लानत है ऐसी दवा पर (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Lanat Hai Aisi Dava Par (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
आपको आज इतनी खांसी क्यों आ रही है?
मौसम की तबदीली की वजह से गला ख़राब हो गया है।
ये सब बहाने हैं..... मुझे मालूम है इस खांसी की असल वजह किया है।
तो बता दो।
मुझे क्या ज़रूरत पड़ी है, जबकि आप उस का ईलाज ख़ुद कर सकते हैं मुझसे आपने कभी अपनी ज़ाती मुआमलों के मुताल्लिक़ मश्वरा लिया है?
कब नहीं लिया..... अभी कल ही मैंने तुमसे पूछ कर, बल्कि तुम्हें दुकान पर ले जा कर अपने लिए लू फ़र्शो ख़रीदा था..... और तुमने अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ एक सैंडिल ली थी। हालाँकि वो मुझे सख़्त नापसंद थी।
आपको तो मेरी पसंद की हर चीज़ नापसंद होती है।
तुम ग़लत कहती हो..... पिछले दिनों तुम नुमाइश से अपने लिए बलाउज़ का कपड़ा लाई थीं तो मैंने बहुत पसंद किया था..... और तुम्हारे ज़ौक़ और इंतिख़ाब की तारीफ़ की थी।
ज़िंदगी में एक दफ़ा तारीफ़ कर दी तो बड़ा एहसान क्या।
इस में एहसान की क्या बात है..... मालूम नहीं आज तुम्हारा मिज़ाज क्यों बिगड़ गया है।
मुझे खांसी की शिकायत है। सारी रात खाँसती रही हूँ।
मैं रात-भर जागता रहा हूँ.....सिर्फ तुम्हारे ख़र्राटों की आवाज़ के सिवा मैंने तुम्हारे हलक़ से और किसी किस्म की आवाज़ नहीं सुनी।
आप एक अरसा से बहरे हो चुके हैं..... आपके कानों के पास कोई लाख चलाए, वावेला करे, मगर आपको कभी सुनाई नहीं देगा।
ये क्या गुफ़्तगु है?..... मेरी समझ में नहीं आता कि आख़िर तुम कहना क्या चाहती हो।
मैं कुछ कहना नहीं चाहती..... और कहना भी चाहूँ, तो आप कान धर कर सुनेंगे कब।
क्यों नहीं सुनूँगा..... मगर तुम कुछ किहोतो..... अब मैं तुम्हारे दिल की बात कैसे बूओझों।
दिल को दिल से राह होती है..... मगर यहां ये राह सिरे ही से ग़ायब है।
कैसी ग़ायब हो गई ये राह, मेरा मतलब है, तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा।
बस समझ लीजीए, कुछ ऐसी ही बात है।
ये कितनी बड़ी ट्रेजडी है, कि मुझे जिस बात का वहम-ओ-गुमान भी नहीं, तुम आज उस का मुझ पर इन्किशाफ़ कर रही हो।।। दानाओं ने ठीक कहा है कि औरत को समझना कार्य दारद वाला मुआमला है।
जी..... वो दाना भी तो ऐसे मर्द थे..... भोली-भाली औरत में ऐसा कौन सा पेच है, जो उनकी दानाई को शिकस्त दे गया..... वो ग़रीब तो एक सीधी सड़क है जिसमें कोई ख़म है ना मोड़।
दरुस्त है..... लेकिन इस सीधी सड़क पर हर-रोज़ कईऐक्सिडन्ट होते हैं..... हज़ारों मर्द इस सीधी सड़क पर चलते चलते ऐसे फिसलते हैं कि सीधे क़ब्रिस्तान में पहुंच जाते हैं।
आप क्यों नहीं पहुंचे अभी तक वहां?
अनक़रीब पहुंच जाऊँगा..... अगर तुम्हारा रो्वीह इसी किस्म का रहा।
मेरा रो्वीह..... क्यों?..... मैंने आपसे क्या बदसुलूकी की है?..... नौकरानी की तरह आपकी ख़िदमत करती रही हूँ, क्या आप इस से इनकार कर सकते हैं?।
इनकार करने की मजाल ही नहीं, इसलिए कि ये डर है कि तुम आतिश-फ़िशाँ पहाड़ की मानिंद फट पड़ोगी। और इतना लावा एग्लोगी कि मुझे एक लम्हे के अंदर कोयला बना कर रख देगा।
आतिश-फ़िशाँ पहाड़ तो आप हैं, जो आए दिन लावा उगलते रहते हैं।
ये तुम्हारे अख़बार की नई ख़बर है, जो मैं तुम्हारी ज़ुबान से सन रहा हूँ। वर्ना इस से पहले.....
आप अपने अख़बार में यही मज़मून छापते रहते थे कि औरतें आग खाती हैं, अँगारे बिकती हैं..... और ये जो मर्दों को खांसी आती है इस की वजह भी औरत है।
लो, तुमने खांसी का नाम लिया तो मेरे गले में ख़ारिश शुरू हो गई..... अच्छा, अब बात मत करो..... दवा का एक डोज़ पीने के बाद किसी क़दर तबीयत बहाल हो गई है।
ख़ुदा आपकी तबीयत बहाल रखे..... मेरी तो यही दुआ है।
तुम्हारी दुआओं ही से तो मैं अब तक ज़िंदा हूँ, वर्ना कब का मर चुका होता।
आपकी ये तंज़िया गुफ़्तगु मुझे पसंद नहीं..... मुहीन मुहीन चुटकियां लेने में जाने आपको क्या मज़ा आता है?।
सारा मज़ा तुम ले जाती हो..... मुहीन मुहीन चुटकियों का फ़न तुम बेहतर जानती हो..... मैं इस से बिलकुल कोरा हूँ।
आप तो हर चीज़ से कोरे हैं। कोरे बर्तन की तरह..... लेकिन दुनिया-भर की आलाईशें उस बर्तन के साथ चम्टी हुई हैं।
आज तुम फ़लसफ़ा छाँटने लगी हो।
ये अगर फ़लसफ़ा है, तो आप ख़ुदा मालूम किया छांटते हैं?
..... मुझे फिर खांसी का दौरा पड़ गया है।
आप दवा क्यों नहीं पीते?
मुझे..... मुझे इस से नफ़रत है..... इस में बहुत बुरी बूओ है।
तो क्या हुआ..... दवा आख़िर दवा होती है..... ख़ुश-ज़ाएक़ा हो या बदज़ाइक़ा..... अच्छी बूओ वाली है या बुरी बूओ वाली..... इन्सान को पैनी ही पड़ती है.....
तुम..... तुम अपना लैक्चर बंद करो..... में..... मैं ..... या अल्लाह मेरी तौबा..... ये खांसी भी किया बला है। सारा वजूद मुतज़लज़ल हो जाता है।
आपने बदपरहेज़ी की होगी।
कौन सी बदपरहेज़ी?।
चाट खाने की आपको चाट है..... बाहर ही बाहर खाते रहे होंगे।
बाहर बाहर मैंने इस किस्म की कोई चीज़ नहीं खाई।
लेकिन, घर पर तो आप हर-रोज़ खाते रहे हैं।
ये इल्ज़ाम तुम मुझ पर किस शहादत की बिना पर आइद कर रही हो?
जनाब जब पिछले हफ़्ते सरगोधा गई थी, तो वापसी पर मुझे मालूम हुआ कि आप ख़ुद अपने हाथ से आलू छोले तैयार करके खाते रहे हैं। इमली, अमचूर, अनारदाना, सुरख़ और काली मिर्चें इस क़दर डाली जाती थीं कि आदमी की ज़बान जल जाये।
लेकिन तुम्हारी ज़बान नहीं जली, ये झूट बोलते हुए..... तुम अच्छी तरह जानती हो.....
मैं आपके बारे में हर बात के मुताल्लिक़ अच्छी तरह जानती हूँ..... खट्टी चीज़ों से तो आपको ख़ास रग़बत है..... आम तौर पर यही कहा जाता है कि औरतें खट्टी चीज़ें पसंद करती हैं..... लेकिन आप उनसे कई रतियां आगे बढ़े हुए हैं।
..... खांसी का दौरा फिर शुरू हो गया.....
होना ही था..... दवा लाऊँ?
..... नहीं..... नहीं.....
नहीं आपको पीना पड़ेगी.....
भई, में कह चुका हूँ कि इस की बू बहुत बुरी है।इस के..... इस के इलावा डाक्टर की..... डाक्टर की ये हिदायत है कि एक एक घंटे के बाद ख़ुराक पी जाये।
तो आपको इस हिदायत पर अमल करना चाहिए।
ख़ाक अमल करूँ..... जब कि दवा मुझे पसंद ही नहीं..... मैं हर घंटे के बाद अज़ाब सहने के लिए तैयार नहीं।
आप जो कुछ भी कहीं ठीक है, लेकिन ये दवा आपको ज़रूर पीना पड़ेगी।
अच्छा बाबा..... मैं हारा, तुम जीतें..... लाओ गिलास।
मैंने तैयार कर रखा है..... लीजीए।
बर्फ़ डाल दी थी इस में?
जी हाँ। आप तो पहले पानी मिला कर पीते रहे हैं..... लेकिन सरगोधा जाने से पहले, आपने मुझसे कहा था कि डाक्टर साहिब ने ये हिदायत दी थी कि ये दवा खारे सोडे के साथ पी जाये..... चुनांचे मैंने.....
ठीक है, ठीक है। लाओ, गिलास दो मुझे कि ज़हर मार करलूं।
ये लीजीए..... मगर आपका हाथ काँप रहा है।
काँपने दो..... दवा पीने के बाद ठीक हो जाएगा।
खांसी भी इंशाअल्लाह दूर हो जाएगी।
देखो जो अल्लाह को मंज़ूर है..... तो ये, कैसी बुरी बूओहे उस की..... ख़ुराक भी इतनी बड़ी है जो घोड़ों को दी जाती होगी..... बड़ी बोतल में बारह के निशान हैं..... यानी दिन में बारह मर्तबा इस वाहीयात चीज़ को पानी या सोडे के साथ मिला कृपया जाये..... ये डाक्टर लोग भी अजीब किस्म के इन्सान हैं..... मरीज़ की नफ़सियात के मुताल्लिक़ कुछ सोचते ही नहीं।
नफ़सियात..... ये क्या चीज़ है।
ठहरो..... मैं ये दवा पी लूं, तो बतादूंगा कि ये क्या चीज़ है।
..... आप कहते थे कि ये दवा बहुत बुरी है, लेकिन आप सारा गिलास यूं पी गए, जैसे कोई बड़ा मज़ेदार शर्बत हो।
तो क्या करता..... मजबूरी में, इन्सान को हर मुश्किल ख़ंदापेशानी से बर्दाश्त करना पड़ती है।
अब ग्यारह बजे हैं..... बारह बजे आपको फिर यही दवाई पीना है।
पियूँगा..... मेरा बाप भी पीएगा..... ख़ुदा उसे जन्नत नसीब करे।
अच्छा, अब मुझे आराम करने दो..... बारह बजे इस वाहीयात दवा की ख़वाक ले आना, जिसे मैं ज़हर मार करलूंगा।
क्या आप सोना चाहते हैं?
नहीं..... सोने का सवाल ही पैदा नहीं होता, जब तक इस दवा की बोतल ख़त्म ना हो जाये।
तो आप लेटे रहेंगे?
नहीं..... दूसरे कमरे में जा कर कोई किताब या रिसाला पढूँगा, जब तक बारह बज जाऐंगे।
आप क्या खाएँगे?
जो तुमने पकाया होगा..... वैसे अगर गुर्दे हूँ तो बहुत अच्छे रहेंगे..... डाक्टर साहिब ने कहा था कि भुने हुए गुर्दे तुम्हारे गुर्दों को जो किसी क़दर कमज़ोर हैं, तक़वियत बख़्शेंगे।
मैं अभी मंगवा कर तैयार किए देती हूँ।
आख़िरी डोज़ कहाँ गई?
वो मैंने अपनी हमसाई को दे दी..... इस को भी खांसी की शिकायत थी।
लेकिन..... मेरा मतलब ये है कि..... उसे कुछ फ़ायदा हुआ?
कुछ भी नहीं..... इस पर इस का उल्टा असर हुआ है..... दवा की ख़ुराक पीने के बाद वाही तबाही बिकने लगी..... ग़ालिबध और मीर के शेअर अपने ख़ावंद को सुनाती रही।
मैं इतने दिनों से ये दवाई पी रहा हूँ। ग़ालिबध का सारा कलाम मुझे हिफ़्ज़ है, लेकिन मैंने आज तक तुम्हें उस का कोई भी शेअर नहीं सुनाया।
शेअर तो नहीं सुनाया है..... लेकिन रात को आप अक्सर सियास्यात पर लैक्चर दिया करते हैं।
लैक्चर..... हाँ..... मेरा ख़्याल है..... मेरा ख़्याल है कि इस दवा में शराब का जुज़ है।
शराब का जुज़ क़तअन नहीं..... इस का हर क़तरा शराब है।
क्या मतलब?
जी, सारी चालाकी का इलम हो गया..... मेरी हमसाई के ख़ावंद ने जब डाक्टर को बुलाया तो उसने कहा कि आपकी औरत ने शराब पी है।
तो लानत है ऐसी दवा पर।