लामा ल्हात्सुन छेंबो : सिक्किम की लोक-कथा

Lama Lhatsun Chhembo : Lok-Katha (Sikkim)

भुटिया समुदाय के लिए लामा ल्हात्सुन, छेंबो संरक्षक देवता हैं। उनकी मान्यता है कि उनके संरक्षक देवता भारत के महान् शिक्षक भीम मित्र का पुनर्जन्म है। सिक्किम की धरती में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में उनके महत्त्व को स्वीकार किया जाता है। नामग्याल वंश के प्रथम शासक फुनसोक नामग्याल की राजतंत्र शासन कायम करने में उनके योगदान को नकार नहीं सकते हैं। बहुत सारे लोगों का यह विश्वास है कि लामा ल्हासुन छेंबो कोई मामूली लामा नहीं थे, बल्कि उनके पास कई चमत्कारिक शक्तियाँ थीं। इनका जन्म तिब्बत में हुआ था। जब वे युवा थे, उन्होंने उसी समय यहाँ-वहाँ यात्रा कर कई मंदिरों, बौद्ध मठों से शिक्षा अर्जित की और बहुत ही कम समय में उन्होंने बहुत अध्ययन कर लोगों को चकित कर दिया था।

वे बड़े ही ज्ञानी थे और ऐसा कोई विषय नहीं था, जिस पर उनकी पकड़ नहीं थी। तिब्बत के बड़े विद्वान् भी लामा ल्हासुन ,बो के सामने नत-मस्तक होते थे और उनके ज्ञान की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। तिब्बत के इतिहास में उल्लेखनीय घटना के रूप में इस घटना का जिक्र है कि लामा ल्हासुन छेंबो तिब्बत के राजदरबार में वहाँ के बड़े धर्मगुरु से भेंट करने पहुंचे। उनके पोटाला महल पहुँचने से पहले ही वहाँ के बड़े धर्मगुरु ने इस बात का जिक्र किया था कि महल में किसी बड़े धार्मिक संत का आगमन होना निश्चित है, इसलिए उनके स्वागत की तैयारी करने के लिए उन्होंने अपने दरबारियों से कहा। लेकिन लामा ल्हासुन छेंबो जब महल में आए तो दरबारी उन्हें पहचान नहीं पाए। लामा ल्हासुन छेंबो ने अपना शंख बजाते हुए दरबाद में प्रवेश किया। उसके शोर से दरबारी नाराज हो गए थे, इसलिए उन्हें पकड़कर कारावास में बंद कर दिया गया। अपने सम्मान में ऐसी ज्यादती देखकर उन्होंने चीन के पोटाला महल को हिलाकर रख दिया।

बाद में दरबारियों की क्षमा याचना के बाद उन्हें ससम्मान बाहर निकाला गया। उन्होंने सारे लामाओं के मध्य जमीन पर एक जोर का मुक्का मारा और वहाँ सभी के सामने उन्होंने उलटी कर दी। उन्होंने वहाँ के प्रधान लामा से कहा, "तुम बहुत जल्द चीन जाओगे। रास्ते में कई भयानक स्थितियों से तुम्हें गुजरना होगा, लेकिन मैं सारे खतरों से तुम्हारी रक्षा करूँगा। चीन में भी तुम्हें खतरा होगा, पर उसकी तुम चिंता मत करना।" कहकर उन्होंने उनके समक्ष एक पत्र निकालकर बढ़ा दिया। जब भी तुम्हें लगे कि तुम मुसीबत में फँसे हो, इसे पढ़ देना, उस संकट से तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी। मेरा तुम्हारे समक्ष उलटी करना तुम्हारा अपमान करना नहीं है, दरअसल इस बात का संकेत है कि बहुत जल्द तुम्हारे दिन बदलने वाले हैं और तुम बहुत ही धनी और शक्ति से संपन्न होने जा रहे हो।

लामा ल्हासुन छेंबो की भविष्यवाणी जल्द सच साबित हुई। तिब्बत के बड़े लामा को चीन से बुलावा आया। रास्ते में कई कठिनाइयाँ आईं। सबसे आसानी से निपटते हुए अंत में राजदरबार पहुँचे, जहाँ उनसे कई सवाल-जवाब हुए। जिसका जवाब प्रधान लामा को नहीं मालूम था, पर लामा ल्हासुन छेंबो का कहा उसके स्मरण में था, उसने उस पत्र के माध्यम से उनका उत्तर दिया। राजा उस प्रधान लामा के उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए। चीन में तिब्बत के प्रधान लामा का खूब सम्मान हुआ। उन्हें खूब धन-वैभव से सम्मानित किया गया। प्रधान लामा ल्हासुन छेंबो की भविष्यवाणी को सच पाकर बहुत खुश हुआ। तिब्बत वापस लौटकर लामा ल्हासुन छेंबो का बड़ा सम्मान किया गया। उन्हें राजदरबार में उच्च पद देने की सिफारिश की गई, पर लामा ल्हासुन छेंबो ने साफ इनकार कर दिया। वे किसी पद के अभिलाषी नहीं थे। वे गुरु रिबोछी द्वारा प्रतिपादित कुछ धार्मिक रहस्य की खोज करना चाहते थे, जिसने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। उन्हीं के निर्देश अनुसार सिक्किम का उत्तरी मार्ग, जो अवरोधित था, उसका द्वार उन्होंने खोल दिया। वे सिक्किम में बौद्ध धर्म का प्रचार करते रहे। उन्होंने इस बात का संकेत दिया कि धर्म के नाम पर सिक्किम में जो उनके द्वारा किया गया, वह पहले से ही निर्दिष्ट था, उन्होंने सिर्फ उसका पालन भर किया।

कहा जाता है कि सिक्किम की वादियों में आकर कंचनजंगा की पहाड़ियों में बनी गुफाओं में उन्होंने तप किया, जहाँ कंचनजंगा स्वयं एक पवित्र हंस का रूप धरकर उनसे बातचीत करने आई। पर्वतों के जादुई रूप को देखकर लामा ल्हासुन छेंबो प्रसन्न हुए और उन्होंने उनकी प्रार्थना के लिए एक पुस्तक की रचना की। कंचनजंगा पर्वत की पूजा के लिए मंत्रों का निर्माण उनके द्वारा हुआ। वे हिमालय पर्वत के पार नहीं जा पाए। उनके लिए दक्षिण का पथ नहीं पाकर वे अपनी चमत्कारिक शक्ति के द्वारा यहाँ विचरण करते रहे। पश्चिमी और दक्षिणी दिशा से आए हुए दो लामाओं से उनकी वहाँ भेंट हुई। उनकी मुलाकात कंचनजंगा के चरणों में हुई। लेपचा उस जगह को 'योक्सम' कहते हैं, जिसका आशय हैतीन महान् लामाओं की मिलन-स्थली।' उन तीन लामाओं ने गुरु रिबोछी की भविष्यवाणी की बात कही। जहाँ उन्होंने कहा था, 'चार भाई इस राज्य में आएँगे और अपने राज शासन की स्थापना करेंगे। जिनके सहयोग से बौद्ध धर्म यहाँ फैलेगा।'

अब यह प्रश्न उठा कि वह चौथा लामा कहाँ से आएगा, जिसका आना पूर्वी दिशा से तय है। भगवान् की कृपा से उन्होंने छंबी घाटी में फुनसोक नामग्याल से भेंट की, जो पूर्वी दिशा में अवस्थित है। यह चौथा लामा ही सिक्किम राजतंत्र के प्रथम शासक हुआ। लामा ल्हासुन छेंबो भूटिया और सिक्किम वासियों के श्रद्धा और सम्मान के पात्र हैं। यहाँ के स्थानीय लोग अपने संरक्षक देवता के रूप में उन्हें पूजते हैं और सिक्किम भर में प्रचारित बौद्ध धर्म तथा राजतंत्र शासन की व्यवस्था की स्थापना में उनके योगदान को स्वीकार करते हैं। वे आज भी उनकी पूजा करते हैं।

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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