लम्बी पूँछ वाला चूहा : इतालवी लोक-कथा

Lambi Poonchh Wala Chuha : Italian Folk Tale

एक बार एक राजा था जिसके एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी। जब वह शादी के लायक हुई तो बहुत सारे राजा और राजकुमारों ने उससे शादी करने की इच्छा प्रगट की।

पर उसके पिता ने उसको किसी को भी देने से मना कर दिया क्योंकि हर रात वह एक आवाज सुन कर जाग जाता था — “तुम अपनी बेटी की शादी किसी से मत करना, तुम अपनी बेटी की शादी किसी से मत करना।” और वह अपनी बेटी की शादी करने से रुक जाता।

वह बेचारी लड़की रोज शीशे में अपने आपको देखती और पूछती — “मैं शादी क्यों नहीं कर सकती मैं तो इतनी सुन्दर हूँ।” वह यह सवाल रोज पूछती पर उसको अपने इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिलता और वह इस बारे में सोचती ही रह जाती।

एक दिन जब वे सब शाम का खाना खा रहे थे तो उसने अपने पिता से कहा — “पिता जी मैं शादी क्यों नहीं कर सकती मैं इतनी सुन्दर तो हूँ। इसलिये अब आप मेरी बात सुनिये, मैं आपको दो दिन का समय देती हूँ। अगर आप दो दिन के अन्दर अन्दर किसी ऐसे आदमी को नहीं ढूँढ पाते जिससे आप मेरी शादी कर सकें तो मैं अपनी जान दे दूँगी।”

राजा बोला — “बेटी, ऐसा नहीं कहते। पर अगर तुम ऐसा कह रही हो तो तुम एक काम करो कि तुम अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनो और खिड़की पर खड़ी हो जाओ। फिर जो भी सबसे पहला आदमी या जानवर सड़क से गुजरेगा वही तुम्हारा पति होगा। बस।”

सो अगले दिन उस लड़की ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने और जा कर खिड़की पर खड़ी हो गयी।

अब ज़रा सोचो कि सबसे पहले सड़क पर से कौन गुजरा? एक छोटा सा चूहा जिसकी एक मील लम्बी पूँछ थी और जिसकी बू ऊपर आसमान तक पहुँच रही थी।

चूहा रुका और ऊपर खिड़की में खड़ी राजकुमारी की तरफ देखा पर जैसे ही राजकुमारी ने चूहे की तरफ देखा तो वह तो चिल्ला कर भागी — “पिता जी पिता जी। यह आपने मेरे साथ क्या किया? यह पहला जाने वाला तो एक जानवर निकला और वह भी एक चूहा। मुझे पूरा यकीन है कि आप मेरी शादी किसी चूहे से नहीं करना चाहते।”

उसका पिता कमरे में हाथ बाँधे खड़ा था। वह बोला — “मैं यही चाहता हूँ मेरी बेटी। जो मैंने कहा है वही होगा। तुमको सड़क पर पहला आदमी या जानवर जो कोई भी गुजरेगा उसी से शादी करनी पड़ेगी। फिर चाहे वह कोई भी हो।”

तुरन्त ही उसने सब राजाओं, राजकुमारों और दरबारियों को अपनी बेटी की शादी की शानदार दावत का न्यौता भेज दिया। सारे मेहमान बड़ी शानो शौकत से दावत में आये और आ कर अपनी अपनी जगहों पर बैठ गये पर दुलहे का अभी तक कोई पता नहीं था।

तभी दरवाजे पर कुछ खुरचने की सी आवाज सुनायी पड़ी। वहाँ और कौन हो सकता था सिवाय उस चूहे के जिसकी लम्बी पूँछ दूर दूर तक महक रही थी। एक दासी ने उसके लिये दरवाजा खोला और उससे पूछा — “तुमको क्या चाहिये?”

चूहा बोला — “तुम मेरे लिये राजा से जा कर कहो कि जो चूहा राजकुमारी से शादी करना चाहता है वह आया है।”

दासी ने यह रसोइये से कहा और रसोइये ने जा कर यह बात राजा से कही कि जो चूहा राजकुमारी से शादी करना चाहता है वह आया है।

राजा बोला — “उनको इज़्ज़त के साथ अन्दर ले आओ।”

चूहा तेज़ी से फर्श पर दौड़ता हुआ अन्दर घुस आया और राजकुमारी की कुरसी के हत्थे पर आ कर बैठ गया। राजकुमारी ने अपने बराबर में एक चूहे को बैठा देख कर शरम और नफरत से अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया।

पर चूहे ने ऐसा दिखाया कि जैसे उसने कुछ देखा ही न हो। जितना राजकुमारी उससे दूर खिसकती थी चूहा उसके उतना ही पास खिसकता जाता था।

तब राजा ने वहाँ बैठे सब लोगों को अपनी कहानी सुनायी तो वहाँ बैठे सारे लोग राजा ने जो कुछ किया था उससे राजी हो गये। वे सब मुस्कुराये और बोले — “हाँ ठीक है। चूहा ही राजकुमारी का पति होना चाहिये।” और यह कह कर सब हँस पड़े और हँसते हँसते चूहे की तरफ देखने लगे।

यह देख कर वह चूहा राजा को एक तरफ ले जा कर बोला — “मैजेस्टी, सुनिये। या तो आप इन लोगों से यह कह दीजिये कि ये लोग मेरा मजाक न उड़ायें नहीं तो इसका नतीजा इनको भुगतना पड़ेगा।” चूहे ने यह सब इतने गुस्से से कहा कि राजा को उसकी बात माननी ही पड़ी।

उसके बाद राजा अपनी कुरसी पर आ कर बैठ गया और सब लोगों से कहा कि वे सब हँसना बन्द करें और उसके होने वाले दामाद की ठीक से इज़्ज़त करें।

खाना आया तो चूहा तो बहुत छोटा था और वह एक हत्थे वाली कुरसी पर बैठा था इसलिये वह मेज पर रखे खाने तक नहीं पहुँच सकता था। इसलिये उसके नीचे एक ऊँची सी गद्दी रखी गयी पर राजा ने देखा कि वह भी उसके लिये खाने तक पहुँचने के लिये काफी नहीं थी सो वह उठा और मेज के बीच में जा कर बैठ गया।

वहाँ से वह सब लोगों की तरफ देख कर बोला — “कोई ऐतराज?”

इससे पहले कि कोई और बोले राजा बोले — “नहीं नहीं। किसी को कोई ऐतराज नहीं है।”

पर घर आये हुए मेहमानों में एक स्त्री ऐसी थी जो चूहे को अपनी प्लेट में से खाते और अपनी बू वाली लम्बी पूँछ को अपने पास बैठे आदमी की प्लेट के ऊपर से ले जाते देख कर चुप नहीं रह सकी।

जब चूहे ने उस स्त्री की प्लेट में से खाना खत्म कर लिया तो वह दूसरे मेहमानों की तरफ चला तो वह बोली — “उफ कितना गन्दा। किसने इतनी गन्दी चीज़ देखी होगी। मुझे तो अपनी ऑखों पर विश्वास ही नही हो रहा कि मैं इतनी गन्दी चीज़ एक राजा की खाने की मेज पर देख रही हूँ।”

यह सुन कर चूहे की मूँछें हिलीं, उसने अपनी ऑखें उस स्त्री की ऑखों से मिलायीं और अपनी पूँछ मेज पर फटकारते हुए ऊपर नीचे कूदने लगा।

उसके इस कूदने में जिस किसी चीज़ को भी उसकी पूँछ ने छुआ वही चीज़ वहाँ से गायब हो गयी – सूप के कटोरे, फलों के कटोरे, प्लेट, चम्मच, छुरी, काँटे और फिर एक एक करके मेहमान और उसके बाद मेज और महल।

बस वहाँ रह गया तो केवल एक उजड़ा हुआ मैदान और उसमें अकेली खड़ी राजकुमारी। वह चूहा खुद भी वहाँ से गायब हो चुका था।

वहाँ इतने बड़े मैदान में अपने को अकेली देख कर राजकुमारी बोली — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”

उसने इन शब्दों को एक बार फिर बोला और वहाँ से फिर पैदल ही चल दी। वह कहाँ जा रही थी और कहाँ जायेगी इसका उसे कुछ पता ही नहीं था।

चलते चलते उसको एक साधु मिला तो उसने राजकुमारी से पूछा — “बेटी, तुम यहाँ इस उजाड़ जगह में क्या कर रही हो? भगवान तुम्हारी सहायता करे अगर तुमको यहाँ कोई शेर या जादूगरनी मिल जाये तो?”

राजकुमारी बोली — “मेहरबानी करके ऐसी बातें मत कीजिये। मुझे तो केवल अपना चूहा चाहिये। पहले मैं उससे नफरत करती थी पर अब मुझे वह चाहिये।”

साधु बोला — “बेटी, मुझे नहीं मालूम कि मैं तुमसे क्या कहूँ पर तुम चलती रहो जब तक तुमको मुझसे कोई ज़्यादा बूढ़ा साधु न मिल जाये। शायद वह तुमको कोई सलाह दे पाये।”

सो राजकुमारी चलती रही और चलती रही और बस यही कहती रही — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”

चलते चलते उसको एक और साधु मिला। उसने उस साधु से भी वही कहा तो वह साधु बोला — “तुम जमीन में एक गड्ढा खोदो और उसमें बैठ जाओ तब देखो कि क्या होता है।”

अब राजकुमारी के पास गड्ढा खोदने के लिये तो वहाँ कुछ था नहीं सो उस बेचारी ने अपने बालों में से एक बालों में लगाने वाली पिन निकाली और उसी से गड्ढा खोदने लगी और तब तक खोदती रही जब तक कि वह गड्ढा इतना बड़ा नहीं हो गया कि वह उसमें खुद बैठ सकती।

जब गड्ढा खुद गया तो वह उसमें बैठ गयी। बैठते ही वह एक अ‍ँधेरी और बहुत बड़ी गुफा में निकल आयी। “अब पता नहीं यह गुफा मुझे कहाँ ले जायेगी।” कहते हुए वह उस गुफा में चल दी।

गुफा में बहुत सारे जाले लगे हुए थे जो उसके पैरों में लिपटे जा रहे थे। वह जितना ज़्यादा उनको हटाती थी उतना ही ज़्यादा वे उसके पैरों में लिपटते जाते थे।

उस गुफा में एक दिन चलने के बाद उसको पानी की आवाज सुनायी दी। आगे चल कर उसको एक तालाब दिखायी दिया जिसमें बहुत सारी मछलियाँ थीं।

उसने अपना एक पैर उस तालाब में रखा पर वह उसमें बहुत आगे तक नहीं जा सकी क्योंकि वह तालाब बहुत गहरा था। वह अब पीछे गड्ढे के लिये भी नहीं जा सकती थी क्योंकि वह गड्ढा तो उसके गुफा में आते ही बन्द हो गया था।

उसने फिर दोहराया — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”

इस पर उस तालाब का पानी ऊपर उठना शुरू हो गया। वहाँ से बच निकलने की कोई जगह नहीं थी सो वह उस तालाब में कूद पड़ी। जब वह पानी में थी तो उसने देखा कि वह पानी में नहीं थी बल्कि वह तो एक बड़े से महल में खड़ी थी।

उस महल का पहला कमरा क्रिस्टल का बना था। दूसरा कमरा मखमल का था। और तीसरा कमरा पूरा सितारों का बना था। इस तरह वह उस महल के कमरों में घूमती रही। सब कमरों में कीमती कालीन बिछे हुए थे और सब कमरों में चमकीले लैम्प जल रहे थे।

जितनी देर वह उस महल में घूमती रही वह दोहराती ही रही — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”

फिर वह एक ऐसी जगह आ गयी जहाँ एक बहुत बढ़िया खाने की मेज लगी हुई थी। वह कई दिनों की भूखी थी सो वह उस मेज पर बैठ गयी और पेट भर खाना खाया।

फिर वह एक सोने वाले कमरे में चली गयी। वह जैसे ही पलंग पर लेटी उसको तुरन्त ही नींद आ गयी और वह गहरी नींद सो गयी।

रात को पता नहीं कब उसने कुछ आवाज सुनी जो उसे लगा कि वह आवाज किसी चूहे की पूँछ के इधर उधर होने से हुई थी। उसने अपनी ऑख खोली पर वहाँ घुप अ‍ँधेरा होने की वजह से उसे कुछ दिखायी तो नहीं दिया पर चूहे के कमरे में इधर उधर घूमने की आवाज अभी भी आ रही थी।

फिर उसको लगा कि कोई चूहा उसके पलंग पर चढ़ा और उसकी ओढ़ने वाली चादर के अन्दर आ गया। वह उसका चेहरा सहलाने लगा था। उसके मुँह से चूहे की छोटी छोटी चीं चीं की आवाज निकल रही थी।

राजकुमारी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कुछ बोले। बस वह चुपचाप काँपती सी बिस्तर पर एक कोने में सुकड़ी पड़ी रही।

अगली सुबह जब वह उठी तो वह उस महल में फिर से घूमी पर वहाँ तो कोई नहीं था। उस रात को भी खाने की मेज पहली रात की तरह ही लगी हुई थी सो उसने खाना खाया और सो गयी।

एक बार फिर उसने कमरे में चूहे के भागने की आवाज सुनी। वह चूहा अब की बार उसके चेहरे के ऊपर आ गया पर उसकी बोलने की हिम्मत उस दिन भी नहीं हुई और उस दिन भी वह वैसे ही चुपचाप पड़ी रही।

तीसरी रात को जब उसने चूहे के घूमने की आवाज सुनी तब उसने हिम्मत करके गाया — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”

तभी एक आवाज ने कहा — “लैम्प जलाओ।”

राजकुमारी ने एक मोमबत्ती जलायी तो उसने देखा कि वहाँ कोई चूहा वूहा नहीं था वहाँ तो एक सुन्दर राजकुमार खड़ा था।

वह बोला — “मैं ही हूँ वह बू वाला बड़ी पूँछ वाला चूहा। मेरे ऊपर पड़े जादू से मुझको आजाद कराने के लिये मुझे एक ऐसी लड़की से मिलना जरूरी था जो मुझे प्यार करे और वह सब कुछ सहे जो तुमने सहा।”

राजकुमारी उस राजकुमार को देख कर तो बहुत खुश हो गयी। दोनों फिर वह गुफा छोड़ कर बाहर आ गये और दोनों ने शादी कर ली।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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