुसीबत कम होगी।’’
‘‘थोड़ी सी मुसीबत से, क्या तुम डरते हो?’’
‘‘तुम नहीं डरते?’’
‘‘नहीं। अपनी कसम नहीं। जब कोई आदमी थोड़ी सी मुसीबत से डरने लगे, तो समझ लो कि उसका बेड़ा गर्क होगा। और वह निश्चय ही मुसीबत में फँस जाएगा-जिन्दगी से उसे जरा भी संतोष नहीं प्राप्त हो सकता। लेकिन जो व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन को पुरानी चीज ढहा देने और नयी चीज का निर्माण करने में लगा देता है, उसकी गति दूसरी ही होती है। विशेषकर, यदि वह किसी बात से डरता न हो। उसके रास्ते में भी मुसीबतें आ सकती हैं, लेकिन उसे संतोष भी पूरा प्राप्त होगा। अगर तुम जनता की भलाई का काम करोगे और बुद्धिमानी से करोगे, तो जो भी हुकुम तुम्हें मिलेंगे, उनसे तुम्हें उसमें सहायता ही मिलेगी।’’
‘‘मुझे विश्वास नहीं होता।’’
‘‘तुम किस दुनिया में रहते हो, पावेल किरीलोविच? हमारे कानून कौन बनाता है? जनता। खुद तुम। तो फिर...’’
‘‘लेना की हिमायत तुम बखूबी करते हो, क्यों?’’ अध्यक्ष ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘अगर लेना की बात न आ पड़ी होती, तो मेरा ख्याल है, तुम्हारे में ऊँचे विचार शायद जागृत न हुए होते।’’
‘‘कम से कम तुम्हारे ऊपर जरूर पागलपन सवार है,’’ देमेन्तियेव चकित होकर बोला। ‘‘हम लोग-तुम और मैं-एक दूसरे को नहीं समझ सकते। बात करने से कोई लाभ नहीं।’’
‘‘मैं गलत कह रहा हूँ क्या? मैं कायर नहीं हूँ। अच्छा भाई, मैं अपने संकट-काल के लिए रखे गये अनाज में से बीज ले लूँगा। लेकिन तुम लेना के पीछे बेकार वक्त बर्बाद कर रहे हो। यह बात, मैं बहुत दिनों से तुमसे कहना चाहता था।’’
‘‘मैं जानता हूँ।’’
‘‘जानते हो? तो अच्छा है। चलो सोंये।’’
‘‘चलो।’’
‘‘लेकिन सुनो, तुम कृषि-विभाग से मेरे पास कोई पत्र भिजवा दो, ताकि कभी जरूरत आ पड़े तो मैं अपना बचाव कर सकूँ। क्या भरोसा है। श्श... हौले से-मरीया तिखोनोवना डाँट देगी।’’
और वे पंजों के बल घर में घुस गये।
15
चार बजे सुबह पावेल किरीलोविच दाशा के घर गया और उसको लेना के ब्रिगेड के लिए अतिरिक्त बीज तुलवा देने के लिए कह दिया। लेना ने जब यह सुना, तब वह खेत में काम कर रही थी और यकायक उसे अपने कानों पर विश्वास भी न हुआ। यह फौरन समझ गयी कि यह किसकी करामात है और देमेन्तियेव को धन्यवाद देने के लिए वह फौरन चल पड़ी। लेकिन रास्ते में उसे पता चला कि कृषि-विशेषज्ञ बड़े भोर ही जिला केन्द्र के लिए रवाना हो गया है और अब कुछ दिनों उसके आने की आशा नहीं है। इसलिए वह फिर काम पर लौट आयी। उन्होंने बुआई शुरू कर दी। बहुत दिनों से जिस बीज की आशा कर रहे थे, उसे अन्त में अपने हाथों में पाकर युवक-युवतियाँ आनन्दमग्न थे। उस दिन दोपहर में भोजन के लिए कोई भी नहीं गया। लेना घर लौटी तो रात चढ़ आयी थी और पेलगेया मार्कोवना ने उसे जी भर कर झिड़का: सारे दिन बिना खाये-पिये कहीं काम होता है? दूसरे दिन पेलगेया मार्कोवना ने दूसरी औरतों से शिकायत की और उस दिन उन्होंने रसदार बन्दगोभी बर्तन भर कर पकायी और उसे कम्बल से लपेटकर, गाड़ी पर रखकर खेत भेज दी। लड़कियों को कितना ही डाँटो-फटकारो, मगर वे भोजन करने नहीं आयेंगी।
गाड़ी आ गयी तो दाशा ने ट्रैक्टर रुकवाया और खाने के लिए आध घण्टे की छुट्टी कर लेने का अनुरोध किया।
जमीन पर मोमजामा बिछा दिया गया और सभी लोग बैठ गये। नास्त्या बर्तन पर झुक गयी और बड़े चम्मच से परोसने लगी। हर एक को तली में से एक चम्मच गाढ़ा शोरबा और ऊपर-ऊपर से दो चम्मच पतला शोरबा दिया गया। उन्होंने ट्रैक्टर ड्राइवर को भी बुला लिया। वह बड़े रौब से टहलता हुआ आया और अपना बर्तन सामने कर दिया, जो एक खाली टीन से बनाया गया था। वह ढक्कनदार, साफ सुथरा, चिकने किनारेदार था और उसमें नर्म मुठिया लगी हुई थी। लड़कियों ने उसकी तरफ ईर्ष्या से देखा।
जमीन पर शोरबा रखकर ट्रैक्टर ड्राइवर टाँगें फैलाकर बैठ गया और घुटनों तक बूटों के सिरे से एक चम्मच खींचकर निकाल ली। चम्मच भी टीन की तरह देखने के काबिल थी। पूरी चम्मच पर तस्वीरें खुदी हुई थीं-फूल और तीर से बिंघा हृदय, लच्छेदार अक्षर, बन्दूक और कोई ऐसी शक्ल जो लड़की भी थी और मछली भी।
लेना ने ट्रैक्टर की तरफ सिर हिलाकर इशारा करते हुए कहा: ‘‘हमारा खाना खत्म होते ही ट्रैक्टर चालू हो जाना चाहिए।’’
‘‘फिक्र न करो। लड़ाई में मैं टैंक चला चुका हूँ,’’ ड्राइवर भुनभुनाया। निश्चय ही वह अपने को सभी उपस्थित लोगों से बल्लियों ऊँचा समझता था। ‘‘और मेरे टैंक में भी यही मोटर था। हालाँकि लड़ाई से इसे छुट्टी मिल चुकी है, लेकिन अभी भी घड़ी की सुई की तरह बराबर चलता है। केनिग्सबेर्ग तक सारा रास्ता जरा भी मरम्मत के बिना पार कर लिया था। मैं इसे गोर्की से मोर्चे तक ले गया था। देखों कैसा खड़ा है-बेचारा वियोग महसूस कर रहा है, क्यों न? गोर्की से बिछुड़ गया।’’ यकायक लेना उठ बैठी और ट्रैक्टर ड्राइवर की तरफ अजीब निगाह से देखा। ‘‘क्या बात है?’’ दाशा ने पूछा।
‘‘कोई खास बात नहीं। मुझे खाने की जरा भी इच्छा नहीं है। मैं जा रही हूँ, जरा नदी देखूँगी।’’
आश्चर्यचकित लड़कियाँ उसके पीछे अपनी आँखें दौड़ाती रह गयीं।
‘‘क्या हमेशा ही उसका यह हाल रहता है?’’ ट्रैक्टर ड्राइवर ने कहा। ‘‘क्या मनहूस चेहरा-मोहरा है।’’
‘‘जरा धीरज धरो। उस मनहूस चेहरे-मोहरे के पीछे तुम भी अपना दिल तड़पा बैठोगे,’’ ग्रीशा ने अपनी रोटी पर चिपके हुए तम्बाकू के रेशे झाड़ते हुए कहा। ‘‘तब तुम्हें सारा मजा मिल जायगा।’’
मौसम स्वच्छ और गर्म था। गुलाबी बादल तेजी से आसमान पार कर रहे थे, सूरज उनके पीछे छिप कर या उनसे बाहर निकल कर ताक-झाँक कर रहा था और मिट्टी बराबर अपना रंग बदल रही थी-अभी मटमैली, अभी स्वच्छ और अभी फिर मटमैली। नदी से मन्द पवन के झोंके आ रहे थे जिन से चम्मचों में शोरबा ठण्डा हो जाता था।
लेना को बहलाकर वापस लाने के लिए दाशा गयी।
‘‘इसमें तो कोई शक नहीं,’’ नास्त्या ने उसाँस भर कर कहा, ‘‘कि लेना के साथ कोई गम्भीर बात हो गयी है। उसे तो बड़ा खुश होना चाहिए था क्योंकि जो कुछ वह चाहती थी, उसे वही मिल गया है। लेकिन वह खुश नहीं है। वह दुखी है। तुम्हें जान पड़ता? पहले वह ऐसी नहीं थी। थी क्या?’’
‘‘कल मैंने देखा कि उसके रूमाल के कोने गीले थे। वह रोती रही होगी,’’
लूश्का ने अपने चारों तरफ निगाहें चुरा कर देखा। भेद-भरे स्वर में बात करना और फिर सबकी तरफ निगाहें चुरा कर देख लेना, यह लूश्का की आदत थी। वह ब्रिगेड में सबसे छोटी लड़की थी-नुकीली नाक और जूड़े का सिरा इस तरह ऊपर की तरफ मुड़ा हुआ मानो किसी ने तार से बाँधा हो। लड़कियाँ उसे कबूतरी कह कर चिढ़ाती थीं।
‘‘कल ही मैंने उसे रोते देखा था,’’ उसने बात आगे बढ़ायी, ‘‘लेकिन किसी से कहना मत।’’
नास्त्या बोली: ‘‘उसकी आँखें बदल गयी हैं। मानो किसी ने पुरानी आँखें निकाल ली है और नयी जड़ दी हैं। क्या ख्याल है, ऐसा क्यों है?’’
‘‘वह घबरा गयी है,’’ लूश्का ने चारों तरफ निगाहें डाल कर कहा।
‘‘घबरा किससे गयी है?’’ ग्रीशा ने पूछा।
‘‘किसी ने कहना मत। बीजवाली बात उसी ने शुरू की थी और अब वह घबरा रही है कि यह कैसे होगा। आखिरकार, जवाब तो उसी को देना पड़ेगा।’’
‘‘हम सब मिलकर जवाबदेही कर लेंगे,’’ ग्रीशा ने कहा।
नास्त्या ने उसाँस भर कर कहा: ‘‘वजह यह नहीं है। विश्वास रखो कि आखिर अगर हम सब भी मुकर जाए तो भी वह डटी रहेगी।’’
किसी ने कोई टीका नहीं की। लूश्का ने बिल्ली की तरह, भाप देती हुई चम्मच से शोरबे के आखिरी कतरे भी चाट लिये। ट्रैक्टर ड्राइवर ने अपना शोरबा खत्म किया और थोड़ा और माँगने लगा।
लूश्का ने यकायक कहा: ‘‘उसे क्या हो गया है, यह मुझे मालूम है। लेकिन किसी से कहना नहीं, एक भी आदमी से न कहना।’’
सभी लोग उसका मुँह देखने लगे।
‘‘कृषि-विशेषज्ञ ने उसे ठुकरा दिया है। असली रोग यही है।’’
‘‘तुम हो तो होशियार!’’
‘‘और नहीं तो क्या!’’
ट्रैक्टर ड्राइवर अपनी सुन्दर चम्मच को निरखते हुए बोला: ‘‘बेचारी को ढाढ़स बँधाना ही होगा।’’
‘‘तुम से भी होशियार लोग उसे समझा चुके हैं ओर सब अपना सा मुँह लेकर रह गये।’’
‘‘चलो, आज रात हम सब लोग उससे मिलने चलें,’’ नास्त्या ने कहा। ‘‘हम लोग जी भर बातें कर डालेंगे और रो लेंगे। चलोगी?’’
ग्रीशा ने उछलकर कहा: ‘‘उसे धीरज बँधाने का क्या ही बढ़िया उपाय है! पुरानी लेना अपने असली रूप में क्या तुम लोग देखना चाहोगे, घण्टे भर के भीतर ही?’’
‘‘वाह क्या बहादुर आदमी हो!’’ लूश्का ने चिढ़कर कहा। ‘‘क्या तुम सचमुच समझते हो कि तुम उसे खुश कर लोगे।’’
लूश्का के हृदय में ग्रीशा के लिए विशेष भाव था, लेकिन दुर्भाग्य से ग्रीशा को यह मालूम नहीं था।
वह कहता ही गया: ‘‘मैं कर सकता हूँ, तुम कर सकती हो और हम सब कर सकते हैं। आओ हम लोग जी तोड़ काम में जुट कर उसे चिढ़ा डालें। याद करो कि जब हम लोग खाद उतरवा रहे थे तो उसकी क्या हालत थी? उसका सारा शरीर लगभग काँप रहा था।’’
‘‘मैंने उसमें कोई खास बात नहीं देखी,’’ लूश्का ने चारों तरफ निगाह घुमा कर कहा।
ग्रीशा के सुझाव का किसी ने भी उत्साह से स्वागत न किया, लेकिन जब लेना पहले जैसी खामोश और खोयी-खोयी दशा में लौट आयी तो उसके सभी साथी पूरे उत्साह के साथ काम में जुट गये और बीज की मशीन को भरने में रिकार्ड कायम कर दिया। ग्रीशा गाड़ी तक दौड़ जाता और जोर लगाकर बोरा उठाते समय चिल्ला उठता। खेत पर रुपहली लकीरे छोड़ता हुआ ट्रैक्टर खड़खड़ करता बढ़ता जा रहा था। बीज का डिब्बा बन्द होते समय आवाज करता रहा और बोनेवालों के सिर पर कौवे मँडराते रहे।
पड़ोस के खेत से पावेल किरीलोविच आ धमका। आज उसने न ता किसी को उपदेश दिया और न फटकारा। कुछ देर खड़े रहने के बाद, उसने बुआई की जाँच की, फिर बिना एक शब्द कहे मुड़ गया और चला गया। जब वह सबकी आँखों से ओझल हो गया, तभी वह संतोष के साथ धीमे से भुनभुनाया।
लेना और अधिक उत्साहित हो उठी। उसके कपोलों पर रंग झलक आया और वह ट्रैक्टर ड्राइवर पर चीखने-चिल्लाने भी लगी। ग्रीशा ने उसकी तरफ देखा और फिर लूश्का की तरफ आँख मारी।
बिना किसी आशा के, चार बजे के करीब दो गाड़ियाँ और आ पहुँची, जिनमे से एक को अनीसिम हाँक रहा था। पता चला कि पावेल किरीलोविच ने उन्हें कोम्सोमोल ब्रिगेड के लिए भेजा है। आखिरकार युवक-युवतियों के प्रयत्नों से उसका भी दिल पिघल गया।
अब चूँकि उनके पास पाँच घोड़े हो गये थे, इसलिए काम और भी तेज हो उठा। कभी-कभी पहली गाड़ी खाली ही हो पाती कि दूसरी गाड़ी भी आ पहुँचती और दूसरी के बाद फौरन ही तीसरी भी आ धमकती। धूल और पसीने से लथपथ ग्रीशा ने आवाज लगायी ‘‘हुर्रा!’’
लेना ने उसकी तरफ ऐसी कड़ी निगाह से देखा कि उसका काम थम गया।
‘‘तुम यों गला फाड़-फाड़ कर क्यों चिल्ला रहे हो,’’ लेना ने व्यंग्य से कहा और ग्रीशा ने देखा कि उसकी आँखों में सुबह की पीर अभी भी छायी हुई है। ‘‘ऐसे चीखते हो, मानो कहीं फँस गये हो। पाँच के बजाय हमारे पास पन्द्रह गाड़ियाँ होतीं तो ‘‘हुर्रा’’ चिल्ला लेते।’’ और लेना फिर बीज की मशीन के पास चली गयी।
पावेल किरीलोविच फिर आ गया। स्पष्ट था कि वह दाशा को कुछ सलाह देना चाहता था, लेकिन तभी दूर पर उसे एक विचित्र गाड़ी नजर आयी और वह आँखों पर छाया करके देखने लगा कि उसमें कौन आ रहा है।
गाड़ी कुछ नजदीक आ गयी तो देखा कि उसको ‘‘लाल हलवाले’’ फार्म का अध्यक्ष हाँक रहा है।
‘‘कहो भाई!’’ पावेल किरीलोविच ने आवाज लगायी। ‘‘शहर की क्या ताजी खबर है?’’
घोड़ा रुक गया। नुकीली दाढ़ी वाला एक चतुर आदमी रेलवे कर्मचारी जैसी टोपी पहने, टोंगें धनुषाकार लटकाये, गाड़ी के किनारे पर बैठा था। उसकी तेज आँखें लोमड़ी की तरह छोटी हो गयी थीं।
‘‘बड़ी-बड़ी खबरें हैं, कहाँ तक कहूँगा।’’ उस आदमी की आवाज में विचित्र प्रकार का जवान लहजा था, कुछ हद तक उसे बचकाना लहजा भी कह सकते हैं।
‘‘तुम्हारे यहाँ बुआई करने वाले लोग भी बड़े जीवट के हैं। क्या निकीफोर लोहारखाने में है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘मैं धुरे की कील बदलवाना चाहता हूँ। इसने मुझे तंग कर रखा है और अभी तो मुझे पूरे बीस मील और जाना है। पिछले हफ्ते ही मैंने बनवायी थी, लेकिन टूट गयी। ये हैं अपने काम के तरीके!’’
‘‘चले जाओ। निकीफोर तुम्हारे लिए नयी बना देगा।’’
रेलवे कर्मचारी जैसी टोपी पहने व्यक्ति ने क्लक की आवाज की ओर घोड़ा धीरे-धीरे चल दिया।
अध्यक्ष ने फिर पूछा: ‘‘लेकिन खबर क्या है?’’
‘‘उन्होंने बाजार के पास एक नया सिनेमा घर बना दिया है। लोगों के रहने के लिए तो मकान नहीं है, और हम लोग सिनेमा-घर बना रहे हैं। ये हैं अपने काम के तरीके! और देमेन्तियेव को निकाल दिया गया है।’’
‘‘निकाल दिया गया?’’ लेना चिल्लायी और उसकी नाक पर गुलाबी बूँदें झलक आयीं। ‘‘क्यों?’’
‘‘क्या पता? कुछ लोग कहते हैं कि वह इसलिए निकाला गया है कि उसने तुम्हारे फार्म के काम में दखलंदाजी की थी। उसे बिल्कुल निकाला नहीं गया है लेकिन अब उसे दफ्तर का काम दे दिया गया है। अब कुर्सी पर बैठता है और कागजों पर दस्तखत बनाता है। अपने काम में वह खूब होशियार है, इसलिए वे लोग उसे दफ्तर में चिपकाये हुए हैं। ये हैं अपने काम के तरीके!’’
लेना ने ‘‘लाल हलवाले’’ फार्म के अध्यक्ष को जाते हुए नहीं देखा और न पावेल किरीलोविच ही वहाँ से टला। एक के बाद एक घोड़े आते गये-वलेत, क्राल्का, जिप्सी, इगला। ग्रीशा कुछ चिल्ला रहा था। ट्रैक्टर खड़खड़ाता हुआ चला जा रहा था। लेकिन लेना को इन सबका कोई अहसास न था।
‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ मशीन की तरह बीज के डिब्बे में अनाज को समतल करते हुए लेना सोच रही थी। ‘‘प्योत्र मिखाइलोविच को अपने पद से हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने पावेल किरीलोविच से कहा था कि मुझे बीज दे दिया जाय। दूसरे शब्दों में, यह मेरी वजह से हुआ। लेकिन उसने हमारे फार्म को नुकसान पहुँचाया है क्या? हमारा प्रयोग क्या इतना मूर्खतापूर्ण है कि इसके लिए किसी को निकाल दिया जाए?... खैर, हम उन्हें दिखा देंगे। हम उन्हें बता देंगे कि प्योत्र मिखाइलोविच सही थे! ‘‘लेना की आँखें चमक उठीं।’’ हम देख लेंगे कि अन्त में बाजी किसके हाथ लहती है। अभी तो उन्होंने उसे मात दे दी है। लेकिन शरद ऋतु में वह उन्हें मात दे लेगा। और उस ‘‘उ उ उ उ उ उ उ उ’’ को भी।’’ उसने अपने चारों तरफ देखा। ट्रैक्टर खामोश खड़ा था। गाड़ियाँ दिखायी नहीं दे रही थीं। सूरज एक बादल के पीछे छिप गया था और खेत पर छाया पड़ रही थी।
‘‘हम लोग कितने धीमे हैं! ग्रीशा चिल्लाता रहता है, कुछ नहीं करता, बस शोर मचाता है। अगर हमारे पास कुछ घोड़े और होते तो हम आज ही सब काम निपटा देते। या अगर कार होती। लेकिन कार इस कीचड़ में न चल सकेगी।’’
अनीसिम सड़क पर प्रकट हुआ। वह अपनी गाड़ी के साथ-साथ चल रहा था और रास घोड़े की पीठ पर डाल दी थी। बोझा घसीटने के लिए घोड़ा जब जोर लगाता तो उस थके हुए जानवर का सिर कभी ऊपर और कभी नीचे हो उठता था। उसी क्षण खेत को धूप में डुबाते हुए सूरज निकल आया और लेना को यकायक प्रेरणा मिल गयी।
‘‘टैंकमैन, सुनो तो!’’ वह ड्राइवर के पास दौड़कर जा पहुँची और बोली। ‘‘हमें यह करना होगा। आज रात हम तुम्हारे ट्रैक्टर के साथ दस-गाड़ियाँ जोत देंगे और सुबह तक हमारा सारा बीज यहाँ, इस सड़क के किनारे आ जाएगा। यहाँ से बीज भरने के लिए दो घोड़े ही काफी होंगे। हम सारी रात काम करेंगे।’’
‘‘क्या बढ़िया बात निकाली है?’’ ट्रैक्टर ड्राइवर ने ताना दिया। ‘‘गाड़ियाँ ढोने के लिए तुम्हें ट्रैक्टर कौन इस्तेमाल करने देगा?’’
‘‘अगर तुम नहीं करना चाहते, तो किसी और से करा लेंगे। ग्रीशा, तुम ट्रैक्टर चला लेते हो, क्यों?’’
‘‘चला सकता हूँ।’’
‘‘तो आज रात इसे गाँव वापस ले चलो और इस टैंकमैन को हम लोहारखाने में बन्द कर देंगे, ताकि यह अपना मुँह बन्द रखे।’’
‘‘चच्-चच्,’’ हैरान ड्राइवर ने ग्रीशा के चौड़े कन्धों की तरफ नजर बचाकर देखते हुए कहा।
16
उन्होंने उसी रात लदाई शुरू कर दी। और उन्हें ट्रैक्टर ड्राइवर को लोहारखाने में बन्द भी नहीं करना पड़ा। टैªक्टर को वह स्वयं गाँव ले गया और उसमें गाड़ियों को जोता और बोरे ढोने तक में सहायता की। अँधेरा घना था। लेना गैराज गयी, एक लॉरी-ड्राइवर को जगाया, उसे एक कार अनाज-गोदाम तक लाने के लिए मजबूर किया और कार की सामनेवाली बत्तियाँ खोलकर वहाँ खड़ा कर दिया। दाशा को छोड़कर, ब्रिगेड के बाकी सभी सदस्यों ने लदायी में मदद की। गोदाम की दीवालों पर बड़ी-बड़ी मानवीय छायाएँ आतीं-जातीं दिखायी दे रही थीं। अन्त में सात गाड़ियों की एक ट्रेन गाँव से गुजर कर खेतों पर पहुँच गयी और आश्चर्यचकित गाँववाले, शोरगुल से जागकर, खिड़कियों में खड़े ताकते रहे। लेना ट्रैक्टर के साथ-साथ दौड़ रही थी, उसका रूमाल सिर पर से उड़ गया था और पीठ पर खाली थेले की तरह लटक रहा था।
17
ग्रीष्म की सुहानी रातों में, जब घरों में रोशनियाँ गुल हो जाती हैं और माता-पिता बड़बड़ाते हुए लेट जाते हैं, तब गाँव के लड़के-लड़कियाँ किसी सर्वप्रिय स्थान पर जमा होते हैं।
मरीया तिखोनोवना के घर के पास एक बड़ा लट्ठा पड़ा हुआ था जो साल-दर-साल धूप में पड़ा रहने के कारण पूरी तरह सूख गया था। उसका रंग रुपहली चमक लिये मटमैला सा था; जहाँ कभी शाखाएँ थीं, वहाँ गाँठें पड़ी हुई थीं और दरारें इस खूबसूरती से पड़ी हुई थी मानों किसी ने समझ-बूझकर उन्हें बनाया हो। उसका एक चौथाई भाग जमीन में गड़ा हुआ था। इस लट्ठे और मरीया तिखोनोवना के मकान के बीच की जगह में घास की एक पत्ती भी नहीं उग सकी थी, क्योंकि नाच के जूतों और स्लीपरों से वह जमीन लोहे की तरह सख्त हो गयी थी। उस लट्ठे और मकान के बगल में बनायी गयी बेंच के नीचे से कुछ धूल भरे जंगली पौधे कातर भाव से झाँक रहे थे। इस जगह को चार बड़े भोज वृक्षों से घेर दिया गया, जिनके तले लताओं से ढके थे और यह चमत्कार की बात थी कि फासिस्ट विध्वंस से यह सब बच गये।
बाईस मई को बहुत रात गये, गाँव के युवक-युवतियाँ इस स्थल पर जमा हुए। कुछ सर्दी थी। कभी-कभी हवा का झौंका भोज-वृक्ष की पत्तियों को खड़खड़ा जाता और फिर एक क्षण बाद दूर के बगीचे में उसके कटकट-फिरने के स्वर सुनायी देने लगते।
यकायक किसी ने माचिस जलायी ओर अँधेरे में मुट्ठी भर रोशनी प्रकट हो गयी। लूश्का ग्रीशा से छिटककर हट गयी, मानो किसी ने डंक मार दिया हो; वह जल्दी-जल्दी अपने सिर से रूमाल बाँधने लगी और पहचाने न जानेवाले चेहरों की चमकती हुई आँखें तथा उनके होंठों के बीच दबी हुई सिगरेटें उस उजाले की तरफ घूम गयीं।
‘‘लेकिन हम लोग थक गये हैं...’’ ग्रीशा का स्वर गूँजा।
‘‘थक गये हो! अभी तो बीस दिन भी नहीं बीते हैं और तुम अभी ही थक गये हो। इस तरह हम नहीं चल सकते,’’ लेना ने कहा। ‘‘दाशा ने हमें क्या सिखाया है? कि सबसे जरूरी चीज है निराई करना। लूश्का के खेत में इतनी घासपात है कि तुम्हें ऐसा लगेगा कि उसने बीज के बजाय घास बोयी है। मेरा ख्याल है कि हमें लूश्का के प्लाट को उससे ले लेना चाहिए।’’
‘‘मैं नहीं छोड़ूँगी।’’
‘‘क्या! तो तुम वक्त पर निराई क्यों नहीं करतीं? दो या तीन दिन में गेहूँ ऊँचा हो जाएगा और तब मैं तुम्हें उसे कुचलते हुए घूमने नहीं दूँगी।’’
‘‘हम हाथ से निराई नहीं कर सकते। इस तरह कभी खत्म नहीं होगी।’’
‘‘तो अपने दाँतों से करो या मन चाहे जैसे करो। अगर तुम बिल्कुल नहीं कर सकतीं, तो मत करो। जरा ग्रीशा का प्लाट देखो-तालाब की तरह साफ है। उसमें एक भी घासपात नहीं है। तुम्हें शर्म नहीं आती लूश्का? और वह तो लड़का है।’’
‘‘चलने भी दो,’’ ग्रीशा भुनभुनाया। ‘‘उसको मैं सम्भाल दूँगा।’’
‘‘अच्छा तुम करोगे, तुम?’’ लूश्का चिल्लायी। ‘‘तुम हाथ मत लगाना!’’
लेना के ठीक सिर के ऊपर एक खिड़की खुली और उसमें से पावेल किरीलोविच का अस्त-व्यस्त सिर प्रकट हुआ।
‘‘शैतानो! तुम लोग किसी को जरा आराम भी न करने दोगे?’’ उसने नींद की खुरखरी आवाज में कहा।
‘‘हम लोग कोम्सोमोल की मींटिग कर रहे हैं,’’ लेना ने कहा। ‘‘विघ्न मत डालो!’’
‘‘मैं तुम्हें सुबह पाँच बजे ही बिस्तरे से खींच लूँगा, तब तुम्हें मीटिंग का मजा मिल जाएगा!’’
‘‘हम लोग खुद सुबह चार बजे उठेंगे।’’
पावेल किरीलोविच ने इसके माकूल जवाब के लिए दिमाग दौड़ाया, लेकिन उसे बड़ी नींद सता रही थी। उसने जंभाई ली और खिड़की तड़ाक से बन्द कर दी।
‘‘समझता था कि हमें डरा देगा।’’ लेना ने कहा। ‘‘तो फिर मैं लूश्का का प्लाट लिए लेती हूँ।’’
लूश्का ने ठुमकते हुए कहा: ‘‘तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? तुम्हारे पास, वैसे भी सबसे खराब प्लाट है। उसमें हमेशा घासपात रहती है। किसी से पूछ लो। मेरे बगल में नास्त्या का प्लाट है और वह भी खूब घासपात से भरा है।’’
‘‘अभी हम नास्त्या की चर्चा नहीं कर रहे हैं। लेकिन तुम्हारा प्लाट तो हमें ले ही लेना होगा। तुम्हें तो देना ही नहीं चाहिए था।’’
‘‘मैं उसे नहीं छोडूँगी।’’
‘‘अच्छा भाई, हम लोग वोट ले लें,’’ अँधेरे में ग्रीशा की आवाज आयी।
सभी हँस पड़े! खिड़की एक झटके से दुबारा खुली।
‘‘सभी लोग इसी दम यहाँ से न हटे, तो मैं तुम्हारी मींटिग पर घड़ा भर पानी डाल दूँगा,’’ पावेल किरीलोविच ने कहा और उसके शब्दों का समर्थन धातु के बर्तन की खड़खड़ाहट ने किया।
युवक-युवतियाँ मौन हो गये। लेना पंजों के बल बेंच से उठकर लट्ठे पर जा बैठी। खुली खिड़की में पावेल किरीलोविच कुछ देर तक खड़ा रहा, लेकिन एक भी स्वर न बोला। एक और जँभाई लेकर वह हट गया।
लेना ने कानाफूसी की: ‘‘जरा खामोश रहो। और ग्रीशा, अब कोई मजाक न छेड़ना। मजाक की कोई बात नहीं है।’’
‘‘मैं और मजाक? मैंने सिर्फ यही कहा था कि मसले पर वोट ले लिया जाये!’’
‘‘सब कुछ बिगाड़ने पर तुले हो?’’ लेना ने शुरू किया ‘‘इतने काम के बाद, इतने काम के बाद...’’
पास में किसी की आहट सुनाई दी।
‘‘ये कौन है?’’ नास्त्या ने पूछा।
‘‘भाँपना मुश्किल नहीं है।’’ ग्रीशा ने कहा। ‘‘उसके पेट्रोल की गन्ध मील दूर से मिल जाती है।’’
‘‘क्या मैं शामिल हो सकता हूँ?’’ ट्रैक्टर-ड्राइवर ने पूछा।
‘‘हाँ, बीच में मत बोलना। यह कोई प्रीत-भोज नहीं है।’’ लेना ने जवाब दिया और अपनी बात फिर शुरू की: ‘‘इतना काम करने के बाद, क्या तुम लोग इसे मँझधार में छोड़ देना चाहते हो?’’
‘‘कौन बोल रहा है? लेना, तुम? मैं तुम्हारे पास बैठ सकता हूँ?’’
‘‘बैठ जाओ, लेकिन जरा उधर खिसको... और उधर... मुझे तुम्हारे ग्रीज की गन्ध नहीं चाहिए। हाँ, तो सब लोग सुनो...’’
‘‘तुम लोग इतने गम्भीर क्यों हो?’’ ट्रैक्टर-ड्राइवर ने टोक दिया। ‘‘क्या तुम लोग अपना दिमाग काफी नहीं खपा चुके? चलो, एक गीत हो जाये।’’
‘‘तुम जरा उधर को खिसको दोस्त,’’ ग्रीशा ने कहा।
‘‘मुझसे पिण्ड छुड़ाना चाहते हो?’’
‘‘ऐसी बात तो नहीं, लेकिन, अगर तुमने मुँह बन्द न रखा, तो मैं ऐसा घूँसा जमाऊँगा कि तुम हवा होकर सीधे अपने मशीन-ट्रैक्टर स्टेशन वापस पहुँच जाओगे।’’
‘‘वाह, वाह! और कहीं मैंने तुम्हीं पर जमा दिया तो?’’
यह देखकर कि इस तरह झगड़ा बढ़ जाएगा, लेना न शीघ्रता से कहा: ‘‘रहने दो ग्रीशा। एक गीत क्यों न हो जाये? टैंकमैन, तुम उधर खिड़की के नीचे बैठो और गाने की अगुआई करो।’’
‘‘अरे नहीं, मैं तो तुम्हारे पास बैठूँगा।’’
‘‘तो हम लोग नहीं गायेंगे। उधर जाकर बैठो। चलो, मैं तुम्हें सीट तक पहुँचा दूँ।’’
‘‘ट्रैक्टर-ड्राइवर खिड़की के नीचेवाली सीट पर जा बैठा और दूसरे लोग यह चर्चा करने लगे कि कौन-सा गीत गया जाये।
‘‘रोवन वृक्ष,’’ नास्त्या ने सुझाव दिया।
‘‘बहुत करुण है,’’ ग्रीशा ने एक-एक के कान पर खिखियाते हुए कहा। ‘‘आओ हम लोग पानी ढोनेवालों का गीत गायें; याद है?’’
‘‘किसे न होगा? ‘‘वोल्गा-वोल्गा’’ फिल्म का है। तुम लोग एक गीत नहीं बता सकते, जो मुझे न मालूम हो,’’ ट्रैक्टर-ड्राइवर ने कहा। ‘‘और न कोई आपेरा बता सकते हो।’’
‘‘जरा बढ़िया ढंग से और जोर से,’’ ग्रीशा ने कहा। उसे अचानक खाँसी का दौरा-सा चल गया।
‘‘मैंने इसका गाना सुना है। उसे तुम्हारे सिखाने की जरूतर नहीं है,’’ लेना ने कहा।
ट्रैक्टर-ड्राइवर ने गला साफ किया, बेंच पर जरा और आराम से जम गया और ये हिदायतें दीं:
‘‘पहली पंक्तियाँ मैं खुद गाऊँगा और तुम लोग चुप रहना और जब मैं त्रा-ला-ला-ला पर आ जाऊँगा तो तुम लोग भी साथ देने लगना। होशियार?’’
‘‘मुझे अचरज की लगती बात
कि कैसे मुझ जैसा इंसान...’’
खिड़की घड़ाक से खुल गयी और एक घड़ा भर पानी गीले चिथड़े की तरह जमीन पर आ गिरा।
‘‘लो मजा चखो,’’ पावेल किरीलोविच ने अँधेरे में घूरते और किसी को भी न देख पाते हुए कहा। ‘‘अब गाओ तुम लोग अपना कोरस।’’
एक कहकहा गुँज उठा। कहीं दूर कोई कुत्ता भौंकने लगा।
पहले तो किंकर्त्तव्यविमूढ़ ट्रैक्टर-ड्राइवर ने घबरा कर चारों ओर देखा और फिर यह देखकर ग्रीशा को आश्चर्य हुआ कि वह भी दबी-सी और अपराधी जैसी हँसी हँस दिया।
‘‘पावेल किरीलोविच, तुम्हें अपने पर शर्म आना चाहिए,’’ लेना ने कहा। ‘‘हम लोग यहाँ काम की बात करने जमा हुए हैं।’’
‘‘क्या बढ़िया काम है! तुम्हारी चख-चख गाँव के दूसरे छोर तक सुनायी देती है।’’
‘‘हम नहीं, यह टैंकमैन कर रहा है। हम लोग अपने खेत के बारे में बात कर रहे हैं। उसमें फिर घासपात भर गया है।’’
‘‘उस पर तुम लोग कल भी बात कर सकते हो। जाओ सोओ, और जितनी तेजी से हो सके, यहाँ से भागो। वह घासपात कैसा है?’’
‘‘जंगली जई है, पावेल किरीलोविच, और हम लोग उसे अपने हाथों उखाड़ नहीं पायेंगे।’’
‘‘तुम नहीं उखाड़ पाओगे, क्यों नहीं? मैं तुम लोगों को उखाड़ दूँगा! कल ही देखो कि इस बार एक भी घासपात न रह जाए। मैं खुद देखने के लिए आऊँगा।’’
‘‘तुम इतना शोर क्यों मचा रहे हो, पावेल किरीलोविच?’’ एक आवाज घर के अन्दर से आयी। ‘‘क्या मामला है?’’
‘‘कोम्सोमोल के लड़के-लड़कियों से मैं फिर लड़ रहा हूँ मरीया तिखोनोवना।’’
फर्श पर किसी के नंगे पैरों की चाप पड़ने की आवाज आयी और फिर मरीया तिखोनोवना खिड़की पर प्रकट हुई।
‘‘कौन है? कोई नहीं। मेरी कसम, पावेल, तुम जरूर सपना देख रहे थे।’’
‘‘कोई नहीं है? उनकी पूरी फौज वहाँ बैठी हुई है।’’
कोई हिला-डुला तक नहीं। नौजवान लोग मरीया तिखोनोवना से बड़ा डरते थे।
‘‘तुम जरूर सपना देख रहे हो, पावेल। एक चिड़िया भी तो नजर नहीं आती। जाओ, सो जाओ। बेचारा, दिन भर के काम से कैसा थक जाता है।’’
‘‘मैं कहता हूँ, वे सब वहीं बैठे हैं। वे छिप रहे हैं। उन्हें दाशा के खेत में घासपात मिला है।’’
‘‘तो क्या हुआ? मशीन से उन्हें उखाड़ दिया जाएगा!’’
‘‘क्या सचमुच?’’ एक भोज वृक्ष बोल उठा। ‘‘और साथ में बीज भी सब उखड़ जाएगा।’’
‘‘वह हमारी होड़ में है।’’ एक दूसरे भोज वृक्ष ने ग्रीशा की आवाज में कहा।
‘‘इसीलिए हमें ऐसी बुरी सलाह दे रही है।’’
‘‘तुम लोग कब समझदार बनोगे?’’ मरीया तिखोनोवना ने आह भरी। ‘‘जमीन क्या हम सबकी नहीं है? खेत मेरा है या तुम्हारा, इसमें मेरे लिए क्या फर्क पड़ता है? गेहूँ जब उग आता है तब उस पर किसी का नाम नहीं लिखा रहता।’’
‘‘तुम क्या सुझाव दे रही थीं?’’ पावेल किरीलोविच ने पूछा! ‘‘कल्टीवेटर इस्तेमाल किया जाए?’’
‘‘उस मशीन को, जिसमें पीछे कन्धे की तरह दाँत होते हैं, तुम क्या कहते हो, मैं नहीं जानती। बीज, करीब साढ़े तीन इंच गहरा बोया गया है और घासपात की जड़ें पाँच या सात इंच तक गहरी होती हैं। गेहूँ को छूए बिना घासपात निकाल देने के लिए बड़ी होशियारी की जरूरत होगी।’’
‘‘इसमें खतरा है,’’ पावेल किरीलोविच ने कहा।
‘‘हाँ, है। लेकिन कुछ तो करना ही पड़ेगा। मैं कल वहाँ गयी थी और खेत देख आयी थी। अपने हाथों से इस घासपात को तुम कभी न निकाल सकोगे।’’
‘‘यही तो मैं कहती थी,’’ लूश्का बोल उठी, ‘‘लेकिन ये लोग मेरी सुनते ही नहीं।’’
‘‘सब लोग सुनो,’’ पावेल किरीलोविच चिल्लाया।
नौजवान दल खामोश हो गया।
‘‘पास आ जाओ। डरो नहीं।’’ पावेल किरीलोविच ने कहा। ‘‘कल हम लोग इसे कर देंखे। अगर कुछ बिगड़ेगा, तो जवाब मैं दे लूँगा।’’
युवकों ने आपस में इस पर विचार किया और घर चले गये। उन्हें शक था कि कल्टीवेटर कुछ काम दे सकता है।
पावेल किरीलोविच वापस चारपाई पर चला गया, लेकिन मरीया तिखोनोवना खिड़की के सामने खड़ी रही। उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई अभी भी उस लट्ठे पर बैठा है, हालाँकि उधर नदी में मेढ़कों के टर्राने और भोज वृक्ष की पत्तियों के खड़खड़ाने के अलावा कोई और आवाज नहीं सुनायी दे रही थी। मरीया तिखोनोवना ने आने हाथों से क्रास बनाया और बड़ी सावधानी से, एक बार में एक तरफ का पल्ला बन्द करते हुए, खिड़की बन्द कर दी। इसके बाद वह अपनी गाय को देखने के लिए टपरे में चली गयी। एक बार उसकी नींद टूट गयी, तो फिर अब रात भर नींद नहीं आयेगी।
उस लट्ठे पर लेना बैठी हुई थी।
उसने सोचा: ‘‘मुझे दाशा से बात कर लेना चाहिए। इस उपाय से कुछ भला न होगा। प्योत्र मिखाइलोविच से भी बात कर लेना बेहतर होगा। वह क्यों नहीं आ जाता? वह इतवार को आ सकता था। वह चिट्ठी ही क्यों नहीं भेज देता? कम से कम एक छोटा-सा पत्र तो लिख ही सकता था। क्या हम लोगों को भूल गया है? या हम लोग क्या कर रहे हैं, उसकी उसे चिन्ता नहीं है? या उसे शर्म आती है, क्योंकि वह निकाल दिया गया है? इस क्षण वह कहाँ होगा? सो रहा होगा? काम करता होगा? या मेरी तरह उस पतले से, नन्हे से वक्र चाँद की तरफ ताक रहा होगा?’’
18
24 मई को उन्होंने खेत पर कल्टीवेटर चला दिया। दूसरे दिन घासपात के पौधे जमीन से लग गये और अगले दिन मुरझा गये और सूख गये। और गेहूँ काल्पनातीत गति से बढ़ने लगा।
जितना ही वह ऊँचा उठता जाता, उतने ही अधिक दूसरे ब्रिगेडों के किसान उसे देखने के लिए आते। यकायक ऐसे आश्चर्यजनक गेहूँ को उगाने में हाथ बँटाने के लिए हर आदमी बड़ा उत्सुक दिखायी देने लगा।
मरीया तिखोनोवना अक्सर आती थी और बड़े काम की सलाह देती थी।
लेकिन लेना उस माँ की तरह ईर्ष्यालु और असंतुष्ट हो उठती थी, जिसको कोई दूसरी औरत यह सलाह दे बैठे कि उसको अपने लाड़ले सपूत का लालन-पालन किस तरह करना चाहिए। वह अपने कोम्सोमोल के साथियों और अध्यक्ष के अलावा किसी को अपनी सहायता न करने देती थी-मिट्टी तक न छूने देती थी और किसी की वालंटियरी सहायता लेने से उसे घृणा थी।
जून में बालें फूलने लगीं।
मशीन-ट्रैक्टर स्टेशन से बड़ा कृषि-विशेषज्ञ आया और जब उसने हर बाल में गेहूँ के दानों की संख्या गिन ली तो आश्चर्य से साँस रोक कर रह गया। मरीया तिखोनोवना ईर्ष्यालु हो उठी थी: इसे बूढ़ा अनीसिम भी देख रहा था।
लेकिन लेना ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। अक्सर जब काम के घण्टे खत्म हो जाते और सभी लोग गाँव लौट जाते, तो वह खेत में ही रह जाती और रात घिरने तक, गेहूँ के इस सुनहरे समुद्र की तरफ अपलक निहारती वहाँ निश्चल खड़ी रहती।
ऐसे समय में उसके मन में विचार उठते? वह सोचती कि अगले वर्ष हमारा सामूहिक फार्म सभी खेतों में बुआई का यही तरीका इस्तेमाल करेगा; वह सोचती कि मुझे उपज बढ़ाने के और भी तरीके खोज निकालने चाहिए; वह सोचती कि प्योत्र मिखाइलोविच इस सफलता के विषय में सुनकर कितने प्रसन्न होंगे, वह लेना को धन्यवाद देंगे और फिर उन्हें सारे जिले का सबसे बड़ा कृषि-विशेषज्ञ बना दिया जाएगा।
वह आनन्दपूर्वक इन कल्पनाओं में लीन रहती और उसे इसका जरा भी मान न था कि इस तरुण और कोमल गेहूँ के ऊपर गाज गिरनेवाली है।
19
आधी रात गये लेना की नींद टूट गयी। कमरे में घुटन थी। उसने खिड़की खोल दी। पर्दा, खिड़की की सिल पर रखे हुए डिब्बे को गिरा कर, छत छूता हुआ उड़ने लगा।
उधर खेतों की तरफ, खलिहान के ऊपर झुके हुए बादल उड़ते चले जा रहे थे। पड़ोस का घर, उसकी बाँस की चहारदीवारी और एक मात्र एस्पेन का पौधा धुंधले अंधकार में एकाकार हो गये थे। हवा के थपेड़े हाते को पार कर एस्पेन की झाड़ियों में इस तरह बलबला रहे थे, मानों वहाँ कोई चीज उबल रही हो।
तूफान घिर रहा था।
चन्द मिनटों में हवा शान्त हो गयी और लेना को जागी हुई मुर्गियों के मन्द-मन्द, नींद-भरी कू-कू-कू सुनायी देने लगी। तभी उसे वर्षा आती हुई सुनायी दी। लो, किसी दूर के खलिहान पर उसकी टप-टप होने लगी, अब उसने सड़क पार कर ली, अब वह सीढ़ियों के करीब आ गयी, और अब पूरे ताव में आ गयी। वर्षा ने गलगल करना शुरू कर दिया, फिर चाबुक की फटकार की तरह कुल्ली कर दी और ओसारे के पास थप-थप चोट करने लगी। खिड़की में से गीली मिट्टी की गन्ध उठी और तापमान गिर गया।
यकायक एक कौंध ने खड़िया से सफेद एस्पेन और उसके नीचे खड़िया-सी सफेद घास को और तिरछी, तनी हुई, वर्षा की चादर को जनमग कर दिया। फिर सब-कुछ अँधेरे में डूब गया और गर्जना धीरे-धीरे खलिहानों के पीछे लुढ़कने लगी।
आँधी चीखने लगी। पानी की गर्जना और भल-भल के बीच लेना को एक ऐसे स्वर का अनुभव हुआ जो बूँदों की बौछार के समान तो नहीं था। वह इस तरह का सख्त और सूखा ठुमका था, मानो कोई पोरों की हड्डियों से कोई दरवाजा खटखटा रहा हो। लेना ने खिड़की से झाँका। ओले। ओलों की सफेद गेंदें ओसारे पर पड़ रही थीं और छिटक कर इस तरह दूर जा गिरती थीं मानो वह रबर की बनी हों, और फिर इस तरह ढेर बन कर जमा हो जाती थीं मानो कीड़े-मकोड़े हों।
‘‘माँ!’’ लेना चिल्लायी।
‘‘तू सोयी नहीं?’’ पेलगेया मार्कावना ने सिर उठाकर पूछा। ‘‘क्या बात है?’’
‘‘उठ तो माँ! देख, ओले गिर रहे हैं।’’
पेलगेया मार्कोवना उछलकर उठ बैठी, खिड़की की तरफ दौड़ पड़ी, आवारा पर्दे को थाम लिया और आसमान की तरफ ताकती हुई खड़ी रह गयी।
‘‘माँ, अब क्या हो?’’
‘‘पागल न बनो। इसे क्या ओला कहते हैं? अरे, ये ता मटर से भी बड़े नहीं हैं। जरा आसमान की तरफ देख खुल रहा है। जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा। और ओले वाले बादल एक तरफ को हैं। उनसे गेहूँ को नुकसान नहीं होगा।’’ बिना हिले-डुले, आसमान ताकती हुई, पेलगेया मार्कोवना बड़ी देर तक खिड़की के पास खड़ी रही और इस तरह खड़े हुए जितना ही समय बीतता जाता उतनी ही लेना की घबराहट बढ़ती जा रही थी।
‘‘मैं जा रही हूँ, माँ!’’ अन्त में वह बोल उठी।
‘‘ऐसे मौसम में?’’
‘‘मैं अब बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे जाना ही होगा और खुद देखना होगा।’’ और लेना जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगी।
इस बीच ओले भी और बड़े, और बड़े होने लगे। कुछ तो चिड़िया के अण्डे के बराबर थे।
लेना अपना रूमाल लपेट रही थी कि ओसारे में सीढ़ियों पर किसी की पदचाप सुनायी दी। दरवाजा खोला गया और भेड़ की खाल का कोट ओढ़े हुए अनीसिम ने प्रवेश किया।
‘‘लेना है?’’ अपना कोट कोने में फेंकते हुए उसने पूछा। ‘‘लेना, इसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? एह, ऐसी बात कैसे हो गयी? क्या तुम खेत देख आयी हो?’’
‘‘मैं जा रही हूँ।’’
‘‘मुझे भी साथ ले चलो। ग्रीशा चला गया लेकिन मैं उसका साथ न पकड़ सका। और मुझे अकेले जाते डर लगता है-इस आँधी-तूफान से मुझे चिढ़ है।’’
‘‘ठहरो, बाबा,’’ पेलगेया मार्को वना ने कहा। ‘‘थोड़ी देर में सब शान्त हो जाएगा।’’
‘‘मैं कैसे रुक सकता हूँ? शायद हम लोग कोई रास्ता निकाल सकें,’’ अनीसिम ने हताश भाव से हाथ झुलाते हुए कहा। ‘‘ओलों को रोकने के लिए, पहले लोग खिड़कियों से बाहर झाडू फेंका करते थे।’’ उसने थोड़ी सी सूखी, आनन्दहीन हँसी हँस दी। ‘‘उन दिनों लोगों को कोई खास ज्ञान नहीं था।’’
बाहर घोड़ों की टाप सुनायी दी। काठी से कोई कूदा और जल्दी-जल्दी सीढ़ियों पर चढ़ने लगा।
अनीसिम ने आहट पर कान दिया और कहा: ‘‘अध्यक्ष है।’’
और सचमुच पावेल किरीलोविच ने कमरे में प्रवेश किया। वह नीचे से ऊपर तक सराबोर था और उसकी चाल के साथ पतलून के पाँयचे किरमिच की तरह फट-फट कर रहे थे।
‘‘तुम अभी तक सोयी क्यों नहीं?’’ उसने गुस्से से भर कर पूछा। ‘‘लेना, तुम अभी तक सोयी क्यों नहीं?’’
‘‘मैं खेत तक जा रही हूँ।’’
‘‘मैं इजाजत नहीं देता,’’ पावेल किरीलोविच ने अपने बूटों पर नजर गड़ाये हुआ कहा। ‘‘इसे मत जाने दो, पेलगेया।’’
‘‘मैं क्या रोक सकती हूँ।’’
‘‘मैं कहता हूँ, इसे मत जाने दो।’’
लेना चीख उठी: ‘‘क्यों नहीं पावेल किरीलोविच। क्या ओलों ने उसे ढेर कर दिया है?’’
अध्यक्ष ने अपनी आँखें उठायीं।
‘‘चारपाई पर जा लेटो, लेना,’’ उसने अन्त में कहा। ‘‘जाओ लेटो, मेरी बच्ची। मैं अभी वहाँ नहीं गया हूँ। अब जा रहा हूँ और तुम्हें भी बता जाऊँगा। हो सकता है, आँधी ने उसे छूआ तक न हो। मगर तुम जाओ, लेट जाओ। तुम क्यों भीगने जाती हो? और अनीसिम तुम भी जाओ। तुम दोनों का दिमाग खराब हो गया है।’’ पावेल किरीलोविच ने जल्दी से पीठ फेरी और बाहर चला गया। उसके पीछे-पीछे लेना भी बाहर दौड़ी और पेलगेया मार्कोवना अपनी बेटी के पीछे दौड़ गयी।
ओलों की चोट से काँपता हुआ वलेत ओसारे में खड़ा हुआ था। यकायक छलाँग मारकर घोड़ा एक तरफ हट गया। एक खिड़की से झाडू बाहर आया और एक पोखरी में फट से गिर गया।
हवा फिर तेज हुई और मकानों की दीवारों पर वर्षा की झड़ी की चोटें पड़ने लगीं।
‘‘तुम क्यों बाहर निकलीं?’’ पावेल किरीलोविच ने वलेत के बाल पकड़ते हुए पूछा और उछल कर काठी पर चढ़ गया। ‘‘वापस जाओ।’’
लेना ने पीछे हटकर दरवाले में पैर रखते हुए पुकारा: ‘‘कितनी जल्दी आओगे?’’
‘‘बस, दस मिनट में।’’
अध्यक्ष ने घोड़े के गीले पुट्ठे पर थप्पड़ मारा और उड़ गया।
लेना और पेलगेया मार्कोवना दोनों घर के अन्दर चली गयीं, जहाँ उन्होंने अनीसिम को अपराधी जैसा चेहरा बनाये हुए चूल्हे के पास बैठे देखा।
‘‘वह तुम्हें अपने साथ नहीं ले गया?’’ उसने लेना से पूछा।
‘‘वह अभी लौट आएगा और हमें सारे हालचाल बता जाएगा।’’
सफर करने से पहले रूसी जिस तरह खामोश होकर बैठ जाते हैं, उसी तरह वे सब भी मौन बैठे थे। पाँच, दस, पन्द्रह मिनट बीते; उनके चेहरों पर बिजली की पीली रोशनी खिलवाड़ करके चली जाती थी और बाहर तूफान गरज रहा था।
पावेल किरीलोविच नहीं लौटा।
आधा घण्टा होते-होते लेना का धैर्य टूट गया। उसने फिर अपने कपड़े पहन लिये और रूमाल लपेट लिया।
‘‘सुनो, कोई आ रहा है क्या?’’ पेलेगेया मार्कोवना ने पूछा।
लेना खिड़की की तरफ दौड़ीं फुहार अभी भी गिर रही थी।
पावेल किरीलोविच वलेत पर सवार बीच सड़के में चला आ रहा था। खिड़की पर एक नजर डाले बिना ही वह लेना के घर को भी पार कर गया और शीघ्र ही कुहरे में समा गया।
‘‘सब खत्म हो गया, माँ, सब खत्म हो गया!’’ लेना रो पड़ी और चारपाई पर गिरी।
20
ग्रीष्म का खुला हुआ दिन। अनीसिम अपनी झोंपड़ी से निकला और आँखें मिचमिचा कर मेद्वेदित्सा नदी की तरफ देखने लगा।
धूप में नदी चमचमा रही थी।
बैंच पर बैठा हुआ स्टबी डलिया में से झरबेरियाँ चुन-चुन कर खा रहा था। झरबेरी के रस से उसकी उँगलियाँ रंग गयी थी और उन पर झरबेरी की छोटी-छोटी पत्तियाँ चिपक गयी थीं जो सितारों सी चमक रही थीं।
‘‘बढ़िया हैं?’’ अनीसिम ने पूछा।
‘‘वेलीकि लूकि की झरबेरियाँ अच्छी होती हैं,’’ स्टबी ने जवाब दिया।
‘‘मुझे न बताओ। तुम्हारे वेलीकि लूकि की झरबेरियों को भी मैं जानता हूँ। जरा हमारी रसभरियों को चख कर देखना। ऐसी रसभरियाँ, खासतौर से उस जगह की, जहाँ चीड़ के दरख्त अभी गिराये गये हैं, वैसी रसभरियाँ कहीं ढ़ूँढ़े भी नहीं मिलेंगी। बड़ी-बड़ी मोटी-मोटी रसभरियाँ। भालू इन्हें बहुत पसन्द करते हैं।’’
‘‘बाबा, नाव के लिए कोई आवाज लगा रहा है।’’ स्टबी न कहा।
‘‘रसभरी की झाड़ी के पास भालू इंसान की तरह बैठ जाता है। वह सब रसभरियाँ नोच लेता है और पत्तियाँ थूक देता है...। तुम ठीक कहते हो; ऐसा लगता है, कोई बुला रहा है।’’
अनीसिम दौड़कर नाव के पास पहुँचा, धार पार की और शीघ्र ही देमेन्तियेव को उसकी घोड़ा-गाड़ी समेत लेकर वापस लौट आया।
नाव को रोकते हुए अनीसिम ने कहा: ‘‘तुम तो बहुत दिनों से हमें भूल गये, प्योत्र मिखाइलोविच। और पिछले हफ्ते हम लोग बुरी मुसीबत में फँस गये थे।’’
‘‘मुझे मालूम है। मैंने सुना था। लेकिन मैं आ ही न सका। मैं दूसरे जिले में था-कुछ पिछड़े हुए फार्मों की जाँच करने भेजा गया था।’’
‘‘तो यह बात थी। और जरा यहाँ तो देखो। लोग कहते थे कि तुम... तुम.. मैं कैसे बताऊँ?’’
‘‘कि मुझे निकाल दिया गया है?’’
‘‘इतना तो नहीं, लेकिन हाँ कुछ ऐसी ही बात थी।’’
‘‘उन्होंने कोशिश तो की थी। तुम्हारी लेना के बारे में मेरा एक व्यक्ति से झगड़ा हो गया था। लेकिन हुआ यह कि वह निकाल दिया गया और मैं बना रहा।’’
‘‘शुक्र है खुदा का।’’
प्योत्र मिखाइलोविच ने घोड़े को किनारे पर चढ़ाया और जब वह ऊपर चढ़ गया तो लगाम खींच दी।
‘‘और लोगों का क्या हालचाल है? वही पहले जैसा?’’
‘‘लेना? वहीं पहले जैसी है।’’
‘‘लेना ही क्यों? मैं तो सभी लोगों के बारे में पूछ रहा हूँ।’’ प्योत्र मिखाइलोविच ने कुछ झेंप कर कहा, ‘‘तुम्हारे अध्यक्ष के क्या हालचाल हैं और मरीया तिखोनोवना कैसी है?’’
लेकिन अनीसिम कहता ही गया: ‘‘लेना आज कल किसी के साथ दोस्ती नहीं रखती। और अब बिल्कुल गम्भीर हो गयी है। उसके दिमाग पर शायद कोई चीज छायी रहती है। क्या उसे बुलवा दूँ?’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’
‘‘लड़के!’’ अनीसिम ने स्टबी से कहा। ‘‘जोरिना के घर तो जा भागकर और कह आ कि लेना से मिलने के लिए जिला दफ्तर से कोई आया है।’’
स्टबी दौड़ गया।
प्योत्र मिखाइलोविच ने कहा: ‘‘वह आएगी नहीं।’’
‘‘हाँ, आएगी। कोई बहाना नहीं बना सकती। लाओ, मैं यहाँ घोड़ा बाँध दूँ। इसको झटका क्यों दे रहे हो? बिना मतलब उसकी रास को झटके नहीं देना चाहिए।’’
देमेनितयेव कहीं दूर ताक रहा था। पिछले वर्ष की अपेक्षा यह शोमुश्का ग्राम कितना बदल गया है! खण्डहरों की जगह पर, टट्टर की चहारदीवारी से घिरे हुए नये मकान बन गये हैं, जिनके सामने बागीचे हैं, चहारदीवारी के किनारे रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं, जहाँ कल तक घासपात भरी हुई थी। लम्बे-लम्बे खम्भों में चिड़ियों के अनगिनत बसेरे बने हुए हैं। चौड़ी-चौड़ी गली हरी-भरी घास से भर गयी है, जिसमें आसमानी चमक है।
लेना तेजी से चल रही थी, इतनी तेजी से कि स्टबी उसका साथ नहीं दे पा रहा था। लेकिन ज्योंही देमेन्तियेव की नजर उस पर पड़ी, उसने कदम धीमे कर दिये।
‘‘तुम कितने गेहुआँ पड़े गये हो प्योत्र मिखाइलोविच!’’ वह अभी कुछ दूर पर ही थी कि बोल उठी।
‘‘धूप खायी है,’’ देमेन्तियेव ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा।
और नजदीक आकर लेना ने कहा: ‘‘और तुम्हारी भौहें ऐसी सफेद पड़ गयी हैं!’’
‘‘धूप में पक गयीं,’’ देमेन्तियेव ने जवाब दिया।
उन्होंने हाथ मिलाये। स्टबी पास में खड़ा उन्हें उत्सुक्ता से देख रहा था। अचानक इन दोनों में एक पेरशानी और रूखापन कहाँ से आ गया?
‘‘तुमने सुना प्योत्र मिखाइलोविच? हमारी सारी मेहनत बेकार हो गयी।’’
‘‘नहीं, नहीं गयी। तुम ‘लाल हलवाला’ फार्म देखने नहीं गयीं क्या?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘उन्होंने तुम्हारे तरीके से चालीस एकड़ में बुआई की थी।’’
‘‘तुम्हें कैसे मालूम?’’
‘‘वायदा करो कि नाराज न होगी?’’
‘‘वायदा किया।’’
स्टबी खड़ा ही रहा और सब सुनता रहा।
‘‘पिछले वसन्त में, जब मैं वहाँ गया था, तो मैंने इसके बारे में उन्हें बता दिया था। क्षमा करना, मैंने तुम्हारे विचारों को इस आजादी के साथ बरता।’’
‘‘यह कोई मेरा अपना विचार थोड़े ही था। इसको तो अल्टाई वालों ने सोच-निकाला था।’’
‘‘लेकिन इस इलाके में इसका इस्तेमाल तो तुमने ही पहले किया था।’’
‘‘और ‘लाल हलवाला’ फार्म पर इसका नतीजा क्या निकला?’’
‘‘शानदार। मेरी आशाओं से भी ज्यादा। और उन्होंने उस खेत का नाम जोरिना खेत रख दिया है। मैंने तीन और फार्मों को यह बता दिया है और उनके यहाँ भी जोरिना खेत बनेंगे। शरद में तुम अपने बारे में और अपने गेहूँ के बारे में अखबारों मे चर्चा पढ़ लोगी अब अध्यक्ष के साथ तुम्हारी कैसी पटती है?’’
‘‘ठीक निभ रही है। मुझे बेचारे पर रहम आता है, इतना भला आदमी और बिल्कुल अकेला,’’ और लेना ने अपराधी जैसी नजर से देमेन्तियेव की तरफ देखा।
स्टबी अभी भी वहाँ खड़ा था और सुन रहा था।
धीरे-धीरे, मानो वह रास्ते में किसी चीज को खोज रही है, लेना नदी के किनारे-किनारे बढ़ चली। देमेन्तियेव भी उसी तरह धीर-धीरे उसके पीछे-पीछे चल दिया। वे सड़क पर पहुँच गये और एक दूसरे से बिना एक शब्द कहे उस पर मुड़ गये। पहाड़ियों की श्रृँखला, एक के बाद एक, क्षितिज तक फैली हुई थी और सड़क इन पहाड़ियाँ का चक्कर लगाते हुए बढ़ी जा रही थी कभी किसी चोटी को छूती तो कभी घाटी में उतर जाती। दूर, कहीं दूर, बिल्कुल आखिरी नीली-सी पहाड़ी पर टेढ़ी-मेढ़ी सफेद डोरे जैसी सड़क नजर आ रही थी। वह क्षितिज को छू रही थी और पृथ्वी के छोर तक चली गयी थी।
और उस स्वच्छ, समतल और अनन्त मार्ग पर, लेना और देमेन्तियेव, कभी-कभी एक दूसरे से निगाहें मिलाते हुए, मगर एक दूसरे से एक शब्द भी बोले बिना, बराबर बढ़े चले जा रहे थे।
(1948)