लालटेन, ट्यूबलाइट और शेंडेलियर (सिंधी कहानी) : मोतीलाल जोतवाणी
Lantern, Tubelight, Chandelier (Sindhi Story) : Motilal Jotwani
जैसे ही मनोहर 'उडेरोलाल कृपा' कोठी के लोहे के
बाहरी फाटक पर पहुँचा, वैसे ही उसने देखा, गोपाल की कार उस फाटक तक पहुँच गई थी और
वह उसके अंदर दाखिल हो रही थी।
ड्राइवर ने कार की हैडलाइट की रोशनी में देखा, उस फाटक तक आया हुआ वह व्यक्ति उसके
मालिक का पुराना दोस्त और रिश्तेदार, प्रोफ़ेसर मनोहर लाल था। उसने उन दोनों के
आपसी संबंध को ध्यान में रखकर कार को वहीं रोक दिया, ताकि उसके मालिक गोपाल
प्रोफ़ेसर मनोहर लाल को अंदर पोर्टिको तक कार में बैठाकर ले जाएँ।
कार की एक क्षण के लिये गति कम होने पर गोपाल ने भी मनोहर को देखा और अपने ड्राइवर
के मन की बात को भाँपकर उससे कहा, "नहीं, गाड़ी तुम अंदर ले चलो, मनोहर अपने आप ही
बाकी थोड़ा फ़ासला चलकर कोठी में आ मिलेगा।"
उस फाटक के दोनों तरफ लगे हुए बिजली के फानूसों की रोशनी में मनोहर से भी कार में
बैठे ड्राइवर और उसका मालिक गोपाल छिपे न रह सके। एक ही क्षण में तीन जने एक-दूसरे
के लिये अनजाने या अनपहचाने नहीं रहे। मनोहर ने सोचा, 'कार ड्राइवर जानता था कि
गोपाल से उसका क्या रिश्ता है परंतु गोपाल उससे ऐसी जान-पहचान को धीरे-धीरे खोता जा
रहा है। शायद उसके लिये वह स्वयं उत्तरदायी नहीं है, उसकी परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी
हैं।' फाटक से पोर्टिको तक जाते-जाते मनोहर के मन के
आइने में कुछ यादें प्रतिबिंबित हो उठीं। उन बिंबों में लालटेन, टयूबलाइट और
शेंडेलियर के तीन बिंब आपस में टकराकर एक अदभुत माहौल पैदा कर रहे थे।
सन १९५३ में दिल्ली के पुराने किले के शरणार्थी कैंप में रहते हुए दो दोस्त - गोपाल
और मनोहर लोधी रोड के सिंधी स्कूल में साथ पढ़ते थे। रात को एक ही बैरक में लालटेन
की रोशनी में वे दोनों मास्टर साहबों द्वारा दिया गया 'होमवर्क' करते थे। दोनों
दोस्तों के पिता लोग भी पीछे सिंध के एक ही गाँव में साथ-साथ बिताई ज़िंदगी के
दिनों से आपस में दोस्त थे, और उनके बूढ़े चेहरों पर लालटेन की मंद-मंद रोशनी फैली
थी। १९६१ में मनोहर ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और आगे चलकर
वह एक कालेज में सिंधी का प्रवक्ता नियुक्त हुआ। गोपाल अपने मामाजी के साथ धंधा
करने लगा, जिस धंधे में उसने खूब दौलत कमाई।
थोड़े दिनों बाद मनोहर के घरवाले शरणार्थी कैंप छोड़कर दिल्ली के किसी उपनगर में जाकर बस गए। उन्होंने वहाँ एक सौ गज का मकान खरीदा था। लेकिन गोपाल के घरवाले बड़े-बड़े साहूकारों की बस्ती में किस्तों पर एक प्लाट खरीदकर उसमें दो-तीन कमरे बनवाकर रहने लगे थे। चूँकि अभी तक दोनों घरों में मध्यम वित्त वर्ग का माहौल था, गोपाल का और उसका अपना विवाह थोड़ी कम पढ़ी-लिखी, लेकिन खाने-पकाने और सीने-पिरोने में निपुण शालीन लड़कियों के साथ हुआ। वे दोनों लड़कियाँ आपस में मौसेरी बहनें थीं और उन दोनों के घरों की तरह उनके चेहरों पर भी टयूबलाइट की नरम-नरम रोशनी फैली थी।
१९७३ में मनोहर अपने कालेज में सिंधी के सीनियर
रीडर के पद पर था और गोपाल की गिनती शहर के बड़े बिल्डरों में होने लगी। पिछले कुछ
सालों के दौरान मनोहर ने शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया था और
गोपाल करोड़पति से अरबपति हो गया था। पर चूँकि दोनों जनों की उनके बचपन से ही एक ही
पृष्ठभूमि रही थी और उनकी पत्नियाँ विवाह से पूर्व साधारण परिवारों से संबद्ध आपस
में मौसेरी बहनें थीं, मनोहर ने सोचा, उसके अपने घर की टयूबलाइट की रोशनी में और
गोपाल की कोठी के शेंडेलियर की रोशनी में बहुत ज़्यादा फर्क नहीं था। फिर इतने में
उसने सोचा, क्या वह बात ऐसी ही थी?
पोर्टिको तक आते-आते मनोहर ने देखा, कार गैराज में जा चुकी थी और गोपाल पोर्टिको के
अंदरूनी मुख्य दरवाज़े की देहलीज पर खड़ा इंतज़ार कर रहा था। वह मनोहर को देखकर
अपने चेहरे पर उसकी आवभगत में मुस्कराहट ले आया और बोला, "आओ, मनोहर आओ। मैं
तुम्हारे ही इंतज़ार में यहाँ खड़ा हूँ।"
मनोहर ने उत्तर दिया, "और क्या समाचार है, गोपाल! सब ठीक तो है! दुबई हवाई अड्डे से
तुमने फ़ोन किया कि मैं तुमसे तुम्हारी कोठी पर शाम को सात बजे आकर मिलूँ, तब तक
तुम भी यहाँ पहुँच जाओगे।"
गोपाल ने कहा, "उडेरोलाल की कृपा से सब कुछ ठीक है। आज सुबह मनीषा ने फ़ोन पर बताया
कि कल विश्वविद्यालय वालों ने उसे एम.ए. के बाद कोई दूसरी उपाधि दी है। यह उपाधि
क्या है?"
मनोहर ने उसे बताया, "एम.फिल. की उपाधि। अब वह किसी कालेज में लेक्चरर लग सकेगी।"
गोपाल ने प्रसन्न होकर कहा, "भाई, यह सब उसके साथ
की गई तुम्हारी मेहनत का नतीजा है। मैंने सोचा, आज शाम को दिल्ली पहुँचकर तुम्हें
और मनीषा को एक ही समय मिलकर बधाइयाँ दूँ। हाँ, क्या तुम यहाँ गोपी और बच्चों समेत
नहीं आए हो? मैं फ़ोन पर ऐसा करने के लिये न कह सका। उनका अपना ही घर है। तुम उन्हें
क्यों नहीं ले आए?"
मनोहर उत्तर में कुछ कहता, उससे पहले ही गोपाल ने घर के अंदर आवाज दी। वे दोनों
बातचीत करते-करते ड्राइंग-डाइनिंग हाल के बीच तक पहुँच चुके थे।
गोपाल की आवाज सुनते ही घर के नौकर आकर उपस्थित हुए और उस हॉल के बीच में से ऊपर
जाने वाले जीने पर बालकनी में मनीषा और उसकी माँ भी आकर प्रकट हुईं।
गोपाल ने मनोहर से कहा, "अच्छा, तुम यों करो, तुम यहाँ इस हाल में बैठो, या ऊपर
जाकर अपनी साली साहिबा से और अपनी विद्यार्थिनी मनीषा से मिलो। जल्द ही, मैं टायलेट
से फ्रेश होकर आता हूँ।"
वह ऊपर जाने वाला जीना चढ़कर बालकनी के पीछे अपने कमरे की ओर चला गया। हॉल में बड़े-बड़े सोफ़े बिछे थे, उन सोफ़ों के सामने शीशे की मेज़ें लगी थीं और ऊपर छत में बड़े-बड़े शेंडेलियर जगमगा रहे थे। चूँकि मनोहर यह सब बेशकीमती सामान बहुत समय से देखता रहा था, उसे उसमें कोई ज़्यादा दिलचस्पी न थी। वह वहाँ एक सोफ़े पर ही बैठ गया और सामने वाली मेज से एक पत्रिका लेकर उसके पन्ने पलटता रहा। इतने में एक नौकर उसके लिये शीशे के गिलास में शर्बत लेकर आया। जब मनोहर ने उसके हाथों से वह गिलास नहीं लिया, तो वह बड़ी शालीनता से वह गिलास उसके सामने मेज पर रखकर एक ओर चला गया।
मनोहर के मन में गोपाल और उसकी गृहस्थी की बातों को लेकर एक काला जंगल फैल गया था, जिसमें फिर गोपाल द्वारा निर्मित बड़ी-बड़ी इमारतों की खिड़कियों में से आने वाली रोशनी के टुकड़े यहाँ-वहाँ टकरा रहे थे। सामने रखे हुए गिलास में से थोड़ा शरबत पीते हुए उसने सोचा, गोपाल ने सीमेंट और लोहे के कितने ही भवनों का निर्माण कार्य किया है और इसीलिये वह खुद सीमेंट और लोहे जैसा संवेदनहीन हो गया है। वह जितना अधिक धनी हुआ है, उतना अधिक अपने घर के प्रति, घर के सदस्यों के प्रति लापरवाह होता चला गया है।
गोपाल की पत्नी यशोधरा उसकी पत्नी गोपी से लगभग छह महीने छोटी होगी। वह अपनी दीदी गोपी से आमने-सामने या टेलीफ़ोन पर अपने समाचार देती रहती है। उसे बताती रहती है कि वह कैसे अपने वैवाहिक जीवन के प्रारंभिक दिनों को याद करती रहती है। अब तो उसे अकेले दिन और अकेली रातें गुज़ारनी पड़ती हैं। महेश और मनीषा दो संतानें हैं। उसका बेटा महेश अपने बाप के साथ बिजनेस में है और वह रात को अपने बाप से अलग रहकर, सीमेंट और लोहे से बनी इमारतों की रोशनी में टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। रात को बहुत देर तक किसी कैबरे डांस-फ्लोर पर या किसी बार में समय काटकर वह 'उडेरोलाल-कृपा' कोठी के अपने कमरे में आकर बिस्तर पर धड़ाम से गिरता है।
इतने में मनोहर के मन में फैले काले जंगल में बिजली की चमकार हुई और वह काँप उठा कि महेश की छोटी बहन मनीषा भी इस तरह गुमराह हो जाती, अगर उसने सोचा अगर वह अपनी छोटी साली यशोधरा और उसकी बेटी मनीषा की अकेली-अकेली ज़िंदगी पर तरस न खाता और मनीषा को समाज के ग़लत प्रभावों से बचाने के लिये उसे विश्वविद्यालय में अधिक से अधिक पढ़ाई करने के लिये उत्साहित न करता।
अभी उसकी सोच के दायरे में माँ-बेटी ही थीं कि
इतने में वे खुद उसके पास आकर खड़ी हुईं।
यशोधरा ने उसके पास बैठकर आत्मीयता से पूछा, "क्यों जीजाजी, आप अकेले आए हैं? दीदी
और किशोर को क्यों नहीं ले आए? महीनों हो जाते हैं, हम आपस में नहीं मिल पाते हैं।
इसमें आपका या आपके परिवार का कोई दोष नहीं है। हमारे हालात ही कुछ ऐसे हैं।
मनीषा ने अपने मौसा को, मौसा से कहीं अधिक अपने प्रोफ़ेसर को प्रणाम किया और कहा,
"किशोर को देखे तो बहुत सारे दिन हो गए हैं! क्या वह अपने काम में इतना 'बिज़ी'
रहता है?"
मनोहर ने दोनों को ही एक साथ उत्तर दिया, "हम दोनों ही- गोपाल अपने काम में और मैं
अपने काम में व्यस्त रहते हैं। वह लक्ष्मी पूजा में और मैं सरस्वती वंदना में-
मैं कालेज से सीधा किसी बैठक में शरीक
होने के लिये चला गया और वहाँ से सीधा यहाँ आया हूँ। मनीषा, किशोर वाकई बहुत 'बिज़ी'
रहता है। उसकी कंपनी वाले उसे अगले महीने यू.एस.ए. भेज रहे हैं।
मनीषा ने ताली बजाकर इस बात का स्वागत किया और कहा, "वाह! यह तो बहुत खुशी की बात
है!"
यशोधरा ने भी अपनी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करते हुए कहा, "कल सुबह ही दीदी से
टेलीफ़ोन पर बात करने का मौका मिला, तो उसने तो ऐसा शुभ समाचार नहीं दिया।"
इस बीच में नौकर घर की दोनों मालकिनों- यशोधरा और मनीषा के लिये भी शरबत के दो गिलास
लेकर मेज पर रख गया था। मनोहर ने उन गिलासों को देखकर सोचा, माँ-बेटी शरबत नहीं
पीएँगी, दस्तूर निभाने के लिये शरबत के वे गिलास यों ही मेज पर पड़े रहेंगे और उसने
यशोधरा को उत्तर दिया, "कल सुबह गोपी को, या और किसी को, ऐसा शुभ समाचार नहीं मिला
था। यह तो कल दोपहर को मनीषा के एम. फिल. के नतीजे का और किशोर के यू.एस.ए. जाने का
पता लगा।"
इतने में गोपाल भी हॉल कमरे के बीच वाला जीना उतरकर नीचे उनके साथ सोफे पर आ बैठा
और बोला, "भई, कौन यू.एस.ए. जा रहा है? कुछ हमें भी तो बताओ।"
यह पूछते-पूछते उसने एक ही नजर में अपनी पत्नी और
बेटी को देखा। उनकी आँखों में सदा की तरह शिकायत का भाव देखकर उसने अपने सवाल के
जवाब का इंतज़ार न करते हुए कहा, "क्या करूँ? बिजनेस के लिये मुझे इधर-उधर भागना
पड़ता है।"
मनोहर ने सोचा, 'गोपाल अपने तक ही सीमित हो गया है। वह किसी के यू.एस.ए. जाने की
बात पूछना भी भूल गया है। वह अभी कुछ कहता कि उससे पहले यशोधरा ने अपने पति से कहा,
"किशोर यू.एस.ए. जा रहा है। किशोर और मनीषा ये दोनों भाई-बहन जीजाजी के कारण
होशियार हुए हैं।"
फिर कोई बात याद करते हुए अपने पति से पूछा, "क्यों आपके साथ महेश नहीं लौटा है
क्या? वह अभी तक दुबई में क्या कर रहा है?"
गोपाल ने उत्तर दिया, "नहीं, वह भी मेरे साथ एक ही फ्लाइट में आया है। उसे किसी
फार्म हाऊस की डिनर पार्टी में जाना था, सो उसने एयरपोर्ट पर ही अपनी अलग कार मँगवा
ली थी।"
जल्द ही, उसने बधाइयों की बात याद करते हुए कहा, "किशोर और मनीषा को बधाइयाँ, किशोर
को यू.एस.ए. जाने की तैयारी करने पर और मनीषा को एम.फिल. करने पर।"
फिर मनोहर को संबोधित करके कहा, "भाई, यह लड़की तो तुम्हारी बड़ी ही 'फैन' है। मुझे
इसके साथ बैठने का समय उतना नहीं मिलता है, जितना तुम्हें मिलता है। जब भी मैं उसके
साथ बैठता हूँ, वह मुझे तुम्हारी ही बातें बताती रहती है। तुम्हें मौसा के रूप में
नहीं, प्रोफ़ेसर के रूप में याद करती है। आज प्रोफ़ेसर का टी.वी. पर इंटरव्यू है।
आज यूनीवर्सिटी के टैगोर हॉल में प्रोफ़ेसर का फलाँ विषय पर स्पेशल लेक्चर है,
वगैरा-वगैरा।"
भला इन सब बातों का मनोहर उसे क्या जवाब देता। यह तो अच्छा हुआ कि जवाब देने के समय
पर एक नौकर दो प्लेटों में से एक में काजू-नमकीन और दूसरी में सलाद ले आया, दूसरा
नौकर एक हाथ में किसी महँगी व्हिस्की की बोतल और दूसरे हाथ में दो खाली गिलास लाया
और तीसरे नौकर ने एक हाथ से मिनरल वाटर की एक बड़ी बोतल और दूसरे हाथ से 'सोडा
वाटर' की दो बोतलें मेज पर रखीं।
गोपाल को इन सब चीज़ों का बेचैनी से इंतज़ार था।
उसने व्हिस्की की बोतल की सील तोड़कर उसमें से दोनों गिलासों में व्हिस्की उँडेली।
वह ज़्यादा देर तक रुक नहीं सका, और अपनी ओर के गिलास में पानी मिलाए बिना उसमें से
'नीट' व्हिस्की एक ही घूँट में पी गया। फिर उसने अपने गिलास में व्हिस्की की बोतल
से दूसरा पेग और फिर मिनरल वाटर की बोतल से पानी डाला। मनोहर के गिलास में व्हिस्की
का पहला पेग था, उसने उसमें अब सोडा डाला।
व्हिस्की 'नीट' पीने से गोपाल को हल्का-सा खुमार चढ़ गया। उस खुमार में उसने मनोहर
को अपना गिलास लेने के लिये कहा, "चीयर्स!"
जब तक वह अपना गिलास लेकर 'चीयर्स' कहता, उससे पहले ही गोपाल ने उसे कहा, "मनोहर,
मनीषा तो मनीषा, तुम्हारी छोटी साली यशोधरा भी तुम्हारी दीवानी हो गई है। जब देखो,
तब इस घर में प्रोफ़ेसर-प्रोफ़ेसर या जीजाजी-जीजाजी की रट लगाए रहती है।"
यह बात सुनते ही तीन दिलों में बड़ा धमाका हुआ।
शायद धरती फटी थी। उसकी दरारें मनीषा और यशोधरा के चेहरों पर ज़ाहिर
हो उठीं। माँ-बेटी को बड़ा दुख हुआ। लेकिन मनोहर को गोपाल पर बड़ा ही तरस आया। उसने
एक पल के लिये भी वहाँ रुकना न चाहा और वह उठ खड़ा हुआ। जाते-जाते उसने कहा, "गोपाल, मैं चलता
हूँ।"
कुछ समय से उसके मन में किसी बात को लेकर संघर्ष चल रहा था। अब उस बात की पृष्ठभूमि
में उसमें एक किस्म की तस्कीन पैदा हुई। उसे गोपाल की जिंद़गी से अपनी जिंद़गी कहीं
अधिक अच्छी लगी।